भयात भभोग निकालने की विधि जाने हिन्दी में – bhayat bhabhog calculator

भयात भभोग निकालने की विधि जाने हिन्दी में - bhayat bhabhog calculator

जब हम इष्टकाल, लग्न ज्ञात करके जन्म कुंडली, चंद्र कुंडली आदि बना लेते हैं तब हमें जन्मपत्रिका में दशान्तर्दशा अंकित करने की आवश्यकता होती है जिसके लिये चंद्र नक्षत्र का भयात भभोग निकालना आवश्यक होता है। इसके साथ ही यदि चंद्र स्पष्ट करना हो अर्थात तात्कालिक चंद्र बनाना हो तो भी भयात भभोग को ज्ञात करना पड़ता है। यहां हम भायत भभोग निकालने की विधि (bhayat bhabhog calculator) हिन्दी में जानेंगे।

अब तक हमने सीखा है :

इसके साथ ही हमने चंद्र कुंडली बनाना भी सीखा और अब सीखेंगे भयात भभोग निकालना। ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

ज्योतिषी को शुद्ध कुंडली निर्माण करने के लिये गणना करने का पर्याप्त अभ्यास करना चाहिये और गणितीय क्रिया में महारत प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये। कई बार हम देखते हैं कि कुंडली में इष्टकाल ही त्रुटिपूर्ण होता है तो कभी लग्न और कभी भयात भभोग। इस प्रकार की त्रुटियां होने पर जन्म पत्रिका भी त्रुटिपूर्ण हो जाती है। यदि इष्टकाल में त्रुटि हो तो पूरी की पूरी जन्मपत्रिका ही त्रुटिपूर्ण होती है और यदि लग्न में त्रुटि हो तो लग्न कुंडली त्रुटिपूर्ण होती है।

इसी कारण हम यहां जो कुछ भी सीखते हैं उसका तीन बार अभ्यास करते हैं अथवा तीन उदाहरण देखते हैं। इसके पश्चात् अनेकों अभ्यास करने की आवश्यकता होती है और अभ्यास हेतु आपको वाह्टसप चैनल पर अभ्यास प्रश्न दिये जाते हैं जिससे आप ज्योतिष गणित में पारंगत हो सकते हैं।

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भयात भभोग निकालने की विधि

नक्षत्रारम्भतः स्वेष्टकालं यावद् गतं हि तत् । घट्यादिकं भयातं तद भस्य भोगो भभोगः॥
षष्टया गतर्क्षघट्याद्यं शोध्यं स्वेष्ट घटी युतम । भयातं स्यात् तथा स्वर्क्षघटीयुक्तं भभोगकः ॥
पंचांगर्क्षघटी मानादिष्टकालोऽधिकस्तदा । तदन्तर भयातं स्याद् भभोगः पूर्ववत सदा ॥

हम भयात भभोग निकालना सीखें इससे पहले समझना आवश्यक है। यदि हम भयात भभोग को भली भांति समझ लें तो स्वयं ही ज्ञात कर सकते हैं, वो भी पंचांग मात्र को देखकर, इसकी गणितीय क्रिया में कोई जटिलता है ही नहीं।

भचक्र जो कि ३६० अंश का है और इसमें २७ नक्षत्र हैं। ३६० को २७ नक्षत्रों से विभाजित करने पर एक नक्षत्र का अंशात्मक मान १३/२० होता है। चंद्रमा लगभग २७ दिन, ७ घंटा, ४३ मिनट में सभी नक्षत्रों का भोग करता है अर्थात यदि प्रत्येक नक्षत्र के लिये समान समय होता तो लगभग २४ घंटा १७ मिनट होता किन्तु ऐसा नहीं है किसी नक्षत्र में चंद्रमा २४ घंटे से अधिक भी रहता है और किसी नक्षत्र में २४ घंटे से कम भी रहता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की चन्द्रमा लगभग एक दिन में एक नक्षत्र का भोग करता है। चंद्रमा किसी नक्षत्र का जितने काल तक भोग करता है उसे भभोग कहा जाता है। प्रत्येक नक्षत्र के भभोग भिन्न-भिन्न होते हैं अर्थात समान नहीं होते हैं इसलिये पंचांग देखकर भभोग ज्ञात करना पड़ता है।

भभोग निकालने की विधि

इस प्रकार किसी नक्षत्र में चन्द्रमा के प्रवेश से लेकर निकलने अर्थात अगले नक्षत्र में प्रवेश करने तक का काल ही भभोग होता है। पंचांगों में प्रतिदिन के नक्षत्र दिये रहते हैं जिसके आगे दण्ड/पल में और घंटा/मिनट में भी समय अंकित होता है जो उस दिन उक्त नक्षत्र में चंद्रमा के रहने का बोध कराता है। अर्थात किसी नक्षत्र के आगे जो दंड/पल व घंटा मिनट में समय अंकित रहता है उस दिन चन्द्रमा उस अंकित समय तक उस नक्षत्र में रहता है तत्पश्चात अगले नक्षत्र में प्रवेश करता है। इस प्रकार पिछली नक्षत्र की समाप्ति काल ही अगले नक्षत्र का प्रवेश काल होता है।

इस प्रकार हम समझ चुके हैं कि किसी नक्षत्र में चन्द्रमा जितने काल तक रहे वही उस नक्षत्र का भभोग होता है। और अब बड़ी सरलता से भभोग ज्ञात कर सकते हैं। यदि पंचांग में कृत्तिका नक्षत्र के आगे रात्रि २/०५ (४९/४० द.प.) तक अंकित है तो उसका तात्पर्य है कि चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में रात्रि २/०५ बजे ही प्रवेश भी करता है और अगले दिन के यदि रोहिणी रात्रि १/४६ (४८/५१ द.प.) तक अंकित है तो इसका तात्पर्य है कि अगले दिन चंद्रमा रात्रि १/४६ तक है तत्पश्चात अगले नक्षत्र मृगशिरा में प्रवेश करता है।

उदाहरण

यदि चंद्रमा अगले दिन रोहिणी नक्षत्र में रात्रि २/०५ तक रहता तो २४ घंटा होता किन्तु १९ मिनट कम १/४६ बजे तक ही था अर्थात रोहिणी में चन्द्रमा का भभोग (२३/४१ घंटा मिनट) ५९/१२/३० घटी/पल है। इस प्रकार भभोग सरलता से ज्ञात हो सकता है, किन्तु गणितीय प्रक्रिया में हमें दण्डपलात्मक मान से इस प्रकार ज्ञात करना होता है कि अधिक गणितीय क्रिया न करनी पड़े।

  • सर्वप्रथम ६० घटी में से नक्षत्र प्रवेश काल को ऋण करके पूर्व दिन का नक्षत्र मान ज्ञात किया जाता है। (पूर्व दिन का नक्षत्र मान की आवश्यकता भयात साधन में भी होती है)
  • तत्पश्चात ज्ञात पूर्व दिन का नक्षत्र मान में नक्षत्र का दंडपलात्मक मान योग किया जाता है और वह भभोग होगा है।

पूर्व दिन का नक्षत्र मान

  • ,, ६०/००
  • – ४९/४० गत नक्षत्र (कृत्तिका) का दंड/पल
  • = १०/२० पूर्व दिन का नक्षत्र मान

भभोग

  • ,, १०/२० पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + ४८/५१ विद्यमान नक्षत्र (रोहिणी) का दंड/पल
  • = ५९/११ भभोग

भभोग का मान कितने घटी पल तक हो सकता है

कई बार भभोग निकालने की गणितीय प्रक्रिया में त्रुटि के कारण भभोग या तो अत्यधिक होता है अथवा भयात से भी कम होता है और तब मन में एक प्रश्न आता है कि भभोग का मान कितने घटी पल तक हो सकता है। भभोग का मान ६७ घटी तक हो सकता है। यदि इससे अधिक हो तो इसका तात्पर्य होता है गणितीय प्रक्रिया में कोई त्रुटि होना।

भयात निकालने की विधि

किसी विशेष काल तक जो जन्म काल होता है और उसे दंडपलात्मक बनाने पर जिसके आधार पर पूरी जन्मकुंडली बनायी जाती है उसे इष्टकाल कहा जाता है। इष्टकाल में जो नक्षत्र हो उसका इष्टकाल तक व्यतीत काल भयात कहलाता है। अर्थात नक्षत्र के प्रारंभ काल से इष्टकाल तक का समय भयात कहलाता है। भयात निकालने के लिये पूर्व दिन के नक्षत्र मान और इष्टकाल की आवश्यकता होती है। पूर्व दिन के नक्षत्र मान और इष्टकाल का योग करने से भयात ज्ञात होता है। और यदि भभोग में भयात घटा दें तो प्राप्त मान भभोग्य कहलाता है।

ऊपर दिये गये उदाहरण में पूर्व दिन का नक्षत्र मान १०/२० है और यदि इष्टकाल २५/३७ हो तो दोनों का योग करने पर जो लब्धि होगी वह भयात होगा।

  • ,, १०/२० पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + २५/३७ इष्टकाल
  • = ३५/५७ भयात

पूर्व दिन का नक्षत्र मान बनाने में सावधानी

इस प्रकार भयात भभोग साधन के लिये पूर्व दिन का नक्षत्र मान की आवश्यकता होती है और पूर्व दिन का नक्षत्र मान साधन में कई बार जटिलता भी उत्पन्न होती है। क्योंकि ये आवश्यक नहीं कि नक्षत्र का प्रारम्भ सदैव पूर्व दिन ही हो अथवा समापन अगले दिन ही हो। भिन्न-भिन्न दिनों में नक्षत्रों के आरम्भ और समापन काल की भिन्न-भिन्न स्थिति हो सकती है।

यथा विद्यमान नक्षत्र विगत दिन से भी एक दिन पूर्व ही आरंभ हो गया हो, अथवा उसी दिन सूर्योदय के पश्चात् प्रारम्भ हुआ हो और अगले दिन समाप्त हो, अथवा उसी दिन प्रारम्भ और समाप्त भी हो जाये जिसे क्षय अथवा लोप होना भी कहा जाता है। इन स्थितियों में गणना की विधि परिवर्तित भी होती है।

  • यदि नक्षत्र का प्रारम्भ दिन पूर्व होता है तो पूर्व नक्षत्र मान को ६० में से ऋण करने पर पूर्व दिन का नक्षत्र मान ज्ञात होता है और इसमें; विद्यमान नक्षत्र का मान योग करने पर भभोग; व इष्टकाल का योग करने पर भयात प्राप्त होता है।
  • यदि नक्षत्र का प्रारम्भ जन्म दिन ही होता हो किन्तु समापन पर दिन हो अर्थात लोप न हो उक्त विधि से ही पूर्व दिन का नक्षत्र मान ज्ञात कर परदिन का नक्षत्र समापन काल योग करने पर भभोग होता है, किन्तु भयात हेतु पूर्व दिन का नक्षत्र मान में इष्टकाल का योग न करके इष्टकाल में विगत नक्षत्र मान को ऋण करना होता है।
  • यदि नक्षत्र का आरंभ विगत दिन न होकर उससे एक दिन और पूर्व हो तो उक्त विधि से ही पूर्व दिन का नक्षत्र मान ज्ञात करके उसमें पुनः ६० घटी का योग करने पर पूर्व दिन का नक्षत्र मान होता है। फिर उसी पूर्व दिन का नक्षत्र मान में; विद्यमान नक्षत्र मान योग करने से भभोग होता है, और इष्टकाल का योग करने से भयात प्राप्त होता है।
  • एक अन्य स्थिति क्षय नक्षत्र वाली होती है जिसमें नक्षत्र का प्रारम्भ और समापन दोनों एक दिन ही हो जाता है। ऐसी स्थिति में उक्त नक्षत्र (क्षय नक्षत्र) का मान पंचांग में अंकित रहता है और वही भभोग होता है। एवं यदि जन्म नक्षत्र क्षय नक्षत्र हो तो इष्टकाल में पूर्व नक्षत्र मान ऋण करने पर भयात ज्ञात हो जाता है।
  • अब सबसे जटिल स्थिति जो होती है वो यह कि पूर्व नक्षत्र क्षय नक्षत्र हो। ऐसी स्थिति में क्षय नक्षत्र मान में (जो पंचांग में अंकित होता है) विगत नक्षत्र मान का योग करने पर गत नक्षत्र मान होता है और उसे ६० घटी में ऋण करने पर पूर्व दिन का नक्षत्र मान प्राप्त होता। आगे कि गणितीय क्रिया पूर्वोक्त विधि से होती है।

भयात भभोग साधन अभ्यास

श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पञ्चाङ्ग चैत्र शुक्ल पक्ष २०८२ (संवत)
श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पञ्चाङ्ग चैत्र शुक्ल पक्ष २०८२ (संवत)

यहां अभ्यास हेतु हमने सभी प्रकार से भयात भभोग साधन करने के लिये चैत्र मास शुक्ल पक्ष संवत २०८२ दिनांक ३० मार्च २०२५ से १२ अप्रैल २०२५ तक का श्री वेंकटेश्वर शताब्दि पंचांग का अंश लिया है जिसका संबंधित पृष्ठ यहां संलग्न भी किया गया है।

षष्ठी सोमवार ३ अप्रैल को मृगशिरा नक्षत्र का क्षय हो रहा है जिसका अंकित मान ५७/३७ है।

दशमी सोमवार ७ अप्रैल को पुष्य नक्षत्र की वृद्धि हो रही है और अगले दिन ०/४० (घटी/पल) है। सभी का संकेत लाल रंग के तीर निशान से किया गया है।

यहां हमें अभ्यास हेतु सामान्य स्थिति के साथ क्षय और वृद्धि दोनों स्थिति मिल रही है और इसके अनुसार हम भयात भभोग साधन करेंगे। यहां अभ्यास हेतु हम पांच इष्टकाल लेंगे और उसमें उपरोक्त सभी स्थितियों में भयात भभोग ज्ञात करना सीखेंगे।

अभ्यासदिनांकतिथिदिननक्षत्रनक्षत्र मानगतनक्षत्रइष्टकालविशेष
प्रथम 2/4/2025पंचमीबुधकृत्तिका४/४६भ. १०/१४४/१७xxx
द्वितीय3/4/2025षष्ठीगुरुरोहिणी ०/४३कृ. ४/४६४६/१३मृग. ५७/३७
तृतीय3/4/2025षष्ठीगुरुरोहिणी०/४३कृ. ४/४६५८/३४मृग. ५७/३७
चतुर्थ6/4/2025नवमी रविपुष्यअहोरात्रपुन.५८/१६१७/४१वृद्धि
पंचम7/4/2025दशमीसोमपुष्य०/४०पुन.५८/१६२९/४२वृद्धि
xxx8/4/2025एकादशीकुजआश्ले४/२५पुष्यxxxxxx

अब हम इस प्रकार से पांचों माने गये इष्टकाल के आधार पर भयात और भभोग दोनों ज्ञात करेंगे जिसमें सभी प्रकार का अभ्यास हो जायेगा और भयात भभोग निकालने की सभी स्थितियों को सीखने व समझने में सहयोगी होगा।

प्रथम अभ्यास : 2/4/2025, पंचमी, बुध, इष्टकाल ४/१७, जन्म नक्षत्र कृत्तिका

  • विद्यमान नक्षत्र : कृत्तिका ४/४६
  • गत नक्षत्र : भरणी १०/१४
  • इष्टकाल : ४/१७
  • , ६०/००
  • – १०/१४ गत नक्षत्र भरणी मान
  • =४९/४६ पूर्व दिन का नक्षत्र मान

भयात = पूर्व दिन का नक्षत्र मान + इष्टकाल (सामान्य नक्षत्र स्थिति अर्थात वृद्धि व क्षय न होने पर)
भभोग = पूर्व दिन का नक्षत्र मान + नक्षत्र मान (क्षय होने पर क्षय नक्षत्र मान)

  • , ४९/४६ पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + ४/१७ इष्टकाल
  • =५४/०३ भयात
  • , ४९/४६ पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + ४/४६ कृत्तिका
  • =५४/३२ भभोग

द्वितीय अभ्यास : 3/4/2025, षष्ठी, गुरु, इष्टकाल ४६/१३, जन्म नक्षत्र मृगशिरा

  • विद्यमान नक्षत्र : मृगशिरा (क्षय) ५७/३७
  • गत नक्षत्र : रोहिणी ०/४३
  • इष्टकाल : ४६/१३
  • , ६०/००
  • – ०/४ गत नक्षत्र रोहिणी मान
  • =५९/१७ पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • , ४६/१३ इष्टकाल
  • + ०/४३ गत नक्षत्र
  • =४५/३० भयात
  • भभोग : ५७/३७ मृगशिरा मान

तृतीय अभ्यास : 3/4/2025, षष्ठी, गुरु, इष्टकाल ५८/३४, जन्म नक्षत्र आर्द्रा

  • विद्यमान नक्षत्र : आर्द्रा
  • गत नक्षत्र : रोहिणी ०/४३ + मृगशिरा (क्षय) ५७/३७
  • इष्टकाल : ४६/१३
  • , ६०/००
  • – ०/४३ गत नक्षत्र रोहिणी मान
  • =५९/१७
  • – ५७/३७ मृगशिरा (क्षय)
  • = १/४० पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • , ५८/३४ इष्टकाल
  • – ०/४३ गत नक्षत्र रोहिणी मान
  • = ५७/५१
  • – ५७/३७ मृगशिरा (क्षय)
  • = /१४ भयात
  • , १/४० पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + ५७/३३ आर्द्रा मान
  • =५४/३२ भभोग

चतुर्थ अभ्यास : 6/4/2025, नवमी, रवि, इष्टकाल १७/४१, जन्म नक्षत्र पुष्य

  • विद्यमान नक्षत्र : पुष्य अहोरात्र + ०/४०
  • गत नक्षत्र : पुनर्वसु ५८/१६
  • इष्टकाल : १७/४१
  • , ६०/००
  • ५८/१६ गत नक्षत्र भरणी मान
  • = /४ पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • , १७/४१ इष्टकाल
  • – १/४४ पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • = ५/५७ भयात
  • , १/४४ पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + ६०/४० पुष्य मान (०/४० + ६०/००)
  • = २/२४ भभोग

पंचम अभ्यास : 7/4/2025, दशमी, सोम, इष्टकाल २९/४२, जन्म नक्षत्र अश्लेषा

  • विद्यमान नक्षत्र : आश्लेषा अहोरात्र
  • गत नक्षत्र : पुष्य ०/४०
  • इष्टकाल : २९/४२
  • , ६०/००
  • ०/४० गत नक्षत्र पुष्य मान
  • = ९/२० पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • , १७/४१ इष्टकाल
  • ०/४० गत नक्षत्र पुष्य मान
  • = १७/०१ भयात
  • , ९/२० पूर्व दिन का नक्षत्र मान
  • + ४/२५ आश्लेषा मान
  • = ६३/४५ भभोग

इस प्रकार भयात भभोग बनाने के लिये पर्याप्त उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं जिसके अनुसार सभी प्रकार की स्थिति में भयात भभोग ज्ञात किया जा सकता है। विद्वद्जनों से आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।

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