आइये सही-सही चंद्र स्पष्ट करने की विधि जाने – chandra spast kaise kare

आइये सही-सही चंद्र स्पष्ट करने की विधि जाने - chandra spast kaise kare

हमने तीन प्रकार के पंचांगों से ग्रह स्पष्ट करना सीखा है किन्तु उसमें चन्द्र सम्मिलित नहीं है। वास्तव में चंद्र की राशि और नक्षत्र पंचांगों रहते हैं किन्तु अन्य ग्रहों की भांति अंश/कला/विकला नहीं होते और इसी कारण अन्य ग्रहों की भांति चंद्र स्पष्ट नहीं किया जा सकता अर्थात चंद्र स्पष्ट करने की दूसरी विधि होती है और किसी भी पंचांग से चंद्र स्पष्ट करना हो एक ही विधि है वो है नक्षत्र से चंद्र स्पष्ट करना। यहां हम चंद्र स्पष्ट करने की विधि (chandra spast kaise kare) सीखेंगे।

सभी ग्रहों को तात्कालिक अर्थात इष्टकाल का बनाने के लिये भिन्न-भिन्न पंचांगों से भिन्न-भिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है। यदि आप तात्कालिक ग्रह स्पष्ट करने की विधि जानना जाहते हैं तो इन दोनों आलेखों का अवलोकन करें :

दैनिक ग्रह स्पष्ट से तात्कालिक ग्रह स्पष्ट करने की विधि

शताब्दि पंचांग से औदयिक और तात्कालिक ग्रह स्पष्ट करना

“ज्योतिष सीखें” से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

राशि से चंद्र स्पष्ट करना

यदि यह कहें कि क्या राशि के आधार पर चंद्र स्पष्ट नहीं किया जा सकता तो उत्तर होगा नहीं। फिर प्रश्न होगा कि जिस विधि से नक्षत्र के आधार पर चंद्र स्पष्ट करते हैं उसी विधि से राशि के आधार पर भी चंद्र स्पष्ट किया तो जा सकता है तो फिर क्यों नहीं किया जा सकता। इसका उत्तर है कि चन्द्रमा शीघ्रगामी है और गति में परिवर्तन भी शीघ्र होता है।

यदि राशि के आधार पर मध्यम गति ज्ञात करें और उस मध्यम गति से चंद्र स्पष्ट करें तो नक्षत्र भी भिन्न हो सकता है इसलिये राशि को आधार मानकर चंद्र स्पष्ट नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि किसी भी पंचांग में चंद्र स्पष्ट नहीं दिया जाता है।

नक्षत्र से चंद्र स्पष्ट करना

चंद्र स्पष्ट करने की प्राचीन विधि जो है वो नक्षत्र (भयात-भभोग) से ही करने की है और शुद्ध है। यदि प्रतिदिन का चंद्र स्पष्ट पंचांगों में अंकित कर भी दिया जाये तो उससे शुद्ध चंद्र स्पष्ट ज्ञात नहीं हो सकता। दैनिक स्पष्ट से भी दो नक्षत्रों में जो चंद्र गति होगी उसका मध्यम ज्ञात होगा, किन्तु भयात-भभोग के माध्यम से हमें नक्षत्र में चंद्र की गति ज्ञात होती है। इस विधि से चंद्र स्पष्ट करने पर स्पष्ट चंद्र नक्षत्र मान से बाहर हो ही नहीं सकता है।

चंद्र स्पष्ट कैसे करते हैं

चंद्र स्पष्ट करने की प्राचीन विधि जो है वो नक्षत्र (भयात-भभोग) से ही करने की है और शुद्ध है। यदि प्रतिदिन का चंद्र स्पष्ट पंचांगों में अंकित कर भी दिया जाये तो उससे शुद्ध चंद्र स्पष्ट ज्ञात नहीं हो सकता। दैनिक स्पष्ट से भी दो नक्षत्रों में जो चंद्र गति होगी उसका मध्यम ज्ञात होगा, किन्तु भयात-भभोग के माध्यम से हमें नक्षत्र में चंद्र की गति ज्ञात होती है। इस विधि से चंद्र स्पष्ट करने पर स्पष्ट चंद्र नक्षत्र मान से बाहर हो ही नहीं सकता है।

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भचक्र ३६० अंश का होता है जिसे १२ भागों में विभाजित करें तो प्रत्येक अंश ३० प्राप्त होता है और एक राशि का मान ३० अंश होता है। मेष के प्रारम्भ बिन्दु को ० अंश माना गया है। एक राशि में सवा दो नक्षत्र होता है अर्थात ३० ÷ २.२५ = १३ अंश २० कला।

इसी प्रकार से भचक्र (३६० अंश) को २७ नक्षत्रों में बांटा गया है और इस विधि से भी ज्ञात करें तो भी ३६० ÷ २७ = १३/२० प्राप्त होता है अर्थात एक नक्षत्र का मान १३ अंश २० कला है।

चंद्र स्पष्ट की गणना करने के लिये हम १३ अंश २० कला को कलात्मक बनाते हैं तो (१३ × ६०) + २० = ७८० + २० = ८०० कला प्राप्त होता है और ८०० कला को यदि भभोग से विभाजित करें तो घट्यात्मक चंद्र गति प्राप्त होती है जिसे नाक्षत्र गति भी कह सकते हैं। नाक्षत्र गति को यदि भयात से गुणित करेंगे तो भुक्त नक्षत्र ज्ञात होगा और यदि नक्षत्रारम्भ बिन्दु में चंद्र भुक्त नक्षत्र का योग कर देंगे तो तात्कालिक चंद्र स्पष्ट हो जायेगा। इसे सूत्र के रूप में आगे व्यक्त किया गया है :

चंद्र बनाने का सूत्र

  • घट्यात्मक चंद्र गति/नाक्षत्र गति = १३/२० ÷ भभोग = ८०० ÷ भभोग
  • नक्षत्र में चंद्र की स्थिति = नाक्षत्र गति × भयात
  • तात्कालिक चंद्र = नक्षत्र में चंद्र की स्थिति + नक्षत्रारम्भ बिन्दु
  • तात्कालिक चंद्र = [{(८०० ÷ भभोग) × भयात} + नक्षत्रारम्भ बिन्दु]

भयात, भभोग तो हमें इष्टकाल के आधार पर पंचांग से ज्ञात हो जाता है किन्तु अब हमें नक्षत्रारम्भ बिन्दु को समझना ज्ञात कैसे करें यह जानना आवश्यक है।

आइये सही-सही चंद्र स्पष्ट करने की विधि जाने - chandra spast kaise kare
चंद्र स्पष्ट करने की विधि जाने
क्रमनक्षत्रनक्षत्रारम्भ
अश्विनी००/००
भरणी१३/२०
कृत्तिका२६/४०
रोहिणी४०/००
मृगशिरा५३/२०
आर्द्रा६६/४०
पुनर्वसु८०/००
पुष्य९३/२०
आश्लेषा१०६/४०
१०मघा१२०/००
११पूर्वाफाल्गुनी१३३/२०
१२उत्तराफाल्गुनी१४६/४०
१३हस्त१६०/००
१४चित्रा१७३/२०
१५स्वाति१८६/४०
१६विशाखा२००/००
१७अनुराधा२१३/२०
१८ज्येष्ठा२२६/४०
१९मूल२४०/००
२०पूर्वाषाढ़ा२५३/२०
२१उत्तराषाढ़ा२६६/४०
२२श्रवण२८०/००
२३धनिष्ठा२९३/२०
२४शतभिषा३०६/४०
२५पूर्वभाद्रपदा३२०/००
२६उत्तरभाद्रपदा३३३/२०
२७रेवती३४६/४०

एक नक्षत्र का मान १३ अंश २० कला होता है और यदि नक्षत्रों के क्रम को स्मरण कर लें तो नक्षत्र समाप्ति काल ज्ञात जाना जा सकता है। यथा अश्विनी को प्रथम नक्षत्र कहा गया है और ० अंश से अश्विनी का आरंभ होता है।

अश्विनी प्रथम नक्षत्र है इसलिये इसका क्रम १ है और नक्षत्र मान १३/२० (अंश/कला) को १ से गुणा करने पर १३/२० ही होता है जो अश्विनी का समाप्ति बिन्दु है।

पूर्व नक्षत्र का समाप्ति बिन्दु ही पर नक्षत्र का आरंभ बिन्दु होता है अर्थात दूसरे क्रम के नक्षत्र भरणी का आरंभ बिन्दु १३/२० (अंश/कला) है और समाप्ति कला के लिये १३/२० को भरणी क्रम २ से गुणा करने पर २६/४० (अंश/कला) प्राप्त होता है जो भरणी का समाप्ति बिन्दु है और तृतीय नक्षत्र कृत्तिका का आरंभ बिन्दु।

यदि यह स्मरण करना कठिन हो तो यहां सारणी दी गयी है, सारणी के प्रथम पंक्ति में नक्षत्र का क्रम है, द्वितीय पंक्ति में नक्षत्र क्रम है और तृतीय पंक्ति में नक्षत्रारम्भ बिन्दु है, अंश और कला है।

इस प्रकार यदि भयात और भभोग के माध्यम से चंद्र भुक्त नक्षत्र (अंश/कला) में ज्ञात कर लेते हैं तो नक्षत्रारम्भ बिन्दु में उसका योग करके तात्कालिक चंद्र अंश/कला हो जायेगा जिसके अंश को सठियाते हुये राशि/अंश/कला/विकला में परिवर्तित किया जा सकता है।

उपरोक्त विधि से हम एक उदाहरण का अभ्यास करेंगे और सभी पंचांगों में एक ही विधि से तात्कालिक चंद्र स्पष्ट ज्ञात किया जायेगा।

चंद्र स्पष्ट करना : एक उदाहरण

अभ्यास के उदाहरण हेतु हम किसी भी पंचांग को ले सकते हैं क्योंकि सभी पंचांगों में एक ही विधि से चंद्र स्पष्ट किया जायेगा तो इसी विधि से अन्य सभी पंचांगों द्वारा भी चंद्र स्पष्ट करना चाहिये। यहां हम श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग से चंद्र स्पष्ट करेंगे और इसके लिये वैशाख शुक्ल २०८२, २८ अप्रैल २०२५ से १२ मई २०२५ तक का पृष्ठ यहाँ दिया जा रहा है :

वैशाख शुक्ल २०८२, २८ अप्रैल २०२५ से १२ मई २०२५ तक
वैशाख शुक्ल २०८२, २८ अप्रैल २०२५ से १२ मई २०२५ तक

अभ्यास हेतु हम वैशाख शुक्ल तृतीया, बुधवार, आंग्ल दिनांक ३०/०४/२०२५ के दिन इष्टकाल १७/४४ का चंद्र स्पष्ट करेंगे। उपरोक्त तिथि को तात्कालिक नक्षत्र रोहिणी है और रोहिणी का मान २३/१९ है एवं भयात-भभोग हेतु हमें नक्षत्रारम्भ काल अर्थात पूर्व नक्षत्र के समाप्ति काल की भी आवश्यकता होगी। पूर्व नक्षत्र कृत्तिका है और उसका मान २९/०५ है।

इस प्रकार विवरण को ऐसे अंकित किया जा सकता है :

  • रोहिणी मान : २३/१९
  • गतनक्षत्र कृत्तिका मान : २९/०५
  • इष्टकाल : १७/४४
  • नक्षत्रारम्भ बिन्दु : ४०/०० (अर्थात १/१०/००/००)

भयात = (६० – २९/०५) + १७/४४ = ३०/५५ + १७/४४ = ४८/३९ = २९१९ पल
भभोग = (६० – २९/०५) + २३/१९ = ३०/५५ + १७/४४ = ५४/१४ = ३२५४ पल
घट्यात्मक चंद्र गति = ८०० ÷ ३२५४ = ०.२४६
चंद्र भुक्त नक्षत्र = २९१९ × ०.२४६ = ७१७/३८ = ११/५७/३८
तात्कालिक चंद्र = ४०/००/०० + ११/५७/३८ = ५१/५७/३८ = १/२१/५७/३८

उपरोक्त क्रिया के लिये ही त्रैराशिक विधि से भुक्त चंद्र अंशादि ज्ञात करके तात्कालिक चंद्र बनाने का जो सूत्र है वो इस प्रकार है : [{(८०० ÷ भभोग) × भयात} + नक्षत्रारम्भ बिन्दु]

तात्कालिक चंद्र बनाने का सूत्र
तात्कालिक चंद्र बनाने का सूत्र
  • = [{(८०० ÷ ३२५४) × २९१९} + ४०/००]
  • = ११/५७/३८ + ४०/००
  • = ५१/५७/३८ = १/२१/५७/३८

१ राशि में ३० अंश होता है, लब्ध कलात्मक चन्द्रभुक्त नक्षत्र को भी अंशादि बनाकर नक्षत्रारम्भ बिंदु जो अंशादि में है योग करने पर तात्कालिक चन्द्रमा का अंशादि ज्ञात होता है। लब्ध चंद्र अंशादि को राश्यादि बनाने के लिये प्रत्येक ३० अंश हेतु राशि स्थान पर १ दिया जाता है। ५१/५७/३८ अंशादि का तात्पर्य है कि अंश ५१ में से १ बार ३० निकाला जा सकता है इसलिये राशि स्थान पर १ स्थापित किया गया और अंश में २१ शेष रह गया और हो गया १/२१/५७/३८ अर्थात तात्कालिक चंद्र का मान; वृष राशि में २१ अंश ५७ कला और ३८ विकला है।

इसी प्रकार से अन्य पंचांगों द्वारा भी चंद्र स्पष्ट किया जा सकता है। यहां शताब्दि पंचांग को लेने का तात्पर्य यह है कि ये दृश्य पंचांग है।

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