ज्योतिष: भूत, वर्तमान और भविष्य का संगम – jyotish kya hai

ज्योतिष: भूत, वर्तमान और भविष्य का संगम - jyotish kya hai

ज्योतिष एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो ग्रहों, नक्षत्रादि खगोलीय पिंडों की गति और स्थिति का अध्ययन करके उनका मानव जीवन पर ही नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करता है। खगोलीय पिंडों की स्थिति और तदनुसार निःसृत होने वाली ज्योति हमारे जीवन की विभिन्न घटनाओं जैसे कि जन्म, विवाह, आजीविका, स्वास्थ्य आदि जीवन के विभिन्न आयामों को प्रभावित करती है और ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। यहां हम ज्योतिष के बारे में एक विस्तृत चर्चा करते हुये भली-भांति समझने का प्रयास करेंगे।

आकाश में असंख्य तारे आदि पिण्ड हैं और उनसे ज्योति (प्रकाश) भी निकलती हैं अथवा परावर्तित होती है। इन ज्योतियों का संपूर्ण सृष्टि पर प्रभाव पड़ता है और इनमें जो सर्वाधिक प्रभावित करने वाले होते हैं उनको विशेष रूप से चिह्नित किया गया है और उनकी स्थिति को ज्ञात करते हुये उनके प्रभाव का विश्लेषण ज्योतिष शास्त्र में किया जाता है। ज्योति का अध्ययन, ज्योतिषीय पिंड का अध्ययन करने के कारण ही इसे ज्योतिष कहा जाता है।

ज्योतिष का संबंध आकाश के पिंडों, ग्रहों, नक्षत्रों और उनकी मानव जीवन पर पड़ने वाली संभावित प्रभावों से है।

ज्योतिष क्या है

पृथ्वी के चारों ओर के सूर्यपथ वाले आकाशीय खंड में सात ग्रह (सूर्य सहित), दो छाया ग्रह, 12 राशियां, 27 (28) नक्षत्र आदि का पृथ्वी पर विशेष प्रभाव पड़ता है और उनमें से सर्वाधिक प्रभाव सूर्य और चंद्रमा का होता है जिसे मौसम, ज्वार भाटा आदि के रूप में भी देखा जाता है। विशेष कालखंड में विशेष जीवों की कामवासना जाग्रत होती है ये भी एक प्रभाव है जो स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्वान है।

ज्योतिष को कालज्ञान भी कहा जाता है, लगध के वेदाङ्ग ज्योतिष में “कालज्ञानं प्रवक्ष्यामि” मिलता है। कालज्ञान का तात्पर्य काल गणना, काल निर्धारण, शुभाशुभ काल आदि होता है।

ज्योतिष की परिभाषा : आकाश के विशेष ज्योति पिंडों जिन्हें ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि कहा जाता है उनका अध्ययन (स्थिति का ज्ञान और प्रभाव) करना ज्योतिष है। यह ज्ञान जिस शास्त्र से प्राप्त होता है उसे ज्योतिष शास्त्र कहते हैं।

क्या आप जानते हैं कि ज्योतिष पूर्ण रूप से भारतीय विद्या है। सर्वप्रथम यह समझना अत्यावश्यक है कि ज्योतिष भारतीय विद्या है।

ज्योतिष का इतिहास

जहां किसी अन्य सभ्यता के अस्तित्व का भी इतिहास नहीं मिलता वहां उनसे पूर्व उनकी विद्या का अस्तित्व कैसे हो सकता है। जहां पृथ्वी की आयु लगभग दो अरब वर्ष होने को है वहां विज्ञान और इतिहास 5000 – 10000 वर्षों तक गमन कर पाता है। सनातन से भिन्न जो पंथ रूपी संस्कृतियां हैं उनका इतिहास 2000 – 3000 वर्षों तक का ही प्राप्त होता है और वो यदि ये कहें कि ज्योतिष विद्या उनकी देन है तो इसे असत्य कहना भी असत्य का अपमान करना होगा।

एक मात्र सनातन संस्कृति ही है जो सृष्टि के आरंभ से लेकर वर्तमान तक है और सदैव रहेगा। और जब धर्महानि की सीमा का अतिक्रमण होता है तब भगवान स्वयं अवतरित होकर पुनः धर्म की स्थापना करते हैं। सनातन अनादिकाल से है और सनातन की विद्या भी अनादिकाल से ही है, दोनों एक-दूसरे के अनादि होने को प्रमाणित करते हैं। वेद मानवीय कृति नहीं है यह सभी प्रकार से सिद्ध भी होता है, विश्वास की बात तो पृथक है और सभी सनातनी ये विश्वास करते हैं।

आदिकाव्य रामायण बाल्मीकि मानवीय कृति है और इसके समान अनेकों मानवीय रचनायें की गयी। वेद ईश्वरीय कृति है और इसके समान अन्य कोई रचना नहीं हो पायी। यदि वेद मानवीय कृति होती तो उसके समान अन्य कृतियां भी होती।

जो लोग वेद-ज्योतिष के इतिहास को मात्र सहस्रों वर्ष में सीमित करके बताते हैं ये उनके दृष्टि की समस्या है जो उन्हें आगे बढ़ने ही नहीं देती है। जैसे सूक्ष्म कणों, अणु-परमाणु आदि को देखने के लिये यंत्रों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार भारतीय विद्या, धर्म-संस्कृति को समझने के लिये भी एक विशेष ज्ञानचक्षु की आवश्यकता होती है जो वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के पास नहीं होती और नहीं होने का भी कारण है विज्ञान-इतिहास के निर्धारित सूत्रों का आवरण। इस कारण हमें उन ज्ञानचक्षुओं से रहित व्यक्तियों चाहे वो कोई भी उपमा रखते हों विश्वास नहीं करना चाहिये।

ये लोग षड्यंत्र करते हैं क्या बताना है और क्या नहीं बताना है अथवा किसी विषय के बारे में बताना भी है तो अपने अनुकूल क्या बताना है सुनियोजित रूप से षड्यंत्र रचते हैं। आप स्वयं सोचिये क्या संभल दंगे और उसमें 184 हिन्दुओं को जलाकर मारने के बारे में योगी के बताने से पहले आपको कुछ भी ज्ञात था ? जब योगी आदित्यनाथ ने ऐसे मंच पर बताया तो पूरी मीडिया चर्चा करने लगी लेकिन प्रश्न यह है कि छुपाया किसने था ? आपको क्यों नहीं ज्ञात था ? क्योंकि ये षड्यंत्र बहुत बड़े स्तर पर किया जा रहा है और इसके पीछे एक बड़ा वैश्विक गिरोह है।

ये लोग 3000 वर्ष 5000 वर्ष अथवा अत्यधिक साहस करने पर 10000 वर्ष पूर्व तक कहेंगे। और इसे असत्य कहना भी बहुत छोटी सी बात है असत्य का भी अपमान होगा।

एक डींग हांकने वाला व्यक्ति था जिसने अपनी पत्नी को कह रखा था कि जब मैं झूठ बोलूं तो दो बार खांस देना। एक बार वह ससुराल गया और साली-सरहज के सामने डींग हांकने लगा :

  • एक बार में जंगल गया था तो हमने 30 हाथ का शेर देखा। पत्नी दो बार खांसती है तो फिर से कहता है;
  • लेकिन जब थोड़ा निकट आया तो 20 हाथ का ही था पत्नी फिर से दो बार खांसती है तो वह कहता है;
  • जब मैंने और निकट से देखा तो वह 15 हाथ का ही था, पत्नी पुनः दो बार खांसती है तो वह कहता है;
  • मेरी भी कोई प्रतिष्ठा है अब कितना भी खांसो इससे कम नहीं कर सकता।

इन इतिहासकारों और वैज्ञानिकों की यही स्थिति है जो सनातन, भारत के प्रति यही दृष्टिकोण रखते हैं।

भगवान कृष्ण 5000 वर्षपूर्व धराधाम पर अवतरित हुये थे ये लोग 3000 वर्ष पूर्व पर जाकर कहते हैं इससे अधिक नहीं कर सकता। भगवान राम ने 10000 वर्ष तो राज्य ही किया था और रामावतार के संबंध में ये लोग हमें बताते हैं कि 5000 – 6000 वर्ष पूर्व तक कह सकता हूँ उससे अधिक नहीं मेरी भी कोई प्रतिष्ठा है।

इस भूमिका का तात्पर्य यह है कि ज्योतिष शास्त्र भी अनादि है किन्तु ये लोग आपको 3000 – 5000 वर्ष तक कहेंगे क्योंकि इससे आगे उनकी प्रतिष्ठारूपी नाक अटक जाती है और यदि हम इन पर विश्वास करें तो ये अंधविश्वास होगा। अंधविश्वास क्या है इसके विषय में जानने के लिये आप यहां दिये गये आलेख को भी पढ़ सकते हैं और विडियो को भी देख सकते हैं।

ज्योतिष वेदाङ्ग है और इसे कुछ सहस्र वर्ष की विद्या नहीं कहा जा सकता। प्रह्लाद के समय भी नारद जी ने भविष्यवाणी किया था जो कड़ोरों वर्ष पूर्व की घटना है। सोचिये प्रह्लाद के काल में भी गुरुकुल की व्यवस्था थी ये पृथक विषय है कि हिरण्यकशिपु स्वयं को ईश्वर घोषित करता था और ऐसा ही पढ़ाने के लिये भी कहता था; किन्तु होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को हुआ था ये बिना ज्योतिष के कैसे बताया जा सकता है। अर्थात उस काल में ज्योतिष था। इस प्रकार ज्योतिष अर्वाचीन विद्या है।

वेदों में ज्योतिष का उल्लेख मिलता है और इससे सिद्ध होता है कि भारतीय ज्योतिष अर्वाचीन है, ज्योतिष भारतीय विद्या ही है। दुनियां में ज्योतिष विद्या का प्रसार किसी न किसी प्रकार से भारत से ही हुआ है भले ही उसकी जानकारी हो अथवा न हो।

ज्योतिष के मूल सिद्धांत

ज्योतिष शास्त्र के मूल सिद्धांत को इन चार बिंदुओं में समझा जा सकता है :

  1. ग्रह : ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक ग्रह का एक विशिष्ट प्रभाव होता है और यह प्रभाव उस राशि-नक्षत्र पर भी निर्भर करता है जिसमें ग्रह स्थित होता है।
  2. राशि : राशियाँ 12 भागों में विभाजित होती हैं और प्रत्येक राशि का एक विशिष्ट स्वभाव होता है। पृथ्वी के चारों ओर 360 अंश को 12 भागों में विभक्त किया गया है इस प्रकार एक राशि का मान 30 अंश (डिग्री) होता है।
  3. नक्षत्र : नक्षत्र ऐसे छोटे खंड होते हैं कुछ विशेष तारों का समूह होता है, अंशों में इसका मान 3 अंश 20 कला होती है। प्रत्येक नक्षत्र का भी एक विशिष्ट प्रभाव होता है।
  4. लग्न : राशियां भी प्रतिदिन उदयास्त होती है और दैनिक उदित राशि को लग्न कहा जाता है। ज्योतिषीय अध्ययन में लग्न का भी विशेष महत्व होता है किन्तु इसमें मुख्य विचार राशि के अनुसार ही किया जाता है क्योंकि लग्न वास्तव में उदित राशि ही होता है।

ज्योतिष के विभिन्न प्रकार

वर्तमान में हमें ज्योतिष के विभिन्न प्रकार ये बताये जाते हैं :

  • वैदिक ज्योतिष: यह ज्योतिष का सबसे प्राचीन रूप है और यह वेदों पर आधारित है।
  • पाश्चात्य ज्योतिष: यह ज्योतिष का एक आधुनिक रूप है और यह वैदिक ज्योतिष से भिन्न है।
  • चाइनीज ज्योतिष: यह ज्योतिष का एक प्राचीन चीनी रूप है और यह पांच तत्वों पर आधारित है।
  • अरबी ज्योतिष: यह ज्योतिष का एक प्राचीन अरबी रूप है और यह ग्रहों की गति पर आधारित है।

किन्तु ये वही डींग हांकने वाला विषय है, ज्योतिष के प्रकारों को इस प्रकार से विभाजित नहीं किया जा सकता है। ज्योतिष भारतीय विद्या है और जब ज्योतिष भारतीय विद्या है तो फिर इसके प्रकारों में पाश्चात्य, चाइनीज, अरबी आदि कैसे सिद्ध होता है। वैसे भी वर्त्तमान में जो अरब है वह तो कभी भारत ही होता था। ज्योतिष के प्रकारों को इस तरह से विभाजित किया जा सकता है :

  • भविष्यवाणी ज्योतिष : जन्मकुंडली/प्रश्नकुंडली के अनुसार फलादेश भावी जीवन की जानकारी प्रदान करता है जिसे भविष्यवाणी भी कहा जा सकता है।
  • कालानयन ज्योतिष : किसी भी कार्य को करने के लिये ज्योतिष के अनुसार शुभ काल का निर्धारण किया जाता है जिसे शुभ मुहूर्त कहा जाता है।
  • उपचार ज्योतिष : ज्योतिष का एक प्रकार उपचार भी है। उपचार की क्रिया भले ही कर्मकांड का विषय हो किन्तु ग्रह की स्थिति, दशान्तर्दशा आदि के अशुभ फलों का निवारणरूपी उपचार का निर्णय भी ज्योतिष के ही अंतर्गत आता है। जानकुंडली से संबंधित अशुभ फलों के निवारण हेतु किसे कौन सी शांति, जप, हवन, रत्नादि धारण करना है ये उपचार भी ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत ही आता है।
  • वातावरण ज्योतिष : इसी प्रकार से ज्योतिष शास्त्र में ऋतु ताप/वर्षा/शीत आदि का भी विचार किया जाता है और इसे भी एक पृथक प्रकार कहा जा सकता है।

ज्योतिष के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • ज्योतिष बहुत ही जटिल विषय है और इसे पूरी तरह से समझने के लिए गहन अध्ययन करने की आवश्यकता होती है।
  • जातक ज्योतिष एक व्यक्तिगत विषय है और यह भिन्न-भिन्न व्यक्ति पर भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावकारक होता है। इसलिये ज्योतिषीय फलादेश करते समय देश, काल और परिस्थिति का विचार करना भी आवश्यक होता है।
  • ज्योतिष को अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए आधार बनाया जाता है किन्तु यह परामर्श विद्वान ज्योतिषी से ही लेना चाहिये।
  • ज्योतिष के अनुसार यदि किसी कर्म के लिये शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया गया हो तो उसी शुभ मुहूर्त में करना भी चाहिये।
  • ज्योतिष का पुस्तकीय शिक्षा प्राप्त मात्र करने से कोई ज्योतिषी कहला तो सकता है किन्तु उसका फलादेश सटीक नहीं हो सकता।
  • ज्योतिषी के लिये पिशाचिनी सिद्धि आदि का निषेध है और जो ज्योतिषी कर्णपिशाचिनी आदि विधा का प्रयोग करते हैं वो नरकगामी होते हैं।

निष्कर्ष : ज्योतिष पूर्ण रूप से भारतीय विद्या है जो वेद की भांति ही अनादि काल से है। इतिहासकारों के आदिकाल से लाखों गुणा पूर्व बढ़ते जाने पर अनादि काल होगा। अनादि का तात्पर्य है आदि से रहित। ज्योतिष में ज्योतिपुंजों का अध्ययन किया जाता है और इसका विधान जिस शास्त्र में है उसे ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है।

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