भारतीय काल गणना (kaalchakra) की अद्भुत व्यवस्था - अहोरात्र, मास, वर्ष, दिव्यवर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प

भारतीय काल गणना (kaalchakra) की अद्भुत व्यवस्था – अहोरात्र, मास, वर्ष, दिव्यवर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प

भारतीय काल गणना (kaalchakra) की अद्भुत व्यवस्था – अहोरात्र, मास, वर्ष, दिव्यवर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प : भारतीय शास्त्रों, विशेषकर ‘सूर्य सिद्धांत’, ‘मनुस्मृति’ और ‘श्रीमद्भागवत व अन्य पुराणों’ में काल (समय) की गणना अत्यंत सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। किन्तु इसे सही-सही समझना थोड़ा कठिन कार्य है जिसे यहां हम सरलता से समझने का प्रयास करेंगे। यहाँ समय रेखीय (Linear) न होकर चक्रीय (Cyclical) है और इसी कारण कालचक्र शब्द प्रयुक्त होता है। यहाँ भारतीय शास्त्रों के अनुसार युग व्यवस्था और मानवीय व दैवीय वर्षों के गणित पर विस्तृत आलेख प्रस्तुत है।

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भूमि शयन विचार - bhumi shayan vichar

भूमि शयन विचार – bhumi shayan vichar

भूमि शयन विचार – bhumi shayan vichar : भारतीय ज्योतिष शास्त्र और वास्तुशास्त्र में ‘भूमि शयन’ (bhumi shayan) एक ऐसी अवस्था है जो नक्षत्रों की शक्ति या काल की विशिष्ट प्रकृति के कारण पृथ्वी से संबंधित कार्यों (जैसे नींव खोदना, गृह निर्माण, खनन) के लिए निष्क्रिय या अशुभ मानी जाती है। यह अवस्था सीधे किसी एक नक्षत्र के नाम से नहीं, अपितु सूर्य-गोचर के सापेक्ष चन्द्र नक्षत्र के द्वारा निर्धारित होती है। यहां हम भूमि शयन विचार को शास्त्रोक्त प्रमाण के आधार पर समझने का प्रयास करेंगे।

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ग्रहों का स्वरूप - grahon ka swaroop

ग्रहों का स्वरूप – grahon ka swaroop

ग्रहों का स्वरूप – grahon ka swaroop : सारावली एक आधुनिक ज्योतिष ग्रंथ है, जिसके रचनाकार कल्याण वर्मा हैं। सारावली में में ग्रहों के स्वरूप का विशेष वर्णन मिलता है। यदि हम ग्रहों के स्वरूप को समझना चाहें तो इसमें सारावली अवलोकनीय है। पूर्व आलेख में हम ग्रहों के स्वरूप की संक्षिप्त चर्चा कर चुके हैं यहाँ सारावली के प्रमुख बिन्दुओं के आधार पर ग्रहों के स्वरूप का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:

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ग्रहों के बारे में (ग्रह परिचय) : ग्रहों के वर्ण, लिंग, रंग आदि - grah parichay

ग्रह परिचय : ग्रहों के वर्ण, लिंग, रंग आदि – grah parichay

ग्रह परिचय : ग्रहों के वर्ण, लिंग, रंग आदि – grah parichay : जातक ज्योतिष में हमारे लिये ग्रहों के बारे में विस्तृत जानकारी अपेक्षित है जिसमें से यहां ग्रह परिचय (वर्ण, लिंग, रंग आदि) की चर्चा यहां की गयी है।

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Shadbala - कुंडली में बली ग्रह की पहचान करने के लिये षड्बल कैसे निकालते हैं ?

Shadbala – कुंडली में बली ग्रह की पहचान करने के लिये षड्बल कैसे निकालते हैं ?

Shadbala – कुंडली में बली ग्रह की पहचान करने के लिये षड्बल कैसे निकालते हैं : षड्बल के बिना कुंडली का विश्लेषण अधूरा माना जाता है। केवल ऋषि सूत्रों पर नहीं, गणितीय विधि एवं ग्रंथों के शुद्ध सिद्धांतों के आधार से षड्बल का सही निर्णय ही फलादेश की प्रमाणिकता को सूक्ष्म बनाता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की सटीकता बढ़ जाती है।

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ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि का विचार कैसे करते हैं - grah drishti

ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि का विचार कैसे करते हैं – grah drishti

ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि का विचार कैसे करते हैं – grah drishti : जो ग्रह जिस भाव अथवा जिस ग्रह को देख रहा हो वह उससे प्रभावित होता है और इसके लिये ग्रह दृष्टि विचार का ज्ञान होना आवश्यक होता है। यहां हम ग्रहों की दृष्टि का विचार कैसे करते हैं इसे समझने का प्रयास करेंगे।

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कुंडली में पंचधा मैत्री क्या है, कैसे विचार करते हैं - panchadha maitri

कुंडली में पंचधा मैत्री क्या है, कैसे विचार करते हैं – panchadha maitri

कुंडली में पंचधा मैत्री क्या है, कैसे विचार करते हैं – panchadha maitri : पंचधा मैत्री को समझने के लिये हमें सर्वप्रथम इसके निर्धारण के दो प्रकारों को समझना होगा। ग्रहों की मैत्री दो प्रकार की होती है एक नैसर्गिक मैत्री और दूसरी तात्कालिक मैत्री और इन दोनों को समझने के पश्चात् ही पंचधा मैत्री विचार किया जा सकता है, पंचधा मैत्री चक्र का निर्माण किया जा सकता है।

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ग्रहों की उच्च और नीच राशि, त्रिकोण, स्वगृह एवं उनके फल विचार – uccha nich grah

ग्रहों की उच्च और नीच राशि, त्रिकोण, स्वगृह एवं उनके फल विचार – uccha nich grah : ज्योतिष शास्त्र में फलादेश करने के लिये ग्रहों का विशेष अध्यययन आवश्यक होता है और इसमें अनेकानेक विचार अनिवार्य होते हैं यथा : उच्च, नीच, मूलत्रिकोणी, स्वगृही, मित्रगृही, रिपुगृही आदि।

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ग्रहों की जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था और उनके फल - jagrat swapna sushupti

ग्रहों की जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था और उनके फल – jagrat swapna sushupti

ग्रहों की जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था और उनके फल – jagrat swapna sushupti : ग्रहों की अवस्था में दीप्तादि अवस्था, बालादि अवस्था का विचार मुख्यतः किया जाता है जिसका वर्णन बृहत्पराशरहोराशास्त्रम् में मिलता है। इसके साथ ही एक अन्य अवस्था का भी वर्णन मिलता है जो जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति (jagrat swapna sushupti) अवस्था है।

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ग्रहों की अवस्थाएं (graho ki avastha) : बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत

ग्रहों की अवस्थाएं (graho ki avastha) : बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत

ग्रहों की अवस्थाएं (graho ki avastha) : बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत – ग्रहों की अवस्था को दो प्रकार की होती है एक वयावस्था (बालादि) और दूसरी भावनात्मक या मानसिक (दीप्तादि), यहां हम ग्रहों के इसी बालादि अवस्था को समझने का प्रयास करेंगे और ज्योतिष ग्रंथों में इसके क्या वर्णन हैं उनको भी समझने का प्रयास करेंगे।

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