श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग से जन्म पत्रिका बनाना सीखे ~ janam kundli banana sikhe

श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग से जन्म पत्रिका बनाना सीखे ~ janam kundli banana sikhe

हमने अब तक जिस विधि से जन्मपत्रिका बनाना सीखा है उसमें अनेकों त्रुटियां हैं, किन्तु यदि श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका बनाना सीखें तो लगभग सभी त्रुटियों का निवारण हो जायेगा। अभी तक हमने सामान्य रूप से जन्मपत्री बनाने की विधि ही सीखा है जो प्रारंभिक चरण था और समझने के उद्देश्य मात्र से ही था और अब हमें शुद्धतम जन्मपत्रिका निर्माण करना सीखेंगे। यहां श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका बनाने की विस्तृत और सूक्ष्म विधि बताई गयी है जो जन्मपत्रिका निर्माण सीखने वालों के लिये बारम्बार अवलोकन करने योग्य है।

ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

यहां हम एक जन्मपत्रिका का निर्माण विस्तृत विश्लेषण करते हुये करेंगे। इसमें चर मिनट से सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करके उसके आधार पर इष्टकाल ज्ञात करेंगे, ग्रह स्पष्ट करेंगे, दशान्तर्दशा अंकित करेंगे। अभी हमने सूक्ष्म लग्न ज्ञात करना, भाव स्पष्ट करना, चलित कुंडली निर्माण करना, षड्वर्ग बनाना नहीं सीखा है इसलिये इसकी चर्चा शेष रहेगी जो आगे जाकर पूरी करेंगे अथवा उदाहरण हेतु इसी को आधार बनाकर लिया जायेगा।

हम जिस विवरण के आधार पर यहां शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका निर्माण करेंगे वो इस प्रकार है :

  • तिथि : वैशाख शुक्ल तृतीया २०८२ (अक्षय तृतीया)
  • दिन : बुधवार
  • दिनांक : ३०/४/२०२५
  • समय : दिन २:२८ (2:28 pm)
  • स्थान : देवघर
  • अक्षांश : २४/३० उत्तर
  • रेखांश : ८६/४२ पूर्व
  • देशांतर : (+) १४/४८ (मि/से.)
  • वेलांतर : (+) २/४८ (मि/से.)
  • अयनांश : २४/११/३३ (केतकी)

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम शताब्दि पंचांग से अनेक प्रकार का गणित विधि का प्रयोग करते हुये इष्टकाल बनाकर जन्मपत्री बनाना सीखेंगे और अनेक विधियों से इष्टकाल बनायेंगे इसलिये भिन्न-भिन्न इष्टकालों को देखने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जायेगा कि जातक ज्योतिष गणित में कितनी बड़ी त्रुटियां होती रहती है। शताब्दि पंचांग का सम्बंधित पृष्ठ नीचे दिया गया है जहां सभी विवरण अंकित हैं :

वैशाख शुक्ल २०८२, २८ अप्रैल २०२५ से १२ मई २०२५ तक
वैशाख शुक्ल २०८२, २८ अप्रैल २०२५ से १२ मई २०२५ तक

पंचांग से प्राप्त विवरण :

  • तिथि : वैशाख शुक्ल तृतीया १८/२८
  • नक्षत्र : रोहिणी २३/१९
  • गत नक्षत्र : कृत्तिका २९/०५
  • योग : शोभन १२/०२
  • करण : गर १८/२८
  • चंद्र राशि : वृष ५०/५०
  • सूर्योदय : ५/२८
  • दिनमान : ३२/४१
  • शक : १९४७
  • संवत : २०८२

संलग्न पृष्ठ में अगला ग्रह स्पष्ट अंकित है, पूर्व ग्रह स्पष्ट हम पंचांग से लेकर यहां अंकित कर रहे हैं जो वैशाख कृष्ण अमावस्या रविवार, ५१/३८ का है।

  • सूर्य : ०/१३/३९/५० गति ५९/१९
  • मंगल : ३/१०/१९/५५ गति २९/२८
  • बुध : ११/१७/५/१० गति ६९/४८
  • गुरु : १/२६/३०/१८ गति ११/४७
  • शुक्र : ११/४/१८/३६ गति २९/४५
  • शनि : ११/३/१९/१३ गति ६/१४
  • राहु : ११/१/४/३६ गति ३/११ (मध्यम वक्री)

जातक ज्योतिष गणित

  • मानक जन्म समय = १४/२८
  • संस्कारित अथवा स्थानीय जन्म समय : १४/४५/३६
  • १४/२८ + ०/१४/४८ + ०/२/४८
  • = १४/४५/३६

सामान्य जातक गणित द्वारा इष्टकाल ज्ञात करना

१४/४५/३६ स्थानीय जन्म समय
५/२८ पंचांग में अंकित स्थानीय सूर्योदय
९/१७/३६ × २.५ = २३/१४
स्थूल इष्टकाल : २३/१४

सामान्य जातक गणित से ज्ञात होने वाला यह इष्टकाल स्थूल है क्योंकि जातक का जन्म स्थान देवघर है जिसका अक्षांश २४/३० उत्तर है और पंचांग का स्थान २७/४५ उत्तर है एवं सूर्योदय में यह अंतर नहीं किया गया है, इस अंतर को चरांतर कहते हैं। इसी कारण से ज्ञात इष्टकाल स्थूल है।

सारणी विधि से सूक्ष्म इष्टकाल ज्ञात करना

सूर्यक्रांति सारणी से ३० अप्रैल की सूर्यक्रांति : १४/४१

हमने चरांतर संस्कार हेतु पूर्व आलेख में सारणी विधि को सीखा था। जिसके लिये हमें सर्वप्रथम दिनांक के आधार पर सूर्यक्रांति सारणी से सूर्यक्रांति ज्ञात करना है तदनन्तर सूर्यक्रांति और अक्षांश के आधार पर चरमिनट ज्ञात करना है।

  • चरमिनट सारणी से २४ अक्षांश के १४ अंश सूर्यक्रांति का चर : २५/३०
  • चरमिनट सारणी से २५ अक्षांश के १४ अंश सूर्यक्रांति का चर : २६/४२
  • २४ और २५ अक्षांश के १४ अंश सूर्यक्रांति का मध्यम : २६/०६
  • चरमिनट सारणी से २४ अक्षांश के १५ अंश सूर्यक्रांति का चर : २७/२४
  • चरमिनट सारणी से २५ अक्षांश के १५ अंश सूर्यक्रांति का चर : २८/४३
  • २४ और २५ अक्षांश के १५ अंश सूर्यक्रांति का मध्यम : २८/०४

सूर्यक्रांति १४ अंश से ४१ कला अधिक है और १५ अंश से १९ कला न्यून है। यदि १ कला का त्याग कर दें तो तृतीयांश होता है। अर्थात सूर्यक्रांति १४ से दो भाग तृतीयांश अधिक और सूर्यक्रांति १५ से एक भाग तृतीयांश न्यून।

  • २८/०४ – २६/०६ = १/५८ = ११८ सेकंड।
  • ११८ सेकंड का तृतीयांश करने पर ३९ सेकंड
  • २८/०४ में ०/३९ ऋण करने पर = २७/२५
  • इस प्रकार ३० अप्रैल को देवघर का चरमिनट है : २७/२५

६ घंटा में ०/२७/२५ ऋण करने पर ५/३२/३५
अर्थात सारणी विधि से ज्ञात सूक्ष्म सूर्योदय है : ५/३२/३५ (देवघर)

६ घंटा में ०/२७/२५ ऋण करने पर ५/३२/३५
अर्थात सारणी विधि से ज्ञात सूक्ष्म सूर्योदय है : ५/३२/३५ (देवघर)
१४/४५/३६ – ५/३२/३५ = ९/१३/०१ × २.५ = /०३

सारणी विधि से सूक्ष्म इष्टकाल : २३/०३

गणितीय विधि से चरमिनट ज्ञात करके सूक्ष्म इष्टकाल बनाना

  • अमावस्या रविवार की सूर्य राश्यादि : ०/१३/३९/५० = १३/३९/५० (अंशादि)
  • प्रतिपदा सोमवार की सूर्य अंशादि : १३/३९/५० + ०/५९/१९ = १४/३९/०९
  • द्वितीया मंगलवार की सूर्य अंशादि : १४/३९/०९ + ०/५९/१९ = १५/३८/२८

यह मंगलवार के ५१/३८ दण्ड/पल का सूर्य अंशादि है जो ६० दंड से अर्थात तृतीया बुधवार के उदय काल से ८/२२ दण्ड/पल न्यून है अतः १५/३८/२८ में ०/८ और योग करेंगे तो लगभग हो जायेगा। १५/३८/२८ + ०/८ = १५/४६/२८ = ०/१५/४६/२८ अनुमानित औदयिक सूर्य, गणितीय क्रिया से प्राप्त स्पष्ट औदयिक सूर्य अंशादि : १५/४५/२७

गणितीय क्रिया से प्राप्त स्पष्ट औदयिक सूर्य अंशादि : १५/४५/२७
सायन औदयिक सूर्य अंशादि : १५/४५/२७ + २४/११/३३ = ३९/५७/००

सूर्यक्रांति = sin -1 (sin सायन सूर्य × sin परमक्रांति)

कैलकुलेटर से ज्ञात करने पर सूर्यक्रांति = sin-1(sin 39/57/00 × sin 23/26/09) = १४/४७/४७

(सारणी विधि से १४/४१ था) सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में है इसलिये सूर्यक्रांति धनात्मक है और इससे ज्ञात चरमिनट दिनार्द्ध (६ घंटा) में धन करने सूर्यास्त व दिनार्द्ध प्राप्त होगा एवं विपरीत क्रिया अर्थात ६ घंटा में ऋण करने पर सूर्योदय व रात्र्यर्द्ध प्राप्त होगा।

  • चरांश = sin-1(tan -14/47/47 × tan 24/30) = 6/54/50
  • चरमिनट = 6/54/50 × 4 = 27/39

कैलकुलेटर से गणितीय क्रिया करने पर हमें २७/३९ चरमिनट ज्ञात होता है जो सारणी विधि से ज्ञात करने पर २७/२५ था अर्थात ग्राह्य था एवं जो विशेष गणितीय क्रिया करके चरमिनट नहीं ज्ञात कर सकते हैं सारणी विधि से भी ज्ञात करें तो लगभग समान ही होगा।

  • सूर्योदय : ६/०० – ०/२७/३९ = ५/३२/२१
  • सूक्ष्म इष्टकाल : १४/४५/२७ – ५/३२/२१
  • = ९/१३/१५ × २.५ = २३/०३/०८ इष्टकाल
  • अर्थात सूक्ष्म इष्टकाल है : २३/०३

सारणी विधि से भी हमारा इष्टकाल २३/०३ ही था। इस प्रकार चर संस्कार के बिना बनाया गया इष्टकाल २३/१४ स्थूल था और चरसंस्कार करके बनाया गया सूक्ष्म इष्टकाल २३/०३ है। आगे हम इस सूक्ष्म इष्टकाल के आधार पर ही लग्न, भयात-भभोग, दशान्तर्दशादि ज्ञात करेंगे और जन्म कुंडली निर्माण करेंगे।

लग्न निकालना

औदयिक सूर्य हम पहले ही ज्ञात कर चुके हैं, गणितीय क्रिया से प्राप्त स्पष्ट औदयिक सूर्य अंशादि : १५/४५/२७ = ०/१५/४५/२७ अर्थात मेष राशि के १५ अंश पर है और ४५ कला भी है अर्थात १६ अंश का निकटतम है। अतः अधिक शुद्ध लग्न ज्ञात करने के लिये दोनों अंशों के मान का अंतर करना होगा और उसका तृतीयांश १६ अंश के मान में ऋण करना होगा। तथापि अभी हम मेष राशि के १६ अंश के मान से ही लग्नानयन करेंगे।

लग्नानयन हेतु हमें लग्नसारणी के चयन में सावधान रहने की आवश्यकता होती है। देवघर का अक्षांश २४/३० उत्तर है और जो पंचांग इस अक्षांश का निकटतम हो उसके लग्नसारणी को प्रयोग करना होगा। मिथिलादेशीय पंचांग का अक्षांश २६/३५ होता है, वाराणसी के पंचांगों का अक्षांश २५/१८ होता है, यदि शताब्दि पंचांग की बात करें तो उसमें अनेकों अक्षांश की लग्नसारणी है किन्तु अयनांश भेद होने से अब उसका उपयोग नहीं करेंगे।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हृषीकेश पंचांग जिसका अक्षांश २५/१८ उत्तर है और देवघर के अक्षांश २४/३० का निकटतम है इस कारण हम इसी पंचांग की प्रथम लग्न सारणी से लग्नानयन करेंगे।

  • हृषीकेश पंचांग की प्रथम लग्न सारणी में मेष राशि के १६ अंश का मान ४/५६/३७ है, १५ अंश का मान ४/४८/११,
  • दोनों का अन्तर ४/५६/३७ – ४/४८/११ = ०/८/२६, तृतीयांश अंतर = ०/८/२६ ÷ ३ = ०/२/४९,
  • १५/४१ अंश का मान = ४/५६/३७ – ०/२/४९ = ४/५३/४८
  • ४/५३/४८ + २३/०३ (इष्टकाल) = २७/५६/४८
  • प्रथम लग्न सारणी में सिंह राशि के २६ अंश का मान २७/५६/४७ है।
  • इस प्रकार लग्न ज्ञात हुआ : ४/२६

भयात – भभोग साधन

  • नक्षत्र : रोहिणी २३/१९, गत नक्षत्र : कृत्तिका २९/०५
  • भयात = (६०/०० – २९/०५) + २३/०३ = ५३/
  • भभोग = (६०/०० – २९/०५) + २३/१९ = ५४/१

ये सामान्य विधि से निकाला गया भयात-भभोग है और त्रुटिपूर्ण है। इसे समझने के लिये हम प्रथमतः पंचांग के स्थान पर नक्षत्र का मानक समय ज्ञात करेंगे और तदनुसार देवघर में उसका दंडात्मक मान देखेंगे और तब स्पष्ट हो जायेगा कि कितनी त्रुटि है ? इसके लिये हम सर्वप्रथम पंचांग में अंकित दोनों दिन के स्थानीय सूर्योदय को मानक सूर्योदय काल में परिवर्तित करेंगे तदनन्तर, नक्षत्रमान का घंटा-मिनट बनाकर उसका मानक समय ज्ञात करेंगे, फिर उस मानक समय के आधार पर मानक जन्म समय से भायत-भभोग बनाएंगे, देवघर में घट्यादि मान ज्ञात करेंगे आदि।

  • पंचांग का रेखांश ७५/१ है अर्थात देशांतर (७५/१ – ८२/३०) × ४ = (-) २९/५६,
  • २९ अप्रैल का वेलांतर (+) २/४०; ३० अप्रैल का वेलांतर (+) २/४८
  • (स्थानीय समय को मानक बनाने के लिये विपरीत देशांतर/वेलांतर संस्कार किया जाता है)
  • २९ और ३० अप्रैल का स्थानीय (पंचांग) सूर्योदय : ५/२८
  • मानक सूर्योदय = (५/२८ + ०/२९/५६) – ०/२/४० = ५/५५ (२९ अप्रैल)
  • मानक सूर्योदय = (५/२८ + ०/२९/५६) – ०/२/४८ = ५/५५ (३० अप्रैल)
  • इसी प्रकार हम देवघर का भी मानक सूर्योदय ज्ञात करते हैं : (५/३२ – ०/१४/४८) – ०/२/४० = ५/१५

अब हम इष्टकाल का भी परीक्षण करते हैं, जन्म समय १४/२८ – मानक सूर्योदय ५/१५ = २३/२/३० या २३/०३ अर्थात इस विधि से भी इष्टकाल शुद्ध है।

  • कृत्तिका २९/०५ घटी/पल= ११/३८ घटा/मिनट, ५/५५ + ११/३८ = १७/३३ बजे (मानक समय) तक
  • रोहिणी २३/१९ घटी/पल = ९/२० घटा/मिनट, ५/५५ + ९/२० = १५/१५ बजे (मानक समय) तक

यदि हम इस मानक नक्षत्र समय को देवघर के लिये घटी/पल में परिवर्तित करना चाहें तो वो इस प्रकार होगा : नक्षत्र के मानक समय में देवघर का सूर्योदय घटाकर प्राप्त घंटा/मिनट को घट्यादि बना लेंगे वही देवघर में नक्षत्र का शुद्ध घट्यादि मान होगा।

  • कृत्तिका १७/३३ बजे तक; १७/३३ – ५/१५ = १२/१८; १२/१८ × २.५ = ३०/४५ घटी/पल
  • रोहिणी १५/१५ बजे तक; १५/१५ – ५/१५ = १०/००; १०/०० × २.५ = २५/०० घटी/पल

अब हम दो प्रकार से भयात-भभोग ज्ञात कर सकते हैं – मानक समय द्वारा और देवघर के घट्यादि मान द्वारा :

  • नक्षत्र : रोहिणी २५/००, गत नक्षत्र : कृत्तिका ३०/४५
  • भयात = (६०/०० – ३०/४५) + २३/०३ = ५२/१८
  • भभोग = (६०/०० – ३०/४५) + २५/०० = ५४/१५

अब हम देखते हैं कि भभोग में तो अत्यल्प (पल मात्र का) अन्तर होता है, अथवा नहीं होता है किन्तु भयात में बहुत अधिक परिवर्तन होता है और यही भयात-भभोग साधन में होने वाली त्रुटि है। यदि हम इस प्रकार से ज्ञात न करते तो हमारे पास भयात था : ५३/; यह अंतर १ घटी ४० पल का है।

मानक समय के आधार पर भयात-भभोग साधन

  • नक्षत्र : रोहिणी १५/१५ बजे तक, गत नक्षत्र : कृत्तिका १७/३३ बजे तक, जन्म समय : १४/२८ (सभी समय मानक)
  • भयात = (२४/०० – १७/३३) + १४/२८ = २०/५५ (घंटा/मिनट) = ५२/१८ (घटी/पल)
  • भभोग = (२४/०० – १७/३३) + १५/१५ = २१/४२ (घंटा/मिनट) = ५४/१५ (घटी/पल)

दशान्तर्दशा साधन

जन्म नक्षत्र रोहिणी के अनुसार दशान्तर्दशा सारणी से चन्द्र महादशा ज्ञात होता है जिसका महादशा वर्ष १० है। अब भयात-भभोग के आधार पर भुक्त चन्द्र वर्षादि, भोग्य चन्द्र वर्षादि ज्ञात करेंगे।

  • भयात : ५२/१८ (घटी/पल) = ३१३८ पल
  • भभोग : ५४/१५ (घटी/पल) = ३२५५ पल
  • ३२५५ = १० वर्ष अर्थात ३१३८ = (३१३८ × १०) ÷ ३२५५ = ९ वर्ष शेष २०८५
  • (२०८५ × १२) ÷ ३२५५ = ७ मास शेष २२३५
  • (२२३५ × ३०) ÷ ३२५५ = २० दिन

इस प्रकार से भोग्य वर्षादि ९/७/२० है और १०/००/०० – ९/७/२० = ०/०४/१० भोग्य चन्द्र वर्षादि

चन्द्र महादशा में अंतिम अन्तर्दशा सूर्य की है जो ०/०६/०० वर्षादि है और भोग्य चन्द्र वर्षादि ०/०४/१० से अधिक है अर्थात वर्त्तमान महादशा चन्द्र की है और वर्त्तमान अन्तर्दशा सूर्य की है।

जन्म दिनांक ३०/४/२०२५ है अर्थात वर्षादि करने पर २०२५/०४/३० + ०/०४/१० (भोग्य चन्द्र वर्षादि) = २०२५/०९/१० अर्थात १०/०९/२०२५ तक वर्त्तमान चंद्र महादशा कर सूर्य की अन्तर्दशा चलेगी। तदनन्तर क्रमशः अन्य महादशादि ज्ञात किये जायेंगे।

चन्द्र स्पष्ट करना

  • भयात : ५२/१८ (घटी/पल) = ३१३८ पल
  • भभोग : ५४/१५ (घटी/पल) = ३२५५ पल
  • नक्षत्रारम्भ सारणी से रोहिणी नक्षत्रारम्भ अंशादि : ४०/०० या राश्यादि में १/१०/००/००
  • चंद्र स्पष्ट = [{(८०० ÷ भभोग) × भयात} + नक्षत्रारम्भ बिन्दु]
  • = [{(८०० ÷ ३२५५) × ३१३८} + ४०/००]
  • = ५०/५१/१५
  • = १/२०/२१/१५ (चंद्र स्पष्ट)

सूर्यादि ग्रह स्पष्ट करना

ग्रह स्पष्ट करने की विधि हम पूर्व आलेखों में सीख चुके हैं, यहां उससे भी भिन्न विधि से ग्रह स्पष्ट करेंगे। हमें दिनांक ३०/४/२०२५ के २३/०३ इष्टकाल का ग्रह स्पष्ट ज्ञात करना है। शताब्दि पंचांग के संलग्न पृष्ठ में ४/५/२०२५ के इष्टकाल ५१/५१ का आगामी ग्रह स्पष्ट अंकित है और पूर्व ग्रहस्पष्ट २७/४/२०२५ के ५१/३८ का है जो नीचे दिया गया है। हमें ३०/०४/२०२५ का ग्रह स्पष्ट ज्ञात करना है जो पूर्व के ग्रहस्पष्ट से ३ दिन आगे है और पर ग्रहस्पष्ट से ४ दिन पीछे है अतः हम दोनों ग्रह गति का मध्यम गति ज्ञात करेंगे और तदनुसार इष्टकाल तक की भुक्त अंशादि ज्ञात करके पूर्व के ग्रहराश्यादि में योग करेंगे।

ग्रह स्पष्ट २७/४/२०२५ के ५१/३८ से इष्टकाल तक ३०/४/२०२५ के २३/०३ तक का घट्यादि :

  • ६०/०० – ५१/३८ = ८/२२ औदयिक २८/४ सोमवार
  • ८/२२ + २३/०३ = ३१/२५ इष्टकालिक २८/४ सोमवार
  • ३१/२५ + ६०/०० = ९१/२५ इष्टकालिक २९/४ मंगलवार
  • ९१/२५ + ६०/०० = १५१/२५ इष्टकालिक ३०/०४ बुधवार
  • सूर्य : ०/१३/३९/५० गति ५९/१९
  • मंगल : ३/१०/१९/५५ गति २९/२८
  • बुध : ११/१७/५/१० गति ६९/४८
  • गुरु : १/२६/३०/१८ गति ११/४७
  • शुक्र : ११/४/१८/३६ गति २९/४५
  • शनि : ११/३/१९/१३ गति ६/१४
  • राहु : ११/१/४/३६ गति ३/११
ग्रह२७/४४/५मध्यम गति
सूर्य५९/१९५८/०६५८/४३
मंगल२९/२८३०/४१३०/०१
बुध६९/४८८९/७१८०/००
गुरु११/४७१२/१४१२/०१
शुक्र२९/४५३९/०९३४/२७
शनि६/१४५/५०६/०२
राहु३/११ (मध्यम वक्री)३/११ (मध्यम वक्री)३/११ (मध्यम वक्री)

उपरोक्त विवरण के आधार पर अब हम ग्रह स्पष्ट कर सकते हैं, सभी ग्रह स्पष्ट का सूत्र जो होगा वो इस प्रकार होगा : [{(मध्यम ग्रह गति ÷ ६०) × १५१/२५} + ग्रह राश्यादि]

  • सूर्य स्पष्ट = [{(५८/४३ ÷ ६०) × १५१/२५} + १३/३९/५०]
  • [{(३५२३ ÷ ३६००) × ९०८५} + १३/३९/५०]
  • = १६/०७/५० अंशादि = स्पष्ट सूर्य /१६/०७/५०

इसी प्रकार से अन्य ग्रहस्पष्ट करने पर विवरण इस प्रकार है, लग्न और चन्द्र स्पष्ट पूर्व ही किया गया था :

  • लग्न : ४/२६
  • सूर्य : ०/१६/०७/५०
  • चंद्र स्पष्ट : १/२०/२१/१५
  • मंगल : ३/११/३५/४०
  • बुध : ११/२०/२७/०३
  • गुरु : १/२७/०/३८
  • शुक्र : ११/०५/४५/३२
  • शनि : ११/०३/३४/२७
  • राहु : ११/०/५६/३४
  • केतु : ५/०/५६/३४

लग्न सिंह है अतः प्रथम भाव में ५ अंकित करेंगे तदनन्तर द्वितीयादि भावों में ६, ७ आदि अंकित करेंगे। जब लग्न/ग्रहादि की राश्यादि में प्रथम स्थान पर जो अंक होता है वह राशि होती है। जैसे लग्न है : ४/२६ तो ४ राशि का बोधक है और २६ अंश है। ४ का तात्पर्य है कि चतुर्थ राशि कर्क से आगे अर्थात सिंह का २६ अंश। इसी प्रकार चंद्र स्पष्ट राश्यादि १/२०/२१/१५ का तात्पर्य है प्रथम मेष राशि से आगे अर्थात वृष राशि में २० अंश, २१ कला और १५ विकला।

जन्म कुंडली बनाना – janam kundli banana

लग्न कुंडली : ४/२६
लग्न कुंडली : ४/२६
लग्न : ४/२६ चन्द्र कुंडली
लग्न : ४/२६ चन्द्र कुंडली

निष्कर्ष : इस आलेख में श्री वेंकेटेश्वर शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका बनाने की विधि बताई गयी है। शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका निर्माण करना एक कठिन कार्य होता है और यदि सामान्य विधि का अनुकरण करते हुये बनायें तो त्रुटिपूर्ण हो जाता है। किन्तु इस आलेख में चरमिनट ज्ञात करके सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करना तदनन्तर लग्न सारणी से लग्न ज्ञात करना, भयात-भभोग, दशान्तर्दशा, चन्द्र स्पष्ट, सूर्यादि ग्रह स्पष्ट करना आदि विधि विश्लेषण पूर्वक बताते हुये लग्न कुंडली और चंद्र कुंडली दोनों दिया गया है।

इस प्रकार इस आलेख के अनुसार यदि सही से समझकर जन्मपत्रिका निर्माण किया जाय तो वह शुद्ध जन्मपत्रिका होगी।

ज्योतिष गणित सूत्र

  • दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
  • घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
  • इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5

विद्वद्जनों से पुनः आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।

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