जातक ज्योतिष में किसी भी फलादेश का मुख्य आधार जन्म कुंडली होता है। जन्मकुंडली में 12 भाव होते हैं और इन 12 भावों में जीवन के सभी आयाम सन्निहित रहते हैं। किन्तु कुंडली के भावों और फलादेश को समझने से पूर्व कुंडली बनाने का ज्ञान होना आवश्यक होता है। मुहूर्त शोधन हेतु जब कुंडली बनाना होता है तो झट-पट कुंडली निर्माण की भी विधि है और विस्तृत जन्म कुंडली बनाना हो तो उसके लिये जटिल विधि भी है। इस आलेख में हम जन्म कुंडली बनाना (janam kundli banana) सीखेंगे।
आओ झट-पट जन्म कुंडली बनाना सीखे ~ janam kundli banana sikhe
अब तक हमने सीखा है :
- घंटा-मिनट को घटी पल बनाना अर्थात दण्ड पल बनाना और घटी पल को घंटा मिनट बनाना।
- समय की इकाई में परिवर्तन करना।
- इष्टकाल बनाना।
- लग्नानयन अर्थात लग्न ज्ञात करना।
लग्न ज्ञात करने के बाद का कार्य होता है कुंडली निर्माण करना। जन्मपत्रिका में मूल रूप से दो प्रकार की कुंडली होती है एक लग्न कुंडली और दूसरी राशि कुंडली।
इसके पश्चात् आगे विस्तार होने पर चलित भाव कुंडली बनायी जाती है और उससे आगे बढ़ने पर नवांश कुंडली बनायी जाती है। तदुपरांत और भी कुंडली बनानी हो तो षड्वर्ग से षोडशवर्ग तक बनाया जाता है। किन्तु हमने अभी लग्न और अंश ज्ञात करना सीखा है और इसके द्वारा लग्न कुंडली व चंद्र कुंडली ही बनायी जा सकती है।
वर्त्तमान काल में कंप्यूटर/सॉफ्टवेयर प्रचलन होने के कारण प्रायः यह भ्रम उत्पन्न होता है कि किसी ज्योतिषी ने कुंडली बनायी हो अथवा कंप्यूटर से प्रिंट किया गया हो सामान ही होता है अथवा कोई भेद नहीं होता है। यह एक भ्रम है और प्रथमतया हम इस भ्रम के निवारण का प्रयास करेंगे, जिससे यदि आप ज्योतिष सीख रहे हैं तो जन्म कुंडली, जन्मपत्रिका बनाना मात्र सीखें ही नहीं अपितु बनायें भी।
ज्योतिष शास्त्रों में ज्योतिषी को दैवज्ञ भी कहा गया है, दैवज्ञ कथन का तात्पर्य दैवीय ज्ञान युक्त होना है। यह दैवीय ज्ञान अर्थात दैवज्ञता ब्राह्मण हेतु ही सम्भव है, कंप्यूटर अतिशीघ्र और अतिसूक्ष्म गणना प्रस्तुत कर सकता है किन्तु दैवज्ञ नहीं हो सकता क्योंकि “ईश्वर अंश जीव अविनाशी” का कंप्यूटर में वास नहीं होता है, अर्थात चैतन्यता नहीं होती। कंप्यूटर कार्य करता है, कंप्यूटर में भी ईश्वर का वास है क्योंकि एक भी ऐसा कण नहीं जो ब्रह्म से रहित हो। तथापि चैतन्यता का अभाव रहता ही है। दैवज्ञ विद्वान ब्राह्मण ही कहे जा सकते हैं।
दैवज्ञ के वचन का भी महत्व होता है और जन्मपत्रिका में जो दैवज्ञ फलादेश लिखते हैं वह दैवज्ञ वचन के ही समतुल्य होता है। कंप्यूटर दैवज्ञ नहीं होता अर्थात इसके द्वारा प्रिंट किये गये जन्मपत्रिका में दैवज्ञ वचन जैसा कोई प्रभाव नहीं होता है।
जो तंत्र कुछ दशक पूर्व तक ज्योतिष और ज्योतिषी का धुरविरोधी था, निंदा करता था, ठग घोषित कर चुका था वही तंत्र आज ज्योतिष के प्रचार-प्रसार में लगा है क्यों ? कभी विचार किया है आपने। वर्त्तमान में अब उस तंत्र ने भी ज्योतिष को अपने व्यापार का साधन बना लिया है, यथा कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, रत्न के नाम पर पत्थर इत्यादि बेचकर वो कमाई करने लगा है।
फिल्म-सीरियल में अभी भी आपको यही दिखाया जाता है कि पंडित गधा होता है, पंडित मूर्ख होता है, पंडित को अपमानित करना चाहिये। क्योंकि अभी भी उस तंत्र से अधिक पंडितों द्वारा ही कुंडली निर्माण किया जाता है। आप विचार कीजिये क्या आपको कभी किसी यजमान ने “ए पंडित” कहकर संबोधित किया है ? फिर फिल्मों में ऐसा ही क्यों दिखाया जाता है ? फिल्मों में ऐसा इसलिये दिखाया जाता है कि लोग यह सीखें और पंडितों के साथ ऐसा ही दुर्व्यवहार करें। और यही तंत्र है जो मानवाधिकार का भी ठेकेदार बनकर आतंकवादियों के लिये मानवाधिकार की लड़ाई लड़ता है।
यही तंत्र है जिसके कारण आतंकवादियों के बचाव में भी फिल्म बनाये जाते रहे हैं, नेता तो वोट की राजनीति के लिये ऐसा करते हैं। चूँकि भारत में भारतीय धर्म/संस्कृति को समाप्त नहीं कर पाये इसलिये अब उससे उगाही करने काम करने लगे। लाशों की पूजा करना सिखाने लगे, नये-नये देवताओं को जन्म देने लगे। मंदिर देवता का होता है स — ा — ईं देवता ही नहीं है तो उसका मंदिर कैसे बना, किसने बनाया ?
ब्राह्मण को भारत में देवता माना जाता है और यह शास्त्रों से माना जाता है : “तस्मात् ब्राह्मण देवता“, “नमो ब्रह्मण्यदेवाय” उसे यह तंत्र “ए पंडित” कहना सिखाने लगा, पंडित के साथ एक अपमानसूचक शब्द पोंगा को जोड़ दिया “पोंगा-पंडित“, जिसे “बाबा जी” कहा जाता था उसे “बबाजि, बबजिया” (अपमानजनक) कहने लगा, आदि-इत्यादि अनेकों कुकृत्य हैं, और आज वही तंत्र ज्योतिष का प्रचार-प्रसार कर रहा है।
मीडिया भी उसी तंत्र के मनोनुकूल चलती है और आज सभी मीडिया राशिफल के लिये एकाध घंटा का समय देती है, इस राशिफल के बहाने जो बताने वाले होते हैं वो भी उसी प्रकार की सामग्री प्रस्तुत करते हैं जो उस तंत्र के अनुकूल होता है यथा “प्रपोजल मुहूर्त”, इसी प्रकार मीडिया के साथ फिल्मों-सीरियलों-सोशलमीडिया में भी ज्योतिष के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया जा रहा है।
ये बाते मैं यूँ ही नहीं कह रहा हूँ, मुझे कॉल आती है इस यंत्र का प्रचार कीजिये (उपाय में धारण करना बताईये), अब सोचिये यंत्र मैं स्वयं दे सकता हूँ फिर किसी व्यापारी (संस्था/संगठन) के यंत्र को धारण करने के लिये क्यों बताऊँ किन्तु ये भिन्न विषय है, विषय यह है कि ज्योतिष को एक तंत्र ने व्यापार का साधन बना लिया है।
वही तंत्र कंप्यूटर/सॉफ्टवेयर/पत्थर और यहां तक कि यंत्र द्वारा भी धन की उगाही कर रहा है। वही तंत्र है जो मंदिरों में पुजारिओं के रुपये लेने को बंद करा रहा है जबकि ब्राह्मण के लिये शास्त्र से दान-दक्षिणा लेने की सिद्धि होती है और वही तंत्र है जो मंदिरों के बाहर भिखाड़ियों; जिसमें विधर्मी भी होते हैं, घुसपैठिये भी होते हैं; को धन देने के लिये प्रेरित भी करता है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि उस तंत्र ने “ज्योतिष को अपने व्यापार का साधन बना लिया है।”
यदि आप ज्योतिषी बनने जा रहे हैं तो इस तंत्र से आपको बचना होगा, आप अधिकतम उसकी गणना ले सकते हैं वो भी तब जब विस्तृत गणना करनी हो। सामान्य रूप से विस्तृत गणना अनिवार्य नहीं है। दैवज्ञ के वचन से जो कुंडली से अप्राप्य हो वो भी प्राप्त हो सकता है और जो अटल हो वो भी टल सकता है। ध्रुव, प्रह्लाद, मार्कण्डेय सबके लिये भगवान की कृपा कही जाती है किन्तु भगवान की कृपा प्राप्त होने का कारण पीछे दैवज्ञ था ये नहीं बताया जाता है। बृहस्पति ने जब स्वर्ग का त्याग कर दिया तो देवता भी श्रीहीन हो गये, मारे-मारे फिरने लगे।
यदि आप ज्योतिषी बनने जा रहे हैं तो इस तंत्र से आपको बचना होगा, आप अधिकतम उसकी गणना ले सकते हैं वो भी तब जब विस्तृत गणना करनी हो। सामान्य रूप से विस्तृत गणना अनिवार्य नहीं है। दैवज्ञ के वचन से जो कुंडली से अप्राप्य हो वो भी प्राप्त हो सकता है और जो अटल हो वो भी टल सकता है। ध्रुव, प्रह्लाद, मार्कण्डेय सबके लिये भगवान की कृपा कही जाती है किन्तु भगवान की कृपा प्राप्त होने का कारण पीछे दैवज्ञ था ये नहीं बताया जाता है। बृहस्पति ने जब स्वर्ग का त्याग कर दिया तो देवता भी श्रीहीन हो गये, मारे-मारे फिरने लगे।
अपडेट होने का अर्थ यह नहीं हो सकता है कि दैवज्ञ से अदैवज्ञ बन जायें। प्राचीन काल में दैवज्ञ आंखें बंद करके (ध्यान से ही) सब कुछ ज्ञात कर लेते थे, चाहे वो ध्यान में ही ग्रह गणना कर लेते हों अथवा इससे आगे की कोई अन्य विधा का प्रयोग करते हों, कुछ दशकों पूर्व तक पंचांगों से गणना करके लघु जन्मपत्रिका बनायी जाती थी किन्तु भविष्यवाणी सटीक होती थी। किन्तु एक विषय आ गया कि ध्यान लगाकर ज्ञात करने की विधा समाप्त हो गयी और पत्रिका पर निर्भर हो गये।
क्या इसे अपडेट होना कहते हैं ? इसी प्रकार अब कम्प्यूटर/सॉफ्टवेयर आदि प्रयोग करने को अपडेट होना सिद्ध किया जा रहा है और मोबाईल बाबा/ऑनलाइन बाबा आदि का जन्म होने लगा है किन्तु ये अपडेट होना नहीं है। ये हमें आगे नहीं पीछे धकेल रहा है। एक बार को भविष्यवाणी सटीक हो भी जाये किन्तु उपचार तो दैवज्ञ के बिना संभव नहीं है।
एक अन्य तथ्य यह भी है कि यदि हम कम्प्यूटर/सॉफ्टवेयर पर निर्भर हो जायें तो ये जो ज्योतिष गणित है इसका क्या होगा? ये तो लुप्त हो जाएगी अर्थात हम परोक्ष रूप से विद्या के ऊपर आघात करेंगे। यदि हम विद्या अर्थात सरस्वती का तिरष्कार करते हैं तो हम दैवज्ञ कैसे बन सकते हैं।
ये बातें निराधार नहीं हैं, जो व्यक्ति क्षणभर में गुणा-भाग भी कर लेता हो, उसे २-३ वर्ष के लिये कैलकुलेटर दे दीजिये वो सारा गुना-भाग भूल जायेगा। इसी प्रकार जब हम कुंडली के लिये कम्प्यूटर/सॉफ्टवेयर पर निर्भर हो जायेंगे तो ये ज्योतिष गणित जो कि विद्या है इसे भूल जायेंगे।
इतनी बड़ी भूमिका का तात्पर्य यह है कि यदि आपके मन में (ज्योतिषी के नाम पर) व्यापारी बनने की इच्छा हो भी तो उसे तिलांजलि देकर दैवज्ञ बनने का प्रयास करें।
यदि आप व्यापारी बनते हैं तो भी धनार्जन जितना संभव है उससे अधिक नहीं कर पायेंगे किन्तु परलोक में नरकगामी बनेंगे। | यदि आप दैवज्ञ बनते हैं तो भी धन की प्राप्ति होगी और व्यापारी बनकर जितना धनार्जन कर सकेंगे उसकी तुलना में कई गुना अधिक धन प्राप्त होगा किन्तु परलोक भी नहीं बिगड़ेगा। |
यदि आप व्यापारी बनते हैं तो सांसारिक रूप से (आत्मकल्याण का दिखावा) प्राप्त करेंगे। | यदि आप दैवज्ञ बनते हैं तो जनकल्याण करेंगे जो विद्या का सदुपयोग होगा। |
वास्तव में भारत को दैवज्ञों की आवश्यकता है, ज्योतिष के नाम पर व्यापारियों की नहीं और हमारा उद्देश्य है कि यदि आपकी ज्योतिष में रूचि रखते हैं तो आपको दैवज्ञ बनना चाहिये, व्यापारी ज्योतिषी नहीं। दैवज्ञ के लिये विस्तृत कुंडली होना अनिवार्य नहीं होता है, दैवज्ञ मात्र जन्मकुंडली और दशान्तर्दशा से ही सटीक फलादेश कर सकता है। एवं फलादेश मात्र ही नहीं कर सकता है उपचार भी कर सकता है।
मार्कण्डेय की तो एक कथा है कि दैवज्ञ द्वारा बताये गए उपाय से वो अल्पायु से चिरंजीवी हो गये, इसके अतिरिक्त भी अनगिनत कथायें हैं जिसमें अपुत्रयोग होने पर भी दैवज्ञ के बताये उपाय से पुत्र की प्राप्ति हुयी, अल्पायु भी दीर्घायु हो गया। ये व्यापारी ज्योतिष के उपाय से संभव नहीं है, दैवज्ञ के लिये असंभव नहीं है। यदि आपने सत्यनारायण व्रत कथा को भी पढ़ा है तो उसमें पढ़ा होगा “वृद्धब्राह्मणरूपेण” भगवान को स्वयं भी कोई उपाय बताना था तो दैवज्ञ-ब्राह्मण बनकर आये क्योंकि दैवज्ञ के बताये उपाय से ही सिद्धि संभव है।
जन्म कुंडली बनाना – janam kundli banana
अब आइये मुख्य विषय कुंडली बनाने पर आते हैं। हमारे पास पूर्व के आलेखों से जन्मसमय, स्थान, इष्टकाल और लग्न उपलब्ध है यदि आपने पूर्व आलेखों को नहीं पढ़ा है तो पहले पूर्व के सभी आलेखों को पढ़ें तत्पश्चात आगे कुंडली बनाना सीखें। ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
हमारे पास पूर्व आलेखों में सीखने के लिये अभ्यासात्मक 3 इष्टकाल और लग्न हैं जिसके लिये जन्म कुंडली / लग्न कुंडली निर्माण करके जन्म कुंडली बनाना सीखेंगे। किन्तु उससे पूर्व हमें जन्मकुंडली के बारे में कुछ जानना और समझना आवश्यक है। यहां एक जन्म कुंडली का प्रारूप दिया गया है जिसके आधार पर समझा जा सकता है :
- कुंडली में 12 घर होते हैं जिसे भाव/गृह आदि कहा जाता है।
- जिस घर में १ (1) लिखा है उसे लग्न कहते हैं, भाव के रूप में प्रथम भाव कहते हैं।
- भाव की गणना अपसव्य क्रम से जिसे एंटी क्लॉक कहा जाता है की जाती है।
- इस प्रकार से प्रत्येक भावों में 1, 2, 3 … 12 आदि लिखे गए हैं।
- जिसमें २ (2) लिखा है वो द्वितीय भाव है, ३ से तृतीय भाव … १२ से द्वादश भाव समझें।
- प्रथम भाव को ही लग्न कहा जाता है और जो लग्न ज्ञात होता है उसकी राशि संख्या प्रथम भाव में अंकित की जाती है। तदुपरांत उससे आगे के भावों में क्रमशः सभी राशियां अंकित की जाती है।
- फिर जो ग्रह जिस राशि में होता है उसका पंचांग से अवलोकन करके उस राशि में स्थापित किया जाता है।

- भाव संख्या लग्न से ही गिनी जाती है, किन्तु लग्न में कोई भी राशि जो लग्न ज्ञात हो अंकित की जा सकती है।
- किसी भी भाव में जो संख्या अंकित की जाती है वह भाव का बोध नहीं अपितु राशि का बोध कराती है।
- कुंडली के ऊपर देखें वहां अंकित है “लग्न : ०/१३/२५” जिसका तात्पर्य है मेष लग्न के १३ अंश २५ कला।
- मेष राशि की संख्या १ है अतः प्रथम भाव में १ लिखा गया है।
- उससे अगले भावों में २, ३ आदि अंकित किया गया है।
- यदि लग्न कुम्भ होता तो प्रथम भाव में ११, द्वितीय भाव में १२, तृतीय भाव में १ क्रम से द्वादश भाव में १० लिखा जाता।
नीचे तीनों उदाहरण के विवरण दिये गये हैं :
विवरण | प्रथम | द्वितीय | तृतीय |
---|---|---|---|
तिथि | माघ शुक्ल प्रतिपदा, गुरुवार | माघ शुक्ल पंचमी, सोमवार | माघ शुक्ल नवमी, गुरुवार |
दिनांक | ३०/०१/२०२५ | ३/०२/२०२५ | ६/०२/२०२५ |
समय | पूर्वाह्न ९/४१ (9:41 am) | रात्रि ११/१३ (11:13 pm | रात्रि २/१९ (2:19 am) |
स्थान | अयोध्या | कुरुक्षेत्र | बद्रीनाथ |
इष्टकाल (+) | ६/३४/३० | ३९/३५/३० | ४७/५२/२० |
सूर्य राश्यादि | ०९/१६/४३/०६ | ०९/२०/४७/३० | ०९/२३/५०/२४ |
चन्द्र राशि | मकर | मीन | वृष |
लग्न | ११/०७ | ५/२६ | ७/१२ |
- प्रथम उदाहरण का लग्न ११/०७ है अर्थात मीन (१२) राशि का ७ अंश और प्रथम उदाहरण कुंडली के लग्न में १२ अंकित करेंगे।
- द्वितीय उदाहरण लग्न है ५/२६ अर्थात कन्या (६) राशि का २६ अंश और द्वितीय उदाहरण कुंडली के लग्न में ६ अंकित करेंगे।
- तृतीय उदाहरण लग्न है ७/१२ अर्थात वृश्चिक (८) राशि का १२ अंश और तृतीय उदाहरण कुंडली के लग्न में ८ अंकित करेंगे।



उपरोक्त तीनों लग्नों के लियें कुंडली में इस प्रकार राशि लिखा जायेगा। यहां तीन उदाहरण दिये गये हैं जिसके कारण भली-भांति समझा जा सकता है। यदि एक उदाहरण होते तो समझने में समस्या होती। अब हम ग्रहों की राशि देखकर तदनुसार उस संख्या वाले घर में उस ग्रह का स्थापन करेंगे।
नीचे माघ शुक्ल पक्ष 2025 की ग्रह स्फुट सारणी वाला पृष्ठ संलग्न किया गया है जिसमें देखा जा सकता है किन्तु अधिक वहां से हम ग्रहों की राश्यादि का यहां पहले उल्लेख करेंगे तदुपरांत ग्रह स्थापित करके कुंडली देखेंगे। सूर्य और चंद्र की राशि ऊपर के विवरण में अंकित है और नीचे की सारणी से भौमादि राशियों की राश्यादि हमें लेना है :

ग्रह | प्रथम कुंडली – लग्न ११/०७ | द्वितीय कुंडली – लग्न ५/२६ | तृतीय कुंडली – लग्न ७/१२ |
---|---|---|---|
सूर्य | ०९/१६/४३/०६ (मकर) | ०९/२०/४७/३० (मकर) | ०९/२३/५०/२४ (मकर) |
चन्द्र | मकर | मीन | वृष |
मंगल | ०२/२७/९/२० (मिथुन) | ०२/२५/४७/३५ (मिथुन) | ०२/२४/५९/४३ (मिथुन) |
बुध | ०९/१४/३०/१३ (मकर) | ०९/२१/३८/०४ (मकर) | ०९/२६/५२/१० (मकर) |
गुरु | ०१/१७/३८/५२ (वृष) | ०१/१७/३३/०५ (वृष) | ०१/१७/३१/३९ (वृष) |
शुक्र | ११/००/२०/०४ (मीन) | ११/०३/११/४७ (मीन) | ११/०४/५५/०५ (मीन) |
शनि | १०/२०/२०/०९ (कुम्भ) | १०/२०/४७/०१ (कुम्भ) | १०/२१/०७/४६ (कुम्भ) |
केतु | ०५/०७/५७/१७ (कन्या) | ०५/०७/४४/३४ (कन्या) | ०५/०७/३५/०१ (कन्या) |
ऊपर ग्रह स्पष्ट जो पंचांग में अंकित है दिया गया है, तात्कालिक ग्रहस्पष्ट करना आगे सीखेंगे अभी इसी स्थिति के अनुसार ग्रहों को उक्त कुंडली में स्थापित करेंगे।



इस प्रकार से तीनों उदाहरण की कुंडल बन गयी है। प्रथम चरण में लग्न के अनुसार कुंडली में राशियों के अंक लिखे गये। द्वितीय चरण में ग्रहों की राश्यादि पंचांग से प्राप्त करके उनकी राशि के अनुसार कुंडली में स्थापन किया गया। दोनों विधि के लिये अलग-अलग से तीन उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं।
अब हम अगले चरण में उपरोक्त पूर्ण क्रिया का अनुसरण करते हुये तीन और कल्पित (उदाहरण) समय की कुंडली बनायेंगे। यहां वो समय भी दे रहे हैं जिसका आपको अभ्यास करना है और जब तीनों कुंडली बना लें तो उक्त आलेख में मिलान करें। अगले तीनों उदाहरण कुंडली का निर्माण हम हृषीकेश पंचांग के आधार पर करेंगे यदि आपके पास हृषीकेश पंचांग न हो तो जो भी पंचांग हो उसी से अभ्यास कर सकते हैं अंतर थोड़ा-बहुत ही आयेगा।
विवरण | प्रथम | द्वितीय | तृतीय |
---|---|---|---|
तिथि | पौष शुक्ल प्रतिपदा, मंगलवार | पौष शुक्ल अष्टमी, मंगलवार | पौष शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार |
दिनांक | ३१/१२/२०२४ | ७/०१/२०२५ | १३/०१/२०२५ |
समय | मध्याह्न ११/४१ (11:41 am) | रात्रि १०/३७ (10:37 pm) | रात्रि ३/१५ (3:15 am) |
स्थान | मथुरा | हरिद्वार | देवघर |
देशांतर | (-) २९/१६ (मिनट/सेकेंड) | (-) १७/०८ (मिनट/सेकेंड) | (+) १६/४८ (मिनट/सेकेंड) |
आगे जाकर हम सूक्ष्म लग्नानयन विधि का भी अध्ययन करेंगे और उस समय उपरोक्त सभी विषयों को भी समझेंगे, परन्तु अभी हम सारणी विधि से लग्न ज्ञात करके कुंडली निर्माण करना ही सीखेंगे।
निष्कर्ष : जन्मपत्रिका निर्माण की सामान्य प्रक्रिया के अनुसार लग्न ज्ञात करने के पश्चात् सर्वप्रथम जन्मकुंडली निर्माण किया जाता है। पूर्व आलेखों में तीन उदाहरण देते हुये लग्न ज्ञात किया गया था। इस आलेख में उस लग्न के अनुसार जन्म कुंडली निर्माण की विधि बताई गयी है। इसके साथ ही अभ्यासार्थ तीन तीन जन्म कुंडली बनाने के लिये विवरण भी दिये गए हैं जिसकी कुंडली अगले आलेख में बनायी जाएगी।
ज्योतिष गणित सूत्र
- दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
- घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
- इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5
विद्वद्जनों से पुनः आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।
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