बृहज्जातकं में भी ग्रहों के देवता का एक पंक्ति में उल्लेख मिलता है – “वह्न्यम्ब्बग्निजकेशवेन्द्रशचिका: सूर्यादिनाथाः क्रमात” अर्थात सूर्य के अग्नि, चन्द्रमा का अम्बु अर्थात जल, मंगल का शिखीज/अग्निज अर्थात कुमार कार्तिकेय, बुध के विष्णु, गुरु के इन्द्र, शुक्र की इन्द्राणी और शनि के प्रजापति।
ग्रहों के लिंग
क्लीवौ द्वौ सौम्यसौरी च युवतीन्दुभृगू द्विज।
नराः शेषाश्च विज्ञेया भानुर्भौमो गुरुस्तथा॥१९॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
यहां ग्रहों के लिंग बताये गये हैं और इसी प्रकार से बृहज्जातकं में भी मिलता है – “बुधसूर्यसुतौ नपुंसकाख्यौ शशिशुक्रौ युवती नराश्च शेषाः” अर्थात बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं, चन्द्र और शुक्र स्त्री ग्रह, एवं शेष सूर्य, मंगल व गुरु पुरुष ग्रह हैं।
ग्रहों के तत्व
अग्निभूमिनभस्तोयवायवः क्रमतो द्विज।
भौमादीनां ग्रहाणां च तत्त्वानीति यथाक्रमम्॥२०॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
ग्रहों के तत्व इस प्रकार बताये गये हैं और इसी प्रकार से बृहज्जातकं में भी मिलता है – “शिखिभूखपयोमरुद्गणानां वशिनो भूमिसुतादयः क्रमेण” अर्थात मंगल से आरम्भ करके पंचग्रहों के निम्न तत्व हैं – अग्नि, भूमि, आकाश, जल और वायु। अग्नि का स्वामी ग्रह मंगल, भूमि का स्वामी ग्रह बुध, आकाश का स्वामी गुरु, जल का शुक्र और वायु का शनि होता है।
पंचतत्व प्रकरण में ध्यान देने की बात यह है कि इनकी संख्या पांच ही है। पांचों तत्वों में से किसी भी दो तत्व के यदि दो-दो अधिपति हों तभी सातों ग्रह का स्वामित्व सिद्ध हो सकता है अन्यथा नहीं। बहुत ज्योतिषी सूर्य का अग्नि और चन्द्रमा का जल सिद्ध करते हैं और एक बार को उचित प्रतीत होता भी है। किन्तु विचार करने पर सिद्ध नहीं होता है।
बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में भौमादीनां कहा गया है और बृहज्जातकं में भी भूमिसुतादयः कहा है और तत्वों की संख्या पांच है और यदि सूर्यादि कहा जाता हो आगे दो ग्रहों का स्वामित्व भी सिद्ध होता और ऐसा ही कहना चाहिये था। अब भौमादिक्रम से विचार करने पर शनि से आगे बढ़ने पर सूर्य का तो अग्नि तत्व होगा किन्तु चन्द्रमा का भूमि तत्व हो जायेगा क्योंकि क्रम निर्धारित कर दिया गया है। किन्तु चन्द्रमा के तत्व बताने वाले जल तत्व बताते हैं भूमि नहीं।
चूँकि तत्वों की संख्या पांच ही है अतः सूर्य और चन्द्रमा के कोई तत्व नहीं होते हैं इसीलिये भौमादि क्रम और पांच तत्व ही वर्णित किये गए हैं।
ग्रहों के वर्ण
गुरुशुक्रौ विप्रवर्णौ कुजार्कौ क्षत्रियौ द्विज।
शशिसोम्यौ वैश्यवर्णौ शनिः शूद्रो द्विजोत्तम्॥२१॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
गुरु और शुक्र के ब्राह्मण वर्ण, सूर्य और मंगल के क्षत्रिय वर्ण, चन्द्र और बुध के वैश्य वर्ण एवं शनि का शूद्र वर्ण होता है। यदि बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में “विप्रादितः शुक्रगुरू कुजार्कौ शशी बुधश्चत्यसितोऽन्त्यजानाम्” देखें तो थोड़ा अंतर होता है शुक्र-गुरु, मंगल-सूर्य, चन्द्र और बुध क्रमशः ब्राह्मणादि वर्णों के अधिपति है और शनि अन्त्यजों का अधिपति।
ग्रहों के तत्व
जीवसूर्येन्दवः सत्त्वं बुधशुक्रौ रजस्तथा।
सूर्यपुत्रधरापुत्रौ तमःप्रकृतिकौ द्विज॥२२॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
जातक की सात्विक, राजसी, तामसी आदि प्रकृति के निर्धारण में ग्रहों के तत्व का विचार ही महत्वपूर्ण होता है। लग्नेश, दशेश आदि ग्रहों के तत्व के अनुसार इसका विचार किया जाता है। सूर्य, गुरु और चन्द्र को सत्वगुणी, बुध और शुक्र को रजोगुणी, मंगल और शनि को तमोगुणी कहा गया है अथवा सत, रज और तम तत्व होते हैं।
ग्रहों के स्वरूप
मधुपिङ्गलदृक्सूर्यश्चतुरस्रः शुचिर्द्विज। पित्तप्रकृतिको धीमान् पुमानल्पकचो द्विज॥२३॥
बहुवातकफः प्राज्ञश्चन्द्रो वृत्ततनुर्द्विज। शुभदृङ्मधुवाक्यश्च चञ्चलो मदनातुरः॥२४॥
क्रूरो रक्तेक्षणो भौमश्चपलोदारमूर्तिकः। पित्तप्रकृतिकः क्रोधी कृशमध्यतनुर्द्विज॥२५॥
वपुःश्रेष्ठः श्लिष्टवाक्च ह्यतिहास्यरुचिर्बुधः। पित्तवान् कफवान् विप्र मारुतप्रकृतिस्तथा॥२६॥
बृहद्गात्रो गुरुश्चैव पिङ्गलो मूर्द्धजेक्षणे। कफप्रकृतिको धीमान् सर्वशास्त्रविशारदः॥२७॥
सुखि कान्तवपु श्रेष्ठः सुलोचनो भृगोः सुतः। काव्यकर्ता कफाधिक्योऽनिलात्मा वक्रमूर्धजः॥२८॥
कृश्दीर्घतनुः शौरिः पिङ्गदृष्ट्यनिलात्मकः। स्थूलदन्तोऽलसः पंगुः खररोमकचो द्विज॥२९॥
धूम्राकारो नीलतनुर्वनस्थोऽपि भयंकरः। वातप्रकृतिको धीमान् स्वर्भानुस्तत्समः शिखी॥३०॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
- सूर्य : मधु के समान पिङ्गल नेत्र, चतुरस्र शरीर, पित्त प्रकृति, प्रज्ञावान् और अल्प बालों वाला।
- चन्द्र : वात और कफ की अधिकता, बुद्धिमान, गोल शरीर, सुन्दर दर्शनीय स्वरूप, मधुभाषी, चंचल स्वभाव और कामातुर।
- मंगल : क्रूर और रक्तिम दृष्टि या नेत्र, चपल स्वभाव, उदारमूर्ति, पित्तप्रकृति, क्रोधी, शरीर का मध्य भाग कृश।
- बुध : उत्तम शरीर, गदगद वाणी, हास्यप्रिय, पित्त-कफ-वात तीनों प्रकृति।
- गुरु : स्थूल शरीर, पिंगल केश, कफ प्रकृति, मतिमान, सर्वशास्त्र विशारद।
- शुक्र : सुखमय जीवन अर्थात सुखी, दर्शनीय शरीर, सुन्दर नेत्र, कवि, कफ और वात दोनों प्रकृति, वक्र शिर अथवा घुंघराले बाल।
- शनि : कृशकाय और लम्बा, पिंगल नेत्र, वात प्रकृति, स्थूल दन्त, पंगु, स्थूल बाल।
- राहु : धूम्राकार नीला शरीर, वन में रहने वाला भयंकर।
- केतु : वात प्रकृति, बुद्धिमान होते हुये राहु के समान।
ग्रहों के स्वरूप के संबंध में सारावलीकार ने चतुर्थ अध्याय (ग्रहयोनिभेदः) में विस्तृत वर्णन किया है जिसका अध्ययन अधिक उपयोगी है। इसमें विस्तृत जानकारी मिलती है और ग्रहों के स्वभाव की विस्तृत चर्चा पृथक से करेंगे।
ग्रहों के स्थान
देवालयजलं वह्निक्रीडादीनां तथैव च।
कोशशय्योत्कराणां तु नाथां सूर्यादयः क्रमात्॥३२॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
सूर्यादि ग्रहों के स्थान क्रमशः इस प्रकार बताये गये हैं : देवालय, जलाशय, अग्निगृह, क्रीडास्थान, कोष (भण्डारगृह), शयनागार और कूड़ा फेंकने का स्थान। बृहज्जातकं – “देवाम्बवग्निविहारकोशशयनक्षित्युत्करेशा: क्रमाद्”
ग्रहों के ऋतु
भृगोरृतुर्वसन्तश्च कुजभान्वोश्च ग्रीष्मकः।
चन्द्रस्य वर्षा विज्ञेया शरच्चैव तथा विदः॥४५॥
हेमन्तोऽपि गुरोर्ज्ञेयः शनेस्तु शिशिरो द्विज।
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
सूर्यादि ग्रहों के ऋतुओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है : शुक्र का वसन्त, सूर्य और मंगल का ग्रीष्म, चन्द्र की वर्षा, बुध का शरद, गुरु का हेमंत और शनि का शिशिर। सारावली – “शिशिरादीनामीशाः शनिसितभौमेन्दुबुधजीवाः” शिशिर से आरम्भ करके ऋतुओं के अधिपति क्रमशः इस प्रकार हैं – शनि, शुक्र, मंगल और सूर्य भी), चंद्र, बुध और गुरु।
सूर्यादि ग्रहों के काल
अयनक्षणवारर्तुमासपक्षसमा द्विज।
सूर्यादीनां क्रमाज्ज्ञेया निर्विशंकं द्विजोत्तम॥३३॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
सूर्यादि ग्रहों के काल (समय) इस प्रकार बताये गए हैं : अयन (६ मास), क्षण, दिन, ऋतु (२ माह), मास, पक्ष और वर्ष। बृहज्जातकं में भी इसी प्रकार मिलता है – “अयनक्षणवासरर्तवो मासोऽर्द्धं च समाश्च भास्करात्” अर्थात सूर्य का अयन, चन्द्रमा का क्षण, मंगल का दिन, बुध का ऋतु, गुरु का मास, शुक्र का पक्ष और शनि का वर्ष।
ग्रहों के रस
कटुक्षारतिक्तमिश्रमधुराम्लकषायकाः।
क्रमेण सर्वे विज्ञेयाः सूर्यादीनां रसा इति॥३४॥
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् – ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः (३)
सूर्यादि ग्रहों के रस इस प्रकार बताये गए हैं : कटु (कड़वा), क्षार (नमकीन), मंगल का तिक्त (तीता – नीम जैसा), बुध का मिश्रित, गुरु का मधुर (मीठा) शुक्र का अम्ल (खट्टा) और शनि का कषैला। बृहज्जातकं में भी इसी प्रकार मिलता है – “कटुकलवणतिक्तमिश्रिता मधुराम्लौ च कषाय इत्यपि”
निष्कर्ष
ग्रहों के पर्याय, स्वभाव, आत्मादि विभाग, अधिकार, वर्ण, देवता, लिंग, तत्व, रंग, स्वरूप आदि अनेकों महत्वपूर्ण विषय हैं जो एक ज्योतिषी के लिये जानना अत्यावश्यक है और इसे जाने समझे बिना फलादेश संभव नहीं होता। उपरोक्त विषयों को यहां सप्रमाण अर्थात ज्योतिष शास्त्र के प्रमाणों द्वारा समझाया गया है।
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