हस्तलिखित जन्म पत्रिका बनाने की विधि प्रथम भाग – janam patrika kaise banaye

हस्तलिखित जन्म पत्रिका बनाने की विधि प्रथम भाग - janam patrika kaise banaye

अब तक हम क्रमशः समय संस्कार से लेकर अंतर्दशा अन्तर्दशा अंकन करने तक की सभी गणितीय प्रक्रिया को समझ चुके हैं और विभिन्न पंचांगों को देखना भी सीख चुके हैं। जन्म पत्रिका निर्माण का यह प्रथम भाग है जिसमें गणितीय क्रिया की जाती है अर्थात इसे सामान्य जातक गणित कहा जायेगा। फलित भाग अर्थात फलादेश द्वितीय भाग होता है। हमने अब तक जिस सामान्य जातक गणित को समझा है उसका अनुकरण करते हुये यहां एक जन्म पत्रिका निर्माण करके देखेंगे अर्थात हस्तलिखित जन्म पत्रिका बनाने की विधि (janam patrika kaise banaye) जानेंगे।

अब तक हमने सीखा है :

“ज्योतिष सीखें” से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

वर्तमान युग में दिव्यता से दूर होकर आधुनिकता के नाम पर भौतिकता के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा है और इसी का दुष्परिणाम है कि अब दैवज्ञों का अभाव हो रहा है, किन्तु जिसे देखो मोबाईल से कुंडली वाला ऐप खोलकर, कंप्यूटर से जन्मपत्रिका प्रिंट करके ज्योतिषी बन जाता है। किन्तु ऐसे स्वयंभू ज्योतिषी जो होते हैं वो दैवज्ञों के चरणरजतुल्य भी नहीं होते हैं। ये स्वयंभू ज्योतिषी मोबाइल ऐप, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर आदि पर आश्रित होते हैं और दैवज्ञ का मस्तिष्क ही कंप्यूटर होता है। इसका प्रमाण शास्त्रों में विभिन्न कथाओं के रूप में मिलता है कि दैवज्ञ ऑंखें बंद करके ध्यान में ही सबकुछ जान जाते थे।

विध्वंस होना सदैव संभावित है और कंप्यूटर/सॉफ्टवेयर/मोबाइल/इंटरनेट आदि का नष्ट होना स्वाभाविक व अवश्यंभावी है अर्थात ये सभी नश्वर हैं और नष्ट होंगे किन्तु ज्ञान नश्वर नहीं है और न ही नष्ट होगा। विभिन्न कारणों अनेकों सभ्यतायें नष्ट हो चुकी है ये इतिहास बताता है किन्तु इतिहास पर विश्वास करें और शास्त्रों पर न करें तो उससे बड़ा मूर्ख नहीं हो सकता भले ही किसी भी यूनिवर्सिटी से कितना भी शिक्षित क्यों न हो। सभी सभ्यतायें समाप्त हुयी, अवशेष मिलते हैं किन्तु सनातन नष्ट नहीं हुयी सनातन के प्रमाण मिलते हैं।

यदि सम्पूर्ण विश्व कंप्यूटर/सॉफ्टवेयर/मोबाइल/इंटरनेट पर आश्रित हो जाये तो विध्वंस से साथ ही ज्ञान का भी नाश हो जायेगा।

किन्तु यदि ज्ञान की उपासना करते रहें तो सब-कुछ विध्वंस होने के पश्चात् भी ज्ञान विद्यमान रहेगा और हम अंधकारयुग में नहीं जायेंगे। इस कारण से भले ही कंप्यूटर/सॉफ्टवेयर/मोबाइल/इंटरनेट क्षणमात्र में शुद्धतम जन्मपत्रिका/पंचांग आदि प्रस्तुत करता तथापि उस पर आश्रित होने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिये। पंचांग निर्माण गणित से ही करना चाहिये, भले ही वेधसिद्धि विधि से उसका परीक्षण करना कठिन विधा क्यों न है। जन्मपत्रिका निर्माण भी गणितीय क्रिया से अवश्य ही करना चाहिये ये विद्या की उपासना है। अपडेट हों, आधुनिकता का यह अर्थ लगाना कि विद्या की उपासना नहीं करनी चाहिये भ्रम है।

वर्त्तमान में अधिकांश पंचांग इसी कारण से अदृश्य हो गए हैं क्योंकि गणक सारणी विधि पर आश्रित हो गये और वेधसिद्धि को भुला चुके हैं, दृश्य बनाने का ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाये हैं और इसी कारण प्रथम तो अदृश्य पंचांग का निर्माण करते हैं और तदनंतर अदृश्य के ग्राह्य होने को ही सिद्ध करने का कुतर्क रचते हैं। इस प्रकार के भयावह दुष्परिणाम से बचने के लिये विद्या की उपासना अपेक्षित है।

यदि आप गणित करके जन्मपत्रिका बनाते हैं तो यह एक प्रकार से विद्या की उपासना भी है। और यदि कम्प्यूटर/सॉफ्टवेयर/मोबाइल ऐप/इंटरनेट आदि माध्यमों का प्रयोग करते हुये गणितीय क्रिया का त्याग करते हैं तो यह विद्या अर्थात सरस्वती की उपेक्षा है।

जन्म पत्रिका बनाना

अस्तु यदि आप दैवज्ञ बनना चाहते हैं तो आपको विद्या की उपासना करनी चाहिये न कि उपेक्षा/तिरस्कार अर्थात यदि ज्योतिष विद्या सीखना है तो विद्या का उपासक बनना चाहिये। और अब हम पूर्व के आलेखों में बताई गयी विधि अर्थात समय संस्कार, इष्टकालानयन, लग्नानयन, जन्मकुंडली निर्माण, चन्द्र कुण्डली निर्माण, भयात-भभोग साधन, महादशा भुक्त-भोग्य वर्षादि साधन, अन्तर्दशा साधन करते हुये एक साथ जन्मपत्रिका निर्माण की पूरी विधि को देखेंगे जन्म पत्रिका लिखना भी सीखेंगे।

जन्म पत्रिका बनाने के लिये हमें किसी जन्म विवरण की आवश्यकता होती है और यहां हम एक काल्पनिक जन्म विवरण लेकर तदनुसार गणित करते हुये जन्मपत्रिका निर्माण करेंगे। यहां मिथिला पंचांग में जो सर्वाधिक प्रचलित पंचांग विश्वविद्यालय पंचांग (दरभंगा) है उसके आधार पर गणना करेंगे।

यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि यह पंचांग दृश्य नहीं है अर्थात अदृश्य है। किन्तु हम कोई वास्तविक जन्मपत्रिका निर्माण नहीं कर रहे हैं अपितु काल्पनिक विवरण से जन्मपत्रिका निर्माण कर रहे हैं जिसका उद्देश्य जन्मपत्रिका निर्माण विधि को समझना है।

यदि आप हमारे व्हाट्सअप चैनल से जुड़ना चाहते हैं तो यहां “क्लिक” करके जुड़ सकते हैं।

हमने यहां जन्मपत्रिका बनाना सीखने के लिए जो विवरण लिया है उसमें सभी नाम काल्पनिक है और समय दिनांक आदि भी अभ्यास हेतु लिया गया है ये किसी का वास्तविक जन्म समय नहीं है, यदि किसी का वास्तविक जन्म समय मिलता हो तो वह एक संयोग मात्र होगा। हमारे द्वारा लिया गया विवरण इस प्रकार है :

  • नाम : शीतांशु कुमार
  • पिता : शीतेश ठाकुर
  • पितामह : शीतल ठाकुर
  • तिथि : माघ कृष्ण एकादशी
  • दिन : शनिवार
  • जन्म स्थान : बेगूसराय
  • जन्म दिनांक : २५/०१/२०२५
  • जन्म समय : रात्रि २/४८
  • अक्षांश : २५/२५ उत्तर
  • रेखांश : ८६/०८ पूर्व
  • देशांतर : (+) ०/१४/३२
  • बेलांतर : (-) ०/१२/१०
विश्वविद्यालय पंचांग माघ कृष्ण पक्ष संवत २०८१
विश्वविद्यालय पंचांग माघ कृष्ण पक्ष संवत २०८१

जन्मकुंडली निर्माण हेतु विवरण और विश्वविद्यालय पंचांग का सम्बंधित पृष्ठ माघ कृष्ण पक्ष संवत २०८१ भी ऊपर संलग्न किया गया है। अन्य सारणी यथा प्रथम लग्न सारणी, विंशोत्तरी दशा सारणी आदि पूर्व आलेखों में दिया जा चुका है और पंचांगों में होता है यहां पुनः देने की आवश्यकता नहीं है, पूर्व आलेखों से डाउनलोड कर सकते हैं अथवा पंचांगों में भी अवलोकन कर सकते हैं। सूर्योदय, मिश्रमान, मिश्रमानकालिक ग्रह स्पष्ट आदि पंचांग से यथावत लिये जायेंगे।

जन्मसमय रात २/४८ है जिसका तात्पर्य है कि यदि सॉफ्टवेयर, मोबाइल ऐप आदि में दिनांक डालना हो तो २६/०१/२०२५ देना होगा किन्तु ज्योतिष गणना में एवं जन्मपत्रिका में दिनांक २५/०१/२०२५ ही अंकित किया जायेगा।

जातक ज्योतिष गणित

समय संस्कार अर्थात भारतीय मानक समय को स्थानीय समय में बदलने की क्रिया : देशांतर व बेलांतर संस्कार

इष्टकालानयन

२/४८ रात्रि मानक जन्म समय = २६/४८

  • = २६/४८
  • + ०/१४/३२ देशांतर संस्कार
  • – ०/१२/१० बेलांतर संस्कार
    = २६/५०/२२ संस्कारित समय अथवा स्थानीय जन्म समय
  • – ०६/४० सूर्योदय (पंचांग से)
  • = २०/१०/२२
  • × २.५
    = ५०/२५/५५ अथवा ५०/२६

इष्टकाल : ५०/२६

लग्नानयन

  • मिश्रमानकालिक सूर्य : ९/११/३७/२१
  • मिश्रमान : ४३/२०

मिश्रमान कालिक सूर्य में लग्नानयन विधि किंचित प्रभावित होती है। यथा आज के मिश्रमान कालिक सूर्य का तात्पर्य है आज मध्यरात्रि में जो सूर्य की राश्यादि होगी। लग्न गणना सूर्योदय से होती है और सूर्योदय काल के निकट का सूर्य विगत दिन का मिश्रमान कालिक जो होगा वह होगा।

तथापि इस विधि को तब समझेंगे जब विशेष गणितीय क्रियाओं की चर्चा आरंभ करेंगे। तत्काल ये समझते हुये भी कि पूर्व मिश्रमान कालिक सूर्य से लग्न गणना उचित है; हम प्रचलित विधि से ही लग्नानयन करेंगे।

प्रथम लग्न सारणी से मकर राशि के ११ अंश का मान लिया जो : ५२/४४/२८ है इसमें इष्टकाल ५०/२६ का योग करने पर १०३/१०/२८ अर्थात ४३/१०/२८ होता है जो प्रथम लग्न सारणी में वृश्चिक राशि के अंश १६ वाले मान (४३/०७/५४) का निकटतम है अतः लग्न ज्ञात होता है ७/१६

लग्न : ७/१६ (वृश्चिक १६ अंश)

जन्म कुंडली निर्माण

अब हम वृश्चिक लग्न की कुंडली बनाकर अर्थात कुंडली के प्रथम भाव में वृश्चिक अंकित करते हुये पंचांग में अंकित राशि के अनुसार कुंडली में ग्रहस्थापन करेंगे। ग्रह राश्यादि पंचांग के संलग्न पृष्ठ में अवलोकन करें, यहां अंकित करने की आवश्यता नहीं है।

२०/०१/२०२५; शनिवार, माघ कृष्ण एकादशी, रात्रि २/४८; बेगूसराय का इष्टकाल इष्टकाल : ५०/२६ है और लग्न : ७/१६ है। तदनुसार जन्म कुंडली बनाकर यहां संलग्न की गयी है।

इष्टकाल कैसे बनाते हैं, लग्न कैसे निकालते हैं, जन्म कुंडली कैसे बनाते हैं आदि पूर्व आलेखों में बताई जा चुकी है।

जन्म कुंडली : २०/०१/२०२५; रात्रि २/४८
जन्म कुंडली : २०/०१/२०२५; रात्रि २/४८

चंद्र कुंडली निर्माण

चंद्र कुंडली निर्माण हेतु गणितीय क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु चंद्र की राशि को लग्न स्थान में देकर कुंडली बनायी जाती है। ऊपर जन्म कुंडली में हमें ज्ञात होता है कि लग्न की राशि ही चंद्र की भी राशि है और चन्द्रमा लग्नस्थ है अतः चंद्र कुंडली भी समान ही होगी, इसलिये पृथक से बनाकर प्रस्तुति करने की आवश्यकता नहीं है। जन्मपत्रिका में जब अंकित करना होगा उस समय पृथक बनाया जा सकता है।

भयात-भभोग साधन

  • जन्म नक्षत्र ज्येष्ठा मान : अहोरात्र = ६०/०० (द.प.), २५/०१/२०२५
  • ज्येष्ठा आरम्भ काल : ५७/०० (द.प.) शुक्रवार, २४/०१/२०२५
  • ज्येष्ठा समाप्त : ०१/०१ (द.प.) रविवार, २६/०१/२०२५

, ६०/०० (द.प.)
– ५७/०० अनुराधा समाप्ति ज्येष्ठा प्रारम्भ, शुक्रवार, २४/०१/२०२५
= ३/०० पूर्व दिन का ज्येष्ठा मान (द.प.)
+ ६०/०० ज्येष्ठा मान शनिवार (अहोरात्र)
+ ०१/०१ ज्येष्ठा मान रविवार, २६/०१/२०२५
६४/०१ (द.प.) भभोग

. ३/०० पूर्व दिन का ज्येष्ठा मान (द.प.)
+ ५०/२६ इष्टकाल
= ५३/२६ (द.प.) भयात

  • भयात : ५३/२६ (द.प.)
  • भभोग : ६४/०१ (द.प.)
  • चरण : चतुर्थ

महदशा-अन्तर्दशा साधन

जन्म नक्षत्र ज्येष्ठा के अनुसार बुध महादशा में जन्म, महादशा वर्ष १७, भयात : ५३/२६, भभोग : ६४/०१

  • पलात्मक भयात = (५३×६०) + २६ = ३१८० + २६ = ३२०६
  • पलात्मक भभोग = (६४×६०) + १ = ३८४० + १ = ३८४१

भुक्त दशा वर्षादि = (पलात्मक भयात × दशावर्ष) ÷ पलात्मक भभोग

  • = (३२०६ × १७) ÷ ३८४१
  • = ५४५०२ ÷ ३८४१
  • = १४/७२८ (भागफल अर्थात वर्ष १४, शेष ७२८)
  • = (७२८ × १२) ÷ ३८४१
  • = ८७३६ ÷ ३८४१
  • = २/१०५४ (भागफल अर्थात माह २, शेष १०५४)
  • = (१०५४ × ३०) ÷ ३८४१
  • = ३१६२० ÷ ३८४१
  • = ८ भागफल अर्थात दिन शेष ८९२ आगे कुछ नहीं ज्ञात करेंगे। = १४/२/८

भुक्त बुध वर्षादि = १४/०२/०८
भोग्य बुध वर्षादि = २/०९/२२ (१७/००/०० – १४/०२/०८)
. २०२५/०१/२५ जन्म दिनांक (वर्षादि)
+ २/०९/२२ भोग्य बुध वर्षादि
= २०२७/११/१७ तक बुध महादशा अर्थात दिनांक १७/११/२०२७ तक

. २०२७/११/१७ तक बुध महादशा
– ०२/०८/०९ शनि अन्तर्दशा वर्षादि
= २०२५/०३/०८ से शनि अन्तर्दशा
– ०२/०३/०६ गुरु अन्तर्दशा वर्षादि
= २०२२/१२/०२ से गुरु अन्तर्दशा

गुरु अन्तर्दशा ०२/१२/२०२२ से ०८/०३/२०२५ तक और जन्म दिनांक २५/०१/२०२५ इसी के मध्य में आता है अर्थात वर्त्तमान अन्तर्दशा गुरु की है जो ०८/०३/२०२५ तक चलेगी और वर्त्तमान महादशा बुध की है जो १७/११/२०२७ तक रहेगी।

  • बुध महादशा : जन्म से – १७/११/२०२७ तक
  • केतु महादशा (७ वर्ष) : १७/११/२०२७ – १७/११/२०३४ तक
  • शुक्र महादशा (२० वर्ष) : १७/११/२०३४ – १७/११/२०५४ तक
  • सूर्य महादशा (६ वर्ष) : १७/११/२०५४ – १७/११/२०६० तक
  • ————————-

उदाहरणार्थ केतु व शुक्र महादशा के अन्तर्दशाओं की गणना करके देखते हैं, जन्मपत्रिका में और अधिक दिया जाता है :

केतु महादशा : १७/११/२०२७ – १७/११/२०३४ तक

. २७/११/१७ से केतु महादशा
+ ०/०४/२७ केतु अन्तर्दशा वर्षादि
= २८/०४/१४ तक केतु-केतु
+ १/०२/०० शुक्र अन्तर्दशा वर्षादि
= २९/०६/१४ तक केतु-शुक्र
+ ०/०४/०६ सूर्य अन्तर्दशा वर्षादि
= २९/१०/२० तक केतु-सूर्य
+ ०/०७/०० चंद्र अन्तर्दशा वर्षादि
= ३०/०५/२० तक केतु-चंद्र
+ ०/०४/२७ मंगल अन्तर्दशा वर्षादि
= ३०/१०/१७ तक केतु-मंगल
+ १/००/१८ राहु अन्तर्दशा वर्षादि
= ३१/११/०५ तक केतु-राहु
+ ०/११/०६ गुरु अन्तर्दशा वर्षादि
= ३२/१०/११ तक केतु-गुरु
+ १/०१/०९ शनि अन्तर्दशा वर्षादि
= ३३/११/२० तक केतु-शनि
+ ०/११/२७ बुध अन्तर्दशा वर्षादि
= ३४/११/१७ तक केतु-बुध

शुक्र महादशा : १७/११/२०३४ – १७/११/२०५४ तक

. ३४/११/१७ से शुक्र महादशा
+ ३/०४/ शुक्र अन्तर्दशा वर्षादि
=३८/०३/१७ तक शुक्र-शुक्र
+ १/०/०० सूर्य अन्तर्दशा वर्षादि
= ३९/०३/१७ तक शुक्र-सूर्य
+ १/०/०० चंद्र अन्तर्दशा वर्षादि
= ४०/११/१७ तक शुक्र-चंद्र
+ १/०/०० मंगल अन्तर्दशा वर्षादि
= ४२/०१/१७ तक शुक्र-मंगल
+ ३/०/ राहु अन्तर्दशा वर्षादि
= ४५/०१/१७ तक शुक्र-राहु
+ /०/०० गुरु अन्तर्दशा वर्षादि
= ४७/०९/१७ तक शुक्र-गुरु
+ ०३// शनि अन्तर्दशा वर्षादि
= ५०/११/१७ तक शुक्र-शनि
+ /१/० बुध अन्तर्दशा वर्षादि
= ५३/०९/१७ तक शुक्र-बुध
+ १/०/०० केतु अन्तर्दशा वर्षादि
= ५४/११/१७ तक शुक्र-केतु

इसी प्रकार से सूर्यादि महादशा की अन्तर्दशा भी विंशोत्तरी दशा चक्र से ज्ञात की जायेगी।

जन्मपत्री लिखना

ऊपर सामान्य जन्म पत्रिका में जितनी गणना की जाती है वो सभी की गयी है और इसके अनुसार गणित विधि को छोड़कर प्राप्त जानकारियां जन्मपत्री में लिखी जाती है। जन्मपत्री लिखने की भाषा जिसे देववाणी कहा जाता है वह संस्कृत होती है। एवं विवरण भले ही हिन्दी/अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा में दिया जा सकता है और जिसकी जो भाषा हो उसके अनुसार भाषा में विवरण हो तो समझना सरल होता है। किन्तु दैवज्ञ और दिव्यता का जब विचार होता है तो उसके लिये देववाणी में अर्थात संस्कृत में लिखना अनिवार्य होता है।

विरोध करने वाले इसका इस प्रकार विरोध कर सकते हैं कि क्या देवताओं को मात्र संस्कृत भाषा का ही ज्ञान है अन्य भाषाओं का नहीं किन्तु यह प्रश्न अन्य भाषाओं में लिखने के लिये बचाव के रूप में किया जाता है। इस प्रश्न का वास्तव में कोई औचित्य ही नहीं है। देवताओं को सभी भाषायें ही नहीं मन के भाव भी समझ में आते हैं किन्तु देवताओं की वाणी संस्कृत है इसलिये संस्कृत को देववाणी कहा जाता है।

संस्कृत देववाणी है इसलिये दिव्य है और संस्कृत में जन्मपत्री लिखने पर उसमें दिव्यता आती है, दैवज्ञ द्वारा लिखे जाने पर जन्मपत्री का देवता अनुमोदन करते हैं। अब उपरोक्त विवरण व अन्य अपेक्षित जानकारी पंचांग से ग्रहण करते हुये जन्मपत्री लिखने का एक प्रारूप नीचे दिया जा रहा है :

जन्मपत्री प्रारूप

Powered By EmbedPress

विद्वद्जनों से आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।

प्रज्ञा पञ्चाङ्ग वेबसाइट कर्मकांड सीखें वेबसाइट की एक शाखा के समान है जो इसके URL से भी स्पष्ट हो जाता है। यहां पंचांग, व्रत-पर्व, मुहूर्त आदि विषय जो ज्योतिष से संबद्ध होते हैं उसकी चर्चा की जाती है एवं दृक् पंचांग (डिजिटल) प्रकाशित किया जाता है। जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है। साथ ही यदि आपको किसी भी मास का प्रज्ञा पंचांग (PDF) चाहिये तो यह टेलीग्राम और व्हाट्सप चैनलों पर दिया जाता है, इसके लिये आप टेलीग्राम और व्हाट्सप चैनल को अवश्य सब्स्क्राइब कर लें। यहां सभी नवीनतम आलेखों को साझा किया जाता है, सब्सक्राइब करे :  Telegram  Whatsapp  Youtube


Discover more from प्रज्ञा पञ्चाङ्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *