जातक ज्योतिष में इष्टकाल का विशेष महत्व होता है और पूरी कुंडली इष्टकाल के आधार पर ही बनती है अथवा यदि और अधिक सत्य बोलना चाहें तो जातक की कुंडली कहने का भी वास्तविक तात्पर्य होता है जिस समय उसका जन्म हुआ है उस समय की कुंडली अर्थात इष्टकाल की कुंडली अथवा खगोलीय मानचित्र। चूँकि किसी जातक के जन्म समय को इष्टकाल माना गया होता है इस कारण उस जातक की कुंडली, जन्मपत्रिका आदि कही जाती है। यहां हम इष्टकाल निकालने की विधि सीखेंगे और उसके कई उदाहरण देखेंगे।
यहां सीखें इष्टकाल निकालने की पूरी विधि – ishtkaal kaise nikale
हम एक पूर्व आलेख में भी इष्टकाल निकालने की विधि को समझ चुके हैं। इष्टकाल का तात्पर्य होता है वो वास्तविक समय जिसकी खगोलीय स्थिति आवश्यक है अर्थात ज्ञात करना चाहते हैं।
- इष्टकाल के आधार पर ही लग्न निर्धारित होता है।
- इष्टकाल के आधार पर ही भयात-भभोग ज्ञात किया जाता है जिससे दशान्तर्दशा निर्धारित किया जाता है।
- इष्टकाल के आधार पर ही ग्रह स्पष्ट किया जाता है।
- इस प्रकार जन्मकुंडली की सम्पूर्ण गणना ही इष्टकाल के आधार पर की जाती है।
चूंकि इष्टकाल की ही कोई जन्म कुंडली बनाई जाती है अथवा पूरी की पूरी कुंडली किसी विशेष समय की होती है जिसे इष्टकाल कहा जाता है इस कारण इष्टकाल निर्धारण हेतु पर्याप्त सजगता अपेक्षित होती है। यदि समय की इकाई का ज्ञान न हो, समय की इकाई में परिवर्तन करने का ज्ञान न हो अथवा इष्टकाल निर्धारण में छोटी सी भी त्रुटि हो तो पूरी की पूरी जन्म कुंडली गलत हो जायेगी। इसलिये सही जन्म कुंडली बनाने के लिये इष्टकाल का सही होना अनिवार्य होता है और यहां हम इष्टकाल बनाना सीखेंगे इस लिये यह आलेख बहुत ही महत्वपूर्ण है।
प्राचीन काल में समय दंड-पलात्मक ही होता था, और उस काल में समय की दो ही इकाई होती थी स्थानीय समय व स्थानीय मध्यम समय। जबकि घंटा-मिनट वाली घड़ी का प्रचलन हुआ तबसे समय की एक और इकाई बनाई गयी जिसे मानक समय कहा जाता है। घटी-पल में जो घटी है उसे बोलचाल की भाषा में घड़ी भी बोला जाता है और घड़ी शब्द प्राचीन ही है जो घटी से संबंधित है। किन्तु घंटा-मिनट वाली घड़ी का प्रचलन प्राचीन नहीं है।
वर्त्तमान में हमें समय की तीन इकाई का ज्ञान होना आवश्यक होता है और समय की सही इकाई ज्ञात होने पर ही समान समय की इकाई से गणना की जा सकती है। वर्तमान में ये समस्या बढ़ने की संभावना भी बनती दिख रही है कारण यह है कि, 1-2 दशक पूर्व तक सभी पंचांगों में स्थानीय समय ही अंकित होता था किन्तु अब कुछ पंचांग मानक समय भी अंकित करने लगे हैं।
अब यदि हमें समय की इकाई, देशांतर-वेलांतर संस्कार के बारे में अच्छी जानकारी न हो तो हम जन्म समय से किसी प्रकार इष्टकाल तो ज्ञात कर सकते हैं किन्तु उसी पंचांग में अंकित सूर्योदय का मानक समय भी नहीं ज्ञात कर सकते। देशांतर-वेलांतर संस्कार व समय इकाई व परिवर्तन विधि को समझने के लिये यहां दिये गये आलेख को पढ़ सकते हैं।
इस आलेख में समय के तीनों इकाई की विस्तृत जानकारी दी गयी है, एवं रेखांश/देशांतर रेखा, समयांतर आदि बिंदुओं को भी सरलता से समझाया गया है। एक सामान्य ज्योतिषी के लिये भी इन विषयों का सामान्य ज्ञान होना अनिवार्य होता है।
हम आशा करते हैं कि आपने पूर्व प्रकाशित सभी आलेखों को पढ़ लिया होगा और अब आगे इष्टकाल को और अधिक गहराई से सीखना समझना चाहते हैं, अभ्यास करना चाहते हैं, इष्टकाल निकालने के उदाहरण को देखना चाहते हैं। इसके लिये हमें किसी न की किसी पंचांग की आवश्यकता होगी, तदनुसार देशांतर और वेलांतर सारणी की भी आवश्यकता होगी। आधार हेतु हम विश्वविद्यालय पंचांग (दरभंगा) का प्रयोग करेंगे। एवं यहां जो उदाहरण दिये जायेंगे उसी का अन्य पंचांगों से भी आप अभ्यास कर सकते हैं। अन्य पंचांगों से गणना करने पर किञ्चित अंतर भी होगा।
इष्टकाल कैसे निकालें – ishtkaal kaise nikale
गणना हेतु पंचांग के जितने आँकड़ों की आवश्यकता होगी उतना भाग यहां दिया भी जा रहा है जिससे अधिक सरलता से समझी जा सके।
यहां हम माघ शुक्ल पक्ष 2025 के तीन भिन्न-भिन्न दिनों और भिन्न-भिन्न समय का इष्टकाल निकालेंगे, इसके आधार हेतु विश्वविद्यालय पंचांग (दरभंगा) का संबंधित अंश और देशांतर सारणी ऊपर दिया गया है। आप चित्र को बड़ा करके भी देख सकते हैं और यदि डाउनलोड करना चाहें तो डाउनलोड करके भी अवलोकन कर सकते हैं। इसके साथ ही हमें वेलांतर सारणी की भी आवश्यकता होगी और बगल/नीचे वो भी दिया गया है।
हम जिस पंचांग का प्रयोग करेंगे उसी पंचांग की देशांतर सारणी का भी प्रयोग करें यह आवश्यक होता है। यदि पंचांग में दी गयी सारणी में जन्मस्थान का देशांतर न दिया हो तो ज्ञात करना होता है और देशांतर ज्ञात करने की विधि भी पूर्व आलेख में बताई गयी है यदि आप पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
यहां हम तीन इष्टकाल (दंड/पलात्मक) बनायेंगे जिससे संबंधित सूर्योदय को पंचांग के संबंधित पृष्ठ में चिह्नित किया हुआ है। साथ ही पंचांग में तिथि, दिन और दिनांक वाली पंक्ति का संकेत किया हुआ है।
प्रथम विवरण
- माघ शुक्ल प्रतिपदा, गुरुवार
- दिनांक : ३०/०१/२०२५
- समय : मध्याह्न ९/४१ (9:41 am)
- स्थान : अयोध्या
द्वितीय विवरण
- माघ शुक्ल पंचमी, सोमवार
- दिनांक : ३/०२/२०२५
- समय : रात्रि ११/१३ (11:13 pm)
- स्थान : कुरुक्षेत्र
तृतीय विवरण
- माघ शुक्ल नवमी, गुरुवार
- दिनांक : ६/०२/२०२५
- समय : रात्रि २/१९ (2:19 am)
- स्थान : बद्रीनाथ
आगे की चर्चा से पूर्व हमें जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है वो है दिनांक और समय का ध्यान रखना। हम जानते हैं कि दिनांक और दिन ग्रीनव्हिच की घड़ी से निर्धारित होता है इसलिये कंप्यूटर, मोबाईल, ऑनलाइन, आदि सभी समय तो रात के 12 बजे परिवर्तित होते ही हैं, सरकारी रूप से भी किये जाते हैं और ये दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि अब भारत परतंत्र नहीं है। सरकार इसी को मान्यता प्रदान करती है इसका प्रमाण रेलवे है, रेलवे का दिनांक और दिन इसी नियम का पालन करता है।
पंचांगों में यह नियम नहीं रहता है और जब आप ज्योतिष सीखना चाहते हैं तो आपको भारतीय परंपरा का भी ज्ञान होना चाहिये।
- एक दिन कथन का तात्पर्य एक दिन-रात होता है जिसे अहोरात्र कहा जाता है।
- एक अहोरात्र का तात्पर्य एक सूर्य के उदय से लेकर दूसरे सूर्य के उदय तक का काल होता है।
- दिन का आरंभ सूर्योदय से होता है। दिनांक का तात्पर्य दिन से संबंधित अंक है जो दिन के साथ ही प्रभावी होता है न कि दिन के किसी भी अन्य भाग में जैसे कि मध्यरात्रि में दिनांक परिवर्तित होता है।
- वैश्विक कारणों से यदि ऐसा संभव न हो तो न सही किन्तु दिन का आरंभ तो सूर्योदय से ही होना चाहिये।
- 12 बजे रात्रि को दिनांक परिवर्तित तो होता है किन्तु पंचांगों में उसे नहीं स्वीकारा जाता है।
- इसलिये जन्म समय यदि रात्रि १२ बजे के पश्चात् हो तो उसका दिनांक पञ्चाङ्गानुसार पूर्व ही रहेगा इसका विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये।
- पुनः इसकी पुष्टि तिथि और वार से भी करे।
- उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुये हमने तीसरा उदाहरण इस श्रेणी का भी लिया है।
अब हम क्रमशः तीनों विवरण के आधार पर जो सूर्योदय, देशांतर, वेलांतर आदि ऊपर सारणी में अंकित है उसे ग्रहण करते हुये इष्टकाल बनायेंगे। इसके गणित को समझने हेतु इसका एक pdf फाइल भी नीचे देंगे जिसे डाउनलोड भी किया जा सकता है जो अभ्यास में सहयोगी होगा।
चूंकि तीनों जन्म समय (कल्पित) भारतीय प्रामाणिक समय (I.S.T.) है और पंचांग में अंकित सूर्योदय स्थानीय समय (L.T.) है अस्तु प्रथमतया हम जन्म समय को मानक समय (I.S.T.) से स्थानीय समय (L.T.) की इकाई में परिवर्तित करेंगे तदनंतर उसमें से सूर्योदय को ऋण (घटा) कर प्राप्त घंटा मिनट को ढाई गुणित करेंगे जो घटी पल में इष्टकाल होगा।
भारतीय प्रामाणिक समय (I.S.T.) को स्थानीय समय (L.T.) में परिवर्तित करने के लिये देशांतर और वेलांतर संस्कार किया जाता है। देशांतर और वेलांतर के चिह्न का भी महत्व होता है भारतीय प्रामाणिक समय को स्थानीय समय में परिवर्तित करने के लिये चिह्नवत ही देशांतर व वेलांतर संस्कार करने होते हैं अर्थात यदि धन (+) हो तो योग करना चाहिये और ऋण (-) हो तो घटाना चाहिये।
प्रथम विवरण
- माघ शुक्ल प्रतिपदा, गुरुवार
- दिनांक : ३०/०१/२०२५
- समय : मध्याह्न ९/४१ (9:41 am)
- स्थान : अयोध्या
प्रथम विवरण से संबंधित अन्य जानकारी पंचांग (संलग्न पृष्ठ) व सारणी से
- सूर्योदय : ६/३७
- देशांतर : ऋण (-) १/१२ (मि.से.)
- वेलांतर : ऋण (-) १३ (मिनट)
- ९/४१/०० जन्म समय
- (-) १/१२ देशांतर
- = ९/३९/४८
- (-) १३/०० वेलांतर
- = ९/२६/४८
- – ६/३७/०० सूर्योदय
- = २/४९/४८ (घंटा/मिनट)
- २/४९/४८ × २.५ (ढाई)
- =२/४९/४८
- +२/४९/४८
- +१/२४/५४
- =५/१२२/१५०
=५/१२४/३०
=७/०४/३० घटी पल में इष्टकाल
द्वितीय विवरण
- माघ शुक्ल पंचमी, सोमवार
- दिनांक : ३/०२/२०२५
- समय : रात्रि ११/१३ (11:13 pm)
- स्थान : कुरुक्षेत्र
द्वितीय विवरण से संबंधित अन्य जानकारी पंचांग (संलग्न पृष्ठ) व सारणी से
- सूर्योदय : ६/३४
- देशांतर : ऋण (-) २२/४० (मि.से.)
- वेलांतर : ऋण (-) १४ (मिनट)
इस द्वितीय उदाहरण का जन्म समय रात्रि ११/१३ है अस्तु यहां दिन परिवर्तन नहीं होता है और न ही दिनांक परिवर्तन होता है किन्तु मध्याह्न १२ बजे के उपरांत १, २ बजता है यदि रेलवे घड़ी को लें तो उसमें १३, १४ बजता है। रात्रि १२ बजे तक के समय को रेलवे घड़ी के अनुसार ग्रहण करना चाहिये यथा रात्रि १३/१३ बजे का तात्पर्य है २३/१३ बजे। सामान्य शब्दों में कहें तो यदि दिन १२ बजे के पश्चात् जन्म समय हो तो १२ घंटा योग करें और रात्रि १२ बजे के पश्चात् जन्म समय हो तो २४ घंटा योग करें।
- २३/१३/०० जन्म समय
- (-) २२/४० देशांतर
- = २२/५०/२०
- (-) १४/०० वेलांतर
- = २२/३६/२०
- (-) ६/३४/०० सूर्योदय
- = १६/०२/२० (घंटा/मिनट)
- १६/०२/२० × २.५ (ढाई)
- =१६/०२/२०
- +१६/०२/२०
- + ८/०१/१०
- =४०/०५/५०
=४०/०५/५० घटी पल में इष्टकाल
तृतीय विवरण
- माघ शुक्ल नवमी, गुरुवार
- दिनांक : ६/०२/२०२५
- समय : रात्रि २/१९ (2:19 am)
- स्थान : बद्रीनाथ
तृतीय विवरण से संबंधित अन्य जानकारी पंचांग (संलग्न पृष्ठ) व सारणी से
- सूर्योदय : ६/३२
- देशांतर : ऋण (-) १२/०४ (मि.से.)
- वेलांतर : ऋण (-) १४ (मिनट)
इस तृतीय उदाहरण का जन्म समय रात्रि २/१९ है अस्तु यहां दिन परिवर्तन नहीं होता है और भले ही घड़ी में 24 से अधिक न बजता हो किन्तु यदि 24 से भी अधिक बजता तो रात्रि के १२ बजे अर्थात २४ बजे के पश्चात् २५, २६ आदि बजते। अस्तु हम इस क्रिया को करने के लिये यदि जन्म समय रात्रि १२ बजे के पश्चात् का हो तो उसमें २४ घंटा का योग कर देंगे। यथा यहां जन्म समय रात्रि २/१९ है तो इसमें २४ घंटा जोड़ेंगे और तत्पश्चात यह समय होगा २६/१९ और इसी समय के आधार पर गणितीय क्रिया करेंगे।
- २६/१९/०० जन्म समय
- (-) १२/०४ देशांतर
- = २६/०६/५६
- (-) १४/०० वेलांतर
- = २५/५२/५६
- (-) ६/३२/०० सूर्योदय
- = १९/२०/५६ (घंटा/मिनट)
- १९/२०/५६ × २.५ (ढाई)
- =१९/२०/५६
- +१९/२०/५६
- + ९/४०/२८
=४७/८०/१४०
=४८/२२/२० घटी पल में इष्टकाल
इस प्रकार से यहां इष्टकाल बनाने के तीन उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं जो भिन्न-भिन्न दिनांक/समय और स्थानों के लिए किये गये हैं। इनमें एक समानता फिर भी देखने को मिलती है और वो यह है कि तीनों ही उदाहरणों के देशांतर व वेलांतर ऋणात्मक हैं और तीनों उदाहरण में उसे ऋण किया गया है। किन्तु ये धनात्मक (+) भी हो सकते हैं और जब धनात्मक हो तो योग किया जायेगा।
इसका अभ्यास करने हेतु आप किसी अन्य पंचांग से यथा वाराणसी के पंचांग से अथवा अयोध्या के पंचांग से अथवा अन्य किसी पंचांग का प्रयोग कर सकते हैं। यह स्मरण रखना आवश्यक है कि जिस पंचांग से इष्टकाल बनाना हो देशांतर सारणी उसी पंचांग का प्रयोग किया जायेगा। यदि अन्य पंचांग के देशांतर सारणी का प्रयोग किया जायेगा तो त्रुटि उत्पन्न होगी।
ज्योतिष गणित सूत्र
- दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
- घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
- इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5
अब यदि अभ्यासार्थ आपको उपरोक्त गणितीय क्रिया का pdf डाउनलोड करने की आवश्यकता हो तो नीचे pdf भी दिया गया है जिसे डाउनलोड कर सकते हैं।
प्रज्ञा पञ्चाङ्ग वेबसाइट कर्मकांड सीखें वेबसाइट की एक शाखा के समान है जो इसके URL से भी स्पष्ट हो जाता है। यहां पंचांग, व्रत-पर्व, मुहूर्त आदि विषय जो ज्योतिष से संबद्ध होते हैं उसकी चर्चा की जाती है एवं दृक् पंचांग (डिजिटल) प्रकाशित किया जाता है। जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है। साथ ही यदि आपको किसी भी मास का प्रज्ञा पंचांग (PDF) चाहिये तो यह टेलीग्राम और व्हाट्सप चैनलों पर दिया जाता है, इसके लिये आप टेलीग्राम और व्हाट्सप चैनल को अवश्य सब्स्क्राइब कर लें। यहां सभी नवीनतम आलेखों को साझा किया जाता है, सब्सक्राइब करे : Telegram Whatsapp Youtube
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