यद्यपि जन्म कुंडली और राशि कुंडली के बाद वर्ग विचार में षोडशवर्ग विचार भी किया जाता है अर्थात षोडश वर्ग बनाया जाता है, यदि षोडश वर्ग न बनाना हो तो षड्वर्ग बनाया जाता है जिसमें लग्न कुंडली मिलने से सप्तवर्ग हो जाता है। किन्तु जन्म कुंडली और चंद्र कुंडली के पश्चात् यदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण कोई अन्य कुंडली होती है तो वो नवमांश कुंडली होती है। नवमांश कुंडली (navmansh kundli) को ही नवांश कुंडली भी कहा जाता है, यहां हम नवमांश कुंडली बनाना सीखेंगे।
नवमांश कुंडली कैसे बनाते हैं – navmansh kundli
जैसे एक राशि में सवा दो नक्षत्र होता है और यदि इसे नक्षत्रों के चरणानुसार समझें तो एक राशि में ९ चरण होते हैं क्योंकि एक राशि में सवा दो नक्षत्र होता है और एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं इस प्रकार एक राशि में कुल ९ चरण होते हैं। जैसे माला में १०८ मनके होते हैं उसी प्रकार नक्षत्र माला में भी कुल १०८ मनके होते हैं।
नक्षत्र माला के १०८ मनके
- नक्षत्रों की कुल संख्या ~ २७
- एक नक्षत्र में चरण होते हैं ~ ४
- कुल चरण ~ २७ × ४ = १०८
यही है नक्षत्र माला जो प्रतिदिन पृथ्वी के चारों और भ्रमण करती दिखती है और इसमें कुल १०८ मनके (चरण) हैं। जप माला में जो १०८ मनके होते हैं उसका एक मूल कारण भी यही है।
नक्षत्र माला के मनके में ग्रहों की स्थिति के अनुसार जो कुंडली बनती है वह इसी कारण से विशेष महत्वपूर्ण होती है और इसी कुंडली को नवांश कुंडली अथवा नवमांश कुंडली कहते हैं।
ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
नवमांश कुंडली
पुनः ज्योतिष में जो मुख्य रूप से बताया जाता है वह इस प्रकार है लग्न आधारित कुंडली लग्न कुंडली होती है, और उसी लग्न के भिन्न-भिन्न प्रकार के अंशात्मक भाग करके जो कुंडली बनायी जाती वह अंशों के आधार पर नाम रखती है यथा राशि के ९ भाग करके जो कुंडली बनायी जाती है वो नवांश कुंडली या नवमांश कुंडली कही जाती है।
नवमांश कुंडली के लिये लग्न अर्थात राशि के नौ भाग किये जाते हैं जिसका तात्पर्य यह है कि लग्न या राशि मान ३० अंश होता है इस ३० अंश के ९ भाग किये जाते हैं। ३० अंश में ९ से भाग देने पर ३ अंश २० कला होता है।
इसमें लग्न स्पष्ट के अनुसार लग्न और ग्रहों के स्पष्ट को किस नवांश में स्थित है यह ज्ञात किया जाता है और उसी के अनुसार कुंडली बनाकर लग्न स्थापन और तदनुसार ग्रह स्थापन किया जाता है।
यथा यदि लग्न ५/७/३०/४८ है तो इसका तात्पर्य है कि कन्या राशि का ७ अंश ३० कला और ४८ विकला है। प्रथम नवांश होता ५/३/२०, इसमें लग्न स्पष्ट नहीं आ रहा है, द्वितीय नवांश होता ५/६/४० तक और इसमें भी लग्न स्पष्ट नहीं आ रहा है, तृतीय नवांश ५/१० तक होता है और लग्न स्पष्ट इसी भाग में पाया जा रहा है इस प्रकार तृतीय नवांश सिद्ध होता है अर्थात सारणी में जो तृतीय लग्न मिलेगा उसके अनुसार नवांश लग्न सिद्ध होगा।
नवांश लग्न
अब हम पूर्व आलेख में शताब्दि पंचांग से ज्ञात किये गये लग्नस्पष्ट के आधार पर नवांश लग्न ज्ञात करके देखेंगे। हमने स्वोदय विधि से लग्नानयन करके जो लग्न ज्ञात किया था वो ४/२६/२१/१४ था। इसी के अनुसार हम पूर्व आलेख के लिये नवांश लग्न ज्ञात करके और ग्रहस्पष्ट के आधार पर नवांश कुंडली भी बनायेंगे। आगे बढ़ने से पूर्व हमें नवांश सारणी की भी आवश्यकता होगी और नवांश सारणी से ही हम लग्न व ग्रहों के नवांश ज्ञात करेंगे।
नवांश | अंशादि | मेष | वृष | मिथुन | कर्क | सिंह | कन्या | तुला | वृश्चिक | धनु | मकर | कुम्भ | मीन |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
प्रथम | ३/२० | १ | १० | ७ | ४ | १ | १० | ७ | ४ | १ | १० | ७ | ४ |
द्वितीय | ६/४० | २ | ११ | ८ | ५ | २ | ११ | ८ | ५ | २ | ११ | ८ | ५ |
तृतीय | १०/०० | ३ | १२ | ९ | ६ | ३ | १२ | ९ | ६ | ३ | १२ | ९ | ६ |
चतुर्थ | १३/२० | ४ | १ | १० | ७ | ४ | १ | १० | ७ | ४ | १ | १० | ७ |
पंचम | १६/४० | ५ | २ | ११ | ८ | ५ | २ | ११ | ८ | ५ | २ | ११ | ८ |
षष्ठ | २०/०० | ६ | ३ | १२ | ९ | ६ | ३ | १२ | ९ | ६ | ३ | १२ | ९ |
सप्तम | २३/२० | ७ | ४ | १ | १० | ७ | ४ | १ | १० | ७ | ४ | १ | १० |
अष्टम | २६/४० | ८ | ५ | २ | ११ | ८ | ५ | २ | ११ | ८ | ५ | २ | ११ |
नवम | ३०/०० | ९ | ६ | ३ | १२ | ९ | ६ | ३ | १२ | ९ | ६ | ३ | १२ |
ऊपर नवांश चक्र दिया गया है और अब हम लग्न स्पष्ट के आधार पर नवांश लग्न ज्ञात करेंगे। लग्न स्पष्ट है ४/२६/२१/१४ अर्थात नवांश चक्र में २६/२१/१४ अंशादि जिस नवाशं में मिलेगा उसके सामने सिंह राशि के कोष्ठक में अंकित अंक ज्ञात करेंगे और वही नवमांश लग्न होगा।
सप्तम नवांश का अंशादि है २३/२० जिससे लग्न का अंशादि आगे है किन्तु अष्टम नवांश का अंशादि मान है २६/४० जिससे लग्न अंशादि २६/२१ न्यून है अर्थात अष्टम नवांश वाली पंक्ति में ही हम सिंह के नीचे के कोष्ठक वाले अंक को देखेंगे जो ८ है अर्थात नवांश लग्न ८ (वृश्चिक) है। इस प्रकार नवांश कुंडली के लग्न में ८ लिखेंगे एवं आगे द्वितीयादि भावों में क्रमशः ९, १० आदि अंकित करेंगे।
- लग्न : ४/२६/२१/१४
- सूर्य : ०/१६/०७/५०
- चंद्र स्पष्ट : १/२०/२१/१५
- मंगल : ३/११/३५/४०
- बुध : ११/२०/२७/०३
- गुरु : १/२७/०/३८
- शुक्र : ११/०५/४५/३२
- शनि : ११/०३/३४/२७
- राहु : ११/०/५६/३४
- केतु : ५/०/५६/३४
इसी प्रकार शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका निर्माण करने वाले आलेख में जो की पूर्व प्रकाशित है जिस कुंडली का निर्माण किया गया था उसमें तात्कालिक ग्रहस्पष्ट भी किये गये थे जो यहां पुनः प्रस्तुत किये गये हैं एवं इसी ग्रहस्पष्ट के आधार पर हम ग्रहों के नवांश भी ज्ञात करेंगे एवं नवांश कुंडली बनाकर उसमें स्थापन भी करेंगे। इसके लिये सूर्य का नवांश ज्ञात करने का अभ्यास करेंगे एवं इसी विधि से अन्य ग्रहों का नवांश भी ज्ञात किया जायेगा।
सूर्य स्पष्ट ०/१६/०७/५० है जिसका तात्पर्य यह है कि सूर्य मेष राशि के १६ अंश ७ कला और ५० विकला पर है अर्थात १३/२० से १६/४० अंशादि वाले पंचम नवांश में है, पंचम नवांश वाली पंक्ति में मेष राशि के नीचे ५ अंक है जिसका तात्पर्य है कि सूर्य का नवांश ५ (सिंह) है और नवांश कुंडली के जिस भाव में ५ अंक अर्थात सिंह राशि होगा उसी में सूर्य अंकित करेंगे।
नवांश कुंडली
इसी प्रकार से हमने अन्य ग्रहों के भी नवांश ज्ञात किये वो नीचे दिये गये हैं एवं तदनुसार नवांश कुंडली भी बनाकर दी गयी है :
- लग्न नवांश : ८
- सूर्य नवांश : ५
- चंद्र नवांश : ३
- मंगल नवांश : ७
- बुध नवांश : १०
- गुरु नवांश : ६
- शुक्र नवांश : ५
- शनि नवांश : ५
- राहु नवांश : ४
- केतु नवांश : १०

निष्कर्ष : जन्मपत्रिका में लग्न कुंडली व राशि चक्र के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण वर्ग जो होता है वो नवांश कुंडली होता है। यदि षोडश वर्ग अथवा षड्वर्ग न भी बनाया जाय तो भी बहुत सारे ज्योतिषी नवांश कुंडली बनाते हैं। इस आलेख में नवांश कुंडली क्या है यह बताया गया है, नवांश कुंडली कैसे बनायी जाती है यह भी बताया गया है एवं सीखने के लिये उदाहरण भी दिया गया है। इस प्रकार से नवांश कुंडली के सम्बन्ध में यह आलेख विशेष महत्वपूर्ण जानकारी देती है।
ज्योतिष गणित सूत्र
- दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
- घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
- इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5
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