भारतीय काल गणना (kaalchakra) की अद्भुत व्यवस्था – अहोरात्र, मास, वर्ष, दिव्यवर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प

भारतीय काल गणना (kaalchakra) की अद्भुत व्यवस्था - अहोरात्र, मास, वर्ष, दिव्यवर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प भारतीय काल गणना (kaalchakra) की अद्भुत व्यवस्था - अहोरात्र, मास, वर्ष, दिव्यवर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प

भारतीय शास्त्रों, विशेषकर ‘सूर्य सिद्धांत’, ‘मनुस्मृति’ और ‘श्रीमद्भागवत व अन्य पुराणों’ में काल (kaalchakra) की गणना अत्यंत सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। किन्तु इसे सही-सही समझना थोड़ा कठिन कार्य है जिसे यहां हम सरलता से समझने का प्रयास करेंगे। यहाँ समय रेखीय (Linear) न होकर चक्रीय (Cyclical) है और इसी कारण कालचक्र शब्द प्रयुक्त होता है। अधिक जानकारी के लिये ज्योतिष शास्त्रों का भी अध्ययन किया जा सकता है। यहाँ भारतीय शास्त्रों के अनुसार युग व्यवस्था और मानवीय व दैवीय वर्षों के गणित पर विस्तृत आलेख प्रस्तुत है।

भारतीय काल-गणना – एक परिचय : सनातन शास्त्रों (ज्योतिष, स्मृति, पुराण आदि) में समय को ‘काल चक्र’ के रूप में देखा जाता है। जिस प्रकार दिन और रात का चक्र चलता है, उसी प्रकार देवता से लेकर ब्रह्मा पर्यन्त भी अहोरात्र का चक्र चलता रहता है जिसे ब्रह्मांड में युगों का चक्र के रूप में व्यक्त कर सकते हैं। इस गणना का आधार केवल पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर घूमना नहीं है, अपितु देवताओं के समय (दिव्य वर्ष – देवताओं के वर्ष को दिव्य वर्ष कहा जाता है) और मनुष्यों के समय (मानवीय वर्ष) के बीच का संबंध है।

मानवीय और दैवीय वर्ष का संबंध

शास्त्रों में काल गणना का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र यह है कि “मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं का एक दिन-रात (अहोरात्र) होता है। मनुष्यों का एक दिन-रात अहोरात्र कहलाता है, एक अहोरात्र में 30 मुहूर्त होते हैं । 30 अहोरात्र का एक मास होता है जिसके दो पक्ष भी होते हैं एवं 12 मास का एक वर्ष होता है। ये मानवीय वर्ष है और हमारा एक वर्ष देवताओं का एक अहोरात्र होता है। मानव का एक वर्ष यदि देवताओं का एक अहोरात्र है तो मानव के 30 वर्ष देवताओं का एक माह और मानव के 360 वर्ष देवताओं का एक वर्ष होता है जिसे दिव्य वर्ष कहते हैं।”

  • उत्तरायण (देवताओं का दिन) : जब सूर्य उत्तर की ओर होता है (६ महीने – मकर से लेकर कर्क संक्रांति तक), तो यह देवताओं का दिन है।
  • दक्षिणायन (देवताओं की रात्रि) : जब सूर्य दक्षिण की ओर होता है (६ महीने – कर्क से लेकर मकर संक्रांति तक), तो यह देवताओं की रात्रि है।

गणितीय सूत्र :

  • १ मानवीय वर्ष = देवताओं का एक दिन
  • ३० मानवीय वर्ष = देवताओं का ३० दिन एक मास
  • ३६० मानवीय वर्ष = देवताओं का 360 दिन या एक वर्ष अर्थात दिव्य वर्ष

चतुर्युग व्यवस्था (The Four Yugas)

चतुर्युग अर्थात सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग को चतुर्युग कहते हैं एवं इसी को महायुग भी कहते हैं। इन युगों की अवधि का अनुपात 4:3:2:1 का होता है। प्रत्येक युग के साथ एक ‘संध्या’ (दशांश) और ‘संध्यांश’ (दशांश) का समय भी जुड़ा होता है। 12 हजार दिव्य वर्षों का एक महायुग होता है। विष्णु पुराण में ऐसा कहा गया है :

दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु कृतत्रेतादिसंज्ञितम् । चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोध मे ॥
चत्वारि त्रीणि द्वै चैकं कृतादिषु यथाक्रमम् । दिव्याब्दानां सहस्राणि युगेष्वाहुः पुराविदः ॥
तत्प्रमाणैः शतैः सन्ध्या पूर्वा तत्राभिधीयते । सन्ध्यांशश्चैव तत्तुल्यो युगस्यानन्तरो हि सः ॥

यहाँ शास्त्रों के अनुसार दैवीय और मानवीय वर्षों की तालिका दी गई है जिसके द्वारा सरलता से समझ सकते हैं :

युग का नामदिव्य वर्ष
(संध्या+युगवर्ष+संध्यांश)
मानवीय वर्ष धर्म के चरण
१. सत्ययुग (कृतयुग)4,800 (400+4000+400)17,28,0004 (पूर्ण)
२. त्रेतायुग3,600 (300+3000+300)12,96,0003
३. द्वापरयुग2,400 (200+2000+200)8,64,0002
४. कलियुग1,200 (100+1000+100)4,32,0001
कुल (१ महायुग)12,00043,20,000

ध्यातव्य : दैवीय वर्षों में मुख्य युग की अवधि के साथ उनकी संध्या और संध्यांश की अवधि भी शामिल है। उदाहरण के लिए, कलियुग में 1000 दिव्य वर्ष मुख्य + 100 दिव्य वर्ष संध्या + 100 दिव्य वर्ष संध्यांश = 1200 दिव्य वर्ष हैं।

इसी प्रकार अन्य युगों में भी संध्या और संध्यांश मिला कर गणना बताई गयी है। मुख्य रूप से देवताओं के 4 हजार वर्ष का एक सतयुग होता है जो संध्या 400 वर्ष और संध्यांश 400 वर्ष मिलाकर कुल 4800 वर्ष हुये, इसी प्रकार त्रेता 3000 दिव्य वर्ष और 300+300 = 600 मिलाकर 3600 दिव्यवर्ष, एवं द्वापर 2000 दिव्यवर्ष और 200+200 = 400 मिलकर 2400 दिव्यवर्ष, एवं कलयुग 1000 वर्ष और 100+100 = 200 मिलाकर 1200 दिव्यवर्ष।

चार, तीन, दो और एक दिव्य सहस्र वर्ष सत्यादि युगों के मान हैं और इसके दशांश संध्या एवं दशांश संध्यांश भी होते हैं।

चतुर्युग अर्थात सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग को चतुर्युग कहते हैं एवं इसी को महायुग भी कहते हैं। इन युगों की अवधि का अनुपात 4:3:2:1 का होता है। प्रत्येक युग के साथ एक ‘संध्या’ (दशांश) और ‘संध्यांश’ (दशांश) का समय भी जुड़ा होता है। 12 हजार दिव्य वर्षों का एक महायुग होता है।

युगों का विवरण और लक्षण

शास्त्रों में युगों का विभाजन केवल समय के आधार पर नहीं, बल्कि ‘धर्म’ और मानवीय चेतना व गुण-अवगुणों के स्तर पर भी किया गया है। धर्म को वृष (बैल) स्वरूप में माना गया है जिसके चार चरण होते हैं। सतयुग में चारों चरण रहते हैं और यही चारों चरण क्रमशः अगले युगों में घटते जाते हैं एवं कलयुग में मात्र एक चरण “दान” ही शेष रहता है।

युगक. सत्ययुगख. त्रेतायुगग. द्वापरयुगघ. कलियुग
अवधि (मानव वर्ष)17,28,00012,96,0008,64,0004,32,000
अवधि (दिव्य वर्ष)4800360024001200
लक्षणइस युग में धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, दया, तप और दान) पर खड़ा होता है। मनुष्य की औसत आयु और शरीर बहुत अधिक होता है। पाप का अस्तित्व नगण्य होता है।धर्म का एक चरण कम हो जाता है। अब धर्म ३ चरणों पर होता है। इस युग में यज्ञ और कर्मकांड की प्रधानता होती है। श्री राम का अवतार इसी युग में माना जाता है।धर्म के दो चरण नष्ट हो जाते हैं और वह केवल २ चरणों पर टिका होता है। अधर्म और पुण्य का संतुलन बराबर हो जाता है। महाभारत और भगवान कृष्ण का अवतार इसी कालखंड का है।यह वर्तमान युग है। इसमें धर्म का केवल एक चरण (दान) शेष रहता है, और वह भी धीरे-धीरे क्षीण होता है। क्लेश, कलह और अधर्म की प्रधानता होती है।

कलियुग का प्रारंभ ३१०२ ईसा पूर्व (3102 BCE) में हुआ था।

वृहद गणना: मन्वन्तर और कल्प

युग व्यवस्था यहीं समाप्त नहीं होती। यह एक बहुत बड़ी खगोलीय गणना का छोटा हिस्सा है:

कृतं त्रेता द्वाररश्च कलिश्चैव चतुर्युगम् ।
प्रोच्यते तस्तहस्रं च ब्रह्मणो दिवसं मुने ॥
ब्रह्मणो दिवसे ब्रह्मन्मनवस्तु चतुर्दश ।
भवन्ति परिमाणं च तेषां कालकृतं श्रृणु ॥

विष्णुपुराण के उक्त श्लोकों के अनुसार ब्रह्मा के एक दिन में सहस्र महायुग (चतुर्युग) होते हैं अर्थात १२,००,००० दिव्य वर्ष या ४३,००,००,००० मानवीय वर्ष होते हैं। ब्रह्मा के एक दिन में १४ मनु होते हैं और प्रत्येक का काल ७१ चतुर्युग (से भी कुछ अधिक का) होता है।

  • चार युग = एक चतुर्युग या महायुग
  • ७१ महायुग = १ मन्वन्तर
  • १४ मन्वन्तर = १ कल्प (ब्रह्मा जी का एक दिन)
  • १ कल्प = १,००० महायुग = ४ अरब ३२ करोड़ मानव वर्ष

निष्कर्ष

भारतीय ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व ही समय की सापेक्षता (Relativity of Time) को समझ लिया था। जहाँ एक तरफ सूक्ष्म समय ‘त्रुटी’ (सेकंड का हजारवां हिस्सा) है, वहीं दूसरी तरफ ‘कल्प’ (अरबों वर्ष) जैसी विशाल गणनाएं हैं। यह व्यवस्था ब्रह्मांड की विशालता और नश्वरता का बोध कराती है।

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