दृक पंचांग अर्थात् डिजिटल प्रज्ञा पंचांग की आवश्यकता – Need for Pragya Panchang/Drik Panchag

दृक पंचांग अर्थात् डिजिटल प्रज्ञा पंचांग की आवश्यकता - Need for Prajna Panchang

वर्त्तमान युग में दिनानुदिन दृक् पंचांग का महत्त्व एवं मांग तीव्रतापूर्वक बढ़ती जा रही है। विगत वर्ष प्रज्ञा पंचांग जो कि दृक पंचांग है डिजिटल रूप से (PDF) प्रकाशित किया गया था, किन्तु वर्तमान वर्ष में प्रकाशित न हो सका । यह वेबसाइट दृक पंचांग (Drik Panchang) जिसका नाम प्रज्ञा पंचांग है; प्रकाशित करने हेतु ही बनाया गया है। शीघ्र ही मासिक पंचांग एवं दैनिक पंचांग प्रकाशित किये जायेंगे। इस आलेख में प्रज्ञा पंचांग जो कि दृक पंचांग है उसकी आवश्यकता एवं उपयोगिता संबंधी चर्चा की गई है।

दृक पंचांग अर्थात् डिजिटल प्रज्ञा पंचांग की आवश्यकता – Need for Pragya Panchang/Drik Panchag

जैसा कि वर्त्तमान में दृश्य और अदृश्य, सूक्षम और स्थूल पंचांग चर्चा के विषय हो गये हैं और ये ब्राह्मणों (पंचांग उपयोगकर्ताओं) के ही चर्चा का विषय है। जो जितने ज्ञानी वो उतना सजग रहकर दृक पंचांग को अंगीकार कर रहे हैं। दृश्य अथवा सूक्ष्म पंचांग को ही दृक और वेधसिद्ध पंचांग भी कहा जाता है। पंचांग का दृश्य होना क्यों आवश्यक है, दृश्य पंचांग की सिद्धि करते हुये अदृश्य पंचांग ग्राह्यता सबंधी प्रमाणों का खंडन पूर्व आलेखों में किया जा चुका है।

चलो स्वीकार तो लिया कि वेधसिद्ध अर्थात दृक पंचांग ही ग्राह्य है, किन्तु आगे का जटिल प्रश्न है कि : वेधसिद्धि; भले ही यह दायित्व गणकों का हो किन्तु यदि वेधसिद्ध पंचांग अनुपलब्ध हो, अदृश्य पंचांग ही उपलब्ध हो तब क्या करें, जो उपलब्ध है उसी का प्रयोग करना होगा न ?

यह प्रश्न एक वास्तविक समस्या पर ध्यानाकर्षण करती है। यद्यपि अनेकानेक दृश्य पंचांग भी १५-२० वर्ष पूर्व से प्रकाशित तो हो रहे हैं किन्तु उसका कलेवर/स्वरूप/सामग्री ही ऐसा होता है कि उपयोगकर्ताओं को प्रयोग तक भी जटिल व त्रुटिपूर्ण लगता है।

पंचांग गणना भले ही सूक्ष्म हो किन्तु व्रत-पर्व-मुहूर्तादि के निर्धारण में शास्त्रोक्त निर्देशों का विशेष रूप से पालन नहीं किया जाता है, सामान्य नियमों का पालन करते हुये ही व्रत-पर्व-मुहूर्तादि दिये जाते हैं जो पंचांग उपयोगकर्ताओं के लिये त्रुटिपूर्ण होता है। पंचांग के वास्तविक उपयोगकर्ता कर्मकांडी ही होते हैं भले ही विद्वान हों या अलपज्ञ।

इसके साथ ही कलेवर भी पारम्परिक पंचांग से पूर्णतः भिन्न होता है जिसके कारण भी मात्र सामान्य जन व नगरवासियों अथवा विद्वानों/दैवज्ञों तक ही दृक पंचांग स्वीकार किया जाता है, किन्तु उन्हें भी पारम्परिक अदृश्य पंचांग की आवश्यकता पड़ती ही है। जिस स्वरूप में पंचांग का उपयोग करना सुगम होता है दृक पंचांग उस स्वरूप में प्रकाशित भी नहीं होते हैं। ये मुख्य रूप से डिजिटल प्रारूप में ही उपलब्ध होते हैं तथापि कुछ दृक पंचांग विगत वर्षों में प्रकाशित होना भी आरंभ हुआ है।

जैसे मिथिला की ही बात करें तो एक भी दृश्य पंचांग प्रकाशित नहीं होता है, यदि प्रकाशित होता भी हो तो ज्ञात नहीं है। वाराणसी की ही चर्चा करें तो यदि कोई दृश्य पंचांग प्रकाशित हो भी रहा है तो ज्ञात ही नहीं है। हां ये अवश्य है कि डिजिटल स्वरूप में व्रत-पर्व-मुहूर्तादि निर्णय के विसंगतियों सहित अनेकानेक सॉफ्टवेयर, मोबाइल अप, वेबसाइटें हैं एवं निःशुल्क सर्वोपलब्ध भी हैं। तथापि पंचांग उपयोगकर्ताओं के लिये सहज नहीं हैं।

दृक पंचांग (Drik Panchang) का तात्पर्य

दृक पंचांग (Drik Panchang) किसी पंचांग विशेष का नाम नहीं है, अपितु शुद्ध, सूक्ष्म, दृश्य, वेधसिद्ध एवं ग्राह्य पंचांग को दृक पंचांग कहा जाता है। क्ष्म, दृश्य, वेधसिद्ध आदि दृक पंचांग के ही अन्य नाम भी हैं। दृक पंचांग का तात्पर्य होता है पंचांग जिसके मान दिखें। जिसे सूर्य-चन्द्रमा सत्यापित/प्रमाणित करें। पंचांग के लिये चंद्रमा द्वारा सत्यापित/प्रमाणित होना आवश्यक होता है। चंद्रमा की सर्वाधिक गति है एवं चंद्रमा का एक नाम ज्योतिषशास्त्रप्रमाणक भी है। ज्योतिषशास्त्र प्रमाणक का तात्पर्य ही है पंचांग का सत्यापनकर्त्ता।

समस्या का समाधान

इन सब कारणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि शास्त्रोक्त नियमों का पालन करते हुये व्रत-पर्व-मुहूर्तादि निर्णय देने वाला कोई दृश्य पंचांग प्रकाशित हो जिसका स्वरूप पारम्परिक हो जिससे उपयोग सुगम हो सके, भले ही वेबसाइट पर ही क्यों न हो, PDF ही क्यों न हो किन्तु आवश्यक है। वर्त्तमान काल में अधिकांश पंचांग उपयोगकर्ता PDF का उपयोग करने लगे हैं और जो पंचांग प्रकाशित होता है उसका भी PDF ही अधिक प्रयोग किया जाता है।

दृश्य पंचांग का महत्व

इस प्रकार निम्न तथ्य प्रकट होते हैं :

  • दृक पंचांग (Drik Panchang) प्रकाशित होने चाहिये क्योंकि आवश्यकता है।
  • दृक पंचांग भी उपयोगकर्ताओं के अनुकूल पारम्परिक कलेवर/स्वरूप में हों यह भी आवश्यक है।
  • दृक पंचांग में तिथ्यादि सूक्ष्म हों यह तो स्वतः सिद्ध है किन्तु व्रत-पर्व-मुहूर्तादि का निर्धारण भी शास्त्रोक्त नियमानुसार ही हो यह भी अनिवार्य है।
  • मुख्य आवश्यकता तो भौतिक प्रकाशन की ही होती है तथापि डिजिटल पंचांगों से भी कार्य किया जा सकता है। डिजिटल पंचांग का तात्पर्य वेबसाइट, PDF आदि होता है।

इन्ही कारणों से दृक पंचांग प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है जो कि डिजिटल होगा अर्थात वेबसाइट पर और PDF के रूप में https://panchang.karmkandsikhen.in/ पर प्रकाशित होगा, जिसका नाम प्रज्ञा पंचांग होगा। इसमें गणना करने की आवश्यकता इसलिये नहीं होगी क्योंकि तिथ्यादि मान सहज व सर्वोपलब्ध है। इसमें व्रत-पर्व-मुहूर्तादि का शास्त्र-सम्मत निर्णय देने का प्रयास किया जायेगा और कुछ अन्य महत्वपूर्ण विषय यथा : शिववास, अग्निवास, अर्द्धप्रहरा, मूलगण्डान्त, सिध्यादियोग इन सबको भी सम्मिलित किया जायेगा जिससे विशेष उपयोगी सिद्ध हो सके।

  • प्रज्ञा पञ्चाङ्ग पारम्परिक कलेवर/स्वरूप में ही प्रकाशित होगा जिससे उपयोगकर्ताओं के लिये सहज हो।
  • शिववास, अग्निवास, अर्द्धप्रहरा, सिध्यादि योग, नक्षत्र गण्डांत आरंभ-समापन आदि को समाविष्ट किया जायेगा।
  • प्रारंभिक अवस्था में ग्रहस्थिति को सम्मिलित नहीं किया जायेगा किन्तु यदि इसकी मांग होती है तो भविष्य में सम्मिलित किया भी जायेगा।
  • भौतिक प्रति का प्रकाशन नहीं होगा, वेबसाइट पर ही प्रकाशित किया जायेगा और भविष्य में मोबाइल ऐप की संभावना बनी रहेगी।
  • जिन्हें PDF की आवश्यकता होगी उनके लिये ईमेल के माध्यम से PDF भी उपलब्ध कराया जायेगा। इसके लिये पर info@karmkandsikhen.in (or) info@kamkandvidhi.in पर मेल करके संपर्क करना होगा।
प्रज्ञा पञ्चाङ्ग

दृक पंचांग (Drik Panchang) की समस्यायें अथवा कमियां

दृक पंचांग सूक्ष्म तो होता है, गणना तो ग्राह्य होती है किन्तु उपयोगिता में इसकी कुछ विशेष समस्यायें हैं जिनको इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है :

  • सिद्धांतों का प्रयोग कर गणक द्वारा निर्मित पंचांग में दंड-पल आदि का प्रयोग किया जाता है, जो दृक पंचांगों में वर्त्तमान युगानुसार अनिवार्य प्रतीत नहीं होता है। प्रज्ञा पंचांग में भी दण्ड-पलात्मक मान नहीं दिया गया है।
  • दृक पंचांगों की गणना कंप्यूटर के माध्यम से डिजिटल ही होता है इसलिये अंक अंग्रेजी ही रहते हैं जैसे – 1, 2, 3 … ; पारम्परिक पंचांगों में जो अंक थे १, २, ३ …. उसके प्रयोग से गणना में विघ्न होने के कारण उसे समाहित करना कठिन होता है।
  • पुनः दृक पंचांगों में दण्ड-पल का प्रयोग तो नहीं होता है किन्तु समय का मान 23:59 ही नहीं अपितु 30:10, 30:29 … भी हो जाता है। समय का यह प्रारूप भी गणना की सुगमता हेतु किया जाता है। प्रज्ञा पंचांग में भी यही प्रारूप दिया गया है।तथापि प्रज्ञा पंचांग में व्रत-पर्व-मुहूर्तादि विवरण में पारम्परिक रूप से ही घंटा-मिनट दिया जाता है।
  • दृक पंचांगों में अयन-ऋतु-गोल आदि सायन आधार पर दिये जाते हैं, किन्तु प्रज्ञा पंचांग में निरयण आधार से ही दिये गये हैं।

दृक पंचांगों की इन कमियों और समस्याओं के कारण भी उपयोगिता बाधित होती है। इसी कारण जिन कमियों को दूर किया जा सकता है उसे प्रज्ञा पंचांग में दूर किया गया है। तथापि कम्प्यूटरीकृत गणना होने के कारण अंक १, २, ३, आदि प्रकार से नहीं दिये गये हैं एवं समय का मान 30:10 वाले प्रारूप में ही किया गया है। इसका निवारण तभी संभव है जब कम्प्यूटर १, २, ३ आदि अंकों की गणना भी आरंभ कर दे। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक डिजिटल दृक पंचांगों में यह; असंभव कहना तो यथार्थ नहीं होगा किन्तु गणना की सहजता के कारण सहज नहीं है।

स्पष्टीकरण : बहुत सारे उपयोगकर्ताओं की यह प्रबल इच्छा होगी और मांग भी करेंगे कि अंकों का स्थापन १, २, ३ आदि ही अधिकतम २३:५९ वाले प्रारूप में किया जाय एवं दंड-पलात्मक मान भी सम्मिलित किया जाय। तथापि कम्प्यूटरीकृत गणना जो एक्सेल में की जाती है उसमें अंकों का स्थापन 1, 2, 3 आदि ही 30:29 वाले प्रारूप में करना होता है। प्राप्त मानों का रूपांतरण करके स्थापन संभव है किन्तु उसके लिये कई सहयोगियों की आवश्यकता होगी अथवा विशेष सॉफ्टवेयर की जिसके लिये धन की भी अपेक्षा होगी एवं उपयोगकर्ताओं की स्थिति यह होती है कि धन से संबंधित चर्चा तो सुनना भी कष्टप्रद होता है।

तथापि ऐसा भी हो सकता है कि कुछ लोग निःशुल्क सहयोग करने को तत्पर हो जायें किन्तु धर्मानुसार निःशुल्क सेवा ग्रहण करना भी निषिद्ध है अतः यह भी नहीं किया जा सकता है। धर्म के अनुसार सेवा का मूल्य देना अनिवार्य है और पंचांग का उद्देश्य धर्म की प्रवृत्ति बढ़ाना, जागृत्ति का प्रसार करना है अतः ऐसा धर्मविरुद्ध कार्य नहीं किया जा सकता है।

एवं इस कारण से अंकों का स्वरूप, समय का मान जिस प्रकार अंकित किये जाते हैं उसका ही अभ्यास करना आवश्यक होगा। पंचांग देखने की विधि हेतु एक पृथक आलेख प्रकाशित किया जायेगा, जिसमें पंचांग को देखने और समझने के लिये पूरी जानकारी दी जायेगी।

सारांश : पूर्व प्रकाशित आलेखों से यह सिद्ध होता है कि आर्षमत से दृक पंचांग ही ग्राह्य है, भले ही अदृश्य गणक कितना भी अदृश्य ग्राह्यता का भ्रमजाल बुने। तत्पश्चात ऐसे दृक पंचांग (Drik Panchang) की आवश्यकता होती है जो उपयोगकर्ताओं के अनुकूल हो क्योंकि उपलब्ध दृक पंचांगों में अनेकों दोष देखे जाते हैं जिसके कारण उपयोगकर्ताओं के लिये ग्राह्य सिद्ध नहीं होते। इसी कारण प्रज्ञा पंचांग प्रकाशित किया जा रहा है जिसे अधिकाधिक दोषों का निवारण करते हुये उपयोगकर्ताओं के अनुकूल और सहज उपयोग के योग्य बनाने का प्रयास किया गया है।

प्रज्ञा पञ्चाङ्ग वेबसाइट कर्मकांड सीखें वेबसाइट की एक शाखा के समान है जो इसके URL से भी स्पष्ट हो जाता है। यहां पंचांग, व्रत-पर्व, मुहूर्त आदि विषय जो ज्योतिष से संबद्ध होते हैं उसकी चर्चा की जाती है एवं दृक् पंचांग (डिजिटल) प्रकाशित किया जाता है। जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है। यहां सभी नवीनतम आलेखों को साझा किया जाता है, सब्सक्राइब करे :  Telegram  Whatsapp  Youtube


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