गणना का आधार सूर्योदय है तो स्थूल क्यों ~ suryoday ka samay

गणना का आधार सूर्योदय है तो स्थूल क्यों ~ suryoday ka samay

उपरोक्त प्रश्न के बारे में आपको लग रहा होगा कि ऐसा प्रश्न क्यों किया जा रहा है, स्थूल सूर्योदय का तात्पर्य क्या है अथवा त्रुटि क्या है आदि-इत्यादि। वास्तविकता यह है कि पंचांगों में सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करने की विधि बताई रहती है किन्तु हम उस विधि का अनुसरण नहीं करते अथवा गणितीय क्रियाओं से पीछा छुड़ाते हैं जिस कारण सूर्योदय स्थूल हो जाता है जबकि गणना का आधार सूर्योदय ही होता है क्योंकि इष्टकाल सूर्योदय से ही अंतर होता है अथवा ज्ञात होता है। यहां स्थूल सूर्योदय की चर्चा करते हुये सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करने की विधि बताई गयी है।

“ज्योतिष सीखें” से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

पूर्व में हमने सामान्य जन्म पत्रिका निर्माण करने से संबंधित जो कुछ भी सीखा है उसमें अनेकानेक त्रुटियां हैं यथा; स्थूल सूर्योदय, देशांतर संबंधी त्रुटि, लग्नसारणी की त्रुटि आदि जिनको आगे धीरे-धीरे समझेंगे। अनेकों त्रुटियों में से प्रथम त्रुटि है स्थूल सूर्योदय ग्रहण करना।

ज्योतिषीय गणना का आधार सूर्य है, सूर्य के आधार पर ही वर्ष अयन, गोल, ऋतु, मास दिन, दिनमान आदि निर्धारित होते हैं, यदि चान्द्रमास की भी बात करें तो वह भी सूर्य के सापेक्ष ही होता है। जातक ज्योतिष में जन्म कुंडली अथवा जन्मपत्रिका का आधार इष्टकाल होता है किन्तु इष्टकाल का आधार सूर्योदय होता है।

  • यदि इष्टकाल में त्रुटि होगी तो सम्पूर्ण जन्मपत्री त्रुटिपूर्ण हो जायेगी।
  • यदि सूर्योदय त्रुटिपूर्ण होगा तो इष्टकाल में ही त्रुटि आ जायेगी।

अब तक हमने जिस विधि से जन्मपत्री निर्माण करना सीखा है उसमें स्थूल सूर्योदय लिया गया है अर्थात वह त्रुटिपूर्ण है एवं इसकी सिद्धि तब हो जायेगी जब उन्हीं अभ्यासों में हम स्थूल सूर्योदय के स्थान पर सूक्ष्म सूर्योदय स्थापित कर देंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि इस आलेख में हम सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करना सीखेंगे और तदनन्तर पूर्व में जो प्रमुख अभ्यास किये गये हैं उन अभ्यासों में हम स्थूल सूर्योदय के स्थान पर सूक्ष्म सूर्योदय रखकर पुनः इष्टकाल बनाकर अंतर को समझेंगे।

इसे समझने हेतु हमें प्रारंभिक खगोलीय ज्ञान की आवश्यकता होगी; भचक्र, सूर्यपथ, परमक्रांति, सूर्यक्रांति, चरांश, चरमिनट आदि को समझना होगा और जब हम इन्हें समझ लेंगे तब हमारे पास स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करने के दो विकल्प होंगे प्रथम गणितपूर्वक स्थानीय सूर्योदय बनाना और द्वितीय पंचांग से सूर्यक्रांति, चरमिनट ज्ञात करके स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना।

सूर्य क्रांति

हम प्रतिदिन भले ही अनुभव न कर पाते हों किन्तु यदि ध्यान दें तो प्रतिसप्ताह अनुभव कर सकते हैं और मासिक रूप से तो अनुभव करते भी हैं कि सूर्य कभी पूर्व में उदित होता है तो कभी उत्तर की ओर उदित होते दिखता है, तो कभी दक्षिण की ओर उदित होता है। ये उत्तर और दक्षिण दिशा न समझें, पूर्व दिशा में ही उत्तर-दक्षिण भाग समझें।

इसे सूर्य के किरणों का स्थान देखकर, अथवा छाया देखकर समझ सकते हैं। यदि किसी घर में खिड़की आदि से प्रातः काल की सूर्य किरण आती हो तो वो कितनी तिरछी है इसका अवलोकन करें, अथवा किसी दण्ड को भूमि में खड़ा कर दें और प्रतिदिन निश्चित समय पर उसकी छाया को चिह्नित करें; तो प्रतिदिन भी अंतर होता है यह समझ सकते हैं।

मध्याह्न काल में जिस दिन दण्ड की छाया नहीं बनेगी उस दिन सूर्य की सीधी किरण (लम्बवत) पृथ्वी के उस अक्षांश पर आ रही होती है अर्थात सूर्य उस अक्षांश पर उस दिन लम्बवत चमकता है, इसी को सूर्य क्रांति कहते हैं। अर्थात

“सूर्य जिस अक्षांश पर हो (लम्बवत चमके) वही अक्षांश सूर्य क्रांति कहलाती है।”

सूर्यक्रांति प्रतिदिन उत्तर अथवा दक्षिण की ओर खिसकता रहता है और सूर्य क्रांति के अनुसार स्थान विशेष का दिनमान घटता-बढ़ता है। दिनमान के वृद्धि-ह्रास का तात्पर्य है कि सूर्योदय और सूर्यास्त घटता-बढ़ता है।

पंचांग का गणित जिस अक्षांश पर किया जाता है पंचांग में उसी अक्षांश का दिनमान भी होता है और तदनुसार सूर्योदय-सूर्यास्त भी दिया जाता है।

यदि जन्म स्थान का अक्षांश पंचांग के अक्षांश से भिन्न है तो दिनमान में अंतर होगा और दिनमान में अंतर होगा तो सूर्योदय व सूर्यास्त भी भिन्न होगा, यदि सूर्योदय भिन्न होगा तो इष्टकाल भी भिन्न होगा।

किन्तु अभी तक हमने जो गणना किया है उसमें जन्मस्थान का अक्षांश कुछ भी हो पंचांग का ही सूर्योदय लेकर इष्टकाल बनाते रहे हैं और यही त्रुटि उन इष्टकालों में होगी।

यथा पंचांग यदि २४/०० अक्षांश का है और जन्मस्थान का अक्षांश यदि २७/०० है तो दोनों का दिनमान भिन्न होगा और सूर्योदय में भी अंतर होगा और यदि हमने पंचांग का सूर्योदय अर्थात २४/०० अक्षांश के सूर्योदय से ही इष्टकाल बनाया है तो वह त्रुटिपूर्ण होगा क्योंकि २७/०० अक्षांश का दिनमान भिन्न होगा कर सूर्योदय भी भिन्न होगा।

इस प्रकार सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करने के लिये सूर्यक्रांति की आवश्यकता होती है और सूर्य क्रांति को ज्ञात करने के लिये परम क्रांति की आवश्यकता होती है अर्थात सूर्य क्रांति को ज्ञात करने की विधि समझने से पूर्व हमें परम क्रांति को समझना होगा।

सूर्य जब उत्तरी गोलार्द्ध में हो तो उत्तर सूर्य क्रांति होती है एवं सूर्य जब दक्षिण गोलार्द्ध में हो तो दक्षिण सूर्य क्रांति होती है।

सूर्य २१ मार्च और २३ सितम्बर को विषुवत रेखा पर लम्बवत हो सकता है, २१ जून को कर्क रेखा पर और २२/२३ दिसम्बर को मकर रेखा पर हो सकता है। अर्थात उस दिन की वही सूर्य क्रांति होती है।

सूर्यक्रांति = sin -1 (sin सायन सूर्य × sin परमक्रांति)

परम क्रांति

सूर्य की अधिकतम जो क्रांति होती है वह परमक्रांति कहलाती है। हम देखते हैं कि सूर्य जब दक्षिण की ओर खिसकता रहता है तो एक विशेष भाग तक जाकर पुनः उत्तर की ओर खिंसकने लगता है और पुनः उत्तर की ओर खिंसकते हुये भी एक विशेष भाग से आगे नहीं जाता वापस दक्षिण की ओर खिंसकने लगता है।

मार्च विषुव मेष संक्रांति (सायन) से सितम्बर विषुव तुला संक्रांति (सायन) तक सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में रहता है अर्थात मार्च विषुव (लगभग २१ मार्च) को सायन मेष संक्रांति होती है और सूर्य विषुवत रेखा पर होता है अर्थात सूर्यक्रांति शून्य होती है। २१ जून को सायन कर्क संक्रांति तक सूर्य उत्तर की ओर खिंसकता है अर्थात उत्तर क्रांति होती है और वर्तमान में अधिकतम २३/२६/०९ तक सूर्यक्रांति होती है।

पुनः २१ जून (सायन कर्क संक्रांति) से दक्षिण की ओर खिंसकते हुये (जिसे दक्षिणायन होना कहते हैं) २३ सितम्बर को सूर्य विषुवत रेखा पर होता है और सूर्यक्रांति ० होती है। २३ सितम्बर अर्थात सायन तुला संक्रांति से सूर्य दक्षिण की ओर खिंसकने लगता है, अर्थात दक्षिणी गोलार्द्ध में चला जाता है जो २२/२३ दिसम्बर; सायन मकर संक्रांति तक चलता है और दक्षिण क्रांति होती है। सायन मकर संक्रांति के दिन अधिकतम सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता जो वर्तमान में २३/२६/०९ है।

सायन मकर संक्रांति (२२/२३ दिसम्बर) से सूर्य पुनः उत्तर की ओर खिंसकने लगता है जिसे उत्तरायण होना कहते हैं और पुनः २१ मार्च अर्थात सायन मेष संक्रांति को सूर्य पुनः विषुवत रेखा पर होता है और सूर्य क्रांति पुनः ० होती है।

अब आगे; हम जानते हैं कि वर्तमान में पृथ्वी अपने अक्ष पर २३/२६/०९ झुकी हुयी है और यह झुकाव मंद गति से घटता जा रहा है। वास्तव में पृथ्वी की धूरि पेण्डुलम की भांति ही दोनों ओर चलती रहती है जिसका १ चक्र लगभग ४१००० वर्षों में पूर्ण होता है। पृथ्वी का यही झुकाव है जिसके कारण सूर्य कभी उत्तरी गोलार्द्ध में रहता है तो कभी दक्षिणी गोलार्द्ध में और वर्तमान में अधिकतम २३/२६/०९ तक खिंसकता है। इस प्रकार वर्तमान में परम क्रांति २३/२६/०९ है।

इस परम क्रांति और अक्षांश के आधार पर त्रैराशिक विधि से सूर्य क्रांति ज्ञात किया जाता है। अर्थात सूर्य क्रांति को ज्ञात करने के लिये परम क्रांति की आवश्यकता होती है। पृथ्वी का झुकाव प्रतिवर्ष ०.४६८ विकला घटती है अर्थात् परम क्रांति भी प्रतिवर्ष ०.४६८ विकला कम होता रहता है। २०२५ में परमक्रांति २३/२६/०९ है।

पंचांगों में उत्तरायण-दक्षिणायन, उत्तरी गोल-दक्षिणी गोल निरयण करके दिया जाता है अर्थात लगभग २३-२४ दिन के पश्चात् दिया जाता है। चान्द्र मास, व्रत-पर्व, पुण्यकाल, शुभमुहूर्त आदि निरयण सूर्य से ही किया जाता है। किन्तु सूर्यक्रांति, चरांश आदि सायन सूर्य से ज्ञात किये जाते हैं।

चर

दिनार्द्ध अर्थात दिनमान का आधा अर्थात ६ घंटा अथवा १५ घटी चर (मिनट/पल) के तुल्य न्यूनाधिक (±) होता है। यदि चर (मिनट/पल) को द्विगुणित कर दें तो दिनमान (१२ घंटा अथवा ३० दण्ड) से उतना ही न्यूनाधिक दिनमान होता है।

यदि चर ४ मिनट हो अर्थात १० पल हो तो दिनार्द्ध ५ घंटा ५६ मिनट अथवा ६ घंटा ०४ मिनट होगा, यदि घट्यात्मक में हो तो १४ घटी ५० पल अथवा ६ घटी १० पल होगा। इस प्रकार दिनमान ११ घंटा ५२ मिनट या १२ घंटा ८ मिनट, घट्यात्मक दिनमान २९/४० या ३०/२० होगा।

सूर्य यदि उत्तरी गोलार्द्ध में हो तो चर धनात्मक (+) होता है और यदि दक्षिणी गोलार्द्ध में हो तो ऋणात्मक (-) होता है। इस प्रकार से :

  • दिनार्द्ध = ६ ± चर मिनट
  • दिनमान = १२ ± द्विगुणित चर मिनट अथवा
  • दिनार्द्ध को ही द्विगुणित कर दें तो दिनमान हो जायेगा।
  • रात्र्यर्द्ध = ६ ± विपरीत चर मिनट
  • रात्रिमान = १२ ± द्विगुणित चर मिनट (विपरीत) अथवा
  • रात्र्यर्द्ध को ही द्विगुणित कर दें तो रात्रिमान हो जायेगा।

दिनार्द्ध और रात्र्यर्द्ध ही स्थानीय सूर्यास्त और सूर्योदय होता है जिसे मानक बनाने के लिये देशांतर और वेलांतर संस्कार (विपरीत) करना होता है। अर्थात

  • यदि ६ घंटा में चर मिनट को ± (चिह्न के अनुसार) करें तो दिनार्द्ध प्राप्त होता है और वही उस दिन का स्थानीय सूर्यास्त भी होता है।
  • इसी प्रकार ६ घंटे में यदि चर मिनट को ± (चिह्न के विपरीत) करें तो रात्र्यर्द्ध प्राप्त होता है और वही उस दिन का स्थानीय सूर्योदय भी होता है।

चर मिनट अथवा पल ज्ञात करने के लिये चारांष की आवश्यकता होती है, चर मिनट चरांश का चतुर्गुणित होता है। चरांश सूर्यक्रांति और अक्षांश की आवश्यकता होती है। स्पर्श ज्या (tan) सूर्यक्रांति को स्पर्श ज्या (tan) अक्षांश से गुणित करने पर चरांश प्राप्त होता है। यदि सूत्र के रूप में व्यक्त किया जाय तो इस प्रकार होगा :

  • चरांश = sin -1(tan सूर्यक्रांति × tan अक्षांश)
  • चर मिनट = चरांश × ४ (चर पल = चरांश × १०)

इस प्रकार यह सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करने की विधि है। इस विधि से जिस अक्षांश पर जन्म हो उस स्थान का स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करके विपरीत देशांतर और वेलांतर संस्कार करने पर वह उस स्थान का मानक सूर्योदय हो जाता है। यदि जन्म समय में इस मानक सूर्योदय को ऋण करें तो सूक्ष्म इष्टकाल अथवा शुद्धतम इष्टकाल प्राप्त होता है।

उपरोक्त विधि को हम अभ्यास करते हुये भी समझेंगे किन्तु यह विधि जटिल है और इसके लिये कैलकुलेटर की भी आवश्यकता होती है क्योंकि इसमें sin-tan का भी प्रयोग किया जाता है। तथापि वर्त्तमान में सबके लिये कैलकुलेटर (साइंटिफिक) मोबाइल में भी सर्वोपलब्ध है इस कारण इसे जटिल कहना भी सही नहीं होगा। किन्तु आगे सारणी के माध्यम से अर्थात बिना साइंटिफिक कैलकुलेटर के भी चर मिनट ज्ञात करना सीखेंगे किन्तु प्रथमतः उपरोक्त विधि का अभ्यास ही करेंगे :

चर मिनट ज्ञात करना

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, शुक्रवार तदनुसार आंग्ल दिनांक १४/०३/२०२५ का हम बेगूसराय के लिये चर मिनट ज्ञात करेंगे। इसके लिये हमें औदयिक सूर्य राश्यादि, अयनांश, परम क्रांति और बेगूसराय के अक्षांश की आवश्यकता होगी जो इस प्रकार है :

  • औदयिक सूर्य राश्यादि : १०/२९/२८/३७
  • अयनांश : २४/१२/३० (चित्रापक्षीय)
  • सायन सूर्य : ११/२३/४१/०७ = ३५३/४१/०७
  • परम क्रांति : २३/२६/०९
  • अक्षांश : २५/२५ उत्तर
  • सूर्यक्रांति = sin-1(sin सायन सूर्य × sin परमक्रांति)
  • चरांश = sin-1(tan सूर्यक्रांति × tan अक्षांश)
  • चर मिनट = चरांश × ४
  • चर पल = चरांश × १०
  • सूर्यक्रांति = sin-1(sin 353/41/07 × sin 23/26/09)
  • = (-) 2.51
  • = (-) 2/30/26

सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में है इसलिये सूर्यक्रांति ऋणात्मक २ अंश ३० कला २६ विकला है (-2/30/26)

  • चरांश = sin-1(tan -2/30/26 × tan 25/25)
  • = (-) 1.19

अब हम चरांश (-) 1.19 को चतुर्गुणित करेंगे तो चर मिनट आएगा और यदि दशगुणित करेंगे तो चर पल होगा।

  • (-) 1.19 × 4 = (-) 4.77 अथवा ४ मिनट ४६ सेकण्ड (ऋणात्मक)
  • (-) 1.19 × 10 = (-) 11.92 अथवा ११ पल ५५ कला (ऋणात्मक)

दिनार्द्ध और रात्र्यर्द्ध अथवा स्थानीय सूर्यास्त और सूर्योदय

  • दिनार्द्ध अथवा स्थानीय सूर्यास्त = ६/००/०० – ०/०४/४६ = ५/५५/१४ या ५/५५
  • रात्र्यर्द्ध अथवा स्थानीय सूर्योदय = ६/००/०० – ०/०४/४६ = ६/०४/४६ या ६/०५

अब यदि हम उन पंचांगों के अनुसार सूर्योदय लें जिसका अक्षांश भिन्न है यथा मिथिलादेशीय पंचांगों का अक्षांश २४/२८ उत्तर है तो उनमें स्थानीय सूर्योदय ६/०६ है जबकि बेगूसराय का स्थानीय सूर्योदय ६/०५ ही ज्ञात होता है। ये अत्यल्प अंतर है किन्तु अनेकों बार अधिक अंतर भी होता है। चरमिनट जितना बढ़ता जायेगा ये अंतर भी उतना ही बढ़ता जायेगा।

इसे हम दूसरे उदाहरण से समझेंगे, दिनांक ११ जून २०२५ , ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा , बुधवार का चरमिनट, स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करके पंचांगों में अंकित सूर्योदय के अंतर को समझते हैं :

  • औदयिक सूर्य राश्यादि : १/२६/०७/०४ (५६/०७/०४)
  • अयनांश : २४/१२/४२ (चित्रापक्षीय)
  • सायन सूर्य : २/२०/१९/४६ = ८०/१९/४६
  • परम क्रांति : २३/२६/०९
  • अक्षांश : २५/२५ उत्तर
  • सूर्यक्रांति = sin-1(sin80/19/46 × sin23/26/09)
  • = 23.08 या २३/०५ धनात्मक
  • चरांश = sin -1(tan 23/05 × tan 25/25)
  • = 11.68 धनात्मक
  • चर मिनट = 11.68 × 4 = 46/44

चरमिनट धनात्मक ४६/४४ है अर्थात ६ घंटा में ऋण करने पर बेगूसराय का स्थानीय सूर्योदय होगा कर ६ घंटा में योग करने पर बेगूसराय का स्थानीय सूर्यास्त होगा।

  • स्थानीय सूर्योदय : ५/१३ (६/०० – ००/४७)
  • स्थानीय सूर्यास्त : ६/४७

मिथिलादेशीय पंचांगों में स्थानीय सूर्योदय ५/११ प्राप्त होता है जो प्राप्त सूर्योदय से २ मिनट कम है अर्थात यदि बेगूसराय के किसी जातक हेतु इष्टकाल बनायें तो ५ पल अधिक होगा। यदि शताब्दि पंचांग में अवलोकन करते हैं तो सूर्योदय ५/०८ मिलता है जिससे ५ मिनट अधिक है अर्थात शताब्दि पंचांग के स्थानीय सूर्योदय को लेकर बेगूसराय के जातक का इष्टकाल बनाने पर १३ पल अधिक होगा। यदि हृषीकेश पंचांग का स्थानीय सूर्योदय लें तो उसमें ५/१४ सूर्योदय है।

इस प्रकार यदि सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात नहीं करते हैं तो निःसंदेह इष्टकाल में अंतर होगा और यदि लग्न संधिकाल के निकट हो तो लग्न परिवर्तन भी हो सकता है।

अब इस प्रश्न का तात्पर्य स्पष्ट हो जाता है कि “गणना का आधार सूर्योदय है तो स्थूल क्यों”

अगले आलेख में हम चरमिनट ज्ञात करने की सरल विधि अर्थात सारणी से ज्ञात करने की विधि को भी समझेंगे जो उपरोक्त विधि की अपेक्षा बहुत ही सरल होगी। यदि उपरोक्त विधि से आप अभ्यास करेंगे तो यह विधि अधिक सूक्ष्म है। इसके लिये आपको कुछ दिनों तक आज का सूर्योदय और आज का सूर्यास्त ज्ञात करना होगा। यदि कुछ दिनों तक आज का सूर्योदय ज्ञात करने का अभ्यास करें तो सरलता से सीख जायेंगे। और यदि एक बार सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात करना सीख लेंगे तो सदैव सूक्ष्म सूर्योदय ही ज्ञात किया करेंगे।

निष्कर्ष : किसी भी जातक के जन्मपत्रिका का आधार इष्टकाल होता है और इष्टकाल का आधार सूर्योदय होता है। पंचांगों में जो सूर्योदय अंकित होते हैं उसमें देशांतर और वेलांतर संस्कार करने पर भी वो भिन्न अक्षांश के स्थानीय में परिवर्तित नहीं होते हैं। स्थानीय सूर्योदय में अंतर होने से इष्टकाल में भी अंतर होता है। यद्यपि गणित करके सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात किया जा सकता है तथापि इसकी विधि जटिल है फिर भी वर्त्तमान में साइंटिफिक कैलकुलेटर मोबाइल में उपलब्ध होने के कारण जटिल नहीं है।

विद्वद्जनों से आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।

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