सारावली एक आधुनिक ज्योतिष ग्रंथ है, जिसके रचनाकार कल्याण वर्मा हैं। सारावली में में ग्रहों के स्वरूप का विशेष वर्णन मिलता है। यदि हम ग्रहों के स्वरूप को समझना चाहें तो इसमें सारावली अवलोकनीय है। पूर्व आलेख में हम ग्रहों के स्वरूप की संक्षिप्त चर्चा कर चुके हैं यहाँ सारावली के प्रमुख बिन्दुओं के आधार पर ग्रहों के स्वरूप का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:
ग्रहों का स्वरूप – grahon ka swaroop
ज्योतिष शास्त्र में जातक की अथवा अन्य संबद्धों की प्रकृति-आकृति-वर्णादि स्वरूप कैसा होगा ऐसा फलादेश करने के लिये ग्रहों के स्वरूप का ज्ञान होना आवश्यक है। इसलिये हम इस विषय को यहां गंभीरता से समझने का प्रयास कर रहे हैं।
ग्रहों के स्वरूप
ग्रहों के स्वरूप के संबंध में सारावलीकार ने चतुर्थ अध्याय (ग्रहयोनिभेदः) में विस्तृत वर्णन किया है जिसका अध्ययन अधिक उपयोगी है। इसमें विस्तृत जानकारी मिलती है।
सूर्य का स्वरूप
स्वल्पाकुञ्चितमूर्धजः पटुमतिर्मुख्यस्वरूपस्वनो
नात्युच्चो मधुपिङ्गचारुनयनः शूरः प्रचण्डः स्थिरः।
रक्तश्यामतनुर्निगूढचरणः पित्तास्थिसारो महान्
गम्भीरश्चतुरस्त्रकः पृथुकरः कौसुम्भवासा रविः॥२१॥
स्वल्पाकुञ्चितमूर्धजः अर्थात सूर्य की बाल थोड़े घुंघराले हैं, पटुमतिर्मुख्यः अर्थात बुद्धि तीक्ष्ण है और बुद्धिमानों/ज्ञानियों में मुख्य हैं। आकर्षक रूप है, शरीर मध्यम अर्थात न अधिक लम्बा और न छोटा है, मधु के रंग (मधुपिंग) लिये हुए सुंदर नेत्रों हैं, वह शूर अर्थात वीरों में प्रसिद्ध वीर (साहसी) हैं, प्रचंड हैं अर्थात विरोधियों के असह्य हैं, और बुद्धि स्थिर है अर्थात स्थिरबुद्धि हैं; उचित निर्णय करके उसपर अडिग रहने वाले हैं।
उनका शरीर रक्तश्यम वर्ण का है अर्थात ऐसी लालिमा युक्त जो श्याम मिश्रित भी हो (इसमें ऐसा भी कहा गया है कि बली होने पर रक्त, निर्बल होने पर श्याम और मध्यम बली होने पर मिश्रित ग्रहण करे), गूढ़चरण हैं अर्थ दबे पांव वाला, पित्त प्रधान और मजबूत हड्डियों वाले और महान हैं या महान गुणों से संपन्न हैं। वह गंभीर हैं चतुरस्र शरीर है और वह कौसुम्भ के वस्त्र (लाल गेरुए के समान) धारण करते हैं।
चन्द्र का स्वरूप
सौम्यः कान्तविलोचनो मधुरवाग्गौरः कृशाङ्गो युवा
प्रांशु सूक्ष्मनिकुञ्चितायितकचः प्राज्ञो मृदुः सात्त्विकः।
चारुर्वातकफात्मकः प्रियसखो रक्तैकसारो घृणी
वृद्धस्त्रीषु रतश्चलोऽतिसुभगः शुभ्राम्बरश्चन्द्रमाः॥२२॥
चंद्रमा सौम्य, कांतिमान नेत्रों वाला, मधुर वाणी वाला, गौर वर्ण, कृशकाय (दुबला-पतला), युवा, लम्बा शरीर, पतले और घुंघराले बाल वाला, बुद्धिमान, मृदुस्वभाव, सात्त्विक विचार वाला, प्रियदर्शी, वात तथा कफ प्रधान प्रकृति, मित्रों से स्नेह रखने वाला, रक्तसार अर्थात रक्त की अधिकता वाला, दयालु, वृद्ध स्त्रियों में रति रखने वाला, चञ्चल, बहुत ही लोकप्रिय और श्वेत वस्त्र धारण करने वाला है।
मंगल का स्वरूप
ह्रस्वः पिङ्गललोचनो दृढवपुर्दीप्ताग्निकान्तिश्चलो
मज्जावानरुणाम्बरः पटुतरः शूरश्च निष्पन्नवाक्।
ह्रस्वाकुञ्चितदीप्तकेशतरुणः पित्तात्मकस्तामस-
श्चण्डः साहसिकोऽपि घातकुशलः संरक्तगौरः कुजः॥२३॥
मंगल छोटा शरीर, पीलापन लिए हुए नेत्र वाला, दृढ़ शरीर, अग्नि के सामान कान्ति वाला, चंचल, मज्जावान अर्थात मज्जा की अधिकता, लाल वस्त्र धारण करने वाला, कार्यचतुर, शूरवीर, सैद्धांतिक और सटीक वाक्य बोलने में कुशल, हिंसक अर्थात उग्र स्वभाव वाला, मुड़े और चमकीले वालों वाला, तरुण अवस्था का, पित्तप्रकृति का, तमोगुणी, प्रचण्ड, साहसी, घातक और आक्रमण में कुशल, रक्तिम आभा मिश्रित गौरवर्ण का है।
बुध का स्वरूप
रक्तान्तायतलोचनो मधुरवाग्दूर्वादलश्यामल-
स्त्वक्सारोऽतिरजोधिकः स्फुटवचाः स्फीतस्त्रिदोषात्मकः।
हृष्टो मध्यमरूपवान्सुनिपुणो वृत्तः शिराभिस्ततः
सर्वस्याहुकरोति वेषवचनैः पालाशवासा बुधः॥२४॥
बुध के नेत्र लाल रेशे युक्त, मृदुभाषी, दूर्वा के समान थोड़ा श्यामल वर्ण का, त्वचासार, रजोगुणी, स्पष्टवक्ता, वह शारीरिक रूप से मध्यम है, स्वच्छ रहने वाला, वात-पित्त-कफ मिश्रित प्रकृति, प्रसन्नता युक्त मध्यम सुंदर, कार्य में अतिनिपुण, उभड़े नसों वाला, वेष और वचन में सबका अनुकरण (नकल) करने वाला, पलाश के पत्ते वाले हरे रंग का वस्त्र धारण करने वाला है।
गुरु का स्वरूप
ईषत्पिङ्गललोचनश्रुतिधरः सिंहाच्छनादः स्थिरः
सत्त्वाढ्यः सुविशुद्धकाञ्चनवपुः पीनोन्नतोरस्थलः।
ह्रस्वो धर्मरतो विनीतनिपुणो बुद्धोत्कटाक्षः क्षमी
स्यात्पीताम्बरधृक्कफात्मकतनुर्मेदः प्रधानो गुरुः॥२५॥
गुरु सामान्य पीलापन लिये नेत्रों वाला, वेद/ज्ञान को धारण करने वाला, सिंहनाद के समान गंभीर वचनों वाला, स्थिर स्वभाव अर्थात निर्णय/वचन आदि में अडिग रहने वाला, अत्यंत सत्त्ववान (सद्गुणी), शुद्ध स्वर्ण के समान वर्ण, उन्नत और विशाल वक्षस्थल (हृदय) वाला, सदैव धर्म में रत रहने वाला, विनयी, निपुण, गंभीर और तीव्र/पैनी दृष्टि (नेत्रों) वाला, क्षमाशील, पीत वस्त्रधारी, कफप्रधान प्रकृति, मेद (चर्बी) की अधिकता वाला है।
शुक्र का स्वरूप
चारुर्दीर्घभुजः पृथूरुवदनः शुक्राधिकः कान्तिमान्
कृष्णाकुञ्चितसूक्ष्मलम्बिचिकुरो दूर्वादलश्यामलः।
कामी वातकफात्म3कोऽतिसुभगश्चित्राम्बरो राजसो
लीलावान्मतिमान्विशालनयन स्थूलांसदेशः सितः॥२६॥
शुक्र सुंदर, लंबे हाथों वाला, गोल और बड़े उदर और वदन वाला (गोल-मटोल), शुक्र (वीर्य की अधिकता) वाला, कांतिमान, काले और घुंघराले पतले-लम्बे बालों वाला, दूर्वा के समान श्यामल वर्ण का, कामी, वात-कफ प्रकृति का, अत्यंत सुन्दर, रंगीन चित्र-विचित्र वस्त्रधारी, रजोगुणी, लीला (खेल-तमाशा-नाटक आदि) करने वाला, बुद्धिमान, विशाल नेत्रों वाला और भारी कंधे वाला है।
शनि का स्वरूप
पिङ्गो निम्नविलोचनः कृशतनुर्दीर्घः सिरालोऽलसः
कृष्णाङ्गः पवनात्मकोऽतिपिशुनः स्नाय्वततो निर्घणः।
मूर्ख स्थूलनखद्विजोऽतिमलिनो रूक्षोऽशुचिस्तामसो
रौद्र क्रोधपरो जरापरिणतः कृष्णाम्बरो भास्करिः॥२७॥
शनि पिङ्गल वर्ण की नीची दृष्टि वाला और दबी (धंसे) नेत्रों वाला, कृशकाय (दुबला-पतला शरीर), लंबा, उभरे नसों वाला, आलसी, काला वर्ण, वात प्रकृति, अत्यंत पिशुन (चुगलखोरी करने वाला), स्नायुमण्डल भरा हुआ, निघृणी (निर्दयी और निन्दित आचरण वाला), मूर्ख, स्थूल नाखूनों से युक्त, अतिमलिन, रूखा, अशुद्ध/अपवित्र, तमोगुणी, उग्र और क्रोधी, वृद्ध दिखने वाला और काला वस्त्र धारण करने वाला है।
कहीं-कहीं पर पिङ्गो के स्थान पर पङ्गु भी मिलता है जिसका तात्पर्य पैरों से विकलांग लिया गया है।
राहु का स्वरूप
नीलद्युतिर्दीर्घतनुः कुवर्णः पामी सपाषण्डमतः सहिक्कः |
असत्यवादी कपटी च राहुः कुष्ठी परान्निन्दति बुद्धीहीनः ॥३३॥
फलदीपिका – ग्रहभेदाध्याय (२)
राहु और केतु के विषय में फलदीपिका के ग्रह भेदाध्याय में वर्णन मिलता है। राहु का वर्ण श्यामल, लम्बा शरीर, कुवर्ण (वर्णहीन), चर्मरोगी, पाखण्डी, हिक्का (हकला) और असत्यवादी, धूर्त, कुष्ठी, परनिंदा करने वाला बुद्धिहीन है।
केतु का स्वरूप
रक्तोग्रदृष्टिविषवागुदग्रदेहः सशस्त्रः पतितश्च केतुः |
धूम्रद्युतिर्धूमप एव नित्यं व्रणाङ्किताङ्गश्च कृशो नृशंसः ॥३४॥
फलदीपिका – ग्रहभेदाध्याय (२)
केतु रक्तिम आभा युक्त नेत्र और उग्र दृष्टि से युक्त, विष से बुझी जिह्वा अथवा विषाक्त वाणी युक्त, भयंकर देह, शस्त्र धारण करने वाला, पतित, धूम्र के समान आभा और रंग, शरीर पर व्रणों के चिह्न, कृशकाय और नृशंस है।
निष्कर्ष
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