पूर्व आलेख में हमनें अक्षांश, पलभा, चरखण्ड, लंकोदय, स्वोदय आदि को जान चुके हैं, स्वोदय ज्ञात करना भी सीख चुके हैं। अब हमें स्वोदय ज्ञात करके शुद्ध लग्न निकालने की विधि को सरलतापूर्वक समझने की आवश्यकता है। यदि हम एक अभ्यास करते हुये क्रमशः पलभा, चरखण्ड, स्वोदय और लग्नानयन करें तो शुद्ध लग्न बनाने की विधि पूर्ण हो जाएगी। इस आलेख में स्वोदय विधि से शुद्ध लग्न निकालने की विधि (lagna kaise nikalte hain) अभ्यासात्मक उदाहरण के साथ बताई गयी है।
स्वोदय विधि से शुद्ध लग्न निकालने की विधि – lagna kaise nikalte hain
पूर्व आलेखों में जहां हमने झटपट सारणी से लग्न ज्ञात करके जन्मपत्रिका निर्माण बनाने की विधियां सीखने-समझने का प्रयास किया है वह प्रारंभिक चर्चा थी जिससे आगे की गूढ़ विधियों को समझने में कठिनाई न हो। हमने पूर्व आलेख में शताब्दि पंचांग से चरमिनट द्वारा शुद्ध इष्टकाल ज्ञात करके सारणी विधि से ही लग्नानयन किया था।
यहां हम पुनः उसी विवरण के आधार पर पलभा, चरखण्ड, स्वोदय ज्ञात करके शुद्ध लग्नानयन करेंगे। किन्तु इससे पूर्व हम स्वोदय से लग्नानयन करते कैसे हैं इस विधि को समझेंगे तदनन्तर अभ्यास करेंगे। और पूर्व आलेख में स्वोदय ज्ञात करने तक की विधि का संक्षेप में उल्लेख भी करेंगे।
स्वोदय ज्ञात करने तक की विधि इस प्रकार है जो हम सीख चुके हैं :
- जातक के जन्मस्थान का अक्षांश ज्ञात करना।
- अक्षांश से पलभा ज्ञात करना : tanअक्षांश × १२
- पलभा से तीनों चरखण्ड ज्ञात करना।
- लंकोदय मान में चरखण्ड संस्कार करके स्वोदय मान ज्ञात करना।
अब उससे आगे की विधि इस प्रकार समझें :
तात्कालिक सूर्य
लग्नानयन हेतु किसी भी विधि से करें हमें तात्कालिक सूर्य की आवश्यकता होती है किन्तु हमने प्रारम्भ में पंचांग में अंकित सूर्य राश्यादि को लेकर सीखना प्रारम्भ किया था जो कि एक बड़ी त्रुटि होती है किन्तु ८०% – ९०% लग्नानयन उसी प्रकार किया जाता है। शुद्ध लग्नानयन १०% से बहुत अधिक किया जाता हो तो २०% ही होगा और इसे समझने के लिये जब आप ज्योतिषी बन जायेंगे तो पास पूर्व की बनी जन्मपत्रिकायें भी आयेंगी और उस समय आपको ज्ञात हो जायेगा कि अधिकांश जन्मपत्रिका किस विधि से बनाई जाती है।
जैसे यदि किसी क्रिकेट खिलाड़ी का निशाना इतना सटीक हो कि वो थ्रो करके हर बार मिडिल विकेट ही गिराये, वृक्ष के फलों को एक ढेला/धेला (ईंट-पत्थर का छोटा टुकड़ा) फेंककर ही तोड़ लेता हो किन्तु उसे यदि उड़ते हुये पक्षी को निशाना बनाना हो तो वह भी चूक जायेगा। क्योंकि उड़ते हुये पक्षी को निशाना बनाने के लिये उसकी गति भी समझनी होगी एवं जब तक ढेला उसके पास जायेगा तब तक वह और कितना आगे होगी यह अनुमान करके ढेला फेंकने पर ही निशाना सही लगेगा अन्यथा नहीं।
उसी प्रकार से औदयिक सूर्य से यदि लग्न साधन करेंगे तो इष्टकाल तक वह और कितना आगे होगा यह अंतर नहीं मिलेगा और इष्टकाल यदि रात का हो तो लग्न में पर्याप्त अंतर भी हो जायेगा। मध्याह्न तक के लग्न स्पष्ट में किंचित अंतर ही होगा। अस्तु औदयिक सूर्य से लग्नानयन अधिकतम मध्याह्न पर्यन्त ही किया जा सकता है, मिश्रमान कालिक सूर्य से रात्रि का लग्नानयन किया जा सकता है किन्तु किंचित अंतर होगा। स्पष्ट लग्न ज्ञात करने के लिये तात्कालिक सूर्य होना अपेक्षित होता है। अस्तु हम तात्कालिक सूर्य से ही लग्नानयन करेंगे और स्पष्ट लग्नानयन हेतु तात्कालिक सूर्य ही ग्राह्य होता है न की औदयिक।
सायन सूर्य
हम जो स्पष्ट सूर्य ज्ञात करते हैं वह निरयण होता है, लग्नानयन हेतु हमें सायन सूर्य की आवश्यकता होती है और निरयण सूर्य में उस दिन का अयनांश योग करने से वह सायन सूर्य हो जाता है। अयनांश के कई प्रकार देखे जाते हैं जिसमें से चित्रापक्षीय अयनांश अधिक प्रचलित व स्पष्ट होता है। तथापि केतकी अयनांश भी लगभग ही रहता है और यदि शताब्दि पंचांग से जन्मपत्रिका बनानी हो तो वर्षारम्भ का केतकी अयनांश हमें पंचांग में ही उपलब्ध हो जाता है जिसे अभीष्ट दिन का बनाना होता है। अयनांश की मध्यम वार्षिक गति ५० विकला होती है।
चित्रापक्षीय अयनांश ज्ञात करने में कठिनाई हो सकती है, विभिन्न ऐप में आपको चित्रापक्षीय अयनांश मिल जायेगा। यहां हम केतकी अयनांश का ही प्रयोग करेंगे।
सायन सूर्य = निरयण सूर्य + अयनांश
भोग्य सूर्यांशादि
स्पष्ट सूर्य में अयनांश योग करने से जो सायन सूर्य ज्ञात होता है वह सायन सूर्य का भुक्त राश्यादि होता है और लग्नानयन हेतु हमें भोग्य अंशादि की आवश्यकता होती है। एक राशि में ३० अंश होते हैं अतः यदि सायन सूर्य ३/१२/२५/३० हो तो इसका तात्पर्य है भुक्त राशि ३, भुक्त अंश १२, भुक्त कला २५ और भुक्त विकला ३०।
यदि हमें भोग्य राश्यादि ज्ञात करना होगा तो १२ राशियां होती है इसलिये १२/००/००/०० – ३/१२/२५/३० करने पर ज्ञात होगा। इस विधि से भी ज्ञात अंशादि को ले सकते हैं किन्तु हमें भोग्य राशि की आवश्यकता ही नहीं होती है मात्र भोग्य अंशादि की ही आवश्यकता होती है इसलिये हम भोग्य अंशादि ही ज्ञात करना चाहें तो उसके लिये हमें ३० अंश में से स्पष्ट सूर्य का अंशादि ऋण करना होगा, राशि की आवश्यकता नहीं है। १ राशि में ३० अंश होते हैं इसलिये ३० में से अंशादि ऋण करने पर सूर्य के उसी राशि का भोग्यांश ज्ञात होगा।
इस प्रकार सायन सूर्य ३/१२/२५/३० के भोग्य अंशादि के लिये हम ३०/००/०० – १२/१५/३० करेंगे और १७/४४/३० प्राप्त होता है जो सूर्य का भोग्य अंशादि है।
उदित लग्न का भोग्यांश पल ज्ञात करना
स्पष्ट सूर्य का तात्पर्य है कि सूर्योदय काल में उतना ही लग्न अंशादि था अर्थात सूर्योदय के समय जो स्पष्ट सायन सूर्य राश्यादि होता है वही उदित लग्न की भी राश्यादि होती है। किन्तु यह भुक्त होती है, हमने भोग्य सूर्य विकलात्मक ज्ञात किया है इससे अब हमें लग्न का भोग्य पलादि ज्ञात करना होता है। इसके लिये ज्ञात स्वोदय के जो लग्न पल (लग्नोदय पल) जो सायन सूर्य की राशि का हो उससे सूर्य भोग्यांशादि को गुणा कर देंगे एवं तदनन्तर उसमें ३० से भाग देंगे; जो लब्धि हो वही उक्त राशि (लग्न) का भोग्य पल होगा।
अब यदि इष्टकाल को पलात्मक बनाकर उसमें से भोग्य पल को ऋण करेंगे तो शेष पल भुक्त होगा अर्थात जितना पल शेष होगा उतने पल के समान ही लग्न व्यतीत हो चुके होंगे। अर्थात उसमें से क्रमशः अगली राशियों के स्वोदय पलों को ऋण करते जायेंगे और जहां तक ऋण होता जायेगा वह व्यतीत हो चुका होगा और जो पल न घटे वह तात्कालिक सायन लग्न का भोग्य पल होगा। जो राशिमान ऋण हो जाये वह शुद्ध कहलाता है और जो ऋण न हो वह अशुद्ध (आंशिक) कहलाता है।
- अब इसके पलों को अंशादि में परिवर्तित करना होगा जिसके लिये ३० से गुणा करके जो राशि (लग्न) हो उसके पलों (स्वोदय पल) से भाग देना होगा।
- प्रथम भागफल अंश होगा और
- शेष को ६० से गुणा करके पुनः भाग देने पर जो भागफल होगा वह कला होगी एवं
- शेष कला को पुनः ६० से गुणा करके भाग देने पर जो भागफल होगा वह विकला होगी।
- विकला के पश्चात् का शेष त्याज्य होगा।
इस प्रकार जो लग्न व अंशादि ज्ञात होता है वह सायन लग्न होता है एवं स्पष्ट सूर्य में जो अयनांश योग किया गया था सायन लग्न में उतने ही अयनांश को ऋण करने पर निरयण स्पष्ट लग्न ज्ञात हो जाता है।
स्पष्ट लग्नानयन की यह विधि अत्यंत जटिल है एवं जिन्हें ज्योतिष में रूचि नहीं है उनके लिये ये आलेख समझना भी कठिन है अर्थात सिर के ऊपर से निकल जायेगा या कुछ भी समझ नहीं आयेगा। यदि आपके साथ भी ऐसा हो तो आपको पूर्व के सभी आलेखों को क्रमशः पढ़ना-समझना और तदनुसार अभ्यास करना आवश्यक है। जब कई बार पूर्व के सभी आलेखों का अवलोकन व तदनुसार अभ्यास कर लेंगे तब इस आलेख को भी बारम्बार अवलोकन करते हुये समझने का प्रयास करने पर और आगे के अभ्यास को दुहराने पर समझ में आएगा।
अभ्यास : स्वोदय से स्पष्ट लग्न ज्ञात करना
अभ्यास हेतु हमने श्रीवेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग से जो जन्मपत्रिका निर्माण करने का अभ्यास करते हुये सारणी प्रयोग करके लग्नानयन किया था उसी का पुनः स्वोदय विधि से स्पष्ट लग्न ज्ञात करेंगे। उसका विवरण नीचे दिया गया है :
- तिथि : वैशाख शुक्ल तृतीया २०८२ (अक्षय तृतीया)
- दिन : बुधवार
- दिनांक : ३०/४/२०२५
- समय : दिन २:२८ (2:28 pm)
- स्थान : देवघर
- इष्टकाल : २३/०३
- अक्षांश : २४/३० उत्तर
- रेखांश : ८६/४२ पूर्व
- देशांतर : (+) १४/४८ (मि/से.)
- वेलांतर : (+) २/४८ (मि/से.)
- अयनांश : २४/११/३३ (केतकी)
- तात्कालिक सूर्य : ०/१६/०७/५०
चरखण्ड ज्ञात करना
उपरोक्त विवरण के आधार पर सारणी द्वारा हमें लग्न ज्ञात हुआ : ४/२६ अर्थात सिंह लग्न २६ अंश। सर्वप्रथम हम देवघर के अक्षांश से पलभा ज्ञात करेंगे, तदनन्तर पलभा से चरखण्ड और चरखण्ड संस्कार करके लंकोदय से स्वोदय मान बनायेंगे। इसके पश्चात् सायन सूर्य का भोग्यांश ज्ञात करके भोग्य लग्न पल ज्ञात करेंगे और इष्टकाल में भोग्य पल से आरम्भ करते हुये जितने लग्न पल ऋण होते जायेंगे ऋण करते हुये तात्कालिक लग्न और तदनन्तर लग्न के अंशादि ज्ञात करेंगे।
- पलभा = tanअक्षांश × १२
- देवघर का पलभा = tan२४/३० × १२
- = ५/२८/७ अंगुलादि
देवघर का पलभा ५/२८/७ अंगुलादि ज्ञात होने के पश्चात् तीनों चरखण्ड ज्ञात करेंगे :
- प्रथम चरखण्ड = ५/२८/७ × १० = ५४/४१/१० अर्थात ५५ पल
- द्वितीय चरखण्ड = ५/२८/७ × ८ = ४३/४४/५६ अर्थात ४४ पल
- तृतीय चरखण्ड = ५/२८/७ × १०/३ = १८/१३/४३ अर्थात १८ पल
स्वोदय ज्ञात करना
इस प्रकार देवघर के तीनों चरखण्ड हैं ५५, ४४ व १८ पल और अब लंकोदय पलों में चरखण्ड संस्कार करते हुये स्वोदय ज्ञात करेंगे :
राशि | लंकोदय | संस्कार | चरखण्ड | स्वोदय |
---|---|---|---|---|
मेष | २७९ | – | ५५ (प्रथम) | २२४ |
वृष | २९९ | – | ४४ (द्वितीय) | २५५ |
मिथुन | ३२२ | – | १८ (तृतीय) | ३०४ |
कर्क | ३२२ | + | १८ (तृतीय) | ३४० |
सिंह | २९९ | + | ४४ (द्वितीय) | ३४३ |
कन्या | २७९ | + | ५५ (प्रथम) | ३३४ |
तुला | २७९ | + | ५५ (प्रथम) | ३३४ |
वृश्चिक | २९९ | + | ४४ (द्वितीय) | ३४३ |
धनु | ३२२ | + | १८ (तृतीय) | ३४० |
मकर | ३२२ | – | १८ (तृतीय) | ३०४ |
कुम्भ | २९९ | – | ४४ (द्वितीय) | २५५ |
मीन | २७९ | – | ५५ (प्रथम) | २२४ |
इस प्रकार हमने स्वोदय ज्ञात कर लिया है और इसका योग करके शुद्ध होना सुनिश्चित भी कर लिया है। सभी लग्नोदय पलों का योग करने पर ३६०० पल होना चाहिये क्योंकि अहोरात्र में ३६०० पल होते हैं। यदि देवघर के लग्नोदय पल को पृथक करके रखें तो इस प्रकार है :
देवघर का स्वोदय
- मेष : २२४ पल
- वृष : २५५ पल
- मिथुन : ३०४ पल
- कर्क : ३४० पल
- सिंह : ३४३ पल
- कन्या : ३३४ पल
- तुला : ३३४ पल
- वृश्चिक : ३४३ पल
- धनु : ३४० पल
- मकर : ३०४ पल
- कुम्भ : २५५ पल
- मीन : २२४ पल
सायन सूर्य भुक्तांशादि
यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि हमने शताब्दि पंचांग में उपलब्ध केतकी अयनांश ग्रहण किया है वो अयनांश है : २४/११/३३, एवं निरयण सूर्य : ०/१६/०७/५० है, योग करने पर सायन सूर्य होता है १/१०/१९/२३ अर्थात सायन सूर्य वृष राशि के १० अंश १९ कला और २३ विकला का भोग कर चुके हैं। भोग्यांश ज्ञात करने के लिये ३० अंश में से अंशादि को ऋण करना होगा : ३०/००/०० – १०/१९/२३ = १९/४०/३७ अर्थात सायन सूर्य का वृष भोग्यांश १९/४०/३७ है।
भोग्य वृष पल
अब हमें भोग्य सायन सूर्य अंशादि से भोग्य वृष पल ज्ञात करना है। वृष लग्न का देवघर में उदय मान है २५५ पल, अर्थात वृष लग्न के ३० अंशों का मान २५५ है तो १९/४०/३७ का मान कितना पल होगा हमें यह ज्ञात करना होगा। इसके लिये हमें त्रैराशिक विधि का अनुसरण करना होगा जो इस प्रकार है : (१९/४०/३७ × २५५) ÷ ३० = १६७/१५ भोग्य पलादि।
- वृष लग्न भोग्य पलादि : १६७/१५
- इष्टकाल : २३/०३ = १३८३ पल
अब इष्टकाल में वृष के भोग्य पलादि को ऋण करके अगले मिथुनादि लग्न मानो को भी तब तक ऋण करेंगे जब-तक ऋण होता जायेगा :
- १३८३ – १६७/१५ भोग्य वृष पल
- १२१५/४५ – ३०४ मिथुन पल
- ९११/४५ – ३४० कर्क पल
- ५७१/४५ – ३४३ सिंह पल
- २२८/४५ अब कन्या का पल ३३४ है जो ऋण नहीं होगा।
इस प्रकार कन्या लग्न का भुक्त पलादि २२८/४५ ज्ञात होता है, कन्या अशुद्ध कहा जायेगा क्योंकि इसका मान ऋण नहीं हुआ और अंशादि जो ज्ञात होगा उसमें से अयनांश को ऋण करना होगा।
अब जिस प्रकार हमने भोग्य अंशादि को वृष लग्नोदय पल से गुणा करके ३० से भाग दिया और भोग्य पल ज्ञात हुआ उसी प्रकार अब कन्या भुक्त पलों को अंशादि में परिवर्तित करने के लिये ३० से गुणा करके कन्या के पल ३३४ से भाग देंगे तो वह कन्या का भुक्त अंशादि हो जायेगा : (२२८/४५ × ३०) ÷ ३३४ = २०/३२/४७ अर्थात सायन लग्न है ५/२०/३२/४७
सायन लग्न ५/२०/३२/४७ में अयनांश २४/११/३३ ऋण करने पर हमें निरयण लग्न ज्ञात हो जायेगा।
५/२०/३२/४७ – २४/११/३३ = ४/२६/२१/१४
लग्न : ४/२६/२१/१४
हमने पूर्व आलेख में सारणी विधि से जो लग्न ज्ञात किया था वो ४/२६ था और अब जो स्पष्ट लग्न ज्ञात किया है वो ४/२६/२१/१४ है। अर्थात हमने लगभग सही लग्न ही ज्ञात किया था मात्र कला/विकला ज्ञात नहीं किया था। किन्तु इसके लिये यदि सामान्य विधि से ज्ञात इष्टकाल जो कि स्थूल होता है के आधार पर लग्नानयन करते अथवा भिन्न लग्नसारणी से लग्नानयन करते तो त्रुटिपूर्ण होता। आप पूर्व आलेख का ध्यान से अवलोकन करें हमने वहां भी शुद्धतम लग्न ज्ञात करने के लिये भरपूर प्रयास किया था न कि क्षणभर में ले लिया था।
पूर्व आलेख का ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास कर सकते हैं वहां सूक्ष्म इष्टकाल ज्ञात किया गया है और निकटतम लग्नसारणी से भी अधिकतम शुद्ध लग्न ज्ञात करने का प्रयास किया गया है यदि स्थूल इष्टकाल व निकटतम लग्नसारणी और २४ अयनांश वाली लग्नसारणी का प्रयोग नहीं करते तो शुद्ध लग्न ज्ञात होना कठिन होता अर्थात ज्ञात स्पष्ट लग्न से भिन्न होता।
किन्तु यदि निकटतम लग्नसारणी से भी स्पष्ट लग्न ज्ञात करने का प्रयास किया जाय तो किया जा सकता है। आगे हम स्वोदय के आधार पर प्रथम लग्नसारणी बनाना सीखेंगे जो इस लिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि उपरोक्त विधि से अनेकों जन्मपत्रिका निर्माण में गणित करके लग्नानयन करना जटिल कार्य होता है किन्तु यदि प्रथम लग्नसारणी बनाना आ जाये तो अपने अक्षांश के लिये कोई भी लग्नसारणी निर्माण कर लेगा और स्पष्ट लग्नानयन कर सकेगा।
निष्कर्ष : जन्म कुंडली का आधार स्पष्ट लग्न होता है और स्पष्ट लग्नानयन हेतु स्वोदय ज्ञात करके लग्न ज्ञात करने की गणितीय क्रिया बहुत जटिल है। उपरोक्त विधि से ही स्पष्ट लग्न होगा यह अनिवार्य नहीं है यदि स्वोदय ज्ञात करके लग्नसारणी भी निर्मित करें तो किया जा सकता है। स्पष्ट लग्नानयन के लिये अक्षांश से पलभा, पलभा से चरखण्ड, लंकोदय में चरखण्ड संस्कार करके स्वोदय मान, सायन सूर्य भुक्तांश तदनन्तर भुक्त लग्न अंशादि ज्ञात किया जाता है। आलेख में पूरी विधि उदाहरण सही बताई गयी है।
ज्योतिष गणित सूत्र
- दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
- घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
- इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5
विद्वद्जनों से पुनः आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।
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