ग्रह परिचय : ग्रहों के वर्ण, लिंग, रंग आदि – grah parichay

ग्रहों के बारे में (ग्रह परिचय) : ग्रहों के वर्ण, लिंग, रंग आदि - grah parichay ग्रहों के बारे में (ग्रह परिचय) : ग्रहों के वर्ण, लिंग, रंग आदि - grah parichay

ज्योतिष शास्त्र में मुख्यतः 9 ग्रहों की स्थिति, अवस्था आदि ज्ञात करके उनके प्रभावों का विश्लेषण किया जाता है। ग्रहों की स्थिति, अवस्था आदि राशि, नक्षत्र, भाव, वर्ग, बल आदि के आधार पर निर्धारित होते हैं परन्तु ग्रहों का जो मुख्य स्वभाव, प्रभाव आदि होता है अधिकांशतः वही प्रभाव देखने को मिलता है। हां स्थिति, अवस्था आदि के आधार पर शुभाशुभत्व की मात्रा में अंतर होता है, भाव आदि के फलों की वृद्धि-ह्रास होता है। अतः जातक ज्योतिष में हमारे लिये ग्रहों के बारे में विस्तृत जानकारी अपेक्षित है जिसमें से यहां ग्रह परिचय (वर्ण, लिंग, रंग आदि) की चर्चा यहां की गयी है।

ज्योतिष शास्त्रों में नौ ग्रहों के बारे में उनसे संबंधित सभी जानकारी वर्णित है और फलित ज्योतिष के लिये उनका ज्ञान होना अत्यावश्यक है। ग्रहों की जानकारी में सर्वप्रथम ग्रह परिचय की आवश्यकता है जिसमें ग्रहों के पर्याय, स्वभाव, आत्मादि विभाग, अधिकार, वर्ण, देवता, लिंग, तत्व, रंग, स्वरूप, स्थान, काल आदि अनेकों विषय आते हैं जिसे ग्रह परिचय कहा जा सकता है। ग्रहों के स्वभाव-प्रकृति-प्रभाव आदि ग्रह परिचय से पृथक विषय है जिसकी पृथक चर्चा करेंगे। यहां हम ग्रह परिचय प्राप्त करने जा रहे हैं जिनका फलादेश में भी विचार करना होता है।

नवग्रह (नौ ग्रहों) के नाम

अथ खेटा रविश्चन्द्रो मङ्गलश्च बुधस्तथा।
गुरुः शुक्रः शनी राहुः केतुश्चैते यथाक्रमम्‌॥१०॥

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु ये नवग्रहों के नाम हैं। इनके कुछ अन्य प्रमुख नामों को भी जिन्हें पर्यायवाची भी कहा जाता है; जानना आवश्यक है। सूर्यादि ग्रहों के पर्याय जातकपारिजात, बृहज्जातक आदि अन्यान्य पुस्तकों में भी मिलते हैं जो इस प्रकार हैं :

हेलिः सूर्यस्तपनदिनकृद्भानुपूषारुणार्काः सोमः शीतद्युतिरुडुपतिग्लौर्मृगाङ्केन्दुचन्द्राः ।
आरो वक्रक्षितिजरुधिराङ्गारक्कूरनेत्राः सौम्यस्तारातनयबुधविद्वोधनाश्चेन्दुपुत्रः ॥३॥
मन्त्री वाचस्पतिगुरुसुराचार्यदेवेज्यजीवाः शुक्रः काव्यः सितभृगुसुताच्छास्फुजिद्दानवेज्याः ।
छायासूनुस्तरणितनयः कोणशन्यार्किमन्दाः राहुः सर्पासुरफणितमः सैंहिकेयागवश्च ॥
ध्वजः शिखी केतुरिति प्रसिद्धा वदन्ति तज्ज्ञा गुलिकश्च मान्दिः ॥४॥

जातकपारिजात – ग्रहनामस्वरूपगुणभेदाध्यायः (२)

हेलिः सूर्यश्चन्द्रमाः शीतरश्मिर्हेम्ना विज्ज्ञो बोधनश्चेन्दुपुत्रः।
आरो वक्रः क्रूरदृक्चावनेयः कोणो मन्द: सूर्यपुत्रोऽसितश्च ॥२॥
जीवोऽङ्गिराः सुरगुरुर्वचसां पतोज्यः
शुक्रो भृगुर्भृगुसुतः सित आस्फुजिच्च ।
राहुस्तमोऽगुरसुरश्च शिखीति केतुः
पर्यायमन्यमुपलभ्य वदेच्च लोकात् ॥३॥

बृहज्जातकं – ग्रहयोनिभेदाध्यायः (२)

  • सूर्य – हेलि, तपन, दिनकर, भानु, पूषा, अरुण, अर्क
  • चन्द्रमा – सोम, शीतद्युति, शीतरश्मि, उडुपति, ग्लौ, मृगांक, इन्दु
  • मंगल – आर, वक्र, क्षितिज, रुधिर, अंगारक, क्रुरनेत्र, आवनेय,
  • बुध – सौम्य, तारातनय, विद्, बोधन, इन्दुपुत्र, हेम्न, ज्ञ, चन्द्रपुत्र,
  • बृहस्पति – मंत्री, वाचस्पति, गुरु, सुराचार्य, देवेज्य, जीव, अङ्गिरा, सुरगुरु, इज्य,
  • शुक्र – काव्य (कवि), सित, भृगुसुत, आच्छ, आस्फुजित्, दानवेज्य, भृगु
  • शनि – छायासूनु, छायासुत, तरणितनय, कोण, आर्कि, मन्द, सूर्यपुत्र
  • राहु – सर्प, असुर, फणि, तम, सैंहिकेय, अगु
  • केतु – ध्वज, शिखी,
  • गुलिक – मान्दि (शनि का अंश)

शुभाशुभत्व – सौम्य और क्रूर ग्रह

तत्रार्कशनिभूपुत्राः क्षीणेन्दुराहुकेतवः।
क्रूराः शेषग्रहा सौम्याः क्रूरः क्रूरयुतो बुधः॥११॥

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)

प्रकाशकौ शीतकरप्रभाकरौ, ताराग्रहाः पङ्च धरासुतादयः ।
तमः स्वरूपौ शिखिसिंहिकासुतौ, शुभाः शशिज्ञामरवन्द्यभार्गवाः ॥८॥

जातकपारिजात – ग्रहनामस्वरूपगुणभेदाध्यायः (२)

  • सूर्य, शनि, मंगल, राहु, केतु और क्षीण चन्द्रमा क्रूर/पाप ग्रह हैं, इनसे युति होने पर बुध भी क्रूर/पाप ही कहलाता है।
  • शेष पुष्ट चन्द्रमा, गुरु, शुक्र शुभ/सौम्य ग्रह हैं और इनसे बुध यदि क्रूर/पाप ग्रहों से युत न हो तो बुध भी स्वभावतः सौम्य ही है।
  • क्षीणेन्दुमन्दरविराद्दुशिखिक्षमाजाः – क्षीण चन्द्रमा के साथ ही जातकपारिजात में पाप/क्रूर शनि, रवि, मंगल, राहु और केतु द्वारा दृष्ट चन्द्रमा को भी क्रूर/पाप कहा गया है।
सौम्य और क्रूर ग्रह
सौम्य और क्रूर ग्रह

कालपुरुष के आत्मादि विभाग

सर्वात्मा च दिवानाथो मनः कुमुदबान्धवः।
सत्त्वं कुजो बुधैः प्रोक्तो बुधो वाणीप्रदायकः॥१२॥
देवेज्यो ज्ञानसुखदो भृगुर्वीर्यप्रदायकः।
ऋषिभिः प्राक्‌तनैः प्रोक्तश्छायासूनुश्च दुःखदः॥१३॥

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)

कालपुरुष का सूर्य आत्मा है, चन्द्रमा मन है, मंगल बल है, बुध वाणी है, गुरु ज्ञान और सुख है, शुक्र काम है और शनि दुःख है।

आत्मादि के प्रयोजन

सारावली में आत्मादि के प्रयोजन इस प्रकार बताया गया है :

आत्मादयो गगनगैर्वलिभिर्बलवत्तरा। दुर्बलैर्दुर्बलास्ते तु विपरीतं शनेः फलम्॥२॥
सारावली – ग्रहगुणाध्याय (४)

मनुष्य के जन्म समय अर्थात जन्मकुण्डली में जो ग्रह बलवान हो उस मनुष्य में उस ग्रह से संबंधित विषय शक्तिशाली (अधिक) होता है और दुर्बल हो तो अल्प होता है किन्तु यह शनि के विषय में विपरीत समझना चाहिये अर्थात शनि यदि बलवान हो तो दुःख कम और दुर्बल हो तो दुःख अधिक समझना चाहिये।

ग्रहों के अधिकार

रविचन्द्रौ तु राजानौ नेता ज्ञेयो धरात्मजः।
बुधो राजकुमारश्च सचिवौ गुरुभार्गवौ॥१४॥
प्रेष्यको रविपुत्रश्च सेना स्वर्भानुपुच्छकौ।
एवं क्रमेण वै विप्र सूर्यादीन्‌ प्रविचिन्तयेत्‌॥१५॥

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)

ग्रहों के अधिकार के अनुसार स्वभाव में गुण के विकास को समझना चाहिये। सूर्य और चन्द्रमा को राजा कहा गया है (कुछ लोग चन्द्रमा को स्त्रीग्रह होने के कारण रानी भी कहते हैं किन्तु अनेकों स्थान पर अवलोकन करने के पश्चात् भी राजा ही देखने को मिलता है), मंगल नेता (सेनापति), बुध राजकुमार, गुरु और शुक्र सचिव (मंत्री) एवं शनि प्रेषक (सेवक) होता है। राहु केतु के विषय में सभी जगह वर्णन नहीं मिलता किन्तु बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में राहु व केतु को सेना कहा गया है – सेना स्वर्भानुपुच्छकौ

ग्रहों के वर्ण (रंग)

रक्तश्यामो दिवाधीशो गौरगात्रो निशाकरः।
नात्युच्चाङ्गः कुजो रक्तो दूर्वाश्यामो बुधस्तथा॥१६॥
गौरगात्रो गुरुर्ज्ञेयः शुक्रः श्यावस्तथैव च।
कृष्णदेहो रवेः पुत्रो ज्ञायते द्विजसत्तम॥१७॥

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)

सूर्य का वर्ण रक्तश्याम अर्थात पाटल पुष्प के समान, चन्द्रमा का गौर (श्वेत) वर्ण, मंगल का ऐसा लाल जो अधिक न हो न ही कम हो अर्थात कमल पत्र के समान सामान्य रक्त, बुध का वर्ण दूर्वा के समान श्याम वर्ण, गुरु का वर्ण गौर (श्वेत), शुक्र का वर्ण श्याम जो श्वेत और कृष्ण मिश्रित हो, शनि का वर्ण कृष्ण अर्थात काला होता है।

ग्रहों की अवस्था (grahon ki avastha) : दीप्त, स्वस्थ, प्रमुदित, शांत, दीन, दुःखित, विकल, खल और कुपित

बृहज्जातकं में ग्रहों के वर्ण प्रकरण में उपरोक्त तथ्य स्पष्ट करते हुये और भी अतिरिक्त वर्णन मिलता है – “वर्णास्ताम्रसितारिक्तहरितव्यापीतचित्रासिता” – सूर्यादि ग्रहों के क्रमशः निम्न रंग होते हैं : ताम्र के समान रक्त, श्वेत, अतिरक्त, हरित, पीत (हरिद्रा के समान), चित्र (नाना प्रकार के रंग) और असित अर्थात कृष्ण/काला। ये इन रंगों के आधिपत्व के संदर्भ में समझना चाहिये। ग्रहों के वर्ण (रंग) पूर्व ही बताये जा चुके हैं।

ग्रहों के देवता

वह्न्यम्बुशिखिजा विष्णुविढौजः शचिका द्विज।
सूर्यादीनां खगानां च देवा ज्ञेयाः क्रमेण च॥१८॥

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)


Discover more from प्रज्ञा पञ्चाङ्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *