राशि चक्र अर्थात चंद्र कुंडली निर्माण करना सीखें – chandra kundali

राशि चक्र अर्थात चंद्र कुंडली निर्माण करना सीखें - chandra kundali

अब तक हमने इष्टकाल ज्ञात करना, लग्नानयन करना और जन्म कुंडली बनाना सीखा है। जन्म पत्रिका में जन्म कुंडली/लग्न कुंडली निर्माण के पश्चात् राशि चक्र अर्थात राशि कुंडली अथवा चंद्र कुंडली निर्माण भी किया जाता है। लग्न कुंडली की भांति ही चंद्र कुंडली से भी फलादेश का विचार किया जाता है और राशिफल (rashifal) जो होता है वह चंद्र कुंडली से ही ज्ञात होता है। इस आलेख में हम चंद्र कुंडली क्या है, चंद्र कुंडली का महत्व क्या है, चंद्र कुंडली और लग्न कुंडली में अंतर आदि विषयों को समझते हुये चंद्र कुंडली (chandra kundali) बनाना जानेंगे।

अब तक हमने सीखा है :

ज्योतिष सीखें से संबंधित पूर्व के आलेखों को यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

यद्यपि चन्द्र कुंडली बिना लग्न कुंडली के भी बनायी जा सकती है किन्तु लग्न कुंडली के समान ही चंद्र कुंडली अथवा राशि कुंडली से भी विचार करना चाहिये अर्थात पहले लग्न कुंडली ही बनाये तत्पश्चात चंद्र कुंडली। और जिसका लग्न कुंडली उपलब्ध न हो सके उसके लिये चंद्र कुंडली से भी विचार किया जा सकता है।

लग्न कुंडली बनाने तक की विधि पूर्व में बताई जा चुकि है और ऊपर सभी आलेखों के लिंक दिये गये हैं। लग्न कुंडली बनाने तक की विधि पूर्व में बताई जा चुकि है और ऊपर सभी आलेखों के लिंक दिये गये हैं। इन आलेखों में लग्न कुंडली अथवा जन्म कुंडली बनाने की एक ऐसी विधि बताई गयी है जिसे सीखकर किसी भी पंचांग से जन्म कुंडली बनायी जा सकती है और इसके लिये प्रथम जन्म कुंडली बनाने की पूरी विधि समझाई गयी है और तत्पश्चात हृषीकेश पंचांग से जन्म कुंडली बनाने की विधि भी अलग से बताई गयी है।

चंद्र कुंडली क्या है

जिस प्रकार लग्न ज्ञात करके लग्न राशि को प्रथम भाव में अंकित करके जन्म कुंडली बनायी जाती है जिसे लग्न कुंडली भी कहा जाता है उसी प्रकार से चंद्र राशि को प्रथम भाव में रखते हुये भी कुंडली बनाने की विधि है और इस विधि से जिस कुंडली का निर्माण होता है उसे चंद्र कुंडली कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है की लग्न कुंडली की भांति ही चंद्र कुंडली से भी विचार करना चाहिये।

हम सभी राशिफल (Rashifal) के बारे में अवश्य ही जानते हैं, राशिफल का विचार भी चंद्र कुंडली के आधार पर ही किया जाता है। चंद्र नक्षत्र प्रतिदिन परिवर्तित होता है इस कारण प्रतिदिन का भी राशिफल देखा जाता है जिसे सभी आज का राशिफल कहकर बताते हैं, यद्यपि इसमें नक्षत्र के आधार पर (व्यवहारतः) कोई विचार नहीं किया जाता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि चंद्र कुंडली वो कुंडली होती है जिसमें लग्न से विचार न करके चंद्र राशि से विचार किया जाता है। चंद्र कुंडली को ही राशि चक्र भी कहा जाता है।अनेकानेक कारणों से कई कुंडलियों में लग्न शुद्ध नहीं होता है और लग्न कुंडली से किया गया फलादेश घटित होता नहीं दिखता है।

चंद्र कुंडली का महत्व

किन्तु चंद्र कुंडली से किया गया फलादेश घटित होता प्रतीत होता है। इसी प्रकार से बहुत लोगों के पास जन्म तिथि तो होता है जिसके आधार पर चंद्र कुंडली या राशि चक्र का निर्माण किया जा सकता है किन्तु जन्म समय ज्ञात नहीं होता अर्थात लग्न कुंडली नहीं बनायी जा सकती।

यहां यह स्मरण रखना आवश्यक है कि अज्ञात तिथि-समय वाले के लिये भी जन्मकुंडली बनाने की विधि है जिसे नष्टजातक कहा जाता है किन्तु उसकी गणना भी पुनः जटिल हो जाती है। नष्टजातक का तात्पर्य है तिथि और समय दोनों में से कुछ भी ज्ञात न हो। ऐसी स्थिति में नष्टजातक की विधि से बनायी गयी जन्म कुंडली के आधार पर ही चंद्र कुंडली का निर्माण किया जा सकता है। किन्तु जिसका जन्म समय ज्ञात न हो किन्तु जन्म तिथि ज्ञात हो उसकी चंद्र कुंडली सरलता से बनायी जा सकती है।

चंद्र कुंडली से भी जन्म कुंडली के समान ही फलादेश किया जा सकता है इसका तात्पर्य है कि चंद्र कुंडली भी जन्म कुंडली के समान ही महत्वपूर्ण होता है। मंगली दोष का विचार करने के लिये भी चंद्र कुंडली से विचार करने की विधि भी बताई गयी है। यद्यपि सॉफ्टवेयर और मोबाईल ऐप के माध्यम से बनने वाली जन्म पत्रिका में चंद्र कुंडली के अनुसार विचार नहीं किया जाता है, मात्र जन्म कुंडली से ही मंगली दोष का निर्णय अंकित रहता है और इस कारण यह आवश्यक होता है कि हम सॉफ्टवेयर/मोबाइल ऐप से फलादेश कर रहे हों तो उस समय चंद्र राशि से भी विचार करें।

चंद्र कुंडली का महत्व इतना अधिक होता है कि बहुत लोगों के जीवन में लग्न कुंडली की अपेक्षा चंद्र कुंडली के अनुसार ही घटनाएं घटित होती है। इस कारण चंद्र कुंडली की उपेक्षा कदापि नहीं करनी चाहिये अपितु ज्योतिषी को फलादेश करने से पूर्व जन्म कुंडली और चंद्र कुंडली दोनों का परीक्षण करना चाहिये की जातक के जीवन में किसका अधिक प्रभाव है और तदनुसार ही फलादेश करना चाहिये।

चंद्र कुंडली का एक महत्व यह भी होता है कि यदि चंद्र कुंडली से फलादेश करने में महारत सिद्ध हो जाये तो बिना कोई गणित किये ही फलादेश किया जा सकता है।

अर्थात जिस प्रकार पौराणिक कथाओं में ध्यान लगाकर भविष्यवाणी करने की कथायें मिलती है उस प्रकार से मात्र राशि और तदनुसार विभिन्न भावों में ग्रहों की स्थिति (चंद्र कुंडली के अनुसार) ज्ञात करके के ही फलादेश किया जा सकता है। किन्तु इस विधि के लिये महादशाओं के अनुमान में भी पारंगत होना आवश्यक होगा।

चंद्र कुंडली कैसे बनायें

अब हम चंद्र कुंडली बनाना सीखेंगे और इसके लिये पूर्व आलेख में हृषीकेश पंचांग से जिस तीन लग्न कुंडली का निर्माण किया गया था उसी के आधार पर यहां उन तीनों की चंद्र कुंडली बनाकर देखेंगे। इसके लिये हमें प्रथम उन तीनों लग्न कुंडली की आवश्यकता होगी जो इस प्रकार है :

प्रथम कुंडली - लग्न ११/०५
प्रथम कुंडली – लग्न ११/०५
द्वितीय कुंडली - लग्न ४/२९
द्वितीय कुंडली – लग्न ४/२९
तृतीय कुंडली - लग्न ७/१३
तृतीय कुंडली – लग्न ७/१३

पूर्व आलेख में हमने हृषीकेश पंचांग से इसी तीनों कुंडली का निर्माण किया था यदि आपने पूर्व आलेख नहीं पढ़ा है और हृषीकेश पंचांग से जन्म कुंडली बनाना सीखना चाहते हैं तो यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं। आगे हम उपरोक्त तीनों लग्न कुंडली के अनुसार राशि कुंडली का निर्माण करेंगे। किन्तु यदि ग्रह स्थिति वाली सारणी लें तो उससे भी निर्माण कर सकते हैं, हमने जो जानकारी ग्रह स्पष्ट सारणी से प्राप्त होगी वही जानकारी यहां इन तीनों कुंडली से भी मिल रही है।

प्रश्न : चंद्र कुंडली बनाने के लिये हमें क्या-क्या आवश्यकता होती है ?

उत्तर : चंद्र कुंडली बनाने के लिये हमें सूर्यादि सभी ग्रहों की राशियों की आवश्यकता होती है। जिन ग्रहों की राशियां निर्दिष्ट दिन में बदलती हो उसके लिये हमें यह जानना आवश्यक होता है कि इष्टकाल से पूर्व ग्रह का राशि परिवर्तन हुआ था अथवा नहीं। दैनिक रूप से मुख्यतः चन्द्रमा का ही राशि परिवर्तन होता है, लगभग ढाई दिन में चंद्रमा का राशि परिवर्तन होता है।

हम ग्रह सारणी का अवलोकन करें अथवा उपरोक्त लग्न कुंडलियों का हमें ग्रहों की राशियां ज्ञात हो जाती है जो इस प्रकार है :

ग्रहप्रथम कुंडली – लग्न ११/०५द्वितीय कुंडली – लग्न ४/२९तृतीय कुंडली – लग्न ७/१३
सूर्यधनु (९)धनु (९)धनु (९)
चंद्रधनु (९)मेष (१)मिथुन (३)
मंगलकर्क (४)कर्क (४)कर्क (४)
बुधवृश्चिक (८)धनु (९)धनु (९)
गुरुवृष (२)वृष (२)वृष (२)
शुक्रकुम्भ (११)कुम्भ (११)कुम्भ (११)
शनिकुम्भ (११)कुम्भ (११)कुम्भ (११)
राहुमीन (१२)मीन (१२)मीन (१२)
केतुकन्या (६)कन्या (६)कन्या (६)

इस सारणी से हमें सूर्यादि ग्रहों की राशियां ज्ञात हो जाती है और अब बात आती है कि लग्न में कौन सी राशि अंकित करें। चंद्र कुंडली में लग्न चंद्र की राशि ही होती है अर्थात चंद्र राशि को लग्न मानकर जो कुंडली बनायी जाती है वह चंद्र कुंडली अथवा राशि कुंडली होती है।

चंद्र कुंडली बनाने के नियम

  1. जिस प्रकार लग्न कुंडली के प्रथम भाव में लग्न राशि अंकित करके कुंडली बनायी जाती है उसी प्रकार चंद्र कुंडली बनाने के लिये कुंडली के प्रथम भाव में चंद्र की राशि (अंक) अंकित करें।
  2. तदनन्तर द्वितीयादि भावों में उत्तरोत्तर राशियां (अंक) अंकित करें।
  3. फिर ग्रहों की राशि के अनुसार चंद्र कुंडली के विभिन्न भावों में उनको अंकित करें।
  4. चंद्र कुंडली का लग्न चंद्र राशि ही होता है अर्थात चंद्र कुंडली अथवा राशि कुंडली के लग्न में चन्द्रमा की राशि भी होती है और चंद्र भी लग्न भाव में ही अंकित होता है।
  • हमें प्रथम कुंडली के लिये जो चंद्र राशि मिल रही है वो है धनु और धनु राशि का क्रम ९ है अर्थात प्रथम चंद्र कुंडली के प्रथम भाव में हम ९ (धनु) अंकित करेंगे और तदनन्तर
  • द्वितीयादि भावों में १०, ११ आदि आदि अंकित करेंगे।
  • फिर ग्रहों की राशियों के अनुसार जिस राशि में जो ग्रह हो उसी में उसका स्थापन करेंगे।
  • इसी प्रकार से द्वितीय कुंडली की चंद्र राशि मेष है जिसका क्रम १ है और द्वितीय चंद्र कुंडली के प्रथम भाव में १ अंकित करेंगे शेष यथावत।
  • इसी प्रकार से तृतीय जन्म कुंडली के लिये हमें चंद्र राशि मिथुन मिलती है जिसका क्रम ३ है अर्थात तृतीय चंद्र कुंडली के प्रथम भाव में ३ अंकित करेंगे, शेष यथावत।

चंद्र कुंडली में लग्न (ल.) अंकित करना अनिवार्य नहीं होता है तथापि चूंकि लग्न ज्ञात रहता है और यदि चंद्र कुंडली में भी लग्न राशि में यदि “ल.” अंकित करते हैं तो समझने में अच्छा रहता है इसलिये लग्न की जो राशि होती है उसमें “ल.” भी अंकित करेंगे।

प्रथम चंद्र कुंडली - लग्न ११/०५
प्रथम चंद्र कुंडली – लग्न ११/०५
द्वितीय चंद्र कुंडली - लग्न ४/२९
द्वितीय चंद्र कुंडली – लग्न ४/२९
तृतीय चंद्र कुंडली - लग्न ७/१३
तृतीय चंद्र कुंडली – लग्न ७/१३

इस प्रकार से पूर्व आलेख में हृषीकेश पंचांग से जो तीन लग्न कुंडली बनायी गयी थी उसी के अनुसार तीन चंद्र कुंडली बनायी गयी है जो ऊपर दी गयी है और इस प्रकार से चंद्र कुंडली बनाना सीखा जा सकता है।

विद्वद्जनों से पुनः आग्रह है कि आलेख में यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि मिले तो हमें टिप्पणी/ईमेल करके अवश्य अवगत करने की कृपा करें।

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