षडवर्ग क्या है, सप्तवर्गीय जन्मपत्रिका व षोडश वर्ग कुंडली कैसे बनाते हैं : shodash varga kundali

नवमांश कुंडली कैसे बनाते हैं - navmansh kundli

पूर्व आलेख में हमने नवमांश क्या है, नवांश कुंडली कैसे बनाते हैं आदि समझ चुके हैं अब इससे आगे बढ़ते हुये षड्वर्ग, सप्तवर्ग और षोडश वर्ग को भी समझना आवश्यक है। जातक ज्योतिष में अतिसूक्ष्म विचार करने अथवा फलादेश करने के लिये सामान्य जन्म कुंडली, राशि कुंडली और नवांश कुंडली से आगे बढ़ने पर षोडश वर्ग कुंडली (shodash varga kundali) तक का विचार किया जाता है एवं यहां इन सबको एक साथ समझने का प्रयास करेंगे।

एक उदाहरण से समझते हैं यदि कोई ग्रह लग्न कुंडली में सिंह राशि में स्थित है और नवांश कुंडली में भी वह सिंह राशि में ही स्थित हो तो उसे वर्गोत्तम कहा जाता है। इसी प्रकार नीचभंग राजयोग में भी नवांश कुंडली से भी विचार किया जाता और यही कारण है कि यदि षोडशवर्ग अथवा सप्तवर्ग विचार न भी किया जाय तो भी नवांश विचार करने का प्रयास किया जाता है और आपको अनेकों जन्मपत्रिकाओं में लग्न कुंडली के साथ-साथ नवांश कुंडली भी देखने को मिलेगी।

ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

भचक्र को १२ समान भागों में बांटा गया है जिसे राशि कहते हैं और राशि के आधार पर ही मुख्य जातक विचार किया जाता है, जातक के जीवन संबंधी सभी विचार जन्मांग चक्र से ही किये जाते हैं, यथा लग्न से शरीर, द्वितीय से धन, वाणी, कुटुंब आदि। किन्तु यदि किसी भी विषय के बारे में विशेष जानकारी की अपेक्षा हो तो उससे सम्बंधित विशेष वर्ग बनाकर ज्ञात किया जाता है।

अर्थात लग्न कुंडली प्रथम वर्ग है और समग्र विचार के लिये प्रयुक्त होता है किन्तु किसी भी विषय का विशेष विचार करने के लिये पाराशर ने षोडश वर्ग का विधान बताया है। यथा धन के विचार करने के लिये होरा वर्ग, पराक्रम, भ्रातृ विचार के लिये द्रेष्काण वर्ग इत्यादि।

ये विभिन्न वर्ग राशि के भिन्न-भिन्न भाग करके बनते हैं जैसे नवांश कुंडली के क्रम में हमने जाना कि राशि के ९ भाग करने पर नवांश होता है, उसी प्रकार राशि का दो भाग करने पर होरा बनता है, तीन भाग करने पर द्रेष्काण बनता है चार भाग करने पर चतुर्थांश बनता है इसी प्रकार से कुल मिलकर १६ प्रकार की कुंडली बनाने का प्रावधान है जिससे विशेष विषय का विचार किया जाता है। इसे समझने के लिये नीचे की सारणी का अवलोकन करें :

वर्गवर्ग नामवर्ग संख्‍याविचारणीय विषय
लग्‍नदेह
होराधन
द्रेष्‍काणभाई बहनें
चतुर्थांशभाग्‍य
सप्‍तमांशपुत्र – पौत्रादि
नवमांशस्‍त्री एवं विवाह
दशमांश१०राज्‍य एवं कर्म
द्वादशांश१२मा‍ता पिता
षोडशांश१६वाहनों से सुख दुख
१०विशांश२०उपासना
११चतुर्विशांश२४विधा
१२सप्‍तविंशांश/भांश२७बलाबल
त्रिशांश३०अरिष्‍ट
खवेदांश४०शुभ अशुभ
अक्षवेदांश४५सबका
षष्‍ट्यंश६०सबका

इस चक्र से हमें ज्ञात होता है कि लग्न षोडश वर्ग में प्रथम है एवं प्रमुख है। षोडश वर्ग विचार करना महीनों का कार्य होता है इसलिये इसमें से प्रमुख ६ जो हैं वो लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश और त्रिंशांश का विचार सरलता से अल्पकाल में करना संभव हो सकता है और इसे षड्वर्ग कहा जाता है। अर्थात इसमें जीवन के प्रमुख आयामों का विचार हो जाता है और यदि इसी में एक वर्ग और जोड़ दिया जाता है सप्तमांश तो इसी को सप्तवर्ग कहा जाता है।

आजकल बाजारों में आपको सप्तवर्गी जन्मपत्रिका नाम से भी एक प्रकार देखने को मिलता है जिसमें यही सप्तवर्ग दिये जाते हैं।

किन्तु षड्वर्ग हो अथवा सप्तवर्ग हो अथवा षोडशवर्ग हो मात्र पत्रिका में अंकित करने का कोई प्रयोजन नहीं होता उससे विचार करके फलादेश करें तो ही उसका औचित्य सिद्ध होता है जो नहीं किया जाता। यदि मात्र लग्न कुंडली से ही फलादेश करना हो अथवा किया गया हो तो सप्तवर्गी जन्मपत्रिका नहीं कहा जा सकता अर्थात मात्र सप्तवर्ग के चक्र बनाने से सप्तवर्गी नहीं होता है इसी प्रकार षोडश वर्ग कुंडली बना देने मात्र से षोडश वर्गी जन्मपत्रिका नहीं कही जायेगी अपितु षोडश वर्ग का विचार करके फलादेश किया गया हो तभी षोडश वर्ग जन्मपत्रिका कहा जा सकता है।

षड्वर्ग

यद्यपि बाजारों में सप्तवर्गी जन्मपत्रिका मिलती है और यदि षोडशवर्गी जन्मपत्रिका बनानी हो तो सामान्य जन्मपत्रिका में ही षोडशवर्ग बनाया जा सकता है अथवा यदि षड्वर्गी जन्मपत्रिका बनानी हो तो वो भी स्वयं ही सामान्य जन्मपत्रिका पर बनाया जा सकता है, जो विशेष ज्योतिषी ही बना सकते हैं एवं बनाना मात्र ही महत्वपूर्ण नहीं होता अपितु तदनुसार फलादेश भी अपेक्षित होती है। अतः हम यहां षड्वर्ग बनाने के लिये षड्वर्गों के चक्र ही देखेंगे। जिस प्रकार से पूर्व आलेख में नवांश चक्र दिया गया था उसी प्रकार से राशियों के भिन्न-भिन्न भाग करने पर षड्वर्ग होगा जिसकी सारणियाँ नीचे दी गई है :

होरा

होरा चक्र में दो ही होरा होता है एक सूर्य की और दूसरी चन्द्र की अर्थात होरा कुंडली में दो ही भाव भी होते हैं, अर्थात राशि के दो ही भाग किये जाते हैं और दोनों भाग १५ – १५ अंश के होते हैं। प्रत्येक अयुग्म राशि में प्रथम भाग ० से १५ अंश तक सूर्य की होरा होती है एवं द्वितीय भाग १५ अंश से ३० अंश तक चन्द्र की होती है। इसी प्रकार युग्म राशियों में प्रथम होरा अर्थात १५ अंश तक चंद्र की होती और उससे आगे की दूसरी होरा सूर्य की होती है। इस होरा सारणी से इस प्रकार समझा जा सकता है :

अंशमेषवृषमिथुनकर्कसिंहकन्यातुलावृश्चिकधनुमकरकुम्भमीन
० – १५
सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र
१५ – ३०
चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य

चंद्र

सूर्य
होरा सारणी

द्रेष्काण

द्रेष्काण में राशियों के तीन भाग किये जाते हैं अतः ३०/३ = १०, १० – १० अंश का एक द्रेष्काण होता है अर्थात एक राशि में ० – १० अंश तक प्रथम द्रेष्काण, १० – २० अंश तक द्वितीय द्रेष्काण और २० – ३० अंश तक तृतीय द्रेष्काण होता है। द्रेष्काण त्रिकोण के अनुसार निर्धारित होता है, किसी भी राशि का प्रथम द्रेष्काण वही राशि, द्वितीय द्रेष्काण उससे पंचम राशि और तृतीय द्रेष्काण उससे नवम राशि की होती है। द्रेष्काण चक्र इस प्रकार है :

द्रेष्काणअंशमेषवृषमिथुनकर्कसिंहकन्यातुलावृश्चिकधनुमकरकुम्भमीन
प्रथम१०१११२
द्वितीय१०१११२
तृतीय१०१११२
द्रेष्काण चक्र

नवांश

नवांश चक्र की चर्चा पूर्व आलेख में की गयी थी, एक राशि के ९ अंश करने से वह नवम भाग हो जाता है। ३० अंश की राशि का नवमांश ३ अंश २० कला होता और इसी के अनुसार नवांश चक्र बनाने पर इस प्रकार से होता है :

नवांशअंशादिमेषवृषमिथुनकर्कसिंहकन्यातुलावृश्चिकधनुमकरकुम्भमीन
प्रथम३/२०१०१०१०
द्वितीय६/४०११११११
तृतीय१०/००१२१२१२
चतुर्थ३/२०१०१०१०
पंचम६/४०११११११
षष्ठ०/००१२१२१२
सप्तम३/२०१०१०१०
अष्टम२६/४०११११११
नवम०/००१२१२१२
नवांश चक्र

द्वादशांश

द्वादशांश का तात्पर्य भी अन्य वर्गों के अनुसार ही होता है द्वादशांश अर्थात द्वादश अंश। राशि के ३० अंशों को द्वादश भागों में विभाजित करने पर वह द्वादशांश होता है। ३० अंशों का द्वादशांश होने के एक द्वादशांश में ढाई (२.५) अंश होता है। राशियों की संख्या भी १२ ही होती है इसलिये प्रत्येक राशि में १२ द्वादशांश होते हैं। प्रथम द्वादशांश उसी राशि का होता है जो राशि हो और तदनन्तर शेष राशियों के क्रम से होता। आगे द्वादशांश चक्र दिया गया है :

अंशादिमेषवृषमिथुनकर्कसिंहकन्यातुलावृश्चिकधनुमकरकुम्भमीन
/३०१०१११२
/१०१११२
/३०१०१११२
१०/००१०१११२
/३०१०१११२
/००१०१११२
१७/३०१०१११२
/१०१११२
/३०१०१११२
/१०१११२
/३०१११२१०
०/००१२१०११
द्वादशांश चक्र

त्रिंशांश

त्रिंशांश शब्द से तो तीसवें अंश का बोध होता है किन्तु शास्त्रों में त्रिंशांश का निर्धारण इस प्रकार से न करके भिन्न प्रकार से किया गया है। जिस प्रकार होरा सूर्य और चन्द्र का ही होता है उसी प्रकार से त्रिंशांश सूर्य और चंद्र का नहीं होता है शेष मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि का होता है। त्रिंशांश का निर्धारण भी सम व विषम राशियों के आधार पर भिन्न-भिन्न क्रम से किया जाता है। सारणी को देखकर त्रिंशांश कुंडली बनायी जा सकती है :

विषम राशि

अंशराशिराशि स्वामी
१ – ५मंगल
५ – १०११शनि
१० – १८गुरु
१८ – २५बुध
२५ – ३०शुक्र

सम राशि

अंशराशिराशि स्वामी
१ – ५शुक्र
५ – १२बुध
१२ – २०१२गुरु
२० – २५१०शनि
२५ – ३०मंगल

इस प्रकार त्रिंशांश चक्र के लिये दो प्रकार से विचार किया जाता है सम राशियों का त्रिंशांश चक्र भिन्न होता है और विषम राशियों का त्रिंशांश चक्र भिन्न होता है।

षड्वर्ग में ही यदि एक और वर्ग सप्तमांश भी जोड़ा जाय तो सप्तवर्गी हो जाता है।

निष्कर्ष : ज्योतिष शास्त्र में सूक्ष्म विचार करने के लिये भिन्न-भिन्न आयामों के लिये भिन्न – भिन्न वर्ग बनाकर विचार करने का भी नियम मिलता है और उन वर्गों की कुल संख्या षोडश होती है और यदि सभी वर्ग बनाये जायें तो उसे षोडशवर्गी जन्मपत्रिका कहा जाता है। षोडश वर्गों में भी विशेष महत्वपूर्ण छह होते हैं और यदि छह वर्ग बनाया जाये तो उसे षड्वर्गी जन्मपत्रिका कहा जाता है। यदि षड्वर्गी जन्मपत्रिका न बनानी हो तो जन्मांग चक्र के साथ-साथ नवांश चक्र बनाया जाता है। यहां षड्वर्गी जन्मपत्रिका निर्माण करने के लिये सभी वर्गों की सारणियां दी गयी है।

ज्योतिष गणित सूत्र

  • दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
  • घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
  • इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5

विद्वद्जनों से आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।

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