अब तक हम समय संस्कार, इष्टकाल, लग्नानयन और जन्म कुंडली बनाना (janam kundli banana) समझ चुके हैं। पूर्व आलेख में अभ्यास हेतु ३ विवरण दिये गये थे जिनकी जन्म कुंडली बनाने तक की सम्पूर्ण क्रिया का अभ्यास हृषीकेश पंचांग से करना था। आज हम उसी तीनों विवरण के अनुसार हृषीकेश पंचांग से जन्म कुंडली बनाकर देंखेंगे, इसके लिये सर्वप्रथम समय संस्कार, इष्टकाल, लग्नानयन करेंगे और तत्पश्चात कुंडली बनाकर ग्रह स्पष्ट के अनुसार ग्रह स्थापन करेंगे।
हृषीकेश पंचांग से जन्म कुंडली बनाना सीखे ~ janam kundli banana sikhe
अब तक हमने सीखा है :
- घंटा-मिनट को घटी पल बनाना अर्थात दण्ड पल बनाना और घटी पल को घंटा मिनट बनाना।
- समय की इकाई में परिवर्तन करना।
- इष्टकाल बनाना।
- लग्नानयन अर्थात लग्न ज्ञात करना।
- जन्म कुंडली बनाना
हमारे पास पूर्व के आलेख से जन्मसमय, स्थान आदि का विवरण उपलब्ध है जिसके लिये अभ्यास करना है और ये अभ्यास हृषीकेश पंचांग से करेंगे। यदि आपने पूर्व आलेखों को नहीं पढ़ा है तो पहले पूर्व के सभी आलेखों को पढ़ें, स्वयं अभ्यास करें, यदि हृषीकेश पंचांग अनुपलब्ध हो तो जो पंचांग उपलब्ध हो उसी पंचांग से स्वयं अभ्यास कर लें तत्पश्चात आगे हृषीकेश पंचांग से कुंडली बनाना सीखें। ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
हृषीकेश पंचांग से अभ्यास करने हेतु विवरण इस प्रकार है :
विवरण | प्रथम | द्वितीय | तृतीय |
---|---|---|---|
तिथि | पौष शुक्ल प्रतिपदा, मंगलवार | पौष शुक्ल अष्टमी, मंगलवार | पौष शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार |
दिनांक | ३१/१२/२०२४ | ७/०१/२०२५ | १३/०१/२०२५ |
समय | मध्याह्न ११/४३ (11:43 am) | रात्रि १०/३१ (10:31 pm) | रात्रि ३/१५ (3:15 am) |
स्थान | मथुरा | हरिद्वार | देवघर |
देशांतर | (-) १९/१६ (मिनट/सेकेंड) | (-) १७/०८ (मिनट/सेकेंड) | (+) १६/४८ (मिनट/सेकेंड) |
सभी पंचांगों में उस पंचांग से जन्मकुंडली बनाने की विधि बताई गयी होती है और उपयोग हेतु देशांतर-वेलांतर सारणी, प्रथम लग्न सारणी, दशम लग्न सारणी आदि दिया जाता है। किन्तु जो विधि बताई गयी होती है वो उस पंचांग विशेष हेतु ही बताई गयी होती है उस विधि के अनुसार अन्य पंचांग से गणित नहीं किया जा सकता है। हम जन्म कुंडली बनाने की जो विधि सीख रहे हैं वो किसी भी पंचांग से बना सकें वो विधि सीख रहे हैं, किसी एक पंचांग से ही बनाने की विधि नहीं सीख रहे हैं।
इस विधि हेतु आपके लिये सर्वप्रथम आवश्यक होता है जिस पंचांग का आप उपयोग कर रहे हैं उस पंचांग के गणितीय आधार को जानना।
पूर्व आलेख में जब हम अक्षांश-रेखांश, देशांतर-वेलांतर की चर्चा कर रहे थे तो इस विषय की चर्चा भली भांति की गयी थी। तदनुसार हमें यहां सर्वप्रथम हृषीकेश पंचांग का निर्माण जिस अक्षांश-रेखांश-पलभा आदि पर किया गया है वो ज्ञात होना चाहिये और यदि आपने अभ्यास किया है तो भी आपने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया होगा। विवरण में जो देशांतर दी गयी है उसे नहीं समझ पाये होंगे। हम यहीं से प्रारम्भ करेंगे और सर्वप्रथम इसी को समझेंगे।
जिससे आगे जब अन्य पंचांगों से कुंडली निर्माण करने के लिये अभ्यास दिया जायेगा तो उस समय आपको कोई समस्या न हो, अन्यथा यदि किसी एक पंचांग से कुंडली बनाने की विधि सीखेंगे तो उस विधि के अनुसार अन्य पंचांग से शुद्ध कुंडली नहीं बना पायेंगे।
पंचांग के प्रथम (आवरण) पृष्ठ पर ही उपरोक्त विवरण अंकित है, जो इस प्रकार है : देशांतर : १/९, अक्षांश २५/१८, पलभा ५/४५, ! इसी प्रकार देशांतर सारणी के ऊपर में ग्रीनव्हिच से भी देशांतर अंकित है जो १३ घटी ५० पल बताया गया है।
वेलांतर सारणी अनुपलब्ध है ऐसा कहना ठीक नहीं होगा संभव है कि मुझे न दिखी हो। और वेलांतर का समायोजन इस पंचांग में रेलवे मिनट में किया गया हो यह भी संभव है, क्योंकि पाक्षिक पंचांग पृष्ठों पर रेलवे मिनट अंकित है और इष्टकाल साधन में रेलवे मिनट का संस्कार करने के लिये कहा गया है।

इसकी पुष्टि भी होती है, १४-१५ जून और २५-२६ दिसंबर को वेलांतर ० मिनट होता है जिस दिन रेलवे मिनट अंतर (-) २ मिनट दिया गया है जो मिर्जापुर (८२/३० पूर्व रेखांश) से वाराणसी का देशांतर है। आगे पौष मास शुक्ल पक्ष के पंचांग का अंश भी दिया गया है जिसमें आपको रेलवे मिनट अन्तर दिखेगा और २५ – २६ जून को वह २ मिनट ऋण अंकित है। किन्तु मुख्य (आवरण) पृष्ठ पर जो देशांतर १/९ मिनट अंकित है इससे मेल होता नहीं है।
हमें काशी का रेखांश ज्ञात है तथापि पंचांग में अंकित देशांतर के आधार पर काशी का रेखांश ज्ञात करेंगे जिससे एक ऐसा अभ्यास हो जायेगा कि हम किसी भी पंचांग का रेखांश यदि उसमें अंकित न भी हो तो ज्ञात कर सकेंगे।
अंकित देशांतर १/९ का तात्पर्य है धन १ मिनट ९ सेकेंड। रेखांश से देशांतर ज्ञात करने की चर्चा पूर्व में हो चुकी है यहां हमें देशांतर प्राप्त होता है जिसके आधार पर रेखांश ज्ञात करना है और इसके लिये विपरीत विधि का अनुसरण करेंगे अर्थात देशांतर (मिनटादि) को ४ से विभाजित करेंगे क्योंकि रेखांश के अंतर को ४ से गुणित करने पर देशांतर (मिनटादि) होता है।
- १ मिनट ९ सेकेण्ड = ६९ सेकेण्ड
- = ००/६९ ÷ ४
- = ००/१७
- + ८२/३० पूर्व (मानक रेखांश मिर्जापुर, भारत)
- = ८२/४७ पूर्व (हृषीकेश पंचांग के आवरण पर अंकित १/९ देशांतर से ज्ञात रेखांश)
इस प्रकार हमें हृषीकेश पंचांग के आवरण पर अंकित १/९ देशांतर से ८२/४७ पूर्व रेखांश ज्ञात होता है किन्तु यदि हम रेलवे मिनट अंतर और देशांतर सारणी के ऊपर अंकित घटीपलात्मक देशांतर के आधार पर ज्ञात करें तो ८३/०० पूर्व ज्ञात होता है जो कि वाराणसी का रेखांश है। आगे देखें :
- रेलवे मिनट अन्तर (+) २ मिनट के आधार पर
- = ००/१२० (मिनट/सेकंड)
- = ००/१२० ÷ ४
- = ००/३०
- + ८२/३० पूर्व (मानक रेखांश मिर्जापुर, भारत)
- = ८३/०० पूर्व (हृषीकेश पंचांग के आवरण पर अंकित १/९ देशांतर से ज्ञात रेखांश)
- १३ घटी ५० पल ग्रीनव्हिच से वाराणसी का देशांतर घंटा/मिनट करने पर ५/३२
- = ३३२ मिनट
- = ३३२/०० (मिनट/सेकंड)
- = ३३२/०० ÷ ४
- = ८३/०० पूर्व (हृषीकेश पंचांग के देशांतर सारणी में वाराणसी के अंकित घट्यादि १३/५० से ज्ञात रेखांश)
यदि हम अन्य माध्यमों से वाराणसी का रेखांश ज्ञात करते हैं तो हमें ८३/०० पूर्व ही ज्ञात होता है। आवरण पृष्ठ पर अंकित धन १ मिनट ९ सेकेंड देशांतर से यह मेल नहीं कहता है जो कि उसी पंचांग में दिये रेलवे मिनट अंतर से ज्ञात देशांतर और ग्रीनव्हीच से काशी का घट्यादि १३/५० देशांतर से ही किया गया है। रेलवे मिनट अंतर जब शून्य वेलांतर हो तो (+) १/०९ मिनट होना चाहिये था और ग्रीनव्हीच से काशी का घट्यादि देशांतर १३/४७/५० होना चाहिये था।
हमें वास्तविक देशांतर-वेलांतर करना है इसलिये हम ८२/३० मानक रेखांश से देशांतर ज्ञात करेंगे। रेलवे मिनट अंतर और काशी से देशांतर करके भी समान ही होगा किन्तु सभी पंचांगों में रेलवे मिनट अंतर नहीं होता है।
इसके लिये हमें अभ्यासार्थ प्रदत्त जन्म स्थानों का रेखांश भी ज्ञात करना होगा जो इस प्रकार है :
जन्मस्थानवशात् | मथुरा | हरिद्वार | देवघर |
---|---|---|---|
अक्षांश | २७/२८ उत्तर | २९/५८ उत्तर | २४/३० उत्तर |
रेखांश | ७७/४१ पूर्व | ७८/१३ पूर्व | ८६/४२ पूर्व |
काशी से देशांतर | ७७/४१ – ८३/०० = (-) ५/१९ × ४ = (-) २१/१६ (मि/से.) | ७८/१३ – ८३/०० = (-) ४/४७ × ४ = (-) १९/०८ (मि/से.) | ८६/४२ – ८३/०० = ३/४२ × ४ = (+) १४/४८ (मि/से.) |
देशांतरसारणी से प्राप्त देशांतर | ५३/१० (पलादि) ÷ २.५ = (-) २१/१६ (मि/से.) | ४७/५० (पलादि) ÷ २.५ = (-) १९/०८ (मि/से.) | ३७/३० (पलादि) ÷ २.५ = (+) १५/०० (मि/से.) |
मानक रेखांश से देशांतर | (-) १९/१६ (मि/से.) | = (-) १७/०८ (मि/से.) | = (+) १६/४८ (मि/से.) |
अब हम बेलांतर के लिये भी मिनट से साथ सेकेंड वाली सारणी का उपयोग करेंगे। प्राचीन काल में मिनट का शुद्ध होना भी संदेह के घेरे में ही रहता है क्योंकि सबकी घड़ी या तो कुछ आगे रखने की परंपरा थी अथवा धीमी होने पर स्वतः पीछे हो जाती थी जिसे कुछ दिन पर अथवा प्रतिदिन रेडियो आदि के माध्यम से मिलाया जाता था।
वर्त्तमान काल में जन्म समय का भी सेकेंड दिया जाने लगा है भले ही वह अशुद्ध ही क्यों न हो। देशांतर हेतु हम सेकेंड का भी प्रयोग करते हैं तो बेलांतर के लिये भी हम सेकेंड का भी प्रयोग करेंगे और इसके लिये नीचे सारणी भी दी जा रही है उपयोग हेतु इसे डाउनलोड भी कर सकते हैं।
इस बेलांतर सारणी से हमें तीनों दिनों का बेलांतर इस प्रकार ज्ञात होता है :
- ३१/१२/२०२४ : (-) ३:०४ (मिनट/सेकंड)
- ७/०१/२०२५ : (-) ५:५६ (मिनट/सेकंड)
- १३/०१/२०२५ : (-) ८:२४ (मिनट/सेकंड)
जन्म कुंडली बनाना – janam kundli banana

अब हम हृषीकेश पंचांग के आधार पर तीनों विवरण के आधार पर जन्म कुंडली बनायेंगे जिसके लिये देशांतर और बेलांतर हमनें पंचांग से नहीं लिया है अपितु देशांतर ज्ञात किया है और बेलांतर एक अन्य सारणी से लिया है जिसमें मिनट के साथ सेकंड भी है। ऊपर दिये गये हृषीकेश पंचांग के संबंधित पृष्ठ से सूर्योदय, सूर्य राश्यादि (औदयिक) लेने के पश्चात् अब सभी विवरण इस प्रकार है :
विवरण | प्रथम | द्वितीय | तृतीय |
---|---|---|---|
तिथि | पौष शुक्ल प्रतिपदा, मंगलवार | पौष शुक्ल अष्टमी, मंगलवार | पौष शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार |
दिनांक | ३१/१२/२०२४ | ७/०१/२०२५ | १३/०१/२०२५ |
समय | मध्याह्न ११/४१ (11:41 am) | रात्रि १०/३७ (10:37 pm) | रात्रि ३/१५ (3:15 am) |
स्थान | मथुरा | हरिद्वार | देवघर |
देशांतर | (-) १९/१६ (मिनट/सेकेंड) | (-) १७/०८ (मिनट/सेकेंड) | (+) १६/४८ (मिनट/सेकेंड) |
बेलांतर | (-) ३/०४ (मिनट/सेकंड) | (-) ५/५६ (मिनट/सेकंड) | (-) ८/२४ (मिनट/सेकंड) |
सूर्योदय | ६/४७ | ६/४५ | ६/४३ |
सूर्य राश्यादि | ८/१५/१८/१० | ८/२२/२८/०६ | ८/२८/३६/२२ |
उपरोक्त विवरण के अनुसार अब हम गणित करके पहले स्थानीय जन्म समय, फिर इष्टकाल तत्पश्चात लग्न ज्ञात करेंगे। अब सभी गणितीय क्रियाओं का विश्लेषण अपेक्षित नहीं है क्योंकि पूर्व आलेखों में विस्तृत विश्लेषण किया जा चुका है। आइये गणितीय विधि को समझते हैं :
प्रथम अभ्यास
- ११/४१ जन्म समय (-) ०/२९/१६ देशांतर
- = ११/२१/४४ (-) ०/३/०४ बेलांतर
- = ११/१८/४० (स्थानीय जन्म समय) – ६/४७ (सूर्योदय)
- = ४/३१/४० × २.५
- = ११/१९/१० इष्टकाल अथवा ११/१९
औदयिक सूर्य राश्यादि ८/१५/१८/१० जिसमें सूर्य कला १८ है एवं इष्ट दण्ड ११ है अर्थात अनुमानित स्पष्ट सूर्य की कला २९ होगी अर्थात प्रथम अभ्यास में अंश परिवर्तन नहीं होगा। सूर्य धनु राशि के १५ अंश पर है और हमें प्रथम लग्न सारणी से धनु के १५ अंश का मान ज्ञात करके उसमें इष्टकाल का योग करना है और लब्धि को पुनः प्रथम लग्न सारणी में देखना है। लब्धि के निकटतम मान वाली राशि और अंश ही लग्न और अंश होगा।
- ४८/२२/४३ (प्रथम लग्नसारणी से ८/१५ का मान) + ११/१९ (इष्टकाल)
- ५९/४१/४३ (लब्धि),
- लब्धि का निकटतम मान ५९/४५/०१
- = ११/०५ (निकटतम मान ५९/४५/०१ का राशि और अंश)
- लग्न : ११/०५

द्वितीय अभ्यास
- १०/३७ (रात्रि) = २२/३७ जन्म समय (-) ०/१७/०८ देशांतर
- = २२/१९/५२ (-) ०/५/५६ बेलांतर
- = २२/१३/५६ (स्थानीय जन्म समय) – ६/४५ (सूर्योदय)
- = १५/२८/५६ × २.५
- = ३८/४२/२० इष्टकाल अथवा ३८/४२
औदयिक सूर्य राश्यादि ८/२२/२८/०६ जिसमें सूर्य कला २८ है एवं इष्ट दण्ड ३८ अथवा ३९ के निकट है अर्थात अनुमानित स्पष्ट सूर्य की कला ६६ होगी अर्थात द्वितीय अभ्यास में अंश परिवर्तन होगा और सूर्य का राशि/अंश हो जायेगा ८/२३ । सूर्य धनु राशि के २३ अंश पर है और हमें प्रथम लग्न सारणी से धनु के २३ अंश का मान ज्ञात करके उसमें इष्टकाल का योग करना है और लब्धि को पुनः प्रथम लग्न सारणी में देखना है। लब्धि के निकटतम मान वाली राशि और अंश ही लग्न और अंश होगा।
- ४९/४३/४७ (प्रथम लग्नसारणी से ८/२३ का मान) + ३८/४२ (इष्टकाल)
- ८८/२५/४७ अर्थात २८/२५/४७ (लब्धि),
- लब्धि का निकटतम मान २८/३०/१७
- = ४/२९ (निकटतम मान २८/३०/१७ का राशि और अंश)
- लग्न : ४/२९
तृतीय अभ्यास
- ३/१५ (रात्रि) = २७/१५ जन्म समय (+) ०/१६/४८ देशांतर
- = २७/३१/४८ (-) ०/८/२४ बेलांतर
- = २७/२३/२४ (स्थानीय जन्म समय) – ६/४३ (सूर्योदय)
- = २०/४०/२४ × २.५
- = ५१/४१ इष्टकाल
औदयिक सूर्य राश्यादि ८/२८/३६/२२ जिसमें सूर्य कला ३६ है एवं इष्ट दण्ड ५१ अथवा ५२ के निकट है अर्थात अनुमानित स्पष्ट सूर्य की कला ८७ होगी अर्थात तृतीय अभ्यास में अंश परिवर्तन होगा और सूर्य का राशि/अंश हो जायेगा ८/२९ । सूर्य धनु राशि के २९ अंश पर है और हमें प्रथम लग्न सारणी से धनु के २९ अंश का मान ज्ञात करके उसमें इष्टकाल का योग करना है और लब्धि को पुनः प्रथम लग्न सारणी में देखना है। लब्धि के निकटतम मान वाली राशि और अंश ही लग्न और अंश होगा।
- ५०/४४/२५ (प्रथम लग्नसारणी से ८/२९ का मान) + ५१/४१ (इष्टकाल)
- १०२/२६/२६ अर्थात ४२/२६/२६ (लब्धि),
- लब्धि का निकटतम मान ४२/२८/०१
- = ७/१३ (निकटतम मान २८/३०/१७ का राशि और अंश)
- लग्न : ७/१३
लग्न कुंडली निर्माण
अब हम कुंडली निर्माण करेंगे और इसके लिये हमें पंचांग के दैनिक ग्रह स्पष्ट राश्यादि से ग्रहों के राश्यादि की भी आवश्यकता होगी। सूर्य की राश्यादि प्रथम ही ग्रहण की जा चुकी है, हृषीकेश पंचांग के संलग्न पृष्ठ से चंद्र व कुजादि ग्रहों राश्यादि ग्रहण करने पर इस प्रकार विवरण प्राप्त होता है :
ग्रह | प्रथम कुंडली – लग्न ११/०५ | द्वितीय कुंडली – लग्न ४/२९ | तृतीय कुंडली – लग्न ७/१३ |
---|---|---|---|
सूर्य | ८/१५/१८/१० (धनु) | ८/२२/२८/०६ (धनु) | ८/२८/३६/२२ (धनु) |
चन्द्र | धनु | मेष | मिथुन |
मंगल | ३/०९/२९/०५ (कर्क) | ३/०७/०२/५९ (कर्क) | ३/०४/३५/२९ (कर्क) |
बुध | ७/२२/१७/३९ (वृश्चिक) | ८/०१/१७/०० (धनु) | ८/१०/११/२९ (धनु) |
गुरु | १/२०/४४/१३ (वृष) | १/२०/०३/०८ (वृष) | १/१९/३३/२१ (वृष) |
शुक्र | १०/०१/२८/२३ (कुम्भ) | १०/०८/४६/३५ (कुम्भ) | १०/१४/२७/३१ (कुम्भ) |
शनि | १०/१६/१७/२६ (कुम्भ) | १०/१६/४७/४६ (कुम्भ) | १०/१७/१९/५४ (कुम्भ) |
राहु | ११/०७/१२/२६ (मीन) | ११/०६/५०/१० (मीन) | ११/०६/३१/०५ (मीन) |



आगे जाकर हम सूक्ष्म लग्नानयन विधि का भी अध्ययन करेंगे और उस समय उपरोक्त सभी विषयों को भी समझेंगे, परन्तु अभी हम सारणी विधि से लग्न ज्ञात करके कुंडली निर्माण करना ही सीखेंगे।
निष्कर्ष : जन्मपत्रिका निर्माण अर्थात जन्मकुंडली बनाना सीखने का वास्तविक तात्पर्य है सभी पंचांगों से कुंडली बनाने का ज्ञान होना। यदि किसी एक पंचांग से जन्म कुंडली बनाना सीख भी लेते हैं तो अन्य पंचांगों से नहीं बना सकते। यहां सभी पंचांगों से कुंडली बनाने की विधि बताते हुये हृषीकेश पंचांग से तीन कुंडली बनाकर दिखाया गया है। इसके लिये रेखांश से देशांतर और मिनट के साथ सेकंड में भी बेलांतर वाली सारणी का प्रयास किया गया है। इस प्रकार से अभ्यास करने पर किसी भी पंचांग से कुंडली बनाना सीखा जा सकता है।
ज्योतिष गणित सूत्र
- दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
- घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
- इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5
विद्वद्जनों से पुनः आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।
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