ज्योतिष सीखें : महादशा अंतर्दशा ज्ञात करने की विधि – mahadasha antardasha

ज्योतिष सीखें : महादशा अंतर्दशा ज्ञात करने की विधि - mahadasha antardasha ज्योतिष सीखें : महादशा अंतर्दशा ज्ञात करने की विधि - mahadasha antardasha

ज्योतिष सीखने वालों के लिये ग्रहों की दशा अन्तर्दशा का ज्ञान होना भी महत्वपूर्ण है। फलादेश हेतु महादशा और अन्तर्दशा से विचार करने से पूर्व इसका साधन करना आवश्यक होता है। चूंकि हमने पूर्व आलेख में भयात भभोग ज्ञात करना सीख लिया है इसलिये अब हमें महादशा अन्तर्दशा निकालने की विधि सीखनी होगी और यहां महादशा और अन्तर्दशा (mahadasha antardasha) निकालने की पूरी विधि बताई गयी है।

अब तक हमने सीखा है :

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विंशोत्तरी महादशा निकालने की विधि

दशाओं के अनेक प्रकार होते हैं जिसमें दो प्रमुख हैं विंशोत्तरी दशा और अष्टोत्तरी दशा। इसमें से विंशोत्तरी दशा का प्रचलन अधिक पाया जाता है। पराशर ने ग्रहों के फल काल हेतु विंशोत्तरी दशा बताया है। विंशोत्तरी दशा का तात्पर्य है १०० से २० अधिक अर्थात १२० वर्ष के आधार पर निर्धारित की गयी दशा।

महादशा अंतर्दशा क्या होती है

विंशोत्तरी दशा – यह दशा नक्षत्रदशा नाम से भी प्रसिद्ध है। विंशोत्तरी दशा में मानव की परमायु १२० (एक सौ बीस) वर्ष की मानी गई है। इसीकाल विस्तार में अर्थात १२० वर्षों में पुनः विभिन्न ग्रहों के दशाओं की कल्पना की गई है जिसे अन्तर्दशा कहा गया है। समस्त नवग्रहों की १२० वर्ष की कालावधि में से प्रत्येक ग्रह को कुछ विशेष वर्ष का काल प्रदान किया गया है।

पुनः अन्तर्दशा में भी सभी ग्रहों के आतंरिक दशा की कल्पना की गयी और उसे प्रत्यन्तर्दशा कहा जाता है। इस प्रकार विंशोत्तरी दशा में महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। मुख्य रूप से महादशा और अन्तर्दशा का विचार किया जाता है।

विंशोत्तरी दशा में ग्रहों का वर्षमान – विंशोत्तरी दशा में १२० वर्ष की परमायु मानकर उसे नवग्रहों के लिये विभिन्न प्रकार से विभाजित किया गया जिसे महादशा कहते हैं। विभिन्न ग्रहों को दशाधिपति के रूप में विशेष काल का निर्धारण करते हुए महर्षि पराशर कहते हैं –

“दशासमा: क्रमादेषां षड् दशाऽश्वा गजेन्दवः। नृपालाः नवचन्द्राश्च नगचन्द्रा नगा नखाः॥ “

अर्थात् सूर्य का ६ वर्ष, चंद्रमा का १० वर्ष, मंगल का ७ वर्ष, राहु का १८ वर्ष, बृहस्पति का १६ वर्ष, शनि का १९ वर्ष, बुध का १७ वर्ष, केतु का ७ वर्ष और शुक्र का २० वर्ष होता है एवं यही क्रम भी होता है। इस क्रम को स्मरण रखने हेतु संक्षेप में इस प्रकार से समझना चाहिये : “सू चं मं रा वृ श बु के शु”

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विंशोत्तरी दशा का निर्धारण

ग्रहों की दशायें जन्म नक्षत्र के अनुसार होती है। कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढा में जन्म होने से सूर्य की महादशा; रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र में जन्म होने से चन्द्रमा की; मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों में जन्म होने से मंगल की; आर्द्रा, स्वाती और शतभिषा में जन्म होने से राहु की; पुनवर्सु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद में जन्म होने से बृहस्पति की; पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद में जन्म होने से शनि की; आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती में जन्म लेने से बुध की; मघा, मूल और अश्विनी में जन्म होने से केतु की एवं भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढा में जन्म होने से शुक्र की प्रथम महादशा होती है।

अर्थात जन्म नक्षत्र के अनुसार प्रथम महादशा निर्धारित होती है जो आगे दी गयी दशान्तर्दशा बोधक सारणी से समझा जा सकता है।

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महादशा निकालने की विधि

पूर्व आलेख में हमने भयात – भभोग के लिये 5 अभ्यास किया था और उसके प्रथम दो अभ्यास के आधार पर यहां दी गयी सारणी से महादशा और महादशा वर्ष को ज्ञात करेंगे :

  • प्रथम अभ्यास : 2/4/2025, पंचमी, बुध, इष्टकाल ४/१७, जन्म नक्षत्र कृत्तिका, भयात ५४/०३, भभोग ५४/३२
  • द्वितीय अभ्यास : 3/4/2025, षष्ठी, गुरु, इष्टकाल ४६/१३, जन्म नक्षत्र मृगशिरा, भयात ४५/३०, भभोग ५७/३७

प्रथम उदाहरण का जन्म नक्षत्र कृत्तिका है और विंशोत्तरी महादशा चक्र में कृत्तिका नक्षत्र प्रथम पंक्ति में सूर्य के नीचे है अर्थात प्रथम महादशा सूर्य की है और सूर्य महादशा वर्ष के लिये ६ अंकित है। इसी प्रकार द्वितीय उदाहरण में जन्म नक्षत्र में मृगशिरा है जो मंगल दशा वाली तृतीय पंक्ति में मिलता है अर्थात प्रथम महादशा मंगल की है जिसका वर्ष मान ७ है।

दशा साधन विधि

भयात-भभोग बनाने के पश्चात् सर्वप्रथम जन्मनक्षत्र के आधार पर प्रथम महादशा को ज्ञात करे और उसका वर्ष लें। भयात और भभोग को पलात्मक बना लें।

  1. जन्म नक्षत्र के अनुसार जिस ग्रह की दशा हो, उसके वर्षों से पलात्मक भयात को गुणा करें।
  2. लब्धि में पलात्मक भभोग का भाग दें और जो प्रथम लब्धि होगी वह वर्ष होगा।
  3. तत्पश्चात शेष को १२ से गुणा कर पुनः पलात्मक भभोग का भाग दें, जो लब्धि हो वह वह मास होता है।
  4. पुनः इसी प्रकार शेष को ३० से गुणा कर पलात्मक भभोग का भाग देने से जो लब्धि आए वह दिन होता है।

इसी प्रकार यदि घटी पल आदि भी ज्ञात करना हो तो किया जा सकता है; शेष को ६० से गुणा कर पलात्मक भभोग का भाग देने घटी एवं शेष को पुनः ६० से गुणा कर पलात्मक भभोग का भाग देने से जो लब्ध फल आता है वह पल का मान होता है।

महादशा और वर्ष ज्ञात होने के पश्चात् दशा साधन करना होता है अर्थात यह ज्ञात किया जाता है कि दशा वर्ष में से कितने वर्षादि व्यतीत हो चुके हैं और कितने वर्षादि शेष हैं।

किसी व्यक्ति का जन्म नक्षत्र के किस भाग में हुआ है इसका निर्धारण भयात से ज्ञात होता है। प्रथम उदाहरण का जन्म नक्षत्र कृत्तिका है जिसमें भयात ५४/०३ और भभोग ५४/३२ ही जिसका तात्पर्य है कि कृतिका नक्षत्र का मान ५४ दण्ड ३२ पल था जिसमें से ५४ दण्ड ०३ पल व्यतीत होने पर जन्म हुआ था।

अब सूर्य की महादशा का वर्ष मान ६ वर्ष है अर्थात नक्षत्र के ५४ दण्ड ०३ पल में सूर्य दशा मान ६ वर्ष है तो ५४ दण्ड तीन पल का कितना वर्ष होगा इसे ज्ञात करेंगे और ये भुक्त वर्षादि होगा क्योंकि यह व्यतीत हो चुका है और ६ वर्ष में से भुक्त वर्षादि को ऋण करेंगे तो शेष भोग्य वर्षादि होगा।

जन्म तक व्यतीत वर्षादि को भुक्त वर्षादि कहते हैं एवं शेष जो जन्म के पश्चात् आने वाले होते हैं उसे भोग्य वर्षादि कहते हैं। ऊपर इसके ज्ञात करने की त्रैराशिक विधि बताई जा चुकी है जिसका सूत्र इस प्रकार है :

  • भुक्त दशा वर्षादि = (दशा वर्ष × पलात्मक भयात) ÷ पलात्मक भभोग
  • भोग्य दशा वर्षादि = दशा वर्ष – भुक्त दशा वर्षादि

दोनों उदाहरण के दशा साधन की गणित इस प्रकार है :

प्रथम अभ्यास : 2/4/2025, पंचमी, बुध, इष्टकाल ४/१७, जन्म नक्षत्र कृत्तिका, भयात ५४/०३, भभोग ५४/३२, महादशा सूर्य, महादशा वर्ष ६

  • पलात्मक भयात – ३२४३ (५४/०३ × ६०)
  • पलात्मक भभोग – ३२७२ (५४/३२ × ६०)

भयात ३२४३, भभोग ३२७२, सूर्य महादशा वर्ष ६

  • = ६ × ३२४३ ÷ ३२७२
  • = १९४५८ ÷ ३२७२
  • प्रथम लब्धि/भागफल ५ (वर्ष) और शेष ३०९८
  • = ३०९८ × १२ ÷ ३२७२
  • = ३७१७६ ÷ ३२७२
  • द्वितीय लब्धि/भागफल ११ (माह) और शेष ११८४
  • = ११८४ × ३० ÷ ३२७२
  • = ३५५२० ÷ ३२७२
  • तृतीय लब्धि/भागफल १० (दिन) और शेष २८००

आगे का घटी/पल ज्ञात नहीं करनी है अतः अब आगे की क्रिया नहीं करेंगे। यहां हमें भुक्त वर्षादि ज्ञात हुआ ५/११/१०, और ६ वर्ष (महादशा वर्ष) में इसे ऋण करने पर जो ज्ञात होगा वह भोग्य वर्षादि होता।

  • = ६/०/० – ५/११/१०
  • = ५/११/३० – ५/११/१०
  • = ०/०/२० अर्थात २० दिन, इस प्रकार भोग्य वर्षादि है : ०/०/२०

इसी प्रकार यदि हम द्वितीय अभ्यास से समझना चाहें तो इस प्रकार गणितीय क्रिया होती :

द्वितीय अभ्यास : 3/4/2025, षष्ठी, गुरु, इष्टकाल ४६/१३, जन्म नक्षत्र मृगशिरा, भयात ४५/३०, भभोग ५७/३७, महादशा मंगल, महादशा वर्ष ७

पलात्मक करने पर : भयात २७३०, भभोग ३४५७, मंगल महादशा वर्ष ७

  • ७ × २७३० ÷ ३४५७
  • = १९११० ÷ ३४५७
  • प्रथम लब्धि/भागफल ५ (वर्ष) और शेष १८२५
  • = १८२५ × १२ ÷ ३४५७
  • = ३१९०० ÷ ३४५७
  • द्वितीय लब्धि/भागफल ९ (माह) और शेष ७८७
  • = ७८७ × ३० ÷ ३४५७
  • = २३६१० ÷ ३४५७
  • तृतीय लब्धि/भागफल ६ (दिन) और शेष २८६८

यहां हमें भुक्त वर्षादि ज्ञात हुआ ५/०९/०६, और ७वर्ष (महादशा वर्ष) में इसे ऋण करने पर जो ज्ञात होगा वह भोग्य वर्षादि होता।

  • = ७/०/० – ५/०९/०६
  • = ६/११/३० – ५/०९/०६
  • = १/०२/२४ अर्थात १ वर्ष २ माह और २४ दिन, इस प्रकार भोग्य वर्षादि है : १/०२/२४

अंतर्दशा साधन विधि

अंतर्दशा निकालने की विधि – विंशोत्तरी दशा क्रम में महादशाओं के अनन्तर अन्तर्दशाओं पर भी विचार किया जाता है। प्रत्येक ग्रह की महादशा में सभी नवग्रहों की दशाएँ आती है जिसे अन्तर्दशा कहते हैं और इसका एक विशिष्ट क्रम होता है। विशेष क्रम यह होता है कि जिसकी महादशा हो पहले उसकी ही अन्तर्दशा आयेगी और इसको विंशोत्तरी दशा चक्र से समझ सकते हैं।

यदि चन्द्रमा की महादशा हो तो उस महादशा में पहली अन्तर्दशा चन्द्रमा की, दूसरी मंगल की, तीसरी राहु की, चौथी बृहस्पति की, पांचवी शनि की, छठी अन्तर्दशा बुध की, सातवीं केतु की, आठवीं शुक्र की तथा नवीं और अन्तिम अन्तर्दशा सूर्य की होगी।

अन्तर्दशा निकालने का सरल नियम यह है कि महादशेश के वर्षमान को उतने ही वर्षमान से गुणा कर १० का भाग देने से लब्ध मास और शेष को तीन से गुणा करने से दिन की संख्या स्पष्ट हो जाती है। यथा – मंगल की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा निकालनी हो तो मंगल के दशा वर्ष ७ को ७ से गुणा किया तो ७×७ = ४९, ४९ ÷ १० = ४ मास, शेष ९ है अतः दिन निकालने हेतु शेष ९ को ३ से गुणा किया तो २७ दिन आता है। ठीक इसी प्रकार अन्य ग्रहों की महादशा में अन्तर्दशायें निकाली जा सकती है। किन्तु विंशोत्तरी दशा चक्र में यह अंकित है और उस सारणी से ही अन्तर्दशा लेकर योग किया जाता है।

अब हमें दिनांक जोड़ने की विधि को समझना भी आवश्यक है। दिनांक लिखने का क्रम तो दिन/मास/वर्ष होता है किन्तु जब दिनांक का गणित करना हो तो वर्ष/मास/दिन के क्रम में लिखा जाता है। यथा प्रथम अभ्यास में जन्म दिनांक २/४/२०२५ है तो इसे २०२५/४/२ लिखेंगे।

अब हमें दिनांक जोड़ने की विधि को समझना भी आवश्यक है। दिनांक लिखने का क्रम तो दिन/मास/वर्ष होता है किन्तु जब दिनांक का गणित करना हो तो वर्ष/मास/दिन के क्रम में लिखा जाता है। यथा प्रथम अभ्यास में जन्म दिनांक २/४/२०२५ है तो इसे २०२५/४/२ लिखेंगे।प्रथम अभ्यास में मंगल की महादशा है और भोग्य वर्षादि ०/०/२० है अर्थात इस भोग्य वर्षादि के पश्चात् मंगल के पश्चात् की महादशा राहू की प्रारम्भ होगी। इसे जोड़ने की विधि इस प्रकार है :

  • , २०२५/४/२
  • + ०/०/२०
  • = २०२५/४/२२

अर्थात २२/४/२०२५ तक मंगल की महादशा रहेगी और तत्पश्चात १८ वर्ष (२२/४/२०२५ से २२/४/२०४३ तक) राहू की महादशा होगी। महादशाओं में अन्तर्दशा का योग भी इसी प्रकार से किया जायेगा।

प्रत्यन्तर्दशा

जिस प्रकार ग्रहों की महादशा काल में नवग्रहों की अन्तर्दशाएँ आती हैं, ठीक इसी प्रकार प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा में नवग्रहों की प्रत्यन्तर दशाएँ भी आती हैं। प्रत्यन्तर दशा साधन का नियम यह है कि महादशेश के वर्षमान से अन्तर्दशेश और प्रत्यन्तर दशा के स्वामी के वर्षमान को परस्पर गुणा कर पुनः ४० का भाग देने से लब्धि दिन होते हैं।

यथा चन्द्रमा की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा में मंगल का प्रत्यन्तर निकालना हो तो चन्द्रमा के वर्षमान १० वर्ष को पुनः चन्द्रमा के वर्षमान १० से गुणा किया : १०×१० = १०० इसमें पुनः मंगल के वर्षमान ७ से गुणा किया तो १००×७ = ७०० आया। ७०० में ४० से भाग देने पर ७०० ÷ ४० = १७ दिन आया। इसी प्रकार अन्य ग्रहों की भी प्रत्यन्तर दशायें साधित की जाती हैं। ये साधित करने की विधि है किन्तु प्रत्यंतदर्शा भी सारणी से ही ली जाती है।

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