अब तक हमने अक्षांश से पलभा ज्ञात करते हुये चरखण्ड बनाना सीख लिया और लंकोदय में चरखण्ड संस्कार करते हुये स्वोदय बनाना, स्वोदय से लग्न स्पष्ट ज्ञात करना सीख लिया है। किन्तु इस जटिल गणित से बचने के लिये यदि स्थानीय लग्न सारणी बनाना चाहें तो स्वोदय के आधार पर स्थानीय लग्न सारणी भी बना सकते हैं और इस आलेख में हम स्थानीय लग्न सारणी (lagna sarani) निर्माण करना सीखेंगे, साथ ही जो स्वयं न कर सकें उनके लिये यहां २१ अक्षांश से ३० अक्षांश तक का लग्न सारणी pdf भी दिया गया है जिसे डाउनलोड भी कर सकते हैं।
स्थानीय प्रथम लग्न सारणी निर्माण विधि – lagna sarani nirman
स्पष्ट लग्नानयन स्वोदय से ही करना चाहिये यह सत्य है और यदि यह सत्य है तो फिर लग्न सारणी का महत्व क्या है ? क्योंकि सभी पंचांगों में लग्न सारणी दी जाती है। लग्न सारणी का भी अपना महत्व है और यदि स्वोदय मान से निर्मित लग्न सारणी का प्रयोग करें तो जटिल गणितीय क्रियाओं से बचते हुये भी स्पष्ट लग्न ज्ञात कर सकते हैं। स्वोदय आधार पर बनायी गयी लग्न सारणी से भी शुद्ध लग्न ज्ञात हो जाता है।
इसे यदि दूसरे शब्दों में समझना चाहें तो इस प्रकार समझ सकते हैं कि कोई ज्योतिषी जीवनपर्यन्त जितनी जन्मपत्रिका निर्माण करते हैं उनमें से लगभगग ८०% स्थानीय ही होता है अर्थात जिस जिले के ज्योतिषी होते हैं उसी जिला का ८०% जन्मपत्रिका भी निर्माण करते हैं।
अर्थात लगभग २०% जन्मपत्रिका भी भिन्न-भिन्न स्थानों के बनाने होते हैं जिसके लिये स्वोदय आधार से लग्न ज्ञात करने की आवश्यकता होती है वो भी तब जबकि जातक के जन्मस्थान की लग्न सारणी अनुपलब्ध हो। लगभग ८०% जन्मपत्रिका निर्माण करने के लिये जटिल विधि से अर्थात स्वोदय विधि से लग्न स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं होगी यदि स्वोदय मान से लग्न सारणी बना लें।
किन्तु इतना अवश्य है कि किसी भी स्थान का लग्न सारणी बनाने के लिये भी स्वोदय बनाने आदि का ज्ञान होना आवश्यक होता है तथापि यहां हम मात्र स्वोदय मान से स्थानीय लग्न सारणी निर्माण करना ही नहीं सीखेंगे अपितु बिना स्वोदय बनाये मात्र चरखण्ड से ही क्षण मात्र में बनी-बनायी स्थानीय लग्न सारणी प्राप्त भी कर सकेंगे जिससे स्पष्ट लग्न में होने वाली अशुद्धि का निवारण हो जायेगा।
स्थानीय लग्न सारणी निर्माण करने की विधि
स्थानीय लग्न सारणी निर्माण करने के लिये अक्षांश के आधार पर पलभा ज्ञात करके चरखण्ड ज्ञात किया जाता है, तदनन्तर लंकोदय में चरखण्ड संस्कार करके स्वोदय पल बनाया जाता है। इसी स्वोदय पल के आधार पर सायन सूर्य से लग्नस्पष्ट किया जाता है। स्वोदय का तात्पर्य होता है जिस स्थान का स्वोदय है वहां पर विभिन्न राशियों का उदयमान। स्वोदय में जितना पल आता है उतने पल तक ही सायन सूर्य आधार से लग्न उदित रहती है।
प्रत्येक राशि (लग्न) ३० अंश को होता है अर्थात प्रत्येक लग्न का जो उदय पल स्वोदय में होता है उतने पलों में उस लग्न के ३० अंश व्यतीत होते हैं। यदि इस स्वोदय पल को ३० भागों में बांट दिया जाय तो १ – १ अंश का मान हो जाता है। इसे लग्नगति भी कहा जाता है।
यथा औसत मान से यदि लग्नों का उदय मान ३०० पल है तो १ अंश का मान १० पल होता है अर्थात १० पल में लग्न का १ अंश व्यतीत होता है और यही लग्नगति होती है १० पल प्रति अंश। लग्नसारणी का निर्माण इसी लग्नगति के आधार पर किया जाता है।
इस प्रकार लग्नसारणी निर्माण करने के लिये पूर्वोक्त विधि के अनुसार जो पूर्व आलेखों में स्वोदय ज्ञात करना बताया जा चुका है स्वोदय ज्ञात करके प्रत्येक राशियों के उदय पलों को ३० से भाग देकर लग्नगति ज्ञात की जाती है और उसे लग्न व अंशों के अनुसार सारणीबद्ध किया जाता है। चूँकि सायन विधि से लग्नानयन किया जाता है इसलिये लग्नसारणी भी सायन ही बनायी जाती है किन्तु पूर्ण अंशों की ही बनायी जाती है यथा २३ अंश, २४ अंश।
यहां एक बार पुनः लंकोदय मान दिया जा रहा है जिसमें चरखण्ड संस्कार करके स्वोदय बनाया जाता है :
- मेष : २७९ पल
- वृष : २९९ पल
- मिथुन : ३२२ पल
- कर्क : ३२२ पल
- सिंह : २९९ पल
- कन्या : २७९ पल
- तुला : २७९ पल
- वृश्चिक : २९९ पल
- धनु : ३२२ पल
- मकर : ३२२ पल
- कुम्भ : २९९ पल
- मीन : २७९ पल
चरखण्ड और स्वोदय
पूर्व आलेख में हमने बेगूसराय के अक्षांश २५/२५ उत्तर का पलभा (tan२५/२५ × १२) = ५/४२/८ ज्ञात करके चरखण्ड ज्ञात किया था जो इस प्रकार है :
- ५/४२/८ × १० = ५७/१/२० पलादि (५७ पल)
- ५/४२/८ × ८ = ४५/३७/४ पलादि (४६ पल)
- ५/४२/८ × १०/३ = १९/०/२७ पलादि (१९ पल)
लंकोदय में चरखण्ड संस्कार करके हमने जो स्वोदय बनाया था वो इस प्रकार है :
राशि | लंकोदय | संस्कार | चरखण्ड | स्वोदय |
---|---|---|---|---|
मेष | २७९ | – | ५७ (प्रथम) | २२२ |
वृष | २९९ | – | ४६ (द्वितीय) | २५३ |
मिथुन | ३२२ | – | १९ (तृतीय) | ३०३ |
कर्क | ३२२ | + | १९ (तृतीय) | ३४१ |
सिंह | २९९ | + | ४६ (द्वितीय) | ३४५ |
कन्या | २७९ | + | ५७ (प्रथम) | ३३६ |
तुला | २७९ | + | ५७ (प्रथम) | ३३६ |
वृश्चिक | २९९ | + | ४६ (द्वितीय) | ३४५ |
धनु | ३२२ | + | १९ (तृतीय) | ३४१ |
मकर | ३२२ | – | १९ (तृतीय) | ३०३ |
कुम्भ | २९९ | – | ४६ (द्वितीय) | २५३ |
मीन | २७९ | – | ५७ (प्रथम) | २२२ |
अब स्वोदय पलों को जो कि ३० अंशों के भोग का मान है प्रति-अंश पल ज्ञात करना चाहें तो सभी लग्नों के मानों में ३० से भाग देंगे और जो लब्धि होगी वह उस लग्न के १ अंश का मान होगा। यथा :
- मेष : २२२ = २२२ ÷ ३० = ७/२४
- वृष : २५३ = २५३ ÷ ३० = ८/२६
- मिथुन : ३०३ = ३०३ ÷ ३० = १०/०६
- कर्क : ३४१ = ३४१ ÷ ३० = ११/२२
- सिंह : ३४५ = ३४५ ÷ ३० = ११/३०
- कन्या : ३३६ = ३३६ ÷ ३० = ११/१२
- तुला : ३३६ = ३३६ ÷ ३० = ११/१२
- वृश्चिक : ३४५ = ३४५ ÷ ३० = ११/३०
- धनु : ३४१ = ३४१ ÷ ३० = ११/२२
- मकर : ३०३ = ३०३ ÷ ३० = १०/०६
- कुम्भ : २५३ = २५३ ÷ ३० = ८/२६
- मीन : २२२ = २२२ ÷ ३० = ७/२४
यदि अयनांश ००/००/०० होता तो मेष लग्न का आरम्भ ००/००/०० से होता, प्रथम अंश का मान ०/७/२४ एवं ३० अंश का मान ३/४२/०० पर होता है क्योंकि २२२ पल का तात्पर्य है ३ घटी ४२ पल। वृष लग्न का प्रारम्भ भी यहीं से होता और इसी प्रकार से अंतिम लग्न और अंतिम अंश अर्थात मीन के ३० अंश का मान ६०/००/०० अथवा ००/००/०० होता।
अयनांश यदि ०१/००/०० होता तो यह मान पिछले अंश का होता, अयनांश यदि २४ है तो यह मान उतने अंश पीछे से ही आरम्भ होगा। अर्थात प्रथम अंश का मान वहां से २४ अंश पीछे रहेगा अथवा मेष का आरंभ ००/००/०० से होता है तो यह ००/००/०० मान वहां से २४ अंश पीछे अर्थात मीन के ७ अंश में स्थापित होता है एवं वही से क्रमशः सभी लग्नों की अंश गतियां योग करते हुये अंकित की जाती है।
अंश | मेष | वृष | मिथुन | कर्क | सिंह | कन्या | तुला | वृश्चिक | धनु | मकर | कुम्भ | मीन | अंश |
0 | 2:50:12 | 6:55:58 | 11:47:18 | 17:19:26 | 23:03:30 | 28:41:36 | 34:17:36 | 40:00:30 | 45:42:26 | 50:54:18 | 55:18:58 | 59:08:12 | 0 |
1 | 2:57:36 | 7:04:24 | 11:57:24 | 17:30:48 | 23:15:00 | 28:52:48 | 34:28:48 | 40:12:00 | 45:53:48 | 51:04:24 | 55:27:24 | 59:15:36 | 1 |
2 | 3:05:00 | 7:12:50 | 12:07:30 | 17:42:10 | 23:26:30 | 29:04:00 | 34:40:00 | 40:23:30 | 46:05:10 | 51:14:30 | 55:35:50 | 59:23:00 | 2 |
3 | 3:12:24 | 7:21:16 | 12:17:36 | 17:53:32 | 23:38:00 | 29:15:12 | 34:51:12 | 40:35:00 | 46:16:32 | 51:24:36 | 55:44:16 | 59:30:24 | 3 |
4 | 3:19:48 | 7:29:42 | 12:27:42 | 18:04:54 | 23:49:30 | 29:26:24 | 35:02:24 | 40:46:30 | 46:27:54 | 51:34:42 | 55:52:42 | 59:37:48 | 4 |
5 | 3:27:12 | 7:38:08 | 12:37:48 | 18:16:16 | 24:01:00 | 29:37:36 | 35:13:36 | 40:58:00 | 46:39:16 | 51:44:48 | 56:01:08 | 59:45:12 | 5 |
6 | 3:34:36 | 7:46:34 | 12:47:54 | 18:27:38 | 24:12:30 | 29:48:48 | 35:24:48 | 41:09:30 | 46:50:38 | 51:54:54 | 56:09:34 | 59:52:36 | 6 |
7 | 3:42:00 | 7:55:00 | 12:58:00 | 18:39:00 | 24:24:00 | 30:00:00 | 35:36:00 | 41:21:00 | 47:02:00 | 52:05:00 | 56:18:00 | 0:00:00 | 7 |
8 | 3:50:26 | 8:05:06 | 13:09:22 | 18:50:30 | 24:35:12 | 30:11:12 | 35:47:30 | 41:32:22 | 47:12:06 | 52:13:26 | 56:25:24 | 0:07:24 | 8 |
9 | 3:58:52 | 8:15:12 | 13:20:44 | 19:02:00 | 24:46:24 | 30:22:24 | 35:59:00 | 41:43:44 | 47:22:12 | 52:21:52 | 56:32:48 | 0:14:48 | 9 |
10 | 4:07:18 | 8:25:18 | 13:32:06 | 19:13:30 | 24:57:36 | 30:33:36 | 36:10:30 | 41:55:06 | 47:32:18 | 52:30:18 | 56:40:12 | 0:22:12 | 10 |
11 | 4:15:44 | 8:35:24 | 13:43:28 | 19:25:00 | 25:08:48 | 30:44:48 | 36:22:00 | 42:06:28 | 47:42:24 | 52:38:44 | 56:47:36 | 0:29:36 | 11 |
12 | 4:24:10 | 8:45:30 | 13:54:50 | 19:36:30 | 25:20:00 | 30:56:00 | 36:33:30 | 42:17:50 | 47:52:30 | 52:47:10 | 56:55:00 | 0:37:00 | 12 |
13 | 4:32:36 | 8:55:36 | 14:06:12 | 19:48:00 | 25:31:12 | 31:07:12 | 36:45:00 | 42:29:12 | 48:02:36 | 52:55:36 | 57:02:24 | 0:44:24 | 13 |
14 | 4:41:02 | 9:05:42 | 14:17:34 | 19:59:30 | 25:42:24 | 31:18:24 | 36:56:30 | 42:40:34 | 48:12:42 | 53:04:02 | 57:09:48 | 0:51:48 | 14 |
15 | 4:49:28 | 9:15:48 | 14:28:56 | 20:11:00 | 25:53:36 | 31:29:36 | 37:08:00 | 42:51:56 | 48:22:48 | 53:12:28 | 57:17:12 | 0:59:12 | 15 |
16 | 4:57:54 | 9:25:54 | 14:40:18 | 20:22:30 | 26:04:48 | 31:40:48 | 37:19:30 | 43:03:18 | 48:32:54 | 53:20:54 | 57:24:36 | 1:06:36 | 16 |
17 | 5:06:20 | 9:36:00 | 14:51:40 | 20:34:00 | 26:16:00 | 31:52:00 | 37:31:00 | 43:14:40 | 48:43:00 | 53:29:20 | 57:32:00 | 1:14:00 | 17 |
18 | 5:14:46 | 9:46:06 | 15:03:02 | 20:45:30 | 26:27:12 | 32:03:12 | 37:42:30 | 43:26:02 | 48:53:06 | 53:37:46 | 57:39:24 | 1:21:24 | 18 |
19 | 5:23:12 | 9:56:12 | 15:14:24 | 20:57:00 | 26:38:24 | 32:14:24 | 37:54:00 | 43:37:24 | 49:03:12 | 53:46:12 | 57:46:48 | 1:28:48 | 19 |
20 | 5:31:38 | 10:06:18 | 15:25:46 | 21:08:30 | 26:49:36 | 32:25:36 | 38:05:30 | 43:48:46 | 49:13:18 | 53:54:38 | 57:54:12 | 1:36:12 | 20 |
21 | 5:40:04 | 10:16:24 | 15:37:08 | 21:20:00 | 27:00:48 | 32:36:48 | 38:17:00 | 44:00:08 | 49:23:24 | 54:03:04 | 58:01:36 | 1:43:36 | 21 |
22 | 5:48:30 | 10:26:30 | 15:48:30 | 21:31:30 | 27:12:00 | 32:48:00 | 38:28:30 | 44:11:30 | 49:33:30 | 54:11:30 | 58:09:00 | 1:51:00 | 22 |
23 | 5:56:56 | 10:36:36 | 15:59:52 | 21:43:00 | 27:23:12 | 32:59:12 | 38:40:00 | 44:22:52 | 49:43:36 | 54:19:56 | 58:16:24 | 1:58:24 | 23 |
24 | 6:05:22 | 10:46:42 | 16:11:14 | 21:54:30 | 27:34:24 | 33:10:24 | 38:51:30 | 44:34:14 | 49:53:42 | 54:28:22 | 58:23:48 | 2:05:48 | 24 |
25 | 6:13:48 | 10:56:48 | 16:22:36 | 22:06:00 | 27:45:36 | 33:21:36 | 39:03:00 | 44:45:36 | 50:03:48 | 54:36:48 | 58:31:12 | 2:13:12 | 25 |
26 | 6:22:14 | 11:06:54 | 16:33:58 | 22:17:30 | 27:56:48 | 33:32:48 | 39:14:30 | 44:56:58 | 50:13:54 | 54:45:14 | 58:38:36 | 2:20:36 | 26 |
27 | 6:30:40 | 11:17:00 | 16:45:20 | 22:29:00 | 28:08:00 | 33:44:00 | 39:26:00 | 45:08:20 | 50:24:00 | 54:53:40 | 58:46:00 | 2:28:00 | 27 |
28 | 6:39:06 | 11:27:06 | 16:56:42 | 22:40:30 | 28:19:12 | 33:55:12 | 39:37:30 | 45:19:42 | 50:34:06 | 55:02:06 | 58:53:24 | 2:35:24 | 28 |
29 | 6:47:32 | 11:37:12 | 17:08:04 | 22:52:00 | 28:30:24 | 34:06:24 | 39:49:00 | 45:31:04 | 50:44:12 | 55:10:32 | 59:00:48 | 2:42:48 | 29 |
अंश | मेष | वृष | मिथुन | कर्क | सिंह | कन्या | तुला | वृश्चिक | धनु | मकर | कुम्भ | मीन | अंश |
इस प्रकार यदि आप स्पष्ट लग्नानयन करना चाहते हैं तो जिस स्थान की अधिकतम जन्म पत्रिका निर्माण करते हैं उसके लिये स्वयं भी स्थानीय प्रथम लग्न सारणी निर्माण कर सकते हैं। नीचे बेगूसराय के अक्षांश २५/२५ उत्तर के अनुसार बनी हुई स्थानीय प्रथम लग्न सारणी का pdf भी दिया गया है।
यहां अक्षांश २१/०० से अक्षांश ३०/०० तक की लग्न सारणी pdf दी जा रही है जिसे आप डाउनलोड भी कर सकते हैं। जब आप डाउनलोड करने के लिये क्लिक करेंगे तो उसका स्वीकृति के लिये हमें अनुरोध प्राप्त होगा। आपका अनुरोध ५-६ घंटे में स्वीकृत हो जायेगा और इसकी सूचना आपको ईमेल पर मिल जायेगी। अथवा यदि आप ईमेल करेंगे तो आपको ईमेल पर ही pdf भेज दिया जायेगा।
- २१/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २२/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २३/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २४/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २५/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २६/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २७/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २८/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- २९/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
- ३०/०० अक्षांश की प्रथम लग्न सारणी pdf
इसके साथ ही यदि आप किसी अन्य अक्षांश के लिये भी प्रथम लग्न सारणी का pdf चाहते हैं तो हमें ईमेल कर सकते हैं आपको ईमेल पर ही भेज दिया जायेगा, हमारा ईमेल है : info@karmkandvidhi.in
निष्कर्ष : लग्न का बहुत ही महत्व होता है और इसी कारण जन्मकुंडली निर्माण करना हो अथवा कोई शुभ कार्य हो उसमें लग्न निर्धारित किया जाता है। जन्मपत्रिका का आधार इष्टकाल होता है और इष्टकाल का आधार सूर्योदय उसी प्रकार से कुंडली का आधार लग्न होता है। स्थानीय लग्न सारणी उपलब्ध न होने के कारण निकटतम स्थानों की बनी लग्न सारणी जो पंचांगों में उपलब्ध होती है से लग्न ज्ञात करना होता है जो कई स्थितियों में त्रुटिपूर्ण भी हो सकता है। इसलिये स्पष्ट लग्नानयन हेतु स्थानीय लग्नसारणी की आवश्यकता होती है और इस आलेख में स्वयं ही स्थानीय लग्नसारणी का निर्माण कैसे कर सकते है बताया गया है।
ज्योतिष गणित सूत्र
- दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
- घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
- इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5
विद्वद्जनों से पुनः आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।
प्रज्ञा पञ्चाङ्ग वेबसाइट कर्मकांड सीखें वेबसाइट की एक शाखा के समान है जो इसके URL से भी स्पष्ट हो जाता है। यहां पंचांग, व्रत-पर्व, मुहूर्त आदि विषय जो ज्योतिष से संबद्ध होते हैं उसकी चर्चा की जाती है एवं दृक् पंचांग (डिजिटल) प्रकाशित किया जाता है। जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है। यहां सभी नवीनतम आलेखों को साझा किया जाता है, सब्सक्राइब करे : Telegram Whatsapp Youtube
Discover more from प्रज्ञा पञ्चाङ्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.