पंचांग अनेकानेक प्रकार से प्रकाशित होते हैं और सबमें एक ही क्रम का पालन किया जाता है ऐसा कुछ भी नहीं है। सभी पंचांगों में क्रम की भिन्नता देखने को मिलती है, इस कारण यदि एक पंचांग को देखना सीख भी लें तो दूसरे पंचांग को भी उसी प्रकार सही-सही देख समझ लें ऐसा नहीं होता है। इस आलेख में प्रज्ञा पंचांग डिजिटल देखने की विधि बताई गयी है साथ ही सभी पंचांगों को देखना और समझना भी बताया गया है इस कारण से पंचांग देखना यदि सीखना चाहते हैं तो यह आलेख विशेष उपयोगी सिद्ध होगा।
प्रज्ञा पंचांग देखने की विधि – Panchang dekhne ki vidhi
वैसे तो दृक पंचांग (Drik Panchang) सर्वोपलब्ध है और सभी अपने मोबाइल में कोई भी ज्योतिष/पंचांग संबंधी ऐप्लिकेशन डाउनलोड करके देख सकते हैं। इसमें दिया गया तिथि, नक्षत्रादि का काल विशेष शुद्ध व सूक्ष्म होता है, तथापि व्रत-पर्वादि व मुहूर्त संबंधी शास्त्रसम्मत निर्णय का अभाव भी पाया जाता है। प्रकाशित होने वाले पंचांगों में अभी भी अधिकाधिक पंचांग अदृश्य अर्थात स्थूल गणना ही करते हैं और उनमें भी अधिकांशतः सारणी मात्र का ही प्रयोग करते हैं, गणना नहीं, परन्तु निर्णय तो शास्त्रसम्मत व परम्परा के अनुकूल करते हैं।
अर्थात समस्या ये है कि जो दृश्य है उसमें निर्णय पर संशय और जिसका निर्णय शास्त्रसम्मत है वो दृश्य नहीं।
जैसा कि बताया जा चुका है वर्त्तमान युग में दृक पंचांग सहज व सर्वोपलब्ध हैं एवं प्रज्ञा पंचांग में तिथ्यादि मान का ग्रहण उसी से किया गया है। किन्तु दृक पंचांगों की जो मूल समस्या है वो यह है वो पारम्परिक नियमों और विधानों की अनावश्यक अवहेलना करते हैं। यथा कलेवर/स्वरूप संबंधी अवहेलना, अयन-गोल-ऋतु आदि निर्धारण में अवहेलना, व्रत-पर्व में तो कम विवाहादि मुहूर्तों में विशेषरूप से शास्त्र वचनों की अवहेलना इत्यादि।
ये एक बड़ी समस्या बनती जा रही है, प्रथमतया तो दृकपंचांगकारों ने सायन पद्धति से अयन-गोल-ऋतु आदि प्रस्तुत करना आरम्भ किया और तत्पश्चात वर्त्तमान में मास क्रम को ही पलटने का दुष्प्रयास कर रहे हैं, कुछ मूढ़ तो ऐसा करते हुये पंचांग प्रकाशित भी करने लगे हैं और सबसे शुद्ध होने का भी दावा करते हैं। भले ही उनके मासों में कोई भी पूर्णिमा अपने नक्षत्र को दूर-दूर तक स्पर्श भी न करती हो। तिथि में नक्षत्र योग भी विशेषता होती है, एवं भिन्न-भिन्न मासों में भिन्न-भिन्न नक्षत्र व तिथि का योग होता है।
मासों के नाम का मूल आधार भी यही है। जिस मास की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र हो (आगे-पीछे भी) उसे चैत्र, इसी प्रकार विशाखा से वैशाख, ज्येष्ठा से ज्येष्ठ आदि मास नाम निर्धारित किये गये हैं। ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का कुचक्र रचने वाले मूढ़ हैं और उनको यह क्रम ज्ञात नहीं है, अपितु जान-बूझकर ही षडयंत्र कर रहे हैं।
उनके षड्यंत्र से हम सबको सुरक्षित होने की आवश्यकता है एवं अयन-गोल-ऋतु आदि हेतु सायन नहीं निरयण मार्ग का ही अवलंबन करना उचित होगा। अन्यथा हम शनैः-शनैः उनके कुचक्र में फंसते चले जायेंगे।
इन्ही कारणों से दृक पंचांग प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है जो कि डिजिटल होगा अर्थात वेबसाइट पर और PDF के रूप में https://panchang.karmkandsikhen.in/ पर प्रकाशित होगा, जिसका नाम प्रज्ञा पंचांग होगा। इसमें गणना करने की आवश्यकता इसलिये नहीं होगी क्योंकि तिथ्यादि मान सहज व सर्वोपलब्ध है।
इसमें व्रत-पर्व-मुहूर्तादि का शास्त्र-सम्मत निर्णय देने का प्रयास किया जायेगा और कुछ अन्य महत्वपूर्ण विषय यथा : शिववास, अग्निवास, अर्द्धप्रहरा, मूलगण्डान्त, सिध्यादियोग इन सबको भी सम्मिलित किया जायेगा जिससे विशेष उपयोगी सिद्ध हो सके। आगे प्रज्ञा पंचांग की संक्षिप्त जानकारी देते हुये पंचांग देखने की विधि बताई गयी है एवं इसके साथ ही अन्य पंचांगों को सही से देखने-समझने की विधि भी बताई गयी है :
प्रज्ञा पञ्चाङ्ग (Drik Panchang) संक्षिप्त परिचय
प्रज्ञा पंचांग में तिथ्यादि मान भले ही दृक पंचागों से ग्रहण किया गया है किन्तु इसका कलेवर/स्वरूप पारम्परिक रखा गया है जिससे अवलोकन व उपयोग सहज हो जाता है। इसी प्रकार प्रज्ञा पंचांग में अयन-गोल-ऋतु आदि सायन नहीं निरयण दिया गया है, भ्रमवश दृक पंचांगों में सायन दिये जाते हैं। इसके साथ ही शकसंवत प्रयोग करते हुये सौर दिनांक भी दिया गया है। दिनांक का वास्तविक तात्पर्य सौर दिनांक ही होता है। वर्तमान में सौर दिनांक के प्रति भी जनजागरूकता बढ़ती प्रतीत होती है इससे इसको और बल मिलेगा।
व्रत-पर्व-मुहूर्तादि हेतु शास्त्र-सम्मत विचार किया गया है। दृक पंचांगों की समस्या यह होती है कि व्रत-पर्व हेतु शास्त्र का बहुत अंशों तक अनुपालन तो करते हैं किन्तु विवाहादि मुहूर्त में नहीं शास्त्र की अवहेलना भी की जाती है। भविष्य में यदि दृक पंचांग “प्रपोजल मुहूर्त” भी देने लगें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि शास्त्रों में उनकी आस्था ही नहीं होती। बहुत सारे शास्त्रद्रोही ज्योतिषी दूरदर्शन पर बैठकर प्रतिदिन प्रपोजल मुहूर्त बताते भी हैं और अनाचार को बढ़ावा देने का कुचक्र रचने वालों का ही सहयोग करते हैं।
- प्रज्ञा पञ्चाङ्ग पारम्परिक कलेवर/स्वरूप में ही प्रकाशित होगा जिससे उपयोगकर्ताओं के लिये सहज हो।
- शिववास, अग्निवास, अर्द्धप्रहरा, सिध्यादि योग, नक्षत्र गण्डांत आरंभ-समापन आदि को समाविष्ट किया जायेगा।
- प्रारंभिक अवस्था में ग्रहस्थिति को सम्मिलित नहीं किया जायेगा किन्तु यदि इसकी मांग होती है तो भविष्य में सम्मिलित किया भी जायेगा।
- भौतिक प्रति का प्रकाशन नहीं होगा, वेबसाइट पर ही प्रकाशित किया जायेगा और भविष्य में मोबाइल ऐप की संभावना बनी रहेगी।
- जिन्हें PDF की आवश्यकता होगी उनके लिये ईमेल के माध्यम से PDF भी उपलब्ध कराया जायेगा। इसके लिये पर info@karmkandsikhen.in (or) info@kamkandvidhi.in पर मेल करके संपर्क करना होगा।
प्रज्ञा पंचांग के बारे में और विस्तार से जानने के लिये आप इस आलेख को पढ़ सकते हैं : दृक पंचांग अर्थात् डिजिटल प्रज्ञा पंचांग की आवश्यकता – Need for Pragya Panchang/Drik Panchag
प्रज्ञा पञ्चाङ्ग (Drik Panchang) कैसे देखें
जैसा कि मास में दो पक्ष होते हैं एवं दोनों पंचांग पक्षवार ही प्रस्तुत करने का नियम व परंपरा है प्रज्ञा पंचांग में भी इसी नियम का पालन किया गया है एवं प्रत्येक मास के पंचांग को दो पक्षों में विभाजित करके प्रस्तुत किया गया है। यह विषय पुनः स्पष्ट कर दें कि अयन-गोल-ऋतु आदि निरयण ही दिये गये हैं और यही शास्त्रोचित व परंपरा भी है। दोनों ही पक्षों में पुनः दो-दो सारणी दिया गया है एवं उन दोनों सारणी को सही से देखने और समझने की विधि की चर्चा अब की जायेगी।
प्रथम सारणी
सभी पंचांगों की प्रथम सारणी में ऊपर के दाहिने कोने में मास, पक्ष, अयन, गोल, ऋतु, शुद्धाशुद्ध, काल दिशा एवं आंग्ल दिनांक आदि दिया जाता है। प्रज्ञा पंचांग में इसी का ध्यान रखते हुये ऊपर के दाहिने कोने में उपरोक्त विवरण दिया गया है।
प्रथम सारणी में नियमानुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, राशि, सूर्योदय, सूर्यास्त, दिनांक आदि का उचित क्रम होना चाहिये। किन्तु क्रम भेद से पंचागों में अंकित किये जाते हैं।
प्रज्ञा पंचांग के प्रथम सारणी में ऊपर प्रथम क्रम से क्रमशः सौर दिनांक (शक संवत प्रयोग पूर्वक), आंग्ल दिनांक, सूर्योदय, सूर्यास्त, (बेगूसराय), दिनमान (घंटा मिनट में), दिन, तिथि (अंकात्मक), तिथि नाम, तिथि समाप्ति काल (घंटा मिनट में), औदयिक नक्षत्र, नक्षत्र समाप्ति काल (घंटा मिनट में), औदयिक योग, योग समाप्ति काल (घंटा मिनट में), औदयिक करण, करण समाप्ति काल (घंटा मिनट में), परवर्ती करण, परवर्ती करण समाप्ति काल (घंटा मिनट में), राशि, राशि समाप्ति काल (घंटा मिनट में) दिया गया है।
तत्पश्चात तिथ्यादि संबंधित पंक्ति में व्रत, पर्व, मुहूर्त, सिद्ध्यादि योग, यात्रा, भद्रा, पंचक, मूल गण्डांत आदि विषय अंकित किया गया है। पारंपरिक रूप से पंचांगों में इस प्रकार से अंकित करने का नियम रहा है जिसका पज्ञा पंचांग में पालन किया गया है। जिस पंक्ति में विषय सम्पूर्ण न हो पाये हों अर्थात अन्य तथ्य शेष हों उसके आगे (१), (२), (३) आदि क्रम से अंकित करते हुये शेष तथ्य उसी क्रम में अन्यत्र अंकित किया गया है।
द्वितीय सारणी
द्वितीय सारणी में प्रज्ञा पंचांग द्वारा भिन्न विषय प्रस्तुत किया गया है। अन्य पंचांगों के द्वितीय सारणी में ग्रहस्फुट, लग्नसारणी आदि देते हुये अन्य विषय संकलित किये जाते हैं। किन्तु प्रज्ञा पंचांग में ग्रहस्फुट, लग्नसारणी को समाहित नहीं किया गया है। यदि आवश्यकता होती है अर्थात उपयोगकर्ताओं द्वारा मांग की जाती है तो ग्रहस्फुट समाहित किया जायेगा।
द्वितीय सारणी में क्रमशः आंग्ल दिनांक, प्रथम तिथि का शिववास, समाप्ति काल, द्वितीय तिथि का शिववास, दिक्शूल, योगिनिशूल, दिन का प्रथम-द्वितीय-तृतीय अर्द्धप्रहरा, रात्रि का प्रथम-द्वितीय-तृतीय अर्द्धप्रहरा दिया गया है। तत्पश्चात अन्य महत्वपूर्ण विषय, शास्त्रोक्त विशेष प्रमाण आदि दिये गये हैं।
प्रज्ञा पंचांग का समय (घंटा मिनट)
अन्य पंचांगों में यह क्रम परिवर्तित होता रहता है जिसे ऊपरी भाग में ही बताया भी जाता है। इसके साथ ही प्रज्ञा पंचांग में सभी समय समाप्ति काल है एवं घंटा मिनट में अंकित किया गया है जो कि प्रामाणिक भारतीय समय है।
समय संबंधी विषय में पारम्परिक पंचांगों में दण्ड-पलात्मक विवरण भी रहता है जो प्रज्ञा-पंचांग में तत्काल नहीं दिया गया है किन्तु यदि इसकी आवश्यकता हुई अर्थात उपयोगकर्ताओं की विशेष मांग होने पर समाहित किया जा सकता है।
अन्य पंचांगों में जो पारम्परिक रूप से प्रकाशित किये जाते हैं उसमें समय (घंटा मिनट) स्थानीय दिये जाते हैं एवं दृक पंचांगों में मानक।
प्रज्ञा-पंचांग में सूर्योदय एवं सूर्यास्त बेगूसराय का दिया गया है जिसे अन्य स्थान में परिवर्तित करने हेतु देशांतर संस्कार की अपेक्षा होती है। देशांतर संस्कार संबंधी पृथक आलेख भी प्रकाशित किया गया है एवं अनेकानेक जिलों का देशांतर दिया गया है तथापि जिन जिलों के अंकित न हों और अपेक्षा हो तो उसके बारे में हमें ईमेल करके सूचित कर सकते हैं यथाशीघ्र अपेक्षित जिलों के भी देशांतर अंकित कर दिये जायेंगे एवं ईमेल के माध्यम से भी सूचित कर दिया जायेगा। ईमेल : info@karmkandsikhen.in
प्रज्ञा पञ्चाङ्ग वेबसाइट कर्मकांड सीखें वेबसाइट की एक शाखा के समान है जो इसके URL से भी स्पष्ट हो जाता है। यहां पंचांग, व्रत-पर्व, मुहूर्त आदि विषय जो ज्योतिष से संबद्ध होते हैं उसकी चर्चा की जाती है एवं दृक् पंचांग (डिजिटल) प्रकाशित किया जाता है। जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है। साथ ही यदि आपको किसी भी मास का प्रज्ञा पंचांग (PDF) चाहिये तो यह टेलीग्राम और व्हाट्सप चैनलों पर दिया जाता है, इसके लिये आप टेलीग्राम और व्हाट्सप चैनल को अवश्य सब्स्क्राइब कर लें। यहां सभी नवीनतम आलेखों को साझा किया जाता है, सब्सक्राइब करे : Telegram Whatsapp Youtube
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