पंचांग देखना कैसे सीखें – panchang dekhna sikhe

पंचांग देखना कैसे सीखें - panchang dekhna sikhe

आप ज्योतिष न भी सीखना चाहते हों तो भी आपको पंचांग देखने की जानकारी होना आवश्यक है। आप ज्योतिषी हैं अथवा नहीं, आप कर्मकांडी हैं अथवा नहीं आप मात्र धर्म में आस्था रखते हैं, धर्माचरण (व्रतादि) करते हैं तो आपको पंचांग का ज्ञान होना आवश्यक है। यदि आप पंचांग देखने की विधि सीखना चाहते हैं तो यह आलेख आपके लिये विशेष उपयोगी है क्योंकि यहां कई प्रमुख पंचांगों को देखने की विधि अर्थात पंचांग देखना कैसे सीखें (panchang dekhna sikhe) बताई गयी है।

किसी भी कार्य के लिये शुभ मुहूर्त बनाना हो, लग्न शोधन करना हो, जन्म के बारे में विवरण प्राप्त करना हो, व्रत करना हो, कुंडली बनानी हो सभी कार्यों में पंचांग की आवश्यकता होती है। पंचांग का मुख्य उपयोग मुहूर्त बनाने में होता है एवं तत्पश्चात कुंडली निर्माण में भी होता है। मुहूर्त बनाने के लिये लग्न शोधन, भाव शुद्धि आदि विचार करना होता है अर्थात वो कर्मकांडी जो जन्मकुंडली नहीं बनाते हैं उनके लिये भी ये सामान्य ज्योतिषीय ज्ञान आवश्यक हो जाता है।

ज्योतिषीय ज्ञान में सर्वप्रथम पंचांग देखने और समझने के ज्ञान की आवश्यकता होती है। ज्योतिष (जन्मकुंडली निर्माण विधि) सीखने के लिये अनेकों आलेख प्रकाशित हैं यहां हम पंचांग देखना सीखेंगे।

प्रायः ऐसा भी देखा जाता है कि पंचांग में किसी दिन विवाहादि अंकित है और उस दिन का मुहूर्त बना दिया जाता है। शुभ मुहूर्त कब है यह समझ ही नहीं पाते, शुभ मुहूर्त प्रातः ७ बजे तक ही था अथवा रात्रि ४ बजे से है यदि इसे नहीं समझ पाते तो मुहूर्त नहीं बनाना चाहिये अपितु अन्य विद्वान से परामर्श लेना चाहिये। शुभ मुहूर्त बनाना वास्तव में ज्योतिषी का ही कार्य है तथापि यदि कर्मकांडी पंडित को भी शुभ मुहूर्त बनाना हो तो ज्योतिष का सामान्य ज्ञान अवश्य रखना चाहिये, लग्न-शोधन, भाव-शुद्धि तक का ज्ञान न हो तो शुभ मुहूर्त नहीं बनाना चाहिये।

अब प्रश्न उत्पन्न होगा कि पंचांगों में जो विवाहादि मुहूर्त अंकित रहते हैं क्यों ? इसका उत्तर है कि लग्न-शोधन, भाव-शुद्धि आदि के लिये अथक प्रयास न करना पड़े, निर्धारित दिवस को ही करने की आवश्यकता हो। यदि पंचांगों में इस प्रकार के शुभ-मुहूर्त अंकित न हों तो अनेकों ३६५ दिन के मुहूर्त हेतु सभी विचार करना होगा। पंचांगों में अंकित होते हैं इस कारण मात्र उतने ही दिन विचार करने की आवश्यकता रहती है। शुभ मुहूर्त संबंधी विशेष चर्चा पृथक से करेंगे, इस आलेख का विषय पंचांग देखना सीखना है।

पंचांग में क्या होता है

पंचांग का तात्पर्य होता है तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण; यही पांचों मुख्य अंग है और जिस पुस्तिका आदि में यह पांचों उपलब्ध हो; उसे पंचांग कहा जाता है। सहज उपयोगिता हेतु पंचांगों में और भी बहुत सारे विषय दिये जाते हैं यथा राशि, सूर्योदय, सूर्यास्त, दिनमान, व्रत-पर्व-मुहूर्त, ग्रहस्पष्ट, लग्नसारणी।

इसके साथ-साथ और भी विषय पंचागों में अंकित होते हैं यथा काल शुद्धाशुद्ध निर्णय, काल दिशा, ग्रहों नक्षत्र-राशि परिवर्तन, ग्रहों का उदयास्त होना, सिद्ध्यादि योग आदि इत्यादि। इस प्रकार के और भी अनेकों विषय हो सकते हैं यथा गण्डांत काल, अर्द्धप्रहरा, राहुकाल, शिववास, अग्निवास इत्यादि।

यदि अन्यान्य विषय पंचांग में उपलब्ध न हो तो कर्मकांडियों के लिये उसका उपयोग करना कठिन हो जायेगा, अथवा अत्यधिक समय मुहूर्तादि विचार करने में ही व्यतीत होगा। पंचांग में अनेकानेक विषय दिये जाते हैं जिससे कर्मकांडियों को किसी प्रकार का विचार करने में समय की बचत होती है। यथा यदि ग्रहों का राशि परिवर्तन-उदयास्त दिया हो तो उसके पर भी काल के शुद्धाशुद्ध का, ऋतुओं का, संक्रांतियों के पुण्यकाल काल का, ऋतु का, अयन का, गोल का, काल दिशा का आदि ज्ञात किया जा सकता है, किन्तु ये सभी विषय भी पंचांगों में अंकित रहते हैं ताकि इसके लिये विचार करने में समय व्यतीत न करना पड़े।

इसी प्रकार तिथि-नक्षत्रादि के आधार पर व्रत-पर्व-मुहूर्तादि-सिद्ध्यादि योग ज्ञात किये जा सकते हैं किन्तु इसके लिये विचार करने की आवश्यकता होगी, जैसे यदि गण्डान्त-अर्द्धप्रहरा-शिववास-अग्निवास आदि अंकित न होने पर विचार करना होता है।

आगे उपरोक्त पंचांग के सभी मुख्य विषयों का विश्लेषण करते हुये तीन पंचांगों विश्वविद्यालय पंचांग (दरभंगा), हृषीकेश पंचांग (काशी) और श्रीवेंकटेश्वर पंचांग (शताब्दि पंचांग जयपुर); में उसकी स्थिति भी सचित्र बताई गयी है जिसका सम्यक अध्ययन और अवलोकन करने से इन तीन पंचांगों को देखना ही नहीं अपितु किसी भी पंचांग को देखना सीख सकते हैं। विश्लेषण क्रमशः अंकवार किया गया है और तदनुसार पंचांग के पृष्ठ में अंक लिखे गये हैं जिससे पंचांगों उसकी स्थिति को समझा जा सकता है। तिथ्यादि का क्रम सभी पंचांगों में समान नहीं होता है इस कारण अंकों के माध्यम से उसके क्रम को समझना चाहिये।

1 ~ शीर्षक

सभी पंचांगों में प्रत्येक पृष्ठ पर शीर्षक होता है जिसमें मास नाम और पक्ष नाम होता है। वर्ष को १२ मासों में विभाजित किया जाता है चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। शीर्षक में मास का नाम रहता है। प्रत्येक मास में दो पक्ष भी होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। अमावास्या को चन्द्रमा की कोई कला नहीं होती एवं तदुपरांत क्रमशः प्रतिदिन कलायें उत्तरोत्तर बढ़ती हुई दिखती हैं। जिस दिन चन्द्रमा सभी कलाओं से युक्त होता है उस दिन पूर्णिमा होता है।

इस प्रकार एक पक्ष पूर्णिमा को समाप्त होता है एक पक्ष अमावास्या को। जो पक्ष पूर्णिमा को समाप्त होता है उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं और जो पक्ष अमावास्या को समाप्त होता है उसे कृष्ण पक्ष कहते हैं। पूर्णिमा के पश्चात् चंद्रमा उत्तरोत्तर क्षीण होता जाता है और अमावास्या को चंद्रमा कलशून्य हो जाता है अर्थात नहीं दिखता है। इस प्रकार मास का नाम और पक्ष का नाम शीर्षक से ज्ञात होता है। सभी पंचांगों में शीर्षक मोटे अक्षरों में अंकित होते हैं।

मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग कैसे देखें - mithila panchang kaise dekhe
मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग कैसे देखें – mithila panchang kaise dekhe

जिन पृष्ठों पर यह शीर्षक नहीं होता है वह पंचांग का अन्य विषय होता है जो पंचांग-मुहूर्त आदि का ज्ञान प्रदान करने में सहायक होता है अर्थात पंचांग में पंचांग के पृष्ठों के अतिरिक्त भी अनेकों पृष्ठ होते हैं।

यहां विश्वविद्यालय पंचांग का एक पृष्ठ (चित्र) संलग्न है और इसके शीर्षक में १ के माध्यम से जिसका संकेत किया गया है वह शीर्षक है। आगे अन्य पंचांगों के भी पृष्ठ (चित्र) दिये गये हैं और जहां १ का संकेत है उसे शीर्षक समझें उसमें आपको मास और पक्ष का नाम ज्ञात होगा।

2 ~ उपशीर्षक

शीर्षक के पश्चात् पंचांग की अन्य जानकारियां भी ऊपर में दी जाती है यथा : संवत्सर, शक, ईस्वी सन्, ऋतु, शुद्धाशुद्ध काल, अयन, गोल, काल दिशा (त्रैमासिक) इत्यादि। ये शीर्षक से छोटे अक्षरों में अंकित होते हैं और इनमें कुछ अन्य तथ्य भी न्यूनाधिक हो सकते हैं।

ऊपर में शीर्षक के पश्चात् अन्य जो विवरण होते हैं वो उपशीर्षक होते हैं जो अन्य महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। संलग्न पंचांगपृष्ठ के चित्रों में उपशीर्षक को २ से संकेत किया गया है और उसके लिये यहां हृषीकेश पंचांग का एक पृष्ठ दिया गया है।

ऋषिकेश पंचांग कैसे देखें - rishikesh panchang kaise dekhe
हृषीकेश पंचांग कैसे देखें – Hrishikesh panchang kaise dekhe

शताब्दि पंचांग का शीर्षक-उपशीर्षक सबसे ऊपर एक ही पंक्ति में समान अक्षरों में रहता है जिसका प्रारंभ मास नाम से और समापन ईस्वी सन् पर होता है।

3 ~ तिथि

तत्पश्चात प्रथम सारणी तिथ्यादि (पञ्चाङ्ग) की होती है जो ऊपर के बांये भाग में होती है, जिसमें लगभग एक दर्जन पंक्तियां होती है और सबके शीर्षक उसके ऊपर अंकित होते हैं। इसमें तिथि, वार, तिथि मान, नक्षत्र-नक्षत्र मान, योग-योग मान, करण-करण मान, राशि-राशि मान, दिनमान, सूर्योदय, सूर्यास्त, दैनिक सूर्य स्पष्ट, आंग्ल व अन्य दिनांक इत्यादि होते हैं। इनमें कुछ अतिरिक्त पंक्तियां भी हो सकती है जैसे हृषीकेश पंचांग में सूर्यक्रांति, रेलवे अंतर मिनट आदि अधिक रहता है तो शताब्दि पंचांग में सूर्य स्पष्ट नहीं रहता है।

तिथि

भचक्र ३६० अंश का होता है और चन्द्रमा को इसका एक चक्र पूर्ण करने में २७ (+ ७ घंटा ४३ मिनट) दिन लगता है। इतने दिन में सूर्य भी २७ अंश आगे बढ़ चुका होता है जिसमें चंद्रमा को लगभग ढाई दिन और लगता है जिस कारण एक अमावास्या के पश्चात् दूसरी अमावस्या में लगभग साढ़े उनत्तीस दिन लगते हैं और इसी को चान्द्रमास के नाम से जाना जाता है। चन्द्रमा १५ दिन सूर्य से दूर जाता है और जितना दूर होता जाता है उतना ही बड़ा दिखता है, इसी प्रकार सूर्य से १८० अंश तक जाने के पश्चात् पुनः निकट होने लगता है और जितना निकट आता है उतना ही छोटा होता जाता है।

चंद्रमा जब सूर्य के निकट होता है तब अमावस्या होती है, जब सूर्य से १८० अंश की दूरी पर होता है तब पूर्णिमा होती है।

अमावास्या से पूर्णिमा पर्यन्त प्रतिदिन चन्द्रमा सूर्य से लगभग १२ अंश आगे बढ़ती है और प्रत्येक १२ अंश के अंतर पर एक-एक तिथि होती है। सूर्य के निकट से चन्द्रमा की कलायें उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है और तिथि की अंकात्मक गणना प्रारंभ होती है जो प्रतिपदा से पूर्णिमा तक १५ होती है। १८० अंश से पुनः आगे बढ़ने पर चन्द्रमा पुनः सूर्य के निकट होने लगता है इसलिये कलायें अर्थात दिखाई देने वाला भाग अल्प होते जाता है। किन्तु अंकात्मक संख्या आगे ही बढ़ती रहती है अर्थात पूर्णिमा के पश्चात् पुनः प्रतिपदा से अमावास्या तक की तिथियां आती है किन्तु संख्यात्मक प्रारूप में १६ से ३० तक होती है।

शताब्दी पंचांग देखना देखें ~ shatabdi panchang dekhana sikhen
शताब्दी पंचांग देखना देखें ~ shatabdi panchang dekhana sikhen

अधिकांश पंचांगों में तिथि संख्यात्मक रूप से ही प्रथम पंक्ति में अंकित की जाती है, यहां जो तीन पंचांग के अंश संलग्न किये गये हैं उनमें से दो पंचांगों (विश्वविद्यालय और शताब्दि) में यह प्रथम पंक्ति में है किन्तु हृषीकेश पंचांग में प्रथम पंक्ति दिनमान का है तत्पश्चात तिथि है। इसका विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। यहां जो तीन पंचांग के अंश संलग्न किये गये हैं उन तीनों में संख्यात्मक तिथि ही अंकित है और प्रथम सारणी के प्रथम पंक्ति में है जिसे ३ के संकेत से बताया गया है।

यहां आपको एक विशेष प्रश्न का भी उत्तर प्राप्त हुआ है जिसपर संभवतः आपने ध्यान न दिया हो इस कारण इसे स्पष्ट किया जा रहा है।

गूगल जो गुगली वाला सवाल का उत्तर बताता रहता है उससे पूछिये कि :

  • शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा की संख्या १ क्यों होती है?
  • पूर्णिमा की १५ क्यों होती है और अमावास्या को ३० क्यों ?
  • १ से ३० तक की संख्या में सबसे बड़ा अंक ३० है और चंद्रमा पूर्णिमा को सबसे बड़ा दिखता है तो पूर्णिमा की संख्या ३० होनी चाहिये थी न।

इन प्रश्नों का उत्तर ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है और ऐसे प्रश्न आपके मन में कई बार आये भी होंगे, आपने उत्तर ढूंढने का प्रयास भी किया होगा किन्तु इसका उत्तर नहीं मिला होगा।

तिथियों को शुक्ल पक्ष में १, २, १५ के क्रम से अंकित किया जाता है एवं कृष्ण पक्ष में कुछ पंचांग १६, १७ ३० के क्रम से भी व्यक्त करते हैं, किन्तु अधिकांश पंचांग १, २ क्रम से ही अंकित करते हैं किन्तु अमावास्या को ३० अंकित करते हैं।

4 ~ वार

यहां जितने पंचांगों के देखने की विधि बताई जा रही है और पारम्परिक रूप से प्रकाशित होने वाले अन्य सभी पंचांगों में भी तिथि के पश्चात् अगली पंक्ति में तिथि मान (समय) न होकर वार अर्थात दिन का नाम होता है। वारप्रवृत्ति का भी ज्योतिषीय कारण है की रविवार का अगला सोमवार ही क्यों होता है किन्तु यहां यह विस्तृत चर्चा नहीं की जा सकती है किसी अन्य आलेख में करेंगे। वार अर्थात दिन तिथि संख्या और तिथि मान के मध्य में रहता है।

तीनों पंचांगों के संलग्न पृष्ठ में इसे ४ के संकेत से बताया गया है। विश्वविद्यालय और शताब्दि पंचांग में द्वितीय पंक्ति वार की है किन्तु हृषीकेश पंचांग में वार तृतीय पंक्ति में अंकित किया गया है।

3 (क) & (ख) ~ तिथिमान

लगभग सभी पंचांगों में वार के पश्चात् अर्थात तीसरी पंक्ति में दंडपलात्मक तिथिमान दिया हुआ होता है। संलग्न पंचांग पृष्ठों में तिथि के दंडपलात्मक मान को ३ (क) के संकेत से बताया गया है। उसके अगली अर्थात चौथी पंक्ति में तिथि का घंटा मिनट अंकित होता है जो स्थानीय समय होता है और इसे ३ (ख) के संकेत से बताया गया है।

शताब्दि पंचांग में कोई भी मान घंटा मिनट में अंकित नहीं किया गया है, मात्र दंडपलात्मक मान ही दिये गये हैं इस कारण शताब्दि पंचांग के संलग्न पृष्ठ में (ख) का संकेत नहीं दिया गया है।

5 (क) & (ख) ~ नक्षत्र & नक्षत्रमान

  • लगभग सभी पंचांगों में पांचवीं पंक्ति नक्षत्र की होती है जिसे ५ के संकेत से बताया गया है। शताब्दि पंचांग में यह चौथी पंक्ति ही होती है, और हृषीकेश पंचांग में यह छठी पंक्ति होती है।
  • नक्षत्र के पश्चात् दंडपलात्मक नक्षत्र मान होता है जिसे ५ (क) के संकेत से बताया गया है। दं
  • डपलात्मक नक्षत्रमान के पश्चात् घंटा मिनट में भी अंकित होता है जो स्थानीय समय होता है और इसे ५ (ख) के संकेत से बताया गया है। ५ (ख) शताब्दि पंचांग में नहीं होता है।

6 (क) & (ख) ~ योग & योगमान

इसी प्रकार से अगली पंक्ति में योग अंकित किया होता है। जैसे चंद्रमा और सूर्य की दूरी (अंशात्मक) का अंतर तिथि होती है उसी प्रकार से चंद्रमा और सूर्य के राश्यांशों के योग से विष्कुम्भादि योग बनते हैं। योग को के संकेत से बताया गया है।

योग के पश्चात् योग का दंडपलात्मक मान होता है जिसे ६ (क) के संकेत से दर्शाया गया है।

हृषीकेश पंचांग में योग का घंटा मिनट (स्थानीय समय) भी अंकित होता है जिसे ६ (ख) के संकेत से दर्शाया गया है किन्तु यह विश्वविद्यालय कर शताब्दि पंचांग में अंकित नहीं होता है।

7 (क) & (ख) ~ करण & करणमान

करण एक तिथि में दो करण होते हैं अर्थात तिथि के अर्द्धांश को करण कहा जाता है। अगली पंक्ति में करण के नाम अंकित होते हैं जिसे ७ के संकेत से व्यक्त किया गया है, एवं उसके आगे ही करण का दंडपलात्मक मान भी होता है जिसे ७ (क) के संकेत से व्यक्त किया गया है। सामान्यतः अगली करण पंचांगों में नहीं दिये जाते हैं किन्तु हृषीकेश पंचांग में अगली करण भी दी जाती है अतः हृषिकेश पंचांग में एक अन्य संकेत ७ (ख) से उसे बताया गया है।

8 (क) ~ राशि & राशिमान

इसके पश्चात् कोई स्थिर क्रम नहीं होता है। अगले क्रम पर भिन्न-भिन्न पंचांगों में भिन्न-भिन्न विषय होते हैं। यथा विश्वविद्यालय पंचांग में राशि व राशिमान है तो हृषीकेश पंचांग में आनन्दादि योग और दिनांक के पश्चात् राशि है, एवं शताब्दि पंचांग में अंतिम पंक्ति राशि की है। राशि का तात्पर्य चन्द्रमा की राशि से है। राशि को ८ के संकेत से व्यक्त किया गया है। राशि के साथ ही अथवा राशि की अगली पंक्ति में राशिमान होता है। राशिमान को ८ (क) के संकेत से समझें।

राशिमान को लेकर एक विशेष विषय यह भी है कि यद्यपि अधिकांश पंचांगों में राशि समाप्ति काल होता है किन्तु कुछ पंचांगों में राशि का प्रारम्भ (प्रवेश) काल भी हो सकता है, जैसे हृषीकेश पंचांग में राशि प्रवेश का ही होता है।

9 ~ राशि & राशिमान

संलग्न पंचांग पृष्ठों में ९ के संकेत से स्पष्ट सूर्य को व्यक्त किया गया है। शताब्दि पंचांग में दैनिक स्पष्ट सूर्य नहीं दिया जाता है, साप्ताहिक ग्रह स्पष्ट सारणी में ही सूर्य की साप्ताहिक राश्यादि रहती है, इसलिये शताब्दि पंचांग के पृष्ठ में ९ का संकेत नहीं दिया गया है।

सूर्य स्पष्ट अथवा ग्रह स्पष्ट के प्रति एक और विषय जानना महत्वपूर्ण है कि वह किस समय का है यह भी ज्ञात होना चाहिये। विश्वविद्यालय पंचांग में मिश्रमान कालिक अर्थात मध्यरात्रि का होता है, हृषीकेश पंचांग में औदयिक अर्थात सूर्योदय काल का होता है और शताब्दि पंचांग में जो साप्ताहिक ग्रहस्पष्ट होता है वह अयनांश परिवर्तन काल का होता है जिसका दंडपलात्मक मान ऊपर में अंकित रहता है।

10 ~ दिनमान

इसके पश्चात् १० के संकेत से दिनमान को व्यक्त किया गया है। दिनमान का तात्पर्य होता है सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय। पारम्परिक पंचांगों में दंडपलात्मक दिनमान दिये जाते हैं। हृषीकेश पंचांग में दिनमान प्रथम पंक्ति में ही अंकित रहता है।

10 ~ दिनमान

इसके पश्चात् १० के संकेत से दिनमान को व्यक्त किया गया है। दिनमान का तात्पर्य होता है सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय। पारम्परिक पंचांगों में दंडपलात्मक दिनमान दिये जाते हैं। हृषीकेश पंचांग में दिनमान प्रथम पंक्ति में ही अंकित रहता है। शताब्दि पंचांग में दिनमान का दण्ड मात्र ऊपर में ही अंकित रहता है शेष पंक्तियों में मात्र पल ही अंकित रहते हैं, दंड ऊपरी पंक्ति का ही ग्रहण किया जाता है। यदि किसी पक्ष में मध्य में दंड परिवर्तन होता है तो उस दिन पुनः दण्ड अंकित किया जाता है।

11 ~ सूर्योदय

संलग्न पंचांग पृष्ठों में ११ के संकेत से सूर्योदय को व्यक्त किया गया है। सभी पारम्परिक पंचांगों में अंकित सूर्योदय काल स्थानीय समय (L.T.) होता है।

12 ~ सूर्यास्त

सूर्योदय के सूर्यास्त होता है जिसे १२ के संकेत से दर्शाया गया है।

13 ~ दिनांक

विभिन्न पंचांगों में दिनांक का भिन्न-भिन्न क्रम होता है। पंचांगों में कई प्रकार के दिनांक अंकित होते हैं जिसमें से एक आंग्ल दिनांक भी होता है। संलग्न पृष्ठों में १३ के संकेत से आंग्ल दिनांक को दर्शाया गया है। इसके निकट ही सौर दिनांक भी रहता है।

14 ~ व्रत-पर्व-मुहूर्तादि

इसके पश्चात् पंक्ति के अंत में व्रत-पर्व-मुहूर्तादि दिये जाते हैं जिसे संलग्न पृष्ठों में १४ के संकेत से दर्शाया गया है।

15 ~ ग्रहस्पष्ट सारणी

इसके पश्चात् नीचे एक भिन्न सारणी होती है जिसे ग्रहस्पष्ट सारणी कहा जाता है। इस सारणी में ग्रहों की राश्यादि रहती है। ग्रहस्पष्ट सारणी को संलग्न पृष्ठों में १५ के संकेत से दर्शाया गया है। विश्वविद्यालय पंचांग में मिश्रमानकालिक अर्थात मध्य रात्रि का ग्रहस्पष्ट होता है, हृषीकेश पंचांग में सूर्योदय कालिक होता है। इसी प्रकार से शताब्दि पंचांग में दो ग्रहस्पष्ट सारणी होती है जो साप्ताहिक होती है, किसी-किसी पक्ष में तीन सारणी भी होती है।

16 ~ दैनिक लग्न सारणी

इसके पश्चात् एक अन्य सारणी भी होती है जो दैनिक लग्न सारणी होती है। भिन्न-भिन्न पंचांगों में भिन्न-भिन्न प्रकार से दैनिक लग्न सारणी दी जाती है जिसे गंभीरता से समझना आवश्यक होता है। दैनिक लग्न सारणी से मुहूर्तादि हेतु लग्न ग्रहण किया जाता है, जन्मकुंडली निर्माण हेतु नहीं। शताब्दि पंचांग में दैनिक लग्न सारणी नहीं होती है। दैनिक लग्न सारणी को १६ के संकेत से दर्शाया गया है।

17 ~ मिश्रमान

विश्वविद्यालय पंचांग व मिथिला पंचांगों में मिश्रमानकालिक ग्रहस्पष्ट दिया गया होता है इसलिये इसलिये मिश्रामान भी दिया जाता है। यह सभी पंचांगों में नहीं होता है और न ही आवश्यकता होती है। इसकी आवश्यकता उन्हीं पंचांगों में होती है जो मिश्रमान कालिक ग्रह स्पष्ट देते हैं।

मिश्रमान को १७ के संकेत से व्यक्त किया गया है।

हृषीकेश और शताब्दि पंचांग में मिश्रमान नहीं होता है इसलिये १७ का संकेत नहीं दिया गया है। जो लोग मिथिला पंचांग का उपयोग करते हैं उनके मन में मिश्रमान और उसकी उपयोगिता को लेकर प्रश्न उठते होंगे जो यहां स्पष्ट हो जाता है।

18 ~ अयनांश & कुंडली

सामान्यतः सभी पारम्परिक पंचांगों में अयनांश परिवर्तन काल की कुंडली बनाकर देने की परंपरा रही है जो अभी भी देखी जाती है। यद्यपि इसका वर्त्तमान कोई उपयोग नहीं होता है। इस कुंडली के ऊपर ही अयनांश और अयनांश परिवर्तन काल अंकित होता है। सामान्यतः एक पक्ष में दो कुंडली होती है किन्तु कभी-कभी तीन बार भी अयनांश परिवर्तन होता है और तब तीन कुंडली दी जाती है। इसे १८ के संकेत से दर्शाया गया है।

19 ~ विविध उपयोगी जानकारी

अंत में नीचे अन्य रिक्त स्थानों पर अन्य विविध उपयोगी जानकारी भी दी जाती है। इसे १९ के संकेत से दर्शाया गया है।

यदि पंचांग में अंकित स्थानीय सूर्योदय-सूर्यास्त को भारतीय प्रामाणिक सूर्यास्त अर्थात घड़ी के समय में परिवर्तित करना हो तो उसमें चिह्न के विपरीत देशांतर व वेलांतर संस्कार करने की आवश्यकता होती है। समय की इकाई परिवर्तन विधि इस आलेख में बताई गयी है।

हृषीकेश पंचांग में कुछ अन्य पंक्तियाँ भी होती है यथा : अगली करण, आनन्दादि योग, सूर्य क्रांति, रेलवे मिनट अंतर (पंचांग समय हेतु)

निष्कर्ष : इस प्रकार से यहां तीन प्रमुख पंचांगों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुये और संलग्न पंचांग पृष्ठों में संकेत द्वारा स्पष्ट करते हुये पंचांग देखने की पूरी विधि बताई गयी है। जो पंचांग देखने की विधि सीखना चाहते हैं वो इस आलेख को पढ़कर और समझकर सरलता से सीख सकते हैं।

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