अब तक हम क्रमशः समय संस्कार से लेकर अंतर्दशा अन्तर्दशा अंकन करने तक की सभी गणितीय प्रक्रिया को समझ चुके हैं और विभिन्न पंचांगों को देखना भी सीख चुके हैं साथ ही मिथिला पंचांग से जन्म पत्रिका निर्माण करने का यह प्रथम भाग भी जान चुके हैं। हमने अब तक जिस सामान्य जातक गणित को समझा है उसका अनुकरण करते हुये यहां हृषीकेश पंचांग से एक जन्म पत्रिका निर्माण करके देखेंगे अर्थात हस्तलिखित जन्मपत्री कैसे बनाएं (janam patri nirman) जानेंगे।
हृषीकेश पंचांग से जन्मपत्री कैसे बनाएं प्रथम भाग – janam patri nirman
अब तक हमने सीखा है :
“ज्योतिष सीखें” से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
पूर्व आलेख में हमने मिथिला पंचांग (विश्वविद्यालय पंचांग) से जन्मपत्री कैसे बनायें समझ चुके हैं साथ ही हमने ऐसी विधि से जन्म पत्रिका बनाना सीखा है कि किसी भी पंचांग से जन्मपत्रिका बना सकें। किन्तु धैर्य रखें ये स्थूल विधि थी और एक अन्य पंचांग से इस स्थूल विधि की पुनरावृत्ति अपेक्षित है जिससे किसी भी पंचांग से जन्म पत्रिका बनाने में कोई समस्या उत्पन्न न हो। इसके लिये अब हम हृषीकेश पंचांग से एक जन्मपत्रिका निर्माण करके देखेंगे।
एक सत्य को अस्वीकार करना कदापि उचित नहीं होगा और वो सत्य यह है कि अधिकांश ज्योतिषी स्थूल जन्मपत्रिका निर्माण भी मात्र किसी एक पंचांग से ही कर पाते हैं अन्य पंचांगों से नहीं, और अब तो नये-नये ज्योतिषी किसी एक पंचांग से भी स्थूल जन्मपत्री बना लें वही बड़ी बात होगी क्योंकि सबके हाथ में मोबाइल है और मोबाइल में जातक/पंचांग का ऐप है जो पल भर में ही उतनी गणित करके दे देता है जितना करने में ३ – ४ दिन लग जायें।
और इस कारण से अब स्थूल जन्मपत्रिका निर्माण करना भी विसरते जा रहे हैं जो कि चिंताप्रद है।
जन्म पत्रिका बनाना
अब हम पूर्व के आलेखों में बताई गयी विधि अर्थात समय संस्कार, इष्टकालानयन, लग्नानयन, जन्मकुंडली निर्माण, चन्द्र कुण्डली निर्माण, भयात-भभोग साधन, महादशा भुक्त-भोग्य वर्षादि साधन, अन्तर्दशा साधन करते हुये हृषीकेश पंचांग से जन्मपत्रिका निर्माण की पूरी विधि को देखेंगे जन्म पत्रिका लिखना भी सीखेंगे।
यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि यह पंचांग दृश्य नहीं है अर्थात अदृश्य है। किन्तु हम कोई वास्तविक जन्मपत्रिका निर्माण नहीं कर रहे हैं अपितु काल्पनिक विवरण से जन्मपत्रिका निर्माण कर रहे हैं जिसका उद्देश्य जन्मपत्रिका निर्माण विधि को समझना है।
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हमने यहां जन्मपत्रिका बनाना सीखने के लिए जो विवरण लिया है उसमें सभी नाम काल्पनिक है और समय दिनांक आदि भी अभ्यास हेतु लिया गया है ये किसी का वास्तविक जन्म समय नहीं है, यदि किसी का वास्तविक जन्म समय मिलता हो तो वह एक संयोग मात्र होगा। हमारे द्वारा लिया गया विवरण इस प्रकार है :
- नाम : वसंत कुमार
- पिता : शिशिर ठाकुर
- पितामह : हेमंत ठाकुर
- तिथि : फाल्गुन शुक्ल षष्ठी
- दिन : बुधवार
- जन्म स्थान : हृषीकेश
- जन्म दिनांक : ५/०३/२०२५
- जन्म समय : रात्रि ५/४३
- अक्षांश : ३०/०५ उत्तर
- रेखांश : ७८/१६ पूर्व
- देशांतर : (-) ०/१८/५६
- वेलांतर : (-) ०/११/३०

जन्मकुंडली निर्माण हेतु विवरण और हृषीकेश पंचांग का सम्बंधित पृष्ठ फाल्गुन शुक्ल पक्ष संवत २०८१ भी ऊपर संलग्न किया गया है। अन्य सारणी यथा प्रथम लग्न सारणी, विंशोत्तरी दशा सारणी आदि पूर्व आलेखों में दिया जा चुका है और पंचांगों में होता है यहां पुनः देने की आवश्यकता नहीं है, पूर्व आलेखों से डाउनलोड कर सकते हैं अथवा पंचांगों में भी अवलोकन कर सकते हैं। सूर्योदय, ग्रह स्पष्ट, तिथ्यादि आदि पंचांग से यथावत लिये जायेंगे।
जन्मसमय रात ५/४३ है जिसका तात्पर्य है कि यदि सॉफ्टवेयर, मोबाइल ऐप आदि में दिनांक डालना हो तो ६/०३/२०२५ देना होगा किन्तु ज्योतिष गणना में एवं जन्मपत्रिका में दिनांक ५/०३/२०२५ ही अंकित किया जायेगा।
जातक ज्योतिष गणित
समय संस्कार अर्थात भारतीय मानक समय को स्थानीय समय में बदलने की क्रिया : देशांतर व वेलांतर संस्कार
वेलांतर तो हमने वेलांतर सारणी से लिया किन्तु हृषीकेश के देशांतर पंचांग में नहीं होने से हमने रेखांश द्वारा ज्ञात किया है। हृषीकेश पंचांग का आधार (वाराणसी) रेखांश है ८३/०० पूर्व और हृषीकेश का रेखांश है ७८/१६; इस प्रकार ७८/१६ – ८३/०० = (-) ४/४४ × ४ = (-) १८/५६
इष्टकालानयन
५/४३ रात्रि मानक जन्म समय = २९/४३
- = २९/४३
- – ०/१८/५६ देशांतर संस्कार
- – ०/११/३० वेलांतर संस्कार
= २९/१२/३४ संस्कारित समय अथवा स्थानीय जन्म समय - – ०६/१२ सूर्योदय (पंचांग से)
- = २३/००/३४
- × २.५
= ५७/३१/२५ अथवा ५७/३२
इष्टकाल : ५७/३२
लग्नानयन
- औदयिक सूर्य : १०/२०/२१/१४
चूंकि पंचांग में औदयिक सूर्यराश्यादि १०/२०/२१/१४ ही अंकित है इस कारण अनुमानित औदयिक अंश बनाने की आवश्यकता नहीं है। लग्नानयन हेतु हमें कुम्भ राशि का २० अंश ही लेना होगा। प्रथम लग्नसारणी में कुम्भ राशि के २० अंश का मान है : ५७/५४/३१ और इष्टकाल है ५७/३२ योग करने पर ५७/५४/३१ + ५७/३२ = ११५/२६/३१ अर्थात ५५/२६/३१ मिलता है जो कुम्भ राशि के १ अंश वाले मान ५५/२८/०७ का निकटतम है अर्थात लग्न है १०/०१
लग्न : १०/०१ (कुम्भ १ अंश)
जन्म कुंडली निर्माण
अब हम कुम्भ लग्न की कुंडली बनाकर अर्थात कुंडली के प्रथम भाव में कुम्भ (११) अंकित करते हुये पंचांग में अंकित राशि के अनुसार कुंडली में ग्रहस्थापन करेंगे। ग्रह राश्यादि पंचांग के संलग्न पृष्ठ में अवलोकन करें, यहां अंकित करने की आवश्यता नहीं है।
५/०३/२०२५; बुधवार, फाल्गुन शुक्ल षष्ठी, रात्रि ५/४३; हृषीकेश का इष्टकाल : ५७/३२ है और लग्न : १०/०१ है। तदनुसार जन्म कुंडली बनाकर यहां संलग्न की गयी है।
इष्टकाल कैसे बनाते हैं, लग्न कैसे निकालते हैं, जन्म कुंडली कैसे बनाते हैं आदि पूर्व आलेखों में बताई जा चुकी है।

चंद्र कुंडली निर्माण
चंद्र कुंडली निर्माण हेतु गणितीय क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु चंद्र की राशि को लग्न स्थान में देकर कुंडली बनायी जाती है। ऊपर जन्म कुंडली में हमें ज्ञात होता है कि लग्न की राशि चंद्र की राशि नहीं है अर्थात चन्द्रमा लग्नस्थ नहीं है अतः चंद्र कुंडली भी समान नहीं होगी, इसलिये पृथक से बनाकर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
इसलिये यहां उपरोक्त जन्म विवरण की चंद्र कुंडली भी दी जा रही है। चन्द्र चूंकि वृष (२) राशि में है इसलिये प्रथम भाव में वृष (२) अंकित करते हुये क्रमानुसार सभी राशियां और पञ्चाङ्गानुसार सभी ग्रह स्थापन करने पर चंद्र कुंडली इस प्रकार बनती है।

भयात-भभोग साधन
भयात-भभोग साधन हेतु यह एक कठिन उदाहरण है क्योंकि यहां एक नक्षत्र का क्षय हो रहा है और जन्मकाल क्षयनक्षत्र की समाप्ति काल के लगभग है अतः यह सामान्य स्थिति से भिन्न है। फाल्गुन शुक्ल षष्ठी; बुधवार को भरणी नक्षत्र १/२७ है तत्पश्चात कृतिका नक्षत्र का क्षय हो रहा है जिसका मान पंचांग में ५६/१३ अंकित है। इष्टकाल ५७/३२ है और हमें सर्वप्रथम यह ज्ञात करना होगा कि जन्म कृत्तिका नक्षत्र में है अथवा रोहिणी नक्षत्र में :
- औदयिक नक्षत्र भरणी मान : अहोरात्र = १/२७, ५/०३/२०२५
- क्षय नक्षत्र मान : ५६/१३ (द.प.) बुधवार, ५/०३/२०२५
- १/२७ + ५६/१३ = ५७/४० जो इष्टकाल (५७/३२) से अधिक है अतः जन्म नक्षत्र कृत्तिका है।
, ५७/४०
– ५७/३२
= ०/०८
अर्थात जन्म नक्षत्र कृत्तिका है।
जन्म नक्षत्र कृत्तिका नक्षत्र (क्षय नक्षत्र) का जो मान पंचांग में अंकित है वही भभोग है अतः हमें भभोग ज्ञात करने की आवश्यकता नहीं है। और इष्टकाल में कृतिका नक्षत्र के आरम्भ काल को अर्थात भरणी समाप्ति काल अथवा भरणी नक्षत्र मान को ऋण करने पर भयात ज्ञात हो जायेगा।
. ५७/३२ (द.प.) इष्टकाल
– १/२७ भरणी नक्षत्र मान
= ५६/०५ (द.प.) भयात
- भयात : ५६/०५ (द.प.)
- भभोग : ५६/१३ (द.प.)
- चरण : चतुर्थ
महदशा-अन्तर्दशा साधन
जन्म नक्षत्र कृतिका के अनुसार सूर्य महादशा में जन्म, महादशा वर्ष ६, भयात : ५६/०५, भभोग : ५६/१३
- पलात्मक भयात = (५६×६०) + ५ = ३३६० + ५ = ३३६५
- पलात्मक भभोग = (५६×६०) + १३ = ३३६० + १३ = ३३७३
भुक्त दशा वर्षादि = (पलात्मक भयात × दशावर्ष) ÷ पलात्मक भभोग
- = (३३६५ × ६) ÷ ३३७३
- = २०१९० ÷ ३३७३
- = ५/३३२५ (भागफल अर्थात वर्ष ५, शेष ३३२५)
- = (३३२५ × १२) ÷ ३३७३
- = ३९९०० ÷ ३३७३
- = ११/२७९७ (भागफल अर्थात माह ११, शेष २७९७)
- = (२७९७ × ३०) ÷ ३३७३
- = ८३९१० ÷ ३३७३
- = २४ भागफल अर्थात दिन शेष २९५८ आगे कुछ नहीं ज्ञात करेंगे। = ५/११/२४
भुक्त बुध वर्षादि = ५/११/२४
भोग्य बुध वर्षादि = ०/००/०६ (६/००/०० – ५/११/२४)
. २०२५/०३/०५ जन्म दिनांक (वर्षादि)
+ ०/००/०६ भोग्य सूर्य वर्षादि
= २०२५/०३/११ तक सूर्य महादशा अर्थात दिनांक ११/०३/२०२५ तक
सूर्य महादशा में अंतिम अन्तर्दशा शुक्र की होती है जो एक वर्ष की होती है और भोग्य सूर्य वर्षादि मात्र ६ दिन है अर्थात शुक्र की वर्त्तमान अन्तर्दशा चल रही है जो सूर्य महादशा के साथ ही दिनांक ११/०३/२०२५ को समाप्त होगी।
११/०३/२०२५ के पश्चात् चंद्र की महादशा प्रारम्भ होगी और महादशा व अन्तर्दशा गणित पूर्व आलेख में स्पष्ट किया जा चुका है और आगे महादशा अन्तर्दशा का विवरण देने की आवश्यकता नहीं है।
जन्मपत्री लिखना
जन्मपत्री लिखने की विधि भी पूर्व आलेख में बताई गयी है अर्थात जन्मपत्रिका का प्रारूप दिया गया है जिसे डाउनलोड भी किया जा सकता है। पुनः जन्मपत्रिका के प्रारूप देने की भी आवश्यकता नहीं है।
विद्वद्जनों से आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।
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