ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिन्दी में ज्योतिष सीखें – भाग 2

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिन्दी में ज्योतिष सीखें - भाग 2

ज्योतिष गणित कथन का तात्पर्य सिद्धांत स्कंध ही होता है किन्तु वर्त्तमान युग में ज्योतिष गणित (Jyotish Ganit) का तात्पर्य कुण्डली निर्माण की न्यूनतम गणितीय क्रिया मात्र बनकर रह गया है। अस्तु ज्योतिष गणित का इतना तात्पर्य नहीं लेना चाहिये। तथापि यहां हम कुंडली निर्माण संबंधी गणितीय क्रियाओं को समझेंगे जिसमें ज्योतिष गणित सूत्र भी उपलब्ध किया जायेगा। यहां हम जिस ज्योतिष गणित को समझेंगे वो कुंडली निर्माण की ही सरल विधि है।

ज्योतिष गणित – Jyotish Ganit में यहां कुंडली बनाने की विधि से संबंधित गणितीय क्रियाओं को समझेंगे। घंटा-मिनट को दण्ड-पल बनाना, इष्टकाल निकालना, लग्नानयन अर्थात लग्न ज्ञात करना आदि समझेगें। इसके साथ ही स्थानीय समय, मानक समय, देशांतर, वेलांतर इत्यादि को भी समझने का प्रयास करेंगे।

तथापि इन सभी बिंदुओं को समझने से पूर्व होरा को जानना-समझना आवश्यक है :

होरा और अहोरात्र

काल गणना हेतु घटी (दण्ड), पल (कला), विपल (विकला), मुहूर्त्त, प्रहर (याम), प्रहारार्द्ध (यामार्द्ध) आदि व्यवहृत होता है किन्तु इनमें से कोई भी घटना दृश्यात्मक नहीं है। कालगणना का जो मुख्य भाग दृश्यात्मक है, मुख्य है एवं जिसके लिये ये सभी प्रयुक्त होते हैं वो है दिन और रात। दिन रात काल का दृश्यात्मक अंश है अर्थात दिन होने पर भी देखा जाता है और रात होने पर भी देखा जाता है।

दिन और रात को संयुक्त रूप से अहोरात्र कहा जाता है। काल गणना का मुख्य आधार अहोरात्र ही है शेष (घट्यादि) गणना के आधार अहोरात्र के विशेष अंशों के सूचक होते हैं।

होरा क्या होता है

अहोरात्र ही ज्योतिषीय गणना का मुख्य आधार है अतः ज्योतिष शास्त्र हेतु अहोरात्र का प्रयोग इस स्वरूप में किया जाता है (अ)होरा(त्र), इस प्रकार अहोरात्र पद के आदि वर्ण “अ” और अन्त्य वर्ण “त्र” का लोप करने से होरा शेष बचता है। होरा ही काल गणना का मुख्य आधार है इस कारण ज्योतिष शास्त्र को होरा शास्त्र भी कहा जाता है। इस प्रकार की व्याख्या से होराशास्त्र में ज्योतिष तीनों स्कन्धों का बोध हो सकता तथापि ऐसा भी नहीं है, “सिद्धांत संहिता होरा” तीनों पृथक स्कंध हैं अर्थात होरा ज्योतिष के एक स्कंध है, जिसे जातक भी कहा जाता है।

वराहमिहिर ने बृहज्जातक में होरा और होरा शास्त्र की व्याख्या करते हुये लिखा है :

होरेत्यहोरात्र विकल्पमेके वांच्छंति पूर्वापरवर्णलोपात्।
कर्मार्जितं पूर्वभवे सदादि यत्तस्य पक्तिं समभिव्यनक्ति ॥

पूर्व कर्मों के अनुसार शुभाशुभ फलों की परिपक्वताकाल का ज्ञान प्रदान करने वाला शास्त्र होराशास्त्र कहलाता है। जन्म काल के आधार पर व्यक्ति विशेष के शुभाशुभ का ज्ञान होराशास्त्र से प्राप्त होता है, इसका मुख्य आधार जन्म (जातक) होता है इस कारण इसे जातक भी कहा जाता है।

होरा का एक अन्य अर्थ “राशेरर्द्धं होरा” राशि अर्थात लग्न के अर्द्धांश को भी होरा कहा जाता है। हम जिसे घंटा कहते हैं उसका नाम भी ज्योतिषशास्त्र में होरा है। Hour का उच्चारण भले ही ऑवर किया जाता है किन्तु यदि Hour में a मिला दें तो Houra (होरा) ही पढ़ा जायेगा। ये विडंबना कहें अथवा छल कि Ramayan में a लगाया जाता है, Krishn में A लगा दिया जाता है, और रामायना, कृष्णा, शिवा आदि बोला जाता है, किन्तु Houra का A कौन सी बकड़ी चबा गयी ये अज्ञात है।

ये हमारी अज्ञानता ही सिद्ध होती है कि हम Ramayan को Ramayana, Krishn को Krishana, Shiv को Shiva, Mishr को Mishra (मिश्रा) आदि लिखना ही नहीं बोलना भी प्रारंभ कर चुके हैं।

अहोरात्र का विभाजन

अहोरात्र का विभाजन अनेकों प्रकार से किया गया है। यदि घंटा का प्रयोग करते हैं तो हमें घंटा, मिनट और सेकेण्ड ही बोलने होते हैं, किन्तु जब हम अपनी परंपरा में प्रविष्ट होते हैं तो हमें प्रहर (याम), प्रहारार्द्ध (यामार्द्ध), मुहूर्त्त, दण्ड (घटी/नाडी), पल (कला), विपल (विकला) से आगे भी बहुत दूर तक मिलते हैं, ये संस्कृत की विशालता है। अब हम इन महत्वपूर्ण विभागों को भी सरलता से समझते हैं :

  • अहोरात्र = 8 प्रहर (याम)
  • अहोरात्र = 16 अर्द्धप्रहर
  • अहोरात्र = 30 मुहूर्त्त
  • अहोरात्र = 60 दण्ड (घटी/नाडी)
  • अहोरात्र = 3600 पल (कला)

अब आगे देखें :

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिन्दी में ज्योतिष सीखें - भाग 1
  • एक प्रहर = 2 अर्द्धप्रहर, पौने चार मुहूर्त्त, साढ़े सात दण्ड, 450 पल, 3 घंटा इत्यादि।
  • एक मुहूर्त्त = 2 दण्ड, 120 पल, 48 मिनट।
  • एक दण्ड = 60 पल, 24 मिनट।
  • एक पल = 24 सेकण्ड ।

प्रहर, मुहूर्त्तादि को समझने मात्र के उद्देश्य से ही घंटा/मिनट में बताया गया है। किन्तु यह सटीक नहीं होता है कारण कि दिन के 4 प्रहर, 15 मुहूर्त्त अलग होते हैं एवं रात्रि के 4 प्रहर, 15 मुहूर्त्त भिन्न होते हैं।

भिन्न कहने का तात्पर्य है कि प्रहर और मुहूर्त्त का विचार दिन-और रात्रि के विभागों को समझने के लिये ही मुख्य रूप से किया जाता है। दिनमान और रात्रिमान के अनुसार इनके मान भी न्यूनाधिक (परिवर्तित) होते रहते हैं।

ज्योतिष गणित – Jyotish Ganit

जातक गणित में मुख्य रूप से घंटा-मिनट जिसमें वर्त्तमान समय को जाना जाता है, एवं दण्ड-पलादि जिस ज्योतिषीय मान में जातक गणित किया जाता है उसे विशेष रूप से समझना आवश्यक है। ऊपर जान चुके हैं कि :

एक दण्ड = 24 मिनट, एक पल = 24 सेकण्ड

अब आगे समझें, क्योंकि सर्वप्रथम घंटा-मिनट को दण्ड-पल में परिवर्तित करने की गणितीय क्रिया जानना आवश्यक है :

  • एक दण्ड = 24 मिनट अर्थात 1 घंटा = 2.5 (2½) दण्ड
  • एक पल = 24 सेकण्ड अर्थात 1 मिनट = 2.5 (2½) पल

इस प्रकार घंटा/मिनट को दण्ड/पल में रूपांतरित करने के लिये ढाई (2.5 अर्थात् 2½) से गुणा करने की आवश्यकता होती है यथा 2 घंटा 10 मिनट को ढाई से गुणा करने पर 5 दण्ड 25 पल ज्ञात होता है। किन्तु ढाई से काल मान को गणित करने में कठिनाई होती है, तथापि गुणा करने की एक सरल विधि भी होती है जिसे आगे सोदाहरण समझते हैं :

घंटा/मिनट को दण्ड/पल बनाने की सरल विधि

अब हम एक उदाहरण द्वारा घंटा/मिनट को दण्ड/पल बनाने की सरल विधि को देखते हैं। हमें 10 को ढाई से गुणित करना है तो 10×2.5 (2½) भी कर सकते हैं और उत्तर 25 होगा। किन्तु इसी प्रक्रिया को यदि जिसे गुणित करना है उसमें प्रथम उतना ही योग करें पुनः अर्द्ध्योग करें तो भी ढाईगुणित ही होता है।

यथा 10 को ढाई से गुणा करने की दूसरी विधि यह हो सकती है कि प्रथम 10 में 10 ही योग करें एवं पुनः 10 का अर्द्ध 5 और योग करें। इस प्रकार से गणितीय क्रिया होगी 10+10+5 = 25 अर्थात 10 ढाई गुणित हो गया।

घंटा/मिनट को दण्ड/पल बनाने की सरल विधि

अब इसी विधि से 2 घंटा 10 मिनट को ढाई से गुणा करके देखते हैं : 2/10 + 2/10 + 1/05 = 5/25 और यदि सीधे-सीधे 2 घंटा 10 मिनट को ढाई से गुणा करेंगे तो भी 5 घंटा 25 मिनट ही प्राप्त होगा किन्तु गुणा करने की यह विधि जटिल होगी और यदि समान घंटा मिनट कर उसका अर्द्ध अर्थात आधा योग करने पर भी ढाई गुणित हो जाता है।

इस प्रकार के और भी अनेकों उदाहरण को देखें और अभ्यास करके घंटा/मिनट को दण्ड/पल बनाना सीख लें। उपरोक्त विधि से घंटा/मिनट को दण्ड/पल बनाने का 10 अभ्यास कर लें। अभ्यासार्थ कुछ घंटा/मिनट दिये जा रहे हैं : 8/20, 16/24, 22/16, 7/30, 11/36, 17/44, 21/49, 23/55, 23/56, 23/59

इष्टकाल निकालने का नियम

घंटा/मिनट को दण्ड/पल बनाना सीखने के पश्चात् इष्टकाल बनाना सीखने की आवश्यकता होती है। कुंडली बनाने की पहली क्रिया इष्टकाल ज्ञात करना ही होता है। इष्टकाल ज्ञात करने के लिए ही घंटा/मिनट को दण्ड/पल में परिवर्तित करने का ज्ञान आवश्यक होता है।

  • इष्टकाल का लग्न ज्ञात करके ही जन्मकुंडली बनायी जाती है।
  • इष्टकाल के आधार पर ही ग्रहस्पष्ट ज्ञात किया जाता है।
  • इष्टकाल से भी भयात-भभोग्य ज्ञात किया जाता है और तदनंतर भोग्य दशा वर्षादि।
इष्टकाल किसे कहते हैं

इष्टकाल का तात्पर्य होता है किसी निश्चित समय (जन्म समय) तक सूर्योदय से व्यतीत काल। अर्थात यदि किसी व्यक्ति का जन्म सूर्योदय से 25 दण्ड 55 पला पश्चात् हुयी हो तो उसकी कुंडली में इष्टकाल २५/५५ अंकित किया जायेगा। किन्तु इष्टकाल ज्ञात करने में कई महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है :

  • इष्टकाल ज्ञात करने हेतु जन्म समय और सूर्योदय की आवश्यकता होती है।
  • दोनों समय का समान इकाई में होना आवश्यक होता है।
  • पंचागों में स्थानीय समय (L.T.) अंकित होता है किन्तु जन्म समय भारतीय मानक समय (I.S.T) होता है अर्थात दोनों भिन्न इकाई में होती है।
  • दोनों को समान इकाई का करने के लिये जन्म समय को स्थानीय समय (L.T.) में परिवर्तित करना चाहिये।
  • यदि सूर्योदय को भारतीय मानक समय (I.S.T) में परिवर्तित करते हैं तो भी दोनों समान इकाई की हो जाएगी कर इष्टकाल ज्ञात किया जा सकता है।
  • समय की इकाई में परिवर्तन करने के लिये दो संस्कार करने की आवश्यकता होती है जिसे देशांतर और वेलांतर संस्कार कहते हैं।

इष्टकाल ज्ञात करने के लिये हमें दो समय की आवश्यकता होती है निर्धारित समय अर्थात जन्म समय और सूर्योदय काल। निर्धारित समय अर्थात जन्म समय जो दिया जाता है वो भारतीय मानक समय (I.S.T) होता है। यद्यपि वर्त्तमान युग में अनेकों माध्यम से सूर्योदय की जानकारी मिल सकती है किन्तु हमें जन्मकुंडली निर्माण हेतु पंचांग की आवश्यकता होती है एवं पंचांगों में सूर्योदय काल अंकित होता है।

कुछ दशकों पूर्व तक सूर्योदय काल जानने का एक ही माध्यम होता था पञ्चाङ्ग। वर्त्तमान काल में भी ज्योतिषी लोग पंचांगों से ही सूर्योदय ज्ञात करते हैं। अधिक शुद्ध सूर्योदय ज्ञात करने के लिये सूर्य स्पष्ट, अक्षांश, पलभा आदि का प्रयोग करके विशेष गणितीय क्रिया भी की जा सकती है तथापि यह गणना विशेष जटिल है।

अब यदि हम पञ्चाङ्ग से प्राप्त सूर्योदय की चर्चा करें तो वह स्थानीय समय (L.T.) होता है। अब हम देखते हैं कि जन्म समय भारतीय मानक समय (I.S.T) होता है और जन्म समय स्थानीय समय (L.T.) होता है। इस प्रकार दोनों समय भिन्न इकाई का है और इसके आधार पर शुद्ध इष्टकाल ज्ञात नहीं किया जा सकता है।

शुद्ध इष्टकाल ज्ञात करने के लिये दोनों में से किसी एक की इकाई में परिवर्तन करना होगा अर्थात या तो जन्म समय जो भारतीय मानक समय (I.S.T) है में देशांतर व वेलांतर संस्कार करके उसे स्थानीय समय (L.T.) की इकाई में परिवर्तित किया जा सकता है अथवा सूर्योदय जो स्थानीय समय (L.T.) में होता है उसमें विपरीत देशांतर व वेलांतर संस्कार करके उसे भारतीय मानक समय (I.S.T) में परिवर्तित किया जा सकता है।

इस प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि इष्टकाल ज्ञात करने हेतु भले ही जन्मसमय और सूर्योदय की आवश्यकता होती है किन्तु वास्तव में दोनों समय को समान इकाई करने की भी आवश्यकता होती है और अब स्पष्ट होता है कि इष्टकाल ज्ञात करने हेतु हमें हमें निम्न आवश्यकता होती है :

  1. जन्म समय
  2. जन्म दिनांक
  3. सूर्योदय
  4. जन्म स्थान (देशांतर)
  5. वेलांतर

जन्म समय और जन्म स्थान तो जातक का होता है जो जातक/प्रतिनिधि द्वारा बताया जाता है। इसके पश्चात् सूर्योदय, देशांतर (जन्मस्थान का) और वेलांतर हमें पंचांग से ज्ञात हो जाता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब पंचांग से कुंडली निर्माण करते हैं और विशेष जटिल क्रिया के माध्यम से सूर्योदय ज्ञात नहीं कर सकते तो क्षेत्रीय पंचांग का ही प्रयोग करना चाहिये।

क्षेत्रीय पंचांग अनुपलब्ध होने पर निकटतम क्षेत्र के पंचांग का प्रयोग करना चाहिये। इसके पश्चात् भी अधिक पुराने पंचांग उपलब्ध नहीं होते हैं उस स्थिति के लिये शदाब्दी पंचांग देखा जा सकता है किन्तु शताब्दी पंचांग अधिकतम शुद्ध (दृश्य) होते हुये भी क्षेत्रीय नहीं होते हैं और उसमें अधिक गणितीय क्रिया की आवश्यकता होती है। आगे हम शताब्दी पंचांग देखना और उससे कुंडली बनाना भी सीखेंगे किन्तु प्रथमतया क्षेत्रीय पंचांग से ही सीखना आवश्यक है।

इष्टकाल निकालने का उदाहरण

क्षेत्रीय पंचांग अनुपलब्ध होने पर निकटतम क्षेत्र के पंचांग का प्रयोग करना चाहिये। इसके पश्चात् भी अधिक पुराने पंचांग उपलब्ध नहीं होते हैं उस स्थिति के लिये शदाब्दी पंचांग देखा जा सकता है किन्तु शताब्दी पंचांग अधिकतम शुद्ध (दृश्य) होते हुये भी क्षेत्रीय नहीं होते हैं और उसमें अधिक गणितीय क्रिया की आवश्यकता होती है। आगे हम शताब्दी पंचांग देखना और उससे कुंडली बनाना भी सीखेंगे किन्तु प्रथमतया क्षेत्रीय पंचांग से ही सीखना आवश्यक है।

इष्टकाल निकालने हेतु हम जन्म समय के रूप में इस आलेख के प्रकाशित होने का समय लेते हैं जो है 31 दिसंबर 2024, अपराह्न ४/११ (04:11 PM 31/12/2024) यह भारतीय मानक समय (I.S.T.) है, स्थान के लिये बेगूसराय लेते हैं।

इसके पश्चात् हम क्षेत्रीय पंचांग की आवश्यकता है जिसके लिये विश्वविद्यालय पंचांग (दरभंगा) लेते हैं। पंचांग से हमें 31 दिसंबर 2024 का सूर्योदय ६/४९ (6:49 am) मिलता है। पंचांग के देशांतर सारणी से ही हमें बेगूसराय का देशांतर (+) १४/३२ (मिनट/सेकेण्ड) ज्ञात होता है और वेलांतर सारणी से 31 दिसंबर का वेलांतर (-) ३ (मिनट) ज्ञात होता है। इस प्रकार से इष्टकाल ज्ञात करने हेतु हमारे पास उपलब्ध है :

  • जन्म समय : अपराह्न ४/११ (04:11 pm)
  • जन्म दिनांक : ३१ दिसंबर 2024 (31/12/2024)
  • सूर्योदय : ६/४९ (6:49 am)
  • जन्म स्थान (देशांतर) : (+) १४/३२ (बेगूसराय + 0:14:32 मिंट सेकेण्ड)
  • वेलांतर : (-) ३ (वेलांतर सारणी से : -3 मिनट)

इस प्रकार से हमें जो इष्टकाल ज्ञात करना है उसे अन्य प्रकार से लिखा जाय तो दो तरीके से लिखा जा सकता है एक पंचांग के अनुसार ज्योतिषी शैली में और दूसरा अज्योतिषीय शैली में। शैली का भी अपना महत्व होता है और ज्योतिषीय शैली भी सामान्य लोग समझ लेते हैं किन्तु अज्योतिषीय शैली सामान्य लोगों के समझ में भी सरलता से आ जाती है किन्तु अज्योतिषीय शैली कहने का तात्पर्य है कि वो ज्योतिषीय शैली है नहीं। दोनों को समझें :

  • ज्योतिषीय शैली : पौष शुक्ल प्रतिपदा, रविवार, संवत २०८१, (तदनुसार आंग्ल दिनांक ३१/१२/२०२४), जन्म समय ४:११ संध्या, जन्म स्थान – बेगूसराय।
  • अज्योतिषीय शैली : 31/12/2024, 16:11 अथवा 4:11 pm, बेगूसराय।

ज्योतिषीय शैली में आंग्ल दिनांक अंकित करना आवश्यक नहीं है, सामान्य और सरल समझ हेतु प्रयोग किया जाता है।

अब हम सर्वप्रथम समय की भिन्न इकाइयों को समान इकाई में रूपांतरित करेंगे तदनंतर जन्म समय में से सूर्योदय को ऋण कर (घटाकर) प्राप्त घंटा मिनट को ढाई से गुणा करेंगे जो इष्टकाल होगा। हमारे पास उपलब्ध है जन्म समय : ४/११ संध्या (भारतीय मानक समय), सूर्योदय ६:४९ (स्थानीय समय), देशांतर : (+) १४/३२ मिनट/सेकेण्ड, वेलांतर : (-) ३ मिनट। जन्म समय 4:11 संध्या भारतीय मानक समय (I.S.T) है और सूर्योदय 6:49 प्रातः स्थानीय समय (L.T.) है। दोनों भिन्न इकाई है और दोनों में से किसी एक को संस्कारित करके समान इकाई का बनाया जा सकता है।

  • यदि जन्म समय को जो भारतीय मानक समय (I.S.T) है उसमें यथावत (ऋण/धन चिह्न के अनुसार) देशांतर व वेलांतर संस्कार करने से वह स्थानीय समय (L.T.) में परिवर्तित हो जायेगा।
  • यदि सूर्योदय जो स्थानीय समय (L.T.) है उसे भारतीय मानक समय (I.S.T) बनाना हो तो चिह्न (ऋण/धन) के विपरीत संस्कार करेंगे और संस्कारित होने पर वह भारतीय मानक समय (I.S.T) हो जायेगा।

अधिक ज्ञानवर्द्धन हेतु हम दोनों ही प्रकार से इष्टकाल ज्ञात करेंगे।

प्रथम प्रकार अथवा मुख्य प्रकार

सर्वप्रथम हम जन्मसमय में देशांतर संस्कार करेंगे। देशांतर संस्कार के लिये देशांतर के चिह्न को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है एवं भारतीय मानक समय को स्थानीय समय में परिवर्तित करने हेतु जैसा चिह्न हो तदनुसार ही देशांतर संस्कार करेंगे, एवं चिह्नानुसार ही वेलांतर संस्कार भी करेंगे : जन्म समय 4:11 PM है अर्थात 16:11 है, देशांतर (+) 14:32 मिनट सेकेण्ड है इसमें धन (+) चिह्न है अतः योग करेंगे : 16:11:00 + 0:14:32 = 16:25:32 होगा। अब वेलांतर संस्कार करेंगे जो ऋण (-) 3 मिनट है अतः इसे ऋण करेंगे (घटायेंगे : 16:25:32 – 0:03:00 = 16:22:32

इस प्रकार मानक जन्म समय 4:11 PM (I.S.T) है अर्थात 16:11 में देशांतर और वेलांतर संस्कार करने पर 16:22:32 प्राप्त हुआ जो स्थानीय जन्म समय है।

अब समझ बढ़ाने के उद्देश्य से सूर्योदय 6:49 AM जो कि स्थानीय समय (L.T.) है इसे भारतीय प्रामाणिक समय बनाकर देखते हैं : 6:49:00 सूर्योदय में चिह्न के विपरीत देशांतर और वेलांतर संस्कार करेंगे अर्थात देशांतर धन है तो उसे ऋण करेंगे और वेलांतर ऋण है तो उसे धन करेंगे। 6:49:00 – 0:14:32 = 6:34:28 + 0:03:00 = 6:37:28 इस प्रकार हमने स्थानीय सूर्योदय को भारतीय मानक समय (I.S.T) में परिवर्तित करने पर 6:37:28 am प्राप्त हुआ।

अब इष्टकाल हेतु जन्म समय में सूर्योदय को ऋण करेंगे और जो प्राप्त मान होगा वह घंटा/मिनट होगा। प्राप्त मान को ढाई से गुणा करने पर दण्ड/पल में परिवर्तित हो जायेगा जो इष्टकाल होगा। आदि दोनों प्रकार (दोनों इकाई जो ऊपर ज्ञात किया गया है) से करके देखते हैं।

स्थानीय समय (L.T.)

  • जन्म समय : 16:22:32
  • सूर्योदय : 6:49

भारतीय मानक समय (I.S.T)

  • जन्म समय : 16:11
  • सूर्योदय : 6:37:28
  • स्थानीय समय (L.T.) इकाई से : 16:22:32 – 6:49:00 = (15:82:32 – 6:49:00) = 9:33:32
  • भारतीय मानक समय (I.S.T) इकाई से : 16:11:00 – 6:37:28 = (15:71:00 – 6:37:28) = (15:70:60 – 6:37:28) 9:33:32

अब प्राप्त घंटा मिनट को ढाई से गुणा करने पर दण्ड/पल में परिवर्तित हो जायेगा जो इष्टकाल होगा।

प्राप्त घंटा/मिनट 9:33:32 को दण्ड/पल बनाने हेतु प्रथम इसमें 9:33:32 योग करेंगे और पुनः इसका अर्द्ध अर्थात 4:46:17 योग करेंगे। 9:33:32 + 9:33:32 + 4:46:17 = 22:112:81 = 23:53:21

इस प्रकार उपरोक्त समय के आधार पर जो इष्टकाल ज्ञात होता है वो 23 दण्ड 53 पल और 21 विपल है जिसे 23 दण्ड 53 पल भी अंकित किया जायेगा।

इस प्रकार से इष्टकाल है : २३/५

इसी प्रकार से इष्टकाल संबंधी अन्य महत्वपूर्ण चर्चा और इष्टकाल ज्ञात करने से संबंधित और तीन अन्य उदाहरण देखने-समझने के लिये यहां क्लिक करें।

ज्योतिष गणित सूत्र

  • दंड/पल = घंटा/मिनट × 2.5 अथवा घंटा/मिनट + घंटा/मिनट + तदर्द्ध
  • घंटा/मिनट = दण्ड/पल ÷ 2.5 अथवा (दण्ड/पल × 2) ÷ 5
  • इष्टकाल = (जन्म समय – सूर्योदय) × 2.5

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