पूर्व आलेख में हमने परमक्रांति से सूर्यक्रांति ज्ञात करना, सूर्यक्रांति से चरांश ज्ञात करना और फिर चरमिनट ज्ञात करके स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना सीखा किन्तु यह विधि कुछ जटिल है। यदि हम सारणी विधि से सूर्यक्रांति और चरमिनट ज्ञात करना सीख लें तो स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना सरल हो जायेगा और यदि सूक्ष्म स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना सीख लें तो इष्टकाल भी शुद्ध होगा। इस आलेख में सारणी विधि से सूर्य क्रांति ज्ञात करना, चरमिनट ज्ञात करना और स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना बताया गया है।
जन्मपत्री बनाने के लिये सर्वप्रथम सूर्योदय को सही करना सीखें ~ suryoday ka samay
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इसकी स्वीकार्यता सिद्ध है कि गणना को सूक्ष्मतम रखना चाहिये, भले ही गणना की विधि सरल हो अथवा नहीं। पूर्व आलेख में हम भली भांति समझ चुके हैं कि अक्षांश में परिवर्तन होने से सूर्योदय में भी परिवर्तन होता है और यदि वह पंचांग जिससे जन्मपत्री बनायी जा रही है जातक के जन्मस्थान के अक्षांश से १/०० का भी अंतर हो तो सूर्योदय में अंतर होगा और उसे जन्मस्थानिक करना आवश्यक होता है अन्यथा इष्टकाल ही शुद्ध नहीं होता और यदि इष्टकाल ही शुद्ध न हो तो जन्मपत्री कैसे शुद्ध होगी।
हम यहां सारणी विधि से प्रथमतः सूर्यक्रांति ज्ञात करना सीखेंगे और तदनन्तर सूर्यक्रांति से चरमिनट ज्ञात करना और फिर स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना।
सूर्यक्रांति
सारणी में सूर्यक्रांति ज्ञात करने की विधि यह है कि लगभग दिनांकों के अनुसार सूर्य का अंश समान ही रहता है, लीप ईयर में थोड़ा परिवर्तित होता है। तथापि सूर्यक्रांति में इतना परिवर्तन नहीं होता कि चरमिनट में बहुत ही परिवर्तन हो जाये। इस कारण आंग्ल माह और दिनांक के आधार पर सूर्यक्रांति को प्रयोग करने के लिये सारणीबद्ध किया जा सकता है ताकि सामान्य ज्योतिषी भी इसका लाभ प्राप्त कर सकें जो गणित करके सूर्यक्रांति ज्ञात नहीं कर सकते।
यद्यपि गणित करके जितना सूक्ष्म सूर्योदय ज्ञात किया जा सकता है सारणी से उतना सूक्ष्म होना संभव नहीं है तथापि अन्य अक्षांशों के सूर्योदय को पंचांग से ग्रहण करने की अपेक्षा सारणी से चरमिनट ज्ञात करके उससे स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करना अधिक उपर्युक्त होगा।
ऊपर दी गयी सारणी से सर्वप्रथम माह के सामने दिनांक के नीचे वाले कोष्ठक में सूर्यक्रांति ज्ञात करें। तदनन्तर उसके नीचे वाली चर सारणी से अक्षांश के सामने सूर्य क्रांति अंश का चर मिनट ज्ञात करें। सारणी से निकटतम मान ग्रहण किया जाता है तथापि अंतर को भी गणित करके ज्ञात किया जा सकता है।
चर
दिनार्द्ध अर्थात दिनमान का आधा अर्थात ६ घंटा अथवा १५ घटी चर (मिनट/पल) के तुल्य न्यूनाधिक (±) होता है। यदि चर (मिनट/पल) को द्विगुणित कर दें तो दिनमान (१२ घंटा अथवा ३० दण्ड) से उतना ही न्यूनाधिक दिनमान होता है।
यदि चर ४ मिनट हो अर्थात १० पल हो तो दिनार्द्ध ५ घंटा ५६ मिनट अथवा ६ घंटा ०४ मिनट होगा, यदि घट्यात्मक में हो तो १४ घटी ५० पल अथवा ६ घटी १० पल होगा। इस प्रकार दिनमान ११ घंटा ५२ मिनट या १२ घंटा ८ मिनट, घट्यात्मक दिनमान २९/४० या ३०/२० होगा।
सूर्य यदि उत्तरी गोलार्द्ध में हो तो चर धनात्मक (+) होता है और यदि दक्षिणी गोलार्द्ध में हो तो ऋणात्मक (-) होता है। इस प्रकार से :
- दिनार्द्ध = ६ ± चर मिनट
- दिनमान = १२ ± द्विगुणित चर मिनट अथवा
- दिनार्द्ध को ही द्विगुणित कर दें तो दिनमान हो जायेगा।
- रात्र्यर्द्ध = ६ ± विपरीत चर मिनट
- रात्रिमान = १२ ± द्विगुणित चर मिनट (विपरीत) अथवा
- रात्र्यर्द्ध को ही द्विगुणित कर दें तो रात्रिमान हो जायेगा।
चर मिनट ज्ञात करना
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, शुक्रवार तदनुसार आंग्ल दिनांक १४/०३/२०२५ का बेगूसराय के लिये पूर्व आलेख में हमने गणित करके चरमिनट ज्ञात किया था अब सारणी के द्वारा चर मिनट ज्ञात करेंगे।
पूर्व आलेख में हमने जो ज्ञात किया था वो इस प्रकार है :
- (-) 1.19 × 4 = (-) 4.77 अथवा ४ मिनट ४६ सेकण्ड (ऋणात्मक)
- (-) 1.19 × 10 = (-) 11.92 अथवा ११ पल ५५ कला (ऋणात्मक)
- दिनार्द्ध अथवा स्थानीय सूर्यास्त = ६/००/०० – ०/०४/४६ = ५/५५/१४ या ५/५५
- रात्र्यर्द्ध अथवा स्थानीय सूर्योदय = ६/००/०० + ०/०४/४६ = ६/०४/४६ या ६/०५
अब हम सारणी द्वारा पुनः ज्ञात करेंगे
सारणी द्वारा ज्ञात करने से पूर्व हमें यह समझना होगा कि हमारा अक्षांश जो २५/२५ उत्तर है उसके लिये हम कौन से मान लें २५ अक्षांश का अथवा २६ अक्षांश का। नियमानुसार हम २५ अक्षांश का ले सकते हैं किन्तु उससे भी निकटतम कर सूक्ष्म होगा २५/३० कर लें तो। इसके लिये हमें २५ अक्षांश कर २६ अक्षांश दोनों का मान ज्ञात करके उसके मध्य का मान ग्रहण करना होगा। यह अनुमान भी कर सकते हैं अथवा दोनों का योग करके २ से भाग दे देंगे तो भी मध्य मान आ जायेगा। इसी प्रकार सूर्यक्रांति २/३८ के लिये भी २ और ३ क्रांति का मध्य मान लेंगे।
- दिनांक : १४/०३/२०२५
- अक्षांश : २५/२५ उत्तर (बेगूसराय)
- सूर्य क्रांति सारणी से दिनांक १४/०३/२०२५ की सूर्य क्रांति : २/३८
- चर सारणी से २५ अक्षांश के नीचे २ अंश सूर्य क्रांति वाले कोष्ठक का मान : ३/४४, २६ अक्षांश का मान : ३/५४, मध्य मान : ३/४९
- चर सारणी से २५ अक्षांश के नीचे ३ अंश सूर्य क्रांति वाले कोष्ठक का मान : ५/३६, २६ अक्षांश का मान : ५/५२, मध्य मान : ५/४४
- ३/४९ और ५/४४ का मध्य मान : ४/४६ अर्थात ५ मिनट
- दिनार्द्ध अथवा स्थानीय सूर्योदय = ६/००/०० + ०/०५ = ६/०५
- पंचांग में अंकित सूर्योदय = ६/०६
दूसरा उदाहरण : दिनांक ११ जून २०२५ , ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा , बुधवार का :
- ज्ञात चरमिनट : (+) ४६/४४
- बेगूसराय का स्थानीय सूर्योदय : ५/१३
सारणी से ज्ञात सूर्यक्रांति, चरमिनट और बेगूसराय का स्थानीय सूर्योदय :
- सारणी से ११ जून की सूर्यक्रांति : २३/०४
- चरसारणी से २३ सूर्यक्रांति और २५ अक्षांश मान : ४५/४०
- चरसारणी से २३ सूर्यक्रांति और २६ अक्षांश मान : ४७/४८
- ४५/४० और ४७/४८ का मध्य मान : ४६/४५ अर्थात ४७ मिनट
- बेगूसराय का स्थानीय सूर्योदय : ६/०० – ०/४७ = ५/१३
- पंचांग में अंकित सूर्योदय = ५/११
इसी प्रकार आप पंचांग के सूर्योदय का परिक्षण कर सकते हैं। मिथिलादेशीय पंचांगों का २६/३५ है अर्थात २६ अक्षांश कर २७ अक्षांश का मध्य मान ग्रहण किया जायेगा।
निष्कर्ष : उपरोक्त सारणी विधि से सूर्यक्रांति और चर मिनट ज्ञात करके भी स्थानीय सूर्योदय ज्ञात करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि यदि पंचांग से प्राप्त सूर्योदय का ही जातक के जन्मस्थान का स्थानीय सूर्योदय मानकर इष्टकाल ज्ञात करते हैं तो इष्टकाल स्थूल हो जाता है। और यदि गणित करके चरमिनट ज्ञात न कर पायें तो सारणी विधि से ही सही जातक के जन्मस्थान का सूक्ष्म सूर्योदय बनाकर ही इष्टकाल बनाना चाहिये, क्योंकि सारणी विधि से भी यदि ध्यान पूर्वक चरमिनट ज्ञात करें तो लगभग शुद्ध ही होता है।
विद्वद्जनों से आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।
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