भूमि शयन विचार – bhumi shayan vichar

भूमि शयन विचार - bhumi shayan vichar भूमि शयन विचार - bhumi shayan vichar

भारतीय ज्योतिष शास्त्र और वास्तुशास्त्र में ‘भूमि शयन’ (bhumi shayan) एक ऐसी अवस्था है जो नक्षत्रों की शक्ति या काल की विशिष्ट प्रकृति के कारण पृथ्वी से संबंधित कार्यों (जैसे नींव खोदना, गृह निर्माण, खनन) के लिए निष्क्रिय या अशुभ मानी जाती है। यह अवस्था सीधे किसी एक नक्षत्र के नाम से नहीं, अपितु सूर्य-गोचर के सापेक्ष चन्द्र नक्षत्र के द्वारा निर्धारित होती है। यहां हम भूमि शयन विचार को शास्त्रोक्त प्रमाण के आधार पर समझने का प्रयास करेंगे।

गृहारंभ, कूप, तडाग, खनन, कृषि आदि कार्यों में शुभ फल कामना को लेकर यह आवश्यक होता है कि मुहूर्त शुद्धि में भूमि शयन का भी विचार करें। भूमि शयन का त्याग करके ही इन कार्यों को करना चाहिये। अब बात भूमि शयन विचार की आती है तो इसे हम इस प्रकार से समझ सकते हैं की सूर्य के सापेक्ष चन्द्र नक्षत्र का विचार करके भूमि के शयन का निर्धारण किया जाता है। इसके संबंध में ज्योतिष/वास्तु ग्रंथों में जो प्रमाण मिलता है वो इस प्रकार है :

प्रद्योतनात् पंचनगांक सूर्यो, नवेंदु षड्विंशमितानि भानि।
सुप्ता मही नैव गृहं विधेयं, तड़ाग-वापी खननं नशस्तम्॥

यद्यपि इसका मूल प्राप्त नहीं हो पाया है किन्तु यह ज्योतिष के ग्रंथों में भूमि शयन विचार के लिये प्राप्त होता है। इस श्लोक के अनुसार सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र की गणना करे और यदि चन्द्र नक्षत्र पांचवां, सातवां, नौवां, बारहवां, उन्नीसवां और छब्बीसवां हो तो वह नक्षत्र भूमि शयन नक्षत्र होता है।

अर्थात सूर्य नक्षत्र से 5, 7, 9,12,19 या 26वें नक्षत्र में चन्द्रमा हो तो उसे भूमि शयन नक्षत्र जान कर उस दिन गृह/वास्तु, तडाग, कूप, खनन, कृषि आदि कार्य न करे।

उदाहरण – भूमि शयन नक्षत्र कैसे ज्ञात करें

जैसा की हम सभी जानते हैं नक्षत्रों की संख्या २७ होती है और किन्तु इन विषयों में हमें नक्षत्र संख्या २७ न मानकर जो वास्तविक संख्या २८ है वह ग्रहण करना होता है। यदि हम २७ नक्षत्रों की गणना करके विचार करेंगे तो गणना में त्रुटि हो जायेगी एवं २८ नक्षत्र मानकर ही इस प्रकार की गणनायें होती है ऐसा ज्योतिष के सिद्धांतों, मुहूर्त नियमों से सिद्ध होता है। वर्त्तमान में पंचांग २७ नक्षत्र गणना करते हैं अथवा २८ यह तो ज्ञात नहीं है किन्तु यदि २७ नक्षत्र गणना द्वारा भूमि शयन निर्धारित करते हैं तो उसमें त्रुटि होती है।

सामान्य ज्योतिषीय गणना में सुविधा के लिये अभिजीत नक्षत्र को नहीं ग्रहण किया जाता है किन्तु मुहूर्त निर्धारण में ग्रहण किया जाता है। इस कारण आगे हम अभिजीत नक्षत्र सहित २८ नक्षत्रों की सूचि दे रहे हैं :

२८ नक्षत्रों के नाम और क्रम

  1. अश्विनी
  2. भरणी
  3. कृत्तिका
  4. रोहिणी
  5. मृगशिरा
  6. आर्द्रा
  7. पुनर्वसु
  8. पुष्य
  9. आश्लेषा
  10. मघा
  11. पूर्वाफाल्गुनी
  12. उत्तराफाल्गुनी
  13. हस्त
  14. चित्रा
  1. स्वाति
  2. विशाखा
  3. अनुराधा
  4. ज्येष्ठा
  5. मूल
  6. पूर्वाषाढ़ा
  7. उत्तराषाढ़ा
  8. अभिजीत
  9. श्रवण
  10. धनिष्ठा
  11. शतभिषा
  12. पूर्वभाद्रपदा
  13. उत्तरभाद्रपदा
  14. रेवती

यदि सूर्य अश्विनी नक्षत्र में हो तो पांचवां नक्षत्र मृगशिरा, सातवां पुनर्वसु, नौवां आश्लेषा, बारहवां उत्तराफाल्गुनी, उन्नीसवां मूल और छब्बीसवां पूर्वभाद्रपदा है। यदि चन्द्रमा इनमें से किसी भी नक्षत्र में हो तो उस दिन भूमि शयन कहा जायेगा। ध्यातव्य यह है कि यह विचार नक्षत्र तक ही मान्य है यदि भूमि शयन नक्षत्र प्रातः ८ बजे समाप्त हो जाये तो अगले नक्षत्र में भूमि शयन मान्य नहीं होगा।

अब हम मान लेते हैं कि सूर्य हस्त नक्षत्र में है तो उससे पांचवां अनुराधा, सातवां मूल, नौवां उत्तराषाढ़ा, बारहवां धनिष्ठा, उन्नीसवां कृत्तिका और छब्बीसवां नक्षत्र मघा है। यदि चन्द्रमा इन नक्षत्रों में रहे तो उस नक्षत्र में अन्यान्य शुभ लक्षण होने पर भी वो कार्य नहीं किया जायेगा जिसमें भूमि शयन का विचार करना अपेक्षित हो।

निष्कर्ष

गृह/वास्तु, तडाग, कूप, खनन, कृषि आदि कार्यों में भूमि शयन का विचार करना ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आवश्यक होता है। सूर्य नक्षत्र से 5, 7, 9,12,19, या 26वें नक्षत्र में चन्द्रमा हो तो उसे भूमि शयन नक्षत्र जाने और उस नक्षत्र में उक्त कार्य न करे।

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