देशांतर शब्द का अर्थ तो देश का अंतर अथवा देशों में अंतर होता है। किन्तु यह शब्द मुख्य रूप से ज्योतिष में प्रयोग किया जाता है और वो भी इस अन्य क्षेत्रीय पंचांगों का स्वक्षेत्रीय प्रयोग करने के लिये। इस हेतु देशांतर सारणी की भी आवश्यकता होती है। इस आलेख में देशांतर/रेखांश की चर्चा करते हुये प्रज्ञा पंचांग के लिये उपयोगी देशांतर सारणी दी गयी है।
देशांतर रेखा क्या है or देशांतर रेखा किसे कहते हैं
देश और अंतर दो शब्दों के संयुक्त होने से देशांतर बनता है जिसका तात्पर्य दो देशों का अंतर, दो देशों में अन्तर, दो देशों की स्थिति-परंपरा-व्यवहार आदि का अंतर आदि भी लिया जा सकता है। यहां देश शब्द का तात्पर्य दो क्षेत्र विशेष होता है न कि भारत-पाकिस्तान आदि। क्षेत्र का तात्पर्य भी राज्य आदि न होकर पंचांग का क्षेत्र होता है, पंचांग के क्षेत्र का तात्पर्य जिला, ग्राम आदि भी नहीं होता है अपितु पंचांग निर्माण में प्रयुक्त क्षेत्र विशेष जिसका अक्षांश, रेखांश गणना हेतु ग्रहण किया जाता है।
ज्योतिष की गणना द्वारा अंतरिक्ष में विभिन्न पिंडों की स्थिति को ज्ञात किया जाता है एवं पंचांग में उसी स्थिति को अंकित किया जाता है। यदि पृथ्वी मात्र की गणना करनी हो तो गज, फीट, मीटर, किलोमीटर, मील, कोस आदि माप से की जाती है किन्तु अंतरिक्ष के पिंडों की स्थिति इन मानकों से नहीं की जा सकती। उसके लिये कोणीय दूरी को आधार बनाया जाता है। कोणीय दूरी को आधार मानकर गणना करने से 360 डिग्री/अंश में स्थिति ज्ञात होती है।
इन अंशों का निर्धारण दो प्रकार से किया जाता है जिसके लिये पृथ्वी पर प्रतीकात्मक रूप से रेखा मानी जाती है। दोनों प्रकार हैं उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम। उत्तर से दक्षिण की स्थिति हेतु जो प्रतीकात्मक रेखा मानी जाती है उसे अक्षांश कहते हैं, यह रेखा पूर्व-पश्चिम क्रम से होती है। वहीं पूर्व-पश्चिम में स्थिति ज्ञात करने हेतु पृथ्वी पर जो दक्षिणोत्तर प्रतीकात्मक रेखा होती है उसे रेखांश कहते हैं। इन अक्षांश और रेखांश के माध्यम से पृथ्वी की किसी विशेष स्थान (बिंदु) का ज्ञान प्राप्त होता है एवं अंतरिक्ष की में पिंडों की स्थिति ज्ञात करने के लिये इन बिंदुओं के आधार पर ही गणना की जाती है।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी पर पूर्व-पश्चिम दूरी का ज्ञान कराने वाली रेखा जो याम्योत्तर होती है उसे ही रेखांश (Longitudes) कहा जाता है। रेखांश का निर्धारण करने के लिये ग्रीनव्हिच की रेखा को 0 अर्थात शून्य अंश माना जाता है।
देशांतर किसे कहते हैं
जिस विशेष रेखांश/देशांतर रेखा के आधार पर पंचांग गणना की जाती है उसमें सूर्योदय, सूर्यास्त उसी स्थान विशेष का दिया जाता है। उस रेखांश से भिन्न रेखांशों को ही भिन्न देश समझना चाहिये और उन दो देशों में सूयोदय-सूर्यास्त आदि के अंतर समय को देशांतर।
एक रेखांश से दूसरे रेखांश में सूर्य 4 मिनट पश्चात उदितास्त होता है अथवा गमन करता है, एवं एक स्थान से दूसरे स्थान पर सूर्य के उदयास्त के अंतर को ही ज्योतिष में देशांतर कहा जाता है। यह गणना विपरीत होती है अर्थात रेखांश से ज्ञात काल की विपरीत क्रिया (धन का ऋण और ऋण का धन) की जाती है।
उदाहरण यदि सूर्य 82/30 रेखांश पर प्रातः 6 बजे उदित होता है तो रेखांश 81/30 पर रेखांश पर 4 मिनट विलंब अर्थात 6 बजकर 4 मिनट पर उदित होगा। इसी को ज्योतिष में देशांतर कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो सभी पंचांगों में किसी न किसी स्थान विशेष के अक्षांश और रेखांश के आधार पर गणना की जाती है एवं उसमें दिये गये सूर्योदय-सूर्यास्त उसी स्थान विशेष के होते हैं। उस स्थान के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर सूर्योदयास्त में 4 मिनट का प्रतिरेखांश होता है इसी अंतर को देशांतर कहा जाता है। इसलिये सभी पंचांगों में गणना का अक्षांश, रेखांश एवं विशेष स्थानों का देशांतर भी अंकित किया जाता है। यह देशांतर उक्त पंचांग के आधार रेखांश के आधार पर निर्धारित होता है इस लिये जिस पंचांग का उपयोग कर रहे होते हैं उसी के देशांतर को भी ग्रहण करते हैं।
मिथिला के पचांग का उपयोग करते समय वाराणसी पंचांग से प्राप्त देशांतर का उपयोग उचित नहीं होगा एवं वाराणसी पंचांग का उपयोग करते समय मिथिला पंचांग से प्राप्त देशांतर का उपयोग करना भी अनुचित होगा। इसी कारण यदि आप प्रज्ञा पंचांग का उपयोग करते हैं तो प्रज्ञा पंचांग के देशांतर का प्रयोग करना ही उचित होगा, अन्य पंचांगों का देशांतर प्रयोग नहीं होगा।
नीचे प्रज्ञा पंचांग के उपयोग में प्रयुक्त होने वाली देशांतर सारणी दी गयी है। प्रारंभ में कुछ विशेष स्थानों का ही संग्रह किया गया है तथापि आपकी आवश्यकतानुसार अन्य स्थान भी इसमें अंकित किये जायेंगे। यदि आप अपने जिले का देशांतर चाहते हैं और सारणी में अनुपलब्ध हो तो आप हमें ईमेल करके अवश्य सूचित करें; email : info@karmkandsikhen.in
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